एफआईआर (First Information Report) भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 के अंतर्गत दर्ज किया जाने वाला वह दस्तावेज़ है जो किसी संज्ञेय अपराध की सूचना के आधार पर पुलिस द्वारा तैयार किया जाता है। एफआईआर दर्ज होने के साथ ही आपराधिक प्रक्रिया की शुरुआत हो जाती है। हालांकि, कभी-कभी लोग व्यक्तिगत रंजिश, बदला या झूठे आरोपों के ज़रिए निर्दोष व्यक्ति को परेशान करने के लिए झूठी एफआईआर दर्ज करवा देते हैं। यह कानून का गंभीर दुरुपयोग है और इसके खिलाफ कानूनी रास्ते उपलब्ध हैं।
झूठी एफआईआर की पहचान कैसे करें?
- आरोप अत्यधिक सामान्य, असंगत या असंभव प्रतीत हों
- कोई ठोस साक्ष्य या गवाह न हो
- शिकायतकर्ता की पृष्ठभूमि संदिग्ध हो
- मामला पारिवारिक या संपत्ति विवाद से प्रेरित हो
झूठी एफआईआर रद्द करवाने के लिए कानूनी उपाय
अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) – धारा 482 BNSS: अगर एफआईआर दर्ज हो चुकी है लेकिन अभी गिरफ्तारी नहीं हुई है, तो व्यक्ति अग्रिम जमानत के लिए सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय में आवेदन कर सकता है। कोर्ट यह देखेगा कि मामला झूठा या द्वेष से प्रेरित है या नहीं। यदि कोर्ट को उचित लगे तो आरोपी को गिरफ्तारी से संरक्षण दिया जाता है।
झूठी एफआईआर को रद्द करवाना – धारा 528 BNSS: यदि एफआईआर झूठी है और आरोपों का कोई कानूनी आधार नहीं है, तो आरोपी व्यक्ति उच्च न्यायालय में BNSS की धारा 528 के अंतर्गत याचिका दायर कर सकता है। अदालत अपने विवेकाधिकार से ऐसे मामलों में एफआईआर रद्द कर सकती है।
संवैधानिक उपाय – रिट याचिका (Article 226 / 32): कोई भी व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) या सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) में रिट याचिका दाखिल कर सकता है, खासकर तब जब एफआईआर द्वेषपूर्ण हो या मूल अधिकारों का उल्लंघन करती हो।
प्रमुख निर्णय
हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल (1992) – मुख्य बातें:
- एफआईआर रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिशानिर्देश तय किए, जो आज भी कानूनी मिसाल माने जाते हैं।
- अगर एफआईआर झूठी, अविश्वसनीय या बदले की भावना से दर्ज की गई हो, तो उसे रद्द किया जा सकता है।
- अगर एफआईआर में कोई अपराध बन ही नहीं रहा, या उसका उद्देश्य सिर्फ किसी को परेशान करना है, तो कोर्ट उसे खत्म कर सकता है।
- यह फैसला आज भी झूठी एफआईआर से जुड़े मामलों में अदालतों द्वारा रेफर किया जाता है।
झूठी एफआईआर के खिलाफ प्रतिवाद
मानहानि का दावा – BNS Sections 356: यदि किसी ने जानबूझकर झूठी एफआईआर दर्ज कर आपकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है, तो आप भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के तहत आपराधिक मानहानि का केस दर्ज कर सकते हैं। दोषी को अधिकतम 2 साल की सजा, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
गलत आरोप और अवैध गिरफ्तारी – BNS Section 258: यदि कोई अधिकारी या व्यक्ति जानबूझकर आपको झूठे मामले में फंसाता है, तो उसके खिलाफ धारा 258 के तहत मामला दर्ज हो सकता है जिसमें अधिकतम 7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
मुआवजा पाने की कार्यवाही – CPC Section 19: आप सिविल कोर्ट में सीपीसी की धारा 19 के तहत मुआवजा मांग सकते हैं यदि आपको झूठी एफआईआर की वजह से मानसिक, सामाजिक या आर्थिक नुकसान हुआ हो।
महत्वूर्ण न्यायिक निर्णय
यशपाल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
कोर्ट: इलाहाबाद हाईकोर्ट (मार्च 2024)
मुख्य बिंदु:
- अगर FIR दुश्मनी, रंजिश या राजनीतिक दबाव के कारण दर्ज हुई हो, तो वह रद्द की जा सकती है।
- CrPC की धारा 482/ BNSS 528 के तहत कोर्ट को यह अधिकार है।
- महत्वपूर्ण टिप्पणी: “FIR को उत्पीड़न का हथियार नहीं बनने देना चाहिए।”
राजेश पटेल बनाम गुजरात राज्य
कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट (जनवरी 2024)
मुख्य बिंदु:
- सिर्फ शक या पारिवारिक विवाद के आधार पर दर्ज FIR, जो असल में सिविल विवाद हो, वह रद्द की जा सकती है।
- False FIR = कानून का दुरुपयोग + मानसिक प्रताड़ना।
- CrPC 482/ BNSS 528 के तहत राहत संभव।
मंजू देवी बनाम राजस्थान राज्य
कोर्ट: राजस्थान हाईकोर्ट (अगस्त 2023)
मुख्य बिंदु:
- जांच में अगर कोई ठोस सबूत नहीं मिलता और मामला झूठा (fabricated) साबित होता है, तो आरोपी मानहानि का केस कर सकता है।
- IPC की धारा 220/ BNS 258 और 500/ BNS 356 के तहत मानहानि और उत्पीड़न का दावा किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
झूठी एफआईआर दर्ज करवाना न केवल कानून का दुरुपयोग है, बल्कि यह एक निर्दोष व्यक्ति के जीवन, सम्मान और मानसिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित करता है। ऐसे मामलों में तत्काल कानूनी सलाह लेना और उचित विधिक कार्रवाई करना जरूरी है। भारत की न्यायपालिका झूठे मुकदमों के खिलाफ व्यक्ति की रक्षा के लिए प्रभावी उपाय प्रदान करती है, बशर्ते आप अपने अधिकारों को सही तरीके से समझें और उपयोग करें।
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FAQs
1. क्या झूठी एफआईआर को सीधे रद्द किया जा सकता है?
हां, उच्च न्यायालय BNSS की धारा 528 के तहत झूठी एफआईआर को रद्द कर सकता है यदि आरोप पूर्णतः अविश्वसनीय, द्वेषपूर्ण या कानून के अनुसार अपराध नहीं हैं।
2. अगर एफआईआर के बाद गिरफ्तारी का डर हो तो क्या करें?
आप सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत (धारा 482 BNSS) के लिए आवेदन कर सकते हैं।
3. झूठी एफआईआर दर्ज करवाने वाले के खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकती है?
उसके खिलाफ BNS की धारा 258, 356 के तहत कार्रवाई की जा सकती है और आप मुआवजा भी मांग सकते हैं।
4. क्या पुलिस बिना जांच के एफआईआर दर्ज कर सकती है?
हां, संज्ञेय अपराध में पुलिस को प्राथमिक जांच के बिना एफआईआर दर्ज करनी होती है, लेकिन जांच के बाद अगर मामला झूठा निकला तो उसे बंद किया जा सकता है।
5. क्या सुप्रीम कोर्ट का भजन लाल केस आज भी मान्य है?
हां, ‘हरियाणा बनाम भजन लाल’ केस आज भी एफआईआर रद्द करने के मामलों में सबसे अधिक उद्धृत और मान्य निर्णयों में से एक है।



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