धारा 143A (NI Act) के तहत चेक बाउंस में सजा कब दी जाती है?

When is punishment given for cheque bounce under section 143A (NI Act)

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (Negotiable Instruments Act), 1881 भारत में वाणिज्यिक और बैंकिंग लेनदेन को सुव्यवस्थित और सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया था। इसमें चेक, हंडियों, प्रॉमिसरी नोट आदि के माध्यम से वित्तीय लेन-देन की प्रक्रिया को वैधता प्रदान की गई है।

इस अधिनियम की कई धाराएं विशेष रूप से चेक बाउंस मामलों से संबंधित हैं। धारा 138 के अंतर्गत चेक बाउंस को आपराधिक अपराध घोषित किया गया है, वहीं धारा 143A, जो वर्ष 2018 में जोड़ी गई थी, अदालत को मुकदमे की प्रक्रिया के दौरान अंतरिम मुआवजा देने का अधिकार देती है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि धारा 143A क्या है, यह कब लगती है, और इसमें क्या सजा या जुर्माने का प्रावधान है।

चेक बाउंस क्या होता है?

जब कोई व्यक्ति किसी को चेक देता है लेकिन उसके खाते में पर्याप्त राशि नहीं होती और बैंक उस चेक को अस्वीकार कर देता है, तो इसे ‘चेक बाउंस‘ कहा जाता है।

चेक बाउंस के कुछ प्रमुख कारण:

  • खाते में अपर्याप्त राशि
  • गलत हस्ताक्षर
  • तकनीकी त्रुटि
  • जानबूझकर धोखाधड़ी की मंशा से चेक देना

ऐसे मामलों में, जहां कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी को धोखा देने के लिए चेक जारी करता है, उसे नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 और 143A के अंतर्गत दंडित किया जा सकता है।

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धारा 143A NI Act क्या कहती है?

धारा 143A वर्ष 2018 में एक संशोधन के माध्यम से NI एक्ट में जोड़ी गई थी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि मुकदमे की लंबी प्रक्रिया के दौरान शिकायतकर्ता को कुछ राहत मिले।

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इस धारा के अंतर्गत:

  • अदालत को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह मुकदमे की कार्यवाही के दौरान आरोपी को अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दे सके।
  • यह मुआवजा अधिकतम चेक राशि का 20% तक हो सकता है।
  • दोष सिद्ध होने पर आरोपी को 2 साल तक की सजा या चेक राशि का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।

धारा 143A की उपधाराएं – सरल व्याख्या

उपधारा (1): अदालत आरोपी को अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दे सकती है। यह मुआवजा अधिकतम चेक राशि का 20% हो सकता है।

उपधारा (2): अंतरिम मुआवजा किसी भी स्थिति में चेक राशि के 20% से अधिक नहीं हो सकता।

उपधारा (3): यह मुआवजा आरोपी को 60 दिनों के भीतर जमा करना होता है।

उपधारा (4): यदि आरोपी 60 दिन में राशि नहीं देता है, तो 30 दिन की अतिरिक्त मोहलत दी जा सकती है। इसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

उपधारा (5): यदि आरोपी 30 दिन की अतिरिक्त अवधि में भी भुगतान नहीं करता है, तो अदालत BNSS की धारा 461 के तहत जबरन वसूली का आदेश दे सकती है, जिसमें संपत्ति की कुर्की जैसे उपाय शामिल होते हैं।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 461 का क्या मतलब है?

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 461 अदालत को यह अधिकार देती है कि वह किसी आरोपी से जुर्माना या मुआवजा वसूलने के लिए उसकी संपत्ति की कुर्की, वेतन कटौती या अन्य जबरन वसूली के आदेश दे सके। यह तब लागू होता है जब आरोपी स्वेच्छा से राशि का भुगतान करने में असफल रहता है।

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धारा 143A और धारा 138 में क्या अंतर है?

बिंदुधारा 138धारा 143A
उद्देश्यचेक बाउंस को अपराध बनानाचेक बाउंस मामलों में अंतरिम मुआवजा सुनिश्चित करना
कार्यवाही का समयदोष सिद्ध होने के बादमुकदमे की प्रक्रिया के दौरान
सजा का प्रावधान2 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनोंअंतरिम मुआवजा (20%) + अंतिम सजा धारा 138 के अनुसार

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय 

जी जयंती बनाम आर शंकर, 2022

  • धारा 143A के तहत अंतरिम मुआवजा तभी दिया जा सकता है जब अभियुक्त के खिलाफ आरोप तय हो चुके हों।
  • अंतरिम मुआवजा का आदेश तभी संभव है जब मुकदमा शुरू हो चुका हो।
  • यदि आरोपी दोष स्वीकार नहीं करता और मामला प्रारंभिक स्तर पर है, तो अंतरिम मुआवजा नहीं दिया जा सकता।
  • अदालत तब तक अंतरिम मुआवजा नहीं दे सकती जब तक मामले को गंभीरता से संज्ञान में न ले।

एमएस। मीटर और उपकरण प्रा. लिमिटेड और अन्य. बनाम कंचन मेहता, 2018

  • चेक बाउंस मामलों में न्यायालय तेजी से फैसले के लिए धारा 143A और 148 का इस्तेमाल कर सकती है।
  • यह निर्णय 2018 के NI एक्ट संशोधन से पहले का है, लेकिन प्रावधानों की भावना का समर्थन करता है।
  • आर्थिक मामलों में अभियुक्त को त्वरित राहत या सजा देने के लिए अंतरिम मुआवजा आवश्यक है।
  • इस फैसले ने न्याय प्रक्रिया को त्वरित और प्रभावी बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है।

निष्कर्ष

धारा 143A, NI Act का एक शक्तिशाली प्रावधान है जो चेक बाउंस पीड़ितों को मुकदमे के दौरान राहत देता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से बच न सके और शिकायतकर्ता को तुरंत न्यायिक सहायता मिल सके। यह धारा उन लोगों के लिए चेतावनी है जो जानबूझकर बिना बैलेंस के चेक जारी करते हैं।

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FAQs

1. धारा 143A कब लागू होती है? 

जब चेक बाउंस का मुकदमा अदालत में विचाराधीन हो और प्रथम दृष्टया आरोपी के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हों, तब अदालत धारा 143A के तहत अंतरिम मुआवजा निर्धारित कर सकती है।

2. क्या धारा 143A के तहत सजा भी हो सकती है? 

हां, दोष सिद्ध होने पर 2 साल तक की जेल या चेक राशि का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

3. अगर आरोपी मुआवजा नहीं दे तो क्या होगा? 

अदालत CrPC की धारा 421 के अंतर्गत संपत्ति कुर्क करके या वेतन कटौती से राशि की वसूली कर सकती है।

4. क्या अंतरिम मुआवजा अंतिम सजा से अलग होता है? 

हां, अंतरिम मुआवजा केवल प्रक्रिया के दौरान दिया जाता है; अंतिम सजा या जुर्माना अलग से निर्धारित होता है।

5. क्या अदालत हर केस में 143A लागू करती है?

नहीं, यह अदालत के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है कि वह किस मामले में 143A के तहत अंतरिम मुआवजा दे।

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