क्या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को ब्रांड डील के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन करना जरूरी है?

Do social media influencers need to sign a contract for brand deals?

आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह एक शक्तिशाली कमाई और ब्रांड प्रमोशन का ज़रिया बन गया है। इंस्टाग्राम, यूट्यूब, ट्विटर और यहां तक कि फेसबुक पर लाखों-करोड़ों फॉलोअर्स वाले इन्फ्लुएंसर ब्रांड्स के लिए एक नया मार्केटिंग टूल बन गए हैं।

ब्रांड डील्स यानी किसी ब्रांड द्वारा इन्फ्लुएंसर को उनके प्रोडक्ट या सर्विस का प्रमोशन करने के लिए दिया गया भुगतान या लाभ। लेकिन सवाल उठता है, क्या यह सब बिना किसी कानूनी कॉन्ट्रैक्ट के किया जा सकता है? इसका जवाब है – हाँ।

इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि क्या ब्रांड डील के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन करना जरूरी है, इसके फायदे, कानूनी पक्ष और क्या जोखिम हो सकते हैं।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

क्या ब्रांड डील के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन करना कानूनी रूप से जरूरी है?

बहुत से लोग सोचते हैं कि सोशल मीडिया पर ब्रांड डील सिर्फ एक आम समझौता है, लेकिन अगर आप पैसे ले रहे हैं या किसी ब्रांड के लिए प्रमोशन कर रहे हैं, तो लिखित कॉन्ट्रैक्ट करना आपके लिए बहुत जरूरी हो जाता है।

भारतीय कानून क्या कहता है? 

फिलहाल भारत में इंफ्लुएंसर मार्केटिंग के लिए कोई अलग कानून नहीं है, लेकिन कुछ आम कानूनों के तहत इसे समझा जाता है:

  • इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट – किसी भी तरह के एग्रीमेंट को लेकर ये एक्ट लागू होता है।
  • कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट – अगर आप किसी झूठे दावे के ज़रिए कोई चीज़ प्रमोट करते हैं, तो आपको कानूनी दिक्कत हो सकती है।
  • मौखिक डील बनाम लिखित कॉन्ट्रैक्ट: मौखिक डील करना गैरकानूनी नहीं है, लेकिन उसमें रिस्क बहुत होता है। जैसे:
    • पेमेंट न मिलने का खतरा।
    • डिलीवरी या कंटेंट को लेकर विवाद।
    • बाद में ब्रांड जिम्मेदारी से इनकार कर सकता है।
    • इसलिए, लिखित कॉन्ट्रैक्ट सबसे सुरक्षित तरीका है।

कब कॉन्ट्रैक्ट जरूरी हो जाता है? 

अगर आपकी डील में नीचे दी गई बातें हैं, तो कॉन्ट्रैक्ट ज़रूर होना चाहिए:

  • जब ब्रांड आपको पैसे दे रहा है।
  • जब आपको कई पोस्ट या वीडियो बनाने हैं।
  • जब ब्रांड के साथ आपका लंबा जुड़ाव होने वाला है।
  • जब ब्रांड आपका कंटेंट बड़े लेवल पर प्रमोट कर रहा हो।

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और ब्रांड डील में कॉन्ट्रैक्ट के फायदे

1. दोनों पक्षों के लिए साफ-साफ बातें तय होती हैं: कॉन्ट्रैक्ट में साफ लिखा होता है कि किसे क्या करना है। जैसे:

  • ब्रांड ₹500 देगा एक 60 सेकंड की इंस्टाग्राम रील के लिए।
  • इंफ्लुएंसर उसे 10 जून तक पोस्ट करेगा और कुछ खास हैशटैग इस्तेमाल करेगा।

अगर ये बातें सिर्फ बातों या ईमेल पर हों, तो गलतफहमी हो सकती है। इससे पोस्ट लेट हो सकती है, मैसेज गलत जा सकता है या कानूनी परेशानी भी हो सकती है।

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2. कानूनी सुरक्षा मिलती है: अगर कोई एक पक्ष अपना वादा नहीं निभाता, तो लिखित कॉन्ट्रैक्ट आपके हक की रक्षा करता है। इससे आपको ये साबित करना आसान होता है कि पहले क्या तय हुआ था। उदाहरण:

  • अगर ब्रांड समय पर पेमेंट नहीं करता, तो आप कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर कार्रवाई कर सकते हैं।
  • अगर इंफ्लुएंसर पोस्ट नहीं करता, तो ब्रांड पैसे वापिस मांग सकता है या पोस्ट दुबारा करवाने को कह सकता है।

3. धोखाधड़ी से बचाव: आजकल ऑनलाइन दुनिया में धोखा भी होता है। एक अच्छे से लिखा हुआ कॉन्ट्रैक्ट ये तय करता है कि कोई भी पक्ष बाद में मुकर न सके या किसी का गलत फायदा न उठा सके।

4. कंटेंट राइट्स और लाइसेंसिंग: आपका बनाया हुआ कंटेंट ब्रांड कब, कहां और कैसे इस्तेमाल करेगा, इसका निर्धारण कॉन्ट्रैक्ट करता है।

5. एक्सक्लूसिविटी क्लॉज़: अगर ब्रांड चाहता है कि आप उसी इंडस्ट्री के किसी अन्य प्रोडक्ट का प्रमोशन न करें, तो यह बात कॉन्ट्रैक्ट में पहले से तय होती है।

6. विवाद निवारण में सहूलियत: अगर भविष्य में कोई विवाद हो, तो दोनों पक्षों को पता होता है कि इसका समाधान कैसे किया जाएगा — कोर्ट या आर्बिट्रेशन के ज़रिए।

यदि कॉन्ट्रैक्ट नहीं साइन किया तो क्या जोखिम हो सकते हैं?

  • भुगतान न मिलने की स्थिति: बिना कॉन्ट्रैक्ट के ब्रांड पीछे हट सकता है और आपको भुगतान नहीं मिल सकता।
  • ब्रांड द्वारा कंटेंट का मिसयूज़: आपका बनाया हुआ वीडियो या पोस्ट कंपनी किसी भी रूप में इस्तेमाल कर सकती है, बिना क्रेडिट या अनुमति के।
  • कानूनी विवाद में कमजोर स्थिति: बिना लिखित सबूत के आप कोर्ट में अपनी बात साबित नहीं कर पाएंगे।
  • ब्रांड की ओर से एकतरफा शर्तें लागू करना: बिना कॉन्ट्रैक्ट के ब्रांड अपनी शर्तें बदल सकता है और आपको मना करने का कोई आधार नहीं रहेगा।

ब्रांड डील के लिए कॉन्ट्रैक्ट में किन-किन प्रमुख बातों का होना जरूरी है?

1. काम की पूरी जानकारी: इसमें बताया जाता है कि इंफ्लुएंसर को क्या करना है, जैसे:

  • कितने पोस्ट या स्टोरी बनानी है
  • किस प्लेटफॉर्म (Instagram, YouTube, TikTok) पर पोस्ट करना है
  • किस तरह का कंटेंट होगा (फोटो, वीडियो, रिव्यू आदि)
  • कब तक पोस्ट करनी है (डेटलाइन)

उदाहरण:
“इंफ्लुएंसर XYZ प्रोटीन बार का प्रमोशन करते हुए एक इंस्टाग्राम स्टोरी और एक रील 15 जुलाई 2025 तक पोस्ट करेगा।”

2. पेमेंट और कंपनसेशन: इस हिस्से में लिखा होता है:

  • इंफ्लुएंसर को कितने पैसे मिलेंगे
  • पेमेंट कब मिलेगी
  • पेमेंट फिक्स होगी या परफॉर्मेंस पर (जैसे: क्लिक, सेल पर)

टिप: साफ-साफ लिखें कि पेमेंट कैश में मिलेगी, प्रोडक्ट में, या दोनों।

3. कंटेंट के राइट्स: कंटेंट बनाने के बाद उसे कौन इस्तेमाल कर सकता है? तीन तरह के राइट्स होते हैं:

  • लिमिटेड यूज़: ब्रांड सिर्फ अपने पेज पर रीपोस्ट कर सकता है।
  • फुल राइट्स: ब्रांड कंटेंट को अपने ads, वेबसाइट आदि में भी इस्तेमाल कर सकता है।
  • एक्सक्लूसिव राइट्स: इंफ्लुएंसर कुछ समय तक किसी दूसरे ब्रांड के लिए ऐसा कंटेंट नहीं बना सकता।
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4. कानूनी नियमों का पालन: इंफ्लुएंसर को नियमों का पालन करना होता है, जैसे:

  • #ad या #sponsored लिखना
  • भारत या विदेशी विज्ञापन नियमों (जैसे FTC) को मानना
  • कॉन्ट्रैक्ट में ये बात ज़रूर शामिल होनी चाहिए ताकि कोई कानूनी गलती न हो।

5. रद्द करना या समझौता तोड़ना: इसमें लिखा होता है:

  • कब और कैसे डील को कैंसिल किया जा सकता है
  • अगर कोई पार्टी समझौते की शर्तें तोड़ती है तो क्या होगा
  • रिफंड या जुर्माना देना होगा या नहीं

उदाहरण: “अगर इंफ्लुएंसर प्रोडक्ट मिलने के बाद कैंसिल करता है, तो उसे प्रोडक्ट वापस करना होगा या उसकी कीमत चुकानी होगी।”

6. एक्सक्लूसिविटी क्लॉज: कुछ ब्रांड ये शर्त रखते हैं कि इंफ्लुएंसर उसी तरह के किसी दूसरे प्रोडक्ट का प्रमोशन कुछ समय तक नहीं करेगा।

उदाहरण: “पोस्ट से 30 दिन पहले या बाद में कोई दूसरा प्रोटीन बार प्रमोट नहीं किया जा सकता।”

7. गोपनीयता: इसका मतलब है कि दोनों पक्ष आपस की निजी बातें बाहर किसी को नहीं बताएंगे, जैसे:

  • पेमेंट की डिटेल्स
  • मार्केटिंग प्लान
  • बिज़नेस की बातचीत

क्या इन्फ्लुएंसर के लिए खुद कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्ट करना चाहिए या वकील की मदद लेनी चाहिए?

प्रोफेशनल लीगल रिव्यू क्यों जरूरी है? 

वकील आपकी मदद कर सकता है यह सुनिश्चित करने में कि आपकी कोई अधिकार हानि न हो।

आम गलतियाँ:

  • पेमेंट शर्तें अस्पष्ट होना।
  • IP राइट्स का उल्लेख न होना।
  • टर्मिनेशन क्लॉज़ न होना।
  • विवाद समाधान का ज़िक्र न होना।

क्या छोटे/माइक्रो इन्फ्लुएंसर के लिए भी कॉन्ट्रैक्ट जरूरी है?

जी हाँ, चाहे आपके फॉलोअर्स 5,000 हों या 5 लाख, कॉन्ट्रैक्ट सबके लिए जरूरी है। ब्रांड डील में जब पैसे या अधिकारों की बात आती है, तब साइज मायने नहीं रखता। इंडस्ट्री प्रैक्टिस भी अब यही कहती है कि हर ब्रांड डील को फॉर्मल रूप में किया जाए।

ब्रांड डील साइन करने से पहले इंफ्लुएंसर्स के लिए आसान टिप्स

  • कॉन्ट्रैक्ट चाहे लंबा या बोरिंग लगे, एक-एक लाइन ध्यान से पढ़ें। कोई भी बात स्किप न करें।
  • अगर कोई बात समझ न आए तो सीधे ब्रांड से या किसी वकील से पूछें। बिना समझे साइन न करें।
  • अगर पेमेंट, काम का समय या कंटेंट के राइट्स आपको ठीक नहीं लगते, तो बिना डर के सुधार की बात करें। बात करना आपका हक है।
  • साइन किया हुआ कॉन्ट्रैक्ट हमेशा अपने पास रखें, ताकि जरूरत पड़ने पर आप उसे दिखा सकें।

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

कैस्ट्रोल इंडिया बनाम गौरव तनेजा (फ्लाइंग बीस्ट)

  • क्या हुआ: दिसंबर 2024 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कैस्ट्रोल इंडिया को कॉपीराइट केस में बड़ी राहत दी। यूटूबेर और इंफ्लुएंसर गौरव तनेजा ने बिना इजाज़त ब्रांड का कैंपेन कंटेंट पोस्ट किया था।
  • कोर्ट का फैसला: गौरव तनेजा को सारे ऐसे पोस्ट हटाने के आदेश दिए गए।
    यह केस दिखाता है कि ब्रांड के कंटेंट की कानूनी सुरक्षा होती है और इंफ्लुएंसर को बिना परमिशन कुछ भी पोस्ट नहीं करना चाहिए।
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मैरिको लिमिटेड बनाम अभिजीत भंसाली (बिअर्डिड चोकरा)

  • क्या हुआ: 2020 में, यूट्यूबर अभिजीत भंसाली ने पैराशूट कोकोनट आयल के बारे में गलत बातें कहीं।
  • कोर्ट का फैसला: कोर्ट ने कहा कि कोई भी इंफ्लुएंसर अगर किसी ब्रांड के खिलाफ गलत या झूठे दावे करता है, तो उस पर मानहानि (defamation) का केस बनता है।
    इसलिए कोई भी रिव्यू देने से पहले पूरी जानकारी और सबूत जरूरी हैं।

निष्कर्ष: हमेशा खुद को सुरक्षित रखें

चाहे आप एक बड़े इंफ्लुएंसर हों या अभी शुरुआत कर रहे हों, हर ब्रांड डील में कॉन्ट्रैक्ट होना बहुत ज़रूरी है। ये सिर्फ पैसों की बात नहीं है, बल्कि भरोसे, साफ़-साफ़ समझ और प्रोफेशनल तरीके से काम करने की पहचान है।

कॉन्ट्रैक्ट से दोनों पक्ष (ब्रांड और इंफ्लुएंसर) को ये समझ आता है कि किसका क्या रोल है और क्या हक हैं। इससे झगड़े कम होते हैं, रिश्ता बेहतर बनता है और हर किसी का नुकसान होने से बचता है।

अगर आपको नहीं पता कि कहाँ से शुरू करें, तो किसी अच्छे वकील से सलाह लें या कोई भरोसेमंद कॉन्ट्रैक्ट टेम्प्लेट इस्तेमाल करें। लेकिन कभी भी बिना कॉन्ट्रैक्ट के डील मत करें, क्योंकि आपकी कमाई और इमेज दोनों इसी पर टिकी होती है।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. क्या बिना कॉन्ट्रैक्ट के ब्रांड डील करना लीगल है?

हां, लेकिन वह असुरक्षित होता है और कई कानूनी जोखिम साथ लाता है।

2. क्या फ्री प्रोडक्ट के बदले में कॉन्ट्रैक्ट जरूरी है?

अगर ब्रांड किसी शर्त पर फ्री प्रोडक्ट दे रहा है (जैसे पोस्ट डालना), तो कॉन्ट्रैक्ट बनाना चाहिए।

3. इन्फ्लुएंसर कॉन्ट्रैक्ट में क्या-क्या शामिल होना चाहिए?

क्लाइंट डिटेल्स, सर्विस की परिभाषा, पेमेंट, टाइमलाइन, IP राइट्स, डिस्प्यूट क्लॉज़।

4. क्या ब्रांड कॉन्ट्रैक्ट में बदलाव संभव है?

हाँ, यदि दोनों पक्ष सहमत हों तो बदलाव संभव है। इसे अमेंडमेंट कहा जाता है।

5. क्या विदेशी ब्रांड के साथ डील में भारतीय कानून लागू होंगे?

अगर डील भारत में क्रियान्वित हो रही है, तो भारतीय कानून लागू हो सकता है। लेकिन कॉन्ट्रैक्ट की “Governing Law” क्लॉज़ को देखना ज़रूरी है।

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