भारत में बलात्कार (रेप) एक गंभीर और संवेदनशील अपराध है, जिसे भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत विशेष रूप से दंडनीय बनाया गया है। रेप पीड़िता को न्याय दिलाने की प्रक्रिया में मेडिकल एग्जामिनेशन एक अत्यंत आवश्यक कड़ी है। यह न केवल अपराध की पुष्टि में मदद करता है, बल्कि पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्थिति को समझने और साक्ष्य एकत्र करने में भी सहायक होता है।
रेप की कानूनी परिभाषा –भारतीय न्याय संहिता की धारा 63
रेप को BNS की धारा 63 में परिभाषित किया गया है। इस धारा के अनुसार निम्नलिखित स्थितियों में रेप की घटना मानी जाएगी:
- महिला की मर्जी के बिना उसके शरीर में जबरन प्रवेश करना।
- धमकी, धोखा या जबरदस्ती से संबंध बनाना।
- अवयस्क (18 वर्ष से कम) लड़की के साथ यौन संबंध बनाना चाहे वह सहमत हो या नहीं।
- महिला को नशे की हालत, मानसिक असमर्थता, या उसकी विवेकहीन स्थिति में यौन संबंध के लिए मजबूर करना।
- महिला को पति होने का झूठा विश्वास दिलाकर संबंध बनाना।
यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी तरह का गैर-सहमति से यौन प्रवेश, बलात्कार की श्रेणी में आता है।
मेडिकल एग्जामिनेशन क्यों जरूरी है?
रेप के मामलों में पीड़िता का मेडिकल एग्जामिनेशन:
- अपराध की पुष्टि करने,
- साक्ष्य एकत्र करने,
- पीड़िता की शारीरिक स्थिति का मूल्यांकन करने,
- और आरोपी को पहचानने हेतु बेहद महत्वपूर्ण होता है।
इस जांच से:
- शरीर पर हुए चोटों के निशान,
- जबरदस्ती के संकेत,
- गर्भधारण की संभावना,
- यौन संक्रामक रोग,
- और डीएनए प्रोफाइलिंग हेतु सैंपल लिए जाते हैं।
मेडिकल जांच के बिना कई बार अदालत में सबूतों की कमी के चलते आरोपी बरी हो जाता है, जिससे पीड़िता को न्याय नहीं मिल पाता।
मेडिकल जांच की प्रक्रिया – BNSS की धारा 51
BNSS की धारा 51 और 184 के अंतर्गत रेप के मामलों में मेडिकल एग्जामिनेशन की पूरी प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। इस जांच को केवल सरकारी अस्पताल या अधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए।
प्रक्रिया में शामिल बातें:
- पीड़िता और आरोपी का पूरा नाम व आयु
- शारीरिक चोटों की जांच और फोटो डाक्यूमेंटेशन
- स्वैब सैंपल, कपड़े, बाल, नाखून, और अन्य जैविक साक्ष्य
- डीएनए प्रोफाइलिंग हेतु रक्त या अन्य सैंपल संग्रह
- जांच का साक्ष्य लिफाफा, मजिस्ट्रेट के समक्ष जमा किया जाता है
- मेडिकल रिपोर्ट की एक कॉपी पीड़िता को अनिवार्य रूप से दी जाती है (यह उसका कानूनी अधिकार है)
महत्वपूर्ण: पीड़िता की सहमति के बिना कोई जांच नहीं की जा सकती। उसे यह बताना कि जांच क्यों की जा रही है और इसमें क्या शामिल होगा – अनिवार्य है।
कानूनी अधिकार और सुरक्षा उपाय
- मेडिकल जांच पीड़िता की गोपनीयता बनाए रखते हुए होनी चाहिए।
- मेडिकल स्टाफ को संवेदनशील और प्रशिक्षित होना चाहिए।
- पीड़िता को जांच के दौरान किसी भी तरह की असुविधा या असम्मान न झेलना पड़े, इसके लिए निर्देशित SOP लागू होती है।
- पीड़िता को महिला डॉक्टर द्वारा जांच कराने का अधिकार है।
नवीनतम निर्देश और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट – 2023
- चिकित्सा परीक्षण में देरी नहीं होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िताओं के चिकित्सा परीक्षण में किसी भी प्रकार की देरी को अस्वीकार्य बताया है।
- रिपोर्ट की समय पर उपलब्धता: पीड़िता को चिकित्सा रिपोर्ट की प्रति समय पर उपलब्ध कराई जानी चाहिए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया में कोई विघ्न न आए।
दिल्ली उच्च न्यायालय – 2024 (State v. Ramesh)
- चिकित्सा परीक्षण की अनुपस्थिति में आरोपी को बरी किया गया: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि “शारीरिक साक्ष्य की अनुपस्थिति में आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाता है।”
- प्रक्रिया में अनियमितताएँ: कोर्ट ने जांच में हुई प्रक्रियागत अनियमितताओं के कारण अभियोजन को कमजोर पाया, जिससे आरोपी को संदेह का लाभ मिला।
स्वास्थ्य मंत्रालय दिशानिर्देश – 2022
- वन स्टॉप सेंटर की स्थापना: स्वास्थ्य मंत्रालय ने बलात्कार पीड़िताओं के लिए वन स्टॉप सेंटर स्थापित करने के निर्देश दिए हैं, जहाँ उन्हें चिकित्सा, कानूनी और मानसिक सहायता एक ही स्थान पर मिल सके।
- तत्काल चिकित्सा सहायता प्रोटोकॉल: पीड़िताओं को तुरंत चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए प्रोटोकॉल बनाए गए हैं, ताकि उनका उपचार शीघ्र और प्रभावी रूप से किया जा सके।
निष्कर्ष:
रेप जैसे संवेदनशील मामलों में न्याय की प्रक्रिया को मजबूत और सटीक बनाने के लिए मेडिकल एग्जामिनेशन एक अपरिहार्य कदम है। यह पीड़िता को न केवल न्याय की दिशा में मदद करता है, बल्कि आरोपी के खिलाफ ठोस साक्ष्य तैयार करने का भी आधार बनता है। जांच की गोपनीयता, पीड़िता की सहमति और सम्मान के साथ होना ही इस प्रक्रिया का मूल है।
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FAQs
1. क्या रेप केस में मेडिकल एग्जामिनेशन अनिवार्य है?
हां, न्यायिक जांच के लिए यह बेहद जरूरी और वैध प्रमाण होता है।
2. क्या पीड़िता को मेडिकल रिपोर्ट की कॉपी मिलती है?
हां, BNSS की धारा 184 के तहत रिपोर्ट की कॉपी पीड़िता को दी जानी चाहिए।
3. क्या बिना सहमति मेडिकल जांच की जा सकती है?
नहीं, जांच के लिए पीड़िता की लिखित सहमति आवश्यक है।
4. क्या महिला डॉक्टर से जांच की मांग की जा सकती है?
हां, यह पीड़िता का संवैधानिक और नैतिक अधिकार है।
5. क्या मेडिकल एग्जामिनेशन आरोपी के लिए भी किया जाता है?
हां, आरोपी की भी जांच की जाती है जिससे DNA प्रोफाइलिंग और शारीरिक साक्ष्य एकत्रित किए जा सकें।



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