हिट एंड रन केस में पीड़ित को कितनी सहायता मिलती है?

How much help does a victim get in a hit and run case?

हिट एंड रन केस आजकल काफी होते हैं। ऐसा तब होता है जब कोई दुर्घटना करता है और बिना अपनी जानकारी दिए या घायल की मदद किए वहां से चला जाता है। यह सही नहीं है और कानून के खिलाफ भी है। अगर आप या आपका कोई जानने वाला ऐसा हादसा झेल चुका है, तो आपको उलझन, गुस्सा या डर लग सकता है कि आगे क्या करें। लेकिन आप अकेले नहीं हैं। ऐसे मामले में मदद पाने, मुआवजा लेने और जिम्मेदार व्यक्ति को सजा दिलाने के लिए कानूनी रास्ते मौजूद हैं, चाहे वह व्यक्ति पकड़ा भी न गया हो।

हिट एंड रन क्या होता है?

हिट एंड रन तब होता है जब कोई ड्राइवर दुर्घटना के बाद रुकता नहीं, अपनी जानकारी नहीं देता और घायल व्यक्ति की मदद नहीं करता। यह बड़ी या छोटी किसी भी दुर्घटना में हो सकता है, चाहे वह गाड़ी, पैदल चलने वाले, साइकिल चालक या किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली दुर्घटना हो।

कुछ उदाहरण:

  • कोई गाड़ी पैदल चल रहे व्यक्ति को मारकर वहां से चल देता है।
  • कोई ड्राइवर आपकी खड़ी कार में टकराकर तेज़ी से भाग जाता है।
  • कोई मोटरसाइकिल साइकिल सवार से टकराकर भाग जाता है।

ऐसे मामलों में घायल या नुकसान हुआ व्यक्ति सामने वाले का पता नहीं लगा पाता।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

भारत में हिट एंड रन केस में कौन सा कानून लागू होता है?

भारत में हिट एंड रन केस से जुड़े मामले भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 और मोटर व्हीकल एक्ट, 1988 के तहत देखे जाते हैं। इन कानूनों में साफ बताया गया है कि हिट एंड रन क्या होता है और ऐसे मामलों में आरोपी के खिलाफ क्या-क्या कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

भारतीय न्याय संहिता से जुडी धाराएं:

धाराक्या कहती है ये धारा?सज़ा
धारा 281यदि कोई व्यक्ति लापरवाही से या तेज़ रफ्तार में वाहन चलाता है जिससे किसी की जान को खतरा हो6 महीने तक की जेल, ₹1,000 तक जुर्माना, या दोनों
धारा 106यदि लापरवाही से गाड़ी चलाकर किसी की मौत हो जाती है10 साल तक की जेल, या जुर्माना, या दोनों
धारा 125अगर लापरवाही से गाड़ी चलाने पर किसी को गंभीर चोट लगती है3 साल तक की जेल, ₹10,000 तक जुर्माना, या दोनों

यह धाराएं यह दिखाती हैं कि भारत में लापरवाह वाहन चालकों पर गंभीर कानूनी कार्रवाई संभव है।

मोटर व्हीकल एक्ट, 1988

धारा 134 – दुर्घटना की स्थिति में ड्राइवर की जिम्मेदारी: इस कानून के अनुसार, अगर कोई ड्राइवर दुर्घटना में शामिल होता है, तो उसे:

  • तुरंत गाड़ी रोकनी चाहिए
  • घायल को तुरंत मेडिकल हेल्प देनी चाहिए
  • नजदीकी पुलिस स्टेशन में घटना की जानकारी देनी चाहिए

अगर ड्राइवर ऐसा नहीं करता, तो यह हिट एंड रन अपराध माना जाएगा।

धारा 187 – हिट एंड रन पर सज़ा: अगर कोई ड्राइवर दुर्घटना के बाद न रुके या पुलिस को जानकारी न दे, तो उसे:

  • 3 महीने तक की जेल हो सकती है
  • या ₹500 तक जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं
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अगर दुर्घटना में किसी को चोट या मौत हुई है, तो सज़ा और भी कड़ी हो सकती है।

यह नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि दुर्घटना के बाद जिम्मेदारी से काम लिया जाए और घायल व्यक्ति को समय पर मदद मिल सके। आपके क्लाइंट को इन नियमों से जुड़ा कोई केस समझाना हो, तो ये सरल जानकारी बहुत काम आएगी।

हिट एंड रन केस में पीड़ित के अधिकार

  • मेडिकल ट्रीटमेंट का अधिकार – पीड़ित को तुरंत और मुफ्त इलाज का अधिकार है, खासकर “गोल्डन ऑवर” के भीतर।
  • एफआईआर दर्ज करवाने का अधिकार – कोई भी व्यक्ति पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा सकता है। यह कानूनी प्रक्रिया की पहली सीढ़ी है।
  • सरकारी मुआवज़े का अधिकार – सरकार “हिट एंड रन” मामलों में आर्थिक सहायता देती है, भले ही अपराधी की पहचान न हुई हो।
  • इंश्योरेंस के तहत क्लेम का अधिकार – यदि पीड़ित या वाहन बीमित था, तो थर्ड पार्टी इंश्योरेंस या पर्सनल एक्सीडेंट कवर के तहत भी सहायता मिल सकती है।

हिट एंड रन हादसे के बाद तुरंत क्या करें? (Immediate Steps for Victims)

अगर ड्राइवर भाग गया है, तब भी आप कुछ ज़रूरी कदम उठाकर अपनी सुरक्षा कर सकते हैं और मदद पाने के चांस बढ़ा सकते हैं:

1. तुरंत इमरजेंसी नंबर पर कॉल करें: अगर आपको या किसी और को चोट लगी है, तो तुरंत एम्बुलेंस या पुलिस (108/100) को कॉल करें। समय पर मदद बहुत जरूरी है।

2. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाएं: हादसे की FIR दर्ज कराना बहुत जरूरी है। पुलिस को ये जानकारी देने की कोशिश करें:

  • गाड़ी का रंग, मॉडल और नंबर प्लेट
  • गाड़ी किस दिशा में गई
  • अगर कोई गवाह हो, तो उसका नाम और नंबर

3. तुरंत मेडिकल चेकअप कराएं: कई बार चोटें तुरंत दिखती नहीं हैं। इसलिए डॉक्टर को दिखाना जरूरी है, ये आपकी सेहत, कानूनी केस और बीमा क्लेम के लिए भी जरूरी होता है।

4. सबूत इकट्ठा करें (डॉक्युमेंटेशन): जो कुछ हुआ है उसे भूलने से पहले तुरंत लिख लें। इसके अलावा:

  • चोटों की फोटो लें
  • हादसे की जगह और गाड़ी/संपत्ति के नुकसान की फोटो लें
  • जो भी बात याद हो, नोट कर लें

5. किसी वकील से संपर्क करें: एक विशेषज्ञ वकील से संपर्क करें, जो आपकी कानूनी मदद कर सकता है। वो बीमा कंपनी से बात करने, मुआवजा दिलाने और केस को सही दिशा देने में आपकी मदद करेगा।

हिट एंड रन केस में कानून पीड़ित की कैसे मदद करता है?

पुलिस जांच (Police Investigation)

जब आप हादसे की रिपोर्ट पुलिस में करते हैं, तो पुलिस जांच शुरू करती है। इसमें पुलिस इन चीज़ों की मदद ले सकती है:

  • CCTV फुटेज (आसपास की बिल्डिंग या ट्रैफिक कैमरे से)
  • गवाहों के बयान
  • गाड़ी के टूटे हुए हिस्से या पेंट के निशान

अगर आरोपी पकड़ा जाता है, तो उस पर जुर्माना, ड्राइविंग लाइसेंस रद्द, या जेल की सजा भी हो सकती है।

इंश्योरेंस क्लेम (Insurance Claim)

अगर आरोपी ड्राइवर नहीं मिल पाता, तब भी आप अपनी बीमा पॉलिसी से मदद पा सकते हैं (अगर आपने कवर लिया है):

  • अनइंश्योर्ड मोटोरिस्ट (UM) कवर: जब सामने वाला ड्राइवर नहीं मिला या बीमा रहित है, तो यह चोटों के लिए भुगतान करने में मदद करता है।
  • कोलाईशन कवर: आपकी गाड़ी के नुकसान का खर्चा देता है।
  • पर्सनल इंजरी प्रोटेक्शन (PIP): इलाज का खर्च देता है, चाहे गलती किसी की भी हो।
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अपनी बीमा पॉलिसी एक बार ज़रूर चेक करें। समझ न आए तो वकील या इंश्योरेंस एजेंट से सलाह लें।

विक्टिम कंपनसेशन प्रोग्राम

कुछ राज्यों में सरकार की तरफ से पीड़ितों को मुआवज़ा देने की स्कीम होती है, जो अपराधों (जैसे हिट एंड रन) के पीड़ितों की मदद करती है:

  • इलाज का खर्च
  • काउंसलिंग (मानसिक मदद)
  • कमाई में हुआ नुकसान
  • अंतिम संस्कार का खर्च (अगर मौत हुई हो)

हर राज्य की योजना अलग होती है, इसलिए जानकारी लेना ज़रूरी है कि आपके इलाके में क्या सुविधा है।

सिविल केस (अगर ड्राइवर मिल जाता है)

अगर हादसा करने वाला ड्राइवर मिल जाता है, तो आप उसके खिलाफ सिविल कोर्ट में केस कर सकते हैं और ये मुआवज़ा मांग सकते हैं:

  • मेडिकल खर्च
  • दर्द और तकलीफ
  • नौकरी या कमाई में नुकसान
  • गाड़ी या संपत्ति का नुकसान
  • मानसिक तनाव

अगर उसके पास बीमा नहीं भी है, फिर भी कोर्ट उसे किस्तों में पैसे चुकाने का आदेश दे सकती है।

हिट एंड रन केस में कितना मुआवज़ा मिलता है?

भारत सरकार ने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत हिट एंड रन मामलों के लिए एक खास मुआवज़ा योजना बनाई है।

धारा 161 – हिट एंड रन मामलों में मुआवज़ा: अगर गाड़ी और ड्राइवर का पता नहीं चलता, तब भी सरकार की ओर से मुआवज़ा दिया जाता है:

  • ₹2,00,000 – अगर हादसे में किसी की मौत हो जाए
  • ₹50,000 – अगर किसी को गंभीर चोट लगे

यह पैसा सरकारी योजना से दिया जाता है, ड्राइवर के मिलने पर निर्भर नहीं करता।

2022 में सरकार ने मोटर व्हीकल (अमेंडमेंट) एक्ट, 2019 के तहत एक नई हिट एंड रन मुआवज़ा योजना शुरू की है, जिससे पीड़ितों को और बेहतर मदद मिल सके।

मुआवज़ा क्लेम करने की प्रक्रिया

आवेदन कहां करें?

  • डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर या सिविल सर्जन के ऑफिस में
  • ट्रैफिक पुलिस या RTO ऑफिस से भी फॉर्म मिल सकते हैं

आवश्यक दस्तावेज:

  • एफआईआर की कॉपी
  • मेडिकल रिपोर्ट
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट (मृत्यु पर)
  • पीड़ित/वारिस का पहचान पत्र
  • बैंक पासबुक और IFSC कोड
  • पासपोर्ट साइज फोटो

आवेदन की समय-सीमा:

घटना के 6 महीने के अंदर आवेदन किया जाना चाहिए।

कौन से फॉर्म भरने होते हैं?

  • फॉर्म I – व्यक्तिगत जानकारी
  • फॉर्म II – दुर्घटना का विवरण
  • फॉर्म III – चिकित्सा/पोस्टमार्टम रिपोर्ट
  • फॉर्म IV – बैंक जानकारी

पीड़ितों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?

  • इंश्योरेंस कंपनी क्लेम देने से मना कर देती है या जानबूझकर देर करती है
  • ड्राइवर की पहचान करने के लिए सबूत नहीं मिलते
  • पॉलिसी में अनइंश्योर्ड मोटोरिस्ट कवर नहीं होता
  • न्याय न मिलने से मानसिक तनाव और निराशा होती है

ऐसे में वकील की मदद क्यों ज़रूरी है? 

एक अनुभवी वकील इस पूरे सिस्टम को अच्छी तरह जानता है।

  • वह आपके लिए बीमा कंपनी से बात करता है
  • ज़रूरी कानूनी दस्तावेज़ तैयार करता है
  • और आपके लिए उचित मुआवज़ा दिलाने की पूरी कोशिश करता है
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इसलिए, अकेले लड़ने की बजाय सही लीगल सलाह लेना आपकी मदद को और आसान बना सकता है।

मह्त्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

पुणे पॉर्श – हिट एंड रन केस, 2024

पुणे की पोर्श कार दुर्घटना में, 17 साल का लड़का शराब पीकर गाड़ी चला रहा था और उसकी वजह से दो लोग मारे गए। उसके माता-पिता और डॉक्टरों ने उसके खून की जांच को गलत दिखाने की कोशिश की। उसे बाल अदालत की बजाय सामान्य अदालत में ट्रायल हुआ और उसे 7 साल की सजा सुनाई गई। यह मामला भ्रष्टाचार और कानून की सख्ती की जरूरत को दिखाता है। यह मामला दर्शाता है कि भले ही आरोपी प्रभावशाली हो, कानून सभी के लिए समान होता है।

चारु खंडाल के परिवार को ₹62 लाख मुआवज़ा (बॉम्बे हाई कोर्ट – मई 2025)

चारु खंडाल, जो एक एनिमेटर थीं, उनकी 2012 में एक हिट एंड रन हादसे में मौत हो गई थी। कोर्ट ने इसे “दिल तोड़ देने वाली घटना” बताया और ₹62 लाख मुआवज़ा सही ठहराया।

दिल्ली MACT ने मर्सिडीज केस में ₹1.98 करोड़ का मुआवज़ा दिया (2016 केस)

सिद्धार्थ शर्मा नाम के युवक को तेज़ रफ्तार मर्सिडीज से टक्कर मारी गई थी, जिसे एक नाबालिग चला रहा था। कोर्ट ने बच्चे और इंश्योरेंस कंपनी दोनों को जिम्मेदार ठहराया, और परिवार को ₹1.98 करोड़ का मुआवज़ा देने का आदेश दिया।

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने गर्भस्थ शिशु को भी मुआवज़े का हकदार माना (अप्रैल 2025)

MACT मुआवज़ा को बढ़ाकर ₹18.13 लाख किया गया और पहली बार गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मुआवज़े (₹48,000) का हकदार माना गया। यह मोटर वाहन अधिनियम के तहत एक ऐतिहासिक फैसला है।

सुप्रीम कोर्ट ने जागरूकता और मुआवज़ा राशि बढ़ाने का निर्देश दिया (जनवरी 2024)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस पीड़ितों को धारा 161 के तहत मिलने वाले मुआवज़े की जानकारी दे, और सरकार को मुआवज़े की रकम (₹2 लाख मौत पर, ₹50,000 चोट पर) को समय-समय पर बढ़ाने का सुझाव भी दिया।

निष्कर्ष

हिट एंड रन का शिकार होना बहुत ही दर्दनाक और परेशान करने वाला अनुभव हो सकता है, लेकिन याद रखें, आप अकेले नहीं हैं। आपके पास मदद पाने के कानूनी, सामाजिक और बीमा से जुड़े कई रास्ते हैं – बस ज़रूरत है सही कदम उठाने की। आपको बस सही कदम उठाने की जरूरत है: अपनी सेहत का ध्यान रखें, हादसे से जुड़ी जानकारी और सबूत सुरक्षित रखें, और किसी वकील या जानकार व्यक्ति से सलाह लें। मदद मांगने में झिझकें नहीं, क्योंकि आपके अधिकारों की रक्षा करने और आपको न्याय दिलाने के लिए सिस्टम मौजूद है।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs 

1. हिट एंड रन केस में एफआईआर कौन दर्ज करवा सकता है?

कोई भी प्रत्यक्षदर्शी, रिश्तेदार या सामाजिक कार्यकर्ता एफआईआर दर्ज करवा सकता है।

2. अगर ड्राइवर की पहचान न हो तो क्या मुआवज़ा मिलेगा?

हां, सरकारी स्कीम के तहत ₹2 लाख तक का मुआवज़ा मिलता है।

3. MACT में केस फाइल करने की फीस कितनी होती है?

सामान्यत: मामूली कोर्ट फीस लगती है और वकील का शुल्क अलग होता है।

4. इलाज के खर्च के लिए कौन-सी स्कीम है?

गोल्डन ऑवर स्कीम, राज्य सरकार की हेल्थ स्कीम आदि।

5. मुआवज़ा मिलने में कितना समय लगता है?

सरकारी मुआवज़ा 3–6 महीने में मिल सकता है, MACT केस में 6–12 महीने लग सकते हैं।

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