क्या रेप केस में आरोपी को जमानत मिल सकती है? जानिए BNS 64 के तहत बेल से जुड़ी कानूनी प्रक्रिया

Can the accused get bail in a rape case Know the legal process related to bail under BNS 64

भारत में बलात्कार (रेप) एक गंभीर और दंडनीय अपराध है, जिसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत परिभाषित किया गया है। यह अपराध गैर-जमानती श्रेणी में आता है, यानी आरोपी को स्वतः बेल नहीं मिलती है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में आरोपी व्यक्ति अदालत से बेल के लिए आवेदन कर सकता है।

BNS 64 के तहत रेप की परिभाषा

IPC की धारा 63के अनुसार, यदि कोई पुरुष निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी महिला के साथ जबरन या धोखे से यौन संबंध बनाता है, तो यह बलात्कार की श्रेणी में आता है:

  • महिला की इच्छा के विरुद्ध
  • महिला की सहमति के बिना
  • जबरदस्ती, डर या दबाव में ली गई सहमति
  • सहमति देने वाली महिला को कानूनी स्थिति की गलत जानकारी देना (जैसे कि पति होने का झूठा दावा)
  • नशा या मानसिक असमर्थता की स्थिति में सहमति लेना
  • यदि महिला की आयु 18 वर्ष से कम है, तो उसकी सहमति भी मान्य नहीं मानी जाती

जमानत: अधिकार नहीं, न्यायालय का विवेक

BNS 64 के अंतर्गत बलात्कार एक गैर-जमानती अपराध है। इसका तात्पर्य है कि आरोपी को जमानत केवल तभी मिल सकती है जब न्यायालय को यह प्रतीत हो कि:

  • आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं,
  • वह फरार नहीं होगा,
  • वह साक्ष्यों या गवाहों को प्रभावित नहीं करेगा,
  • वह जांच में पूरा सहयोग देगा।

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क्या रेप केस में बेल मिल सकती है?

रेप के मामलों में आरोपी को बेल मिलना आसान नहीं होता क्योंकि यह एक गंभीर अपराध है। फिर भी, अगर आरोपी निर्दोष है या उस पर झूठा आरोप लगाया गया है, तो वह निम्नलिखित कानूनी विकल्पों के जरिए बेल के लिए आवेदन कर सकता है:

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1. अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) – BNSS 482

यदि किसी व्यक्ति को अंदेशा है कि उसके खिलाफ रेप का झूठा मुकदमा दर्ज किया जा सकता है, तो वह गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत के लिए सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय में आवेदन कर सकता है। हालांकि, BNS 64 जैसे गंभीर मामलों में कोर्ट अग्रिम जमानत देने से पहले पीड़िता की रिपोर्ट और साक्ष्यों की गहन जांच करता है।

2. नियमित जमानत (Regular Bail) – BNSS 483

यदि आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है, तो वह धारा 483 के तहत नियमित जमानत के लिए उच्चतर अदालत (सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट) में आवेदन कर सकता है। कोर्ट जमानत देते समय निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार करती है:

  • प्राथमिक दृष्टि से उपलब्ध साक्ष्य
  • आरोप की गंभीरता
  • आरोपी का आपराधिक इतिहास
  • पीड़िता या गवाहों को प्रभावित करने की संभावना

झूठे रेप केस: बढ़ती चिंता

अनेक मामलों में यह देखा गया है कि बलात्कार के आरोप निजी विवाद, असफल प्रेम संबंध, या दबाव के चलते झूठे लगाए जाते हैं। ऐसे मामलों में आरोपी का जीवन, करियर और सामाजिक प्रतिष्ठा बर्बाद हो जाती है, भले ही अंततः वह निर्दोष साबित हो जाए।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • न्यायालयों ने कई बार कहा है कि “झूठे आरोप लगाना भी मानसिक उत्पीड़न है।”
  • साक्ष्य के अभाव में अभियुक्त को जमानत मिल सकती है।
  • झूठे मामलों में शिकायतकर्ता के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि रेप जैसे गंभीर मामलों में यदि यह स्पष्ट हो जाए कि शिकायत दुर्भावना से प्रेरित है, तो आरोपी को जमानत दी जा सकती है। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा है कि जांच के बिना गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए।

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अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014)

  • इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा हर गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है। गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए।
  • इस निर्णय में न्यायालय ने यह निर्देश दिया कि गैर-जमानती अपराधों में भी पुलिस को बिना जांच गिरफ्तारी नहीं करनी चाहिए।

ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2013)

  • इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हर FIR पर अनिवार्य रूप से गिरफ्तारी करना उचित नहीं है। मामले की प्रारंभिक जांच होनी चाहिए।
  • यह फैसला खासकर उन मामलों में महत्वपूर्ण है जहां FIR में गंभीर आरोप तो हों, पर साक्ष्य कमजोर हों।

दीपक शर्मा बनाम मध्यप्रदेश राज्य (2021)

इस केस में उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि महिला और पुरुष के बीच पारस्परिक सहमति से संबंध थे और बाद में विवाद उत्पन्न हुआ, तो बलात्कार का आरोप टिकाऊ नहीं हो सकता।

आरोपी की कानूनी सुरक्षा के उपाय

बलात्कार जैसे मामलों में यदि आरोपी निर्दोष है, तो उसे निम्न कानूनी उपाय अपनाने चाहिए:

  • एफआईआर की प्रति लेकर, तुरंत उसका अध्ययन करें,
  • अग्रिम या नियमित जमानत की प्रक्रिया प्रारंभ करें,
  • साक्ष्य संकलित करें – चैट, रिकॉर्डिंग, गवाह आदि,
  • कानूनी सलाहकार से परामर्श लें,
  • मानहानि और झूठी शिकायत के लिए अलग से मामला दायर करें (धारा 182, 211)।

निष्कर्ष:

रेप जैसे गंभीर मामलों में जहां BNS 64 के तहत आरोपी को बिना जांच गिरफ्तार किया जाता है, वहां न्याय की मूल भावना पर प्रश्न उठते हैं। यदि आरोपी निर्दोष है या मामला झूठा है, तो उसे भारतीय संविधान और कानूनों के तहत उचित संरक्षण मिलना चाहिए। कोर्ट्स का यह रुख पीड़ितों के साथ-साथ झूठे आरोपों से फंसे निर्दोषों को भी समान रूप से न्याय दिलाने की दिशा में एक सशक्त कदम है।

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FAQs

1. क्या BNS 64में अग्रिम जमानत मिल सकती है?

हां, लेकिन बहुत सीमित परिस्थितियों में। यदि आरोपी यह साबित कर सके कि आरोप झूठे हैं और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, तो हाई कोर्ट या सेशन कोर्ट अग्रिम जमानत दे सकता है।

2. रेप केस में बेल मिलने में कितना समय लगता है?

यह इस पर निर्भर करता है कि मामला किस अदालत में लंबित है, आरोपी का पक्ष कितना मजबूत है और चार्जशीट दायर हो चुकी है या नहीं।

3. क्या झूठे रेप केस में पीड़िता के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है?

अगर अदालत यह साबित मान ले कि शिकायतकर्ता ने जानबूझकर झूठा मामला दर्ज किया है, तो IPC की धारा 182 और 211 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

4. क्या आरोपी को बेल मिलने के बाद भी केस चलता रहता है?

हां, बेल का मतलब केवल अस्थायी रूप से जेल से रिहाई है। केस की सुनवाई और अंतिम निर्णय तब भी जारी रहता है।

5. रेप केस में बेल के लिए किन दस्तावेज़ों की जरूरत होती है?

  • एफआईआर की कॉपी
  • आरोपी का पहचान पत्र
  • मेडिकल और अन्य साक्ष्य
  • वकील द्वारा तैयार बेल एप्लिकेशन
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