फर्जी दस्तावेज बनाने पर क्या कानूनी कार्रवाई की जा सकती है?

What legal action can be taken for making fake documents

आज के दौर में फर्जी दस्तावेज़ बनाना और उनका उपयोग करना एक आम अपराध बनता जा रहा है। चाहे वह आधार कार्ड की नकली प्रति हो, मार्कशीट में छेड़छाड़ हो या फिर प्रॉपर्टी के कागजात, फर्जी दस्तावेज़ लोगों के जीवन और समाज के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। ऐसे दस्तावेज़ न केवल दूसरों की संपत्ति और अधिकारों को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि कानूनी व्यवस्था पर भी बुरा असर डालते हैं।

इस ब्लॉग में हम बताएंगे कि फर्जी दस्तावेज क्या होते हैं, ये क्यों गलत और गैरकानूनी हैं, और जिन लोगों ने ऐसा किया है उनके खिलाफ क्या-क्या कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं।

फर्जी दस्तावेज क्या होते हैं?

फर्जी दस्तावेज वो होते हैं जो किसी को धोखा देने या बेइमानी करने के लिए बनाए, बदले या इस्तेमाल किए जाते हैं। ये हो सकते हैं:

  • पूरी तरह नकली दस्तावेज़ (जैसे फर्जी डिग्री या पहचान पत्र)
  • असली दस्तावेज़ में बदलाव (जैसे तारीख या नाम बदलना)
  • किसी अन्य के असली दस्तावेज़ का अनधिकृत उपयोग

सरकारी या अधिकृत संस्था द्वारा जारी दस्तावेज़ ही वैध माने जाते हैं। इनके विपरीत, फर्जी दस्तावेज़ अवैध होते हैं और कानून के तहत दंडनीय हैं।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कुछ जरूरी कानूनी शब्द जिन्हें आपको जानना चाहिए

  • फोरजीरी (Forgery): धोखा देने के लिए दस्तावेज बनाना या उसमें बदलाव करना।
  • नकली बनाना (Counterfeiting): बिना अनुमति के दस्तावेज या किसी चीज की नकल करना।
  • धोखाधड़ी (Fraud): बेइमानी करके गलत फायदा उठाना।
  • बनावटी पहचान (Impersonation): किसी और की तरह दिखकर उनके दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल करना।
  • गलत तरीके से बदलना (Falsification): दस्तावेज में बदलाव करके दूसरों को भ्रमित करना।

फर्जी दस्तावेज बनाना गैरकानूनी क्यों है?

कानून फर्जी दस्तावेजों को बहुत गंभीरता से देखता है क्योंकि:

  • भरोसा तोड़ते हैं: दस्तावेज लेन-देन और रिश्तों में भरोसा बनाए रखते हैं। फर्जी दस्तावेज इस भरोसे को खत्म कर देते हैं।
  • कसान पहुंचाते हैं: फर्जी दस्तावेज से पैसों का नुकसान हो सकता है, गलत जेल जाना पड़ सकता है, पहचान चोरी हो सकती है, या किसी को गलत फायदा मिल सकता है।
  • न्याय को प्रभावित करते हैं: कोर्ट और अधिकारी फैसले करने के लिए दस्तावेजों पर भरोसा करते हैं। फर्जी दस्तावेज गलत फैसला होने का कारण बन सकते हैं।
  • कानून व्यवस्था को कमजोर करते हैं: अगर फर्जी दस्तावेजों को मंजूरी दी जाए तो कानून का शासन कमजोर पड़ जाता है।
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इसी वजह से ज्यादातर देशों में फर्जी दस्तावेज बनाने और फोरजीरी के खिलाफ सख्त कानून होते हैं।

ऐसे मामलों में कौन-कौन दोषी हो सकते हैं?

  • दस्तावेज़ बनाने वाला: जो असली दस्तावेज़ की नकल करता है या नकली दस्तावेज़ खुद तैयार करता है।
  • इस्तेमाल करने वाला: जो फर्जी दस्तावेज़ का प्रयोग करता है, जैसे बैंक में, सरकारी कार्यालय में या किसी प्रॉपर्टी ट्रांजेक्शन में।
  • आदेश देने वाला: जो किसी को फर्जी दस्तावेज़ बनवाने या उपयोग करने के लिए कहता है।

इन तीनों की कानूनी जिम्मेदारी अलग-अलग हो सकती है।

भारत में फर्जी दस्तावेजों पर कौन सा कानून लागू होता है?

फर्जी दस्तावेज बनाने पर कानून के तहत सजा होती है। यह सजा भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत दी गई है।

धाराविवरणसजा
धारा 336फर्जी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बनानाअधिकतम 3 वर्ष की सजा, जुर्माना, या दोनों
धारा 337न्यायालय के रिकॉर्ड, सरकारी पहचान पत्र, या सार्वजनिक रजिस्टर की फर्जीवाड़ाअधिकतम 7 वर्ष की सजा और जुर्माना
धारा 338कीमती सुरक्षा, वसीयत, या अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज़ की फर्जीवाड़ाआजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष की सजा और जुर्माना
धारा 339फर्जी दस्तावेज़ को असली दिखाकर उपयोग करनाउसी प्रकार की सजा जैसे फर्जी दस्तावेज़ बनाने पर
धारा 340फर्जी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बनाना और उसे असली के रूप में उपयोग करनाउसी प्रकार की सजा जैसे फर्जी दस्तावेज़ बनाने पर

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000

धारा 66D: यदि फर्जी दस्तावेज़ डिजिटल तरीके से बनाए जाएं या किसी की डिजिटल पहचान का दुरुपयोग हो, तो 3 साल तक की सजा और ₹1 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।

अगर आपको शक हो कि दस्तावेज फर्जी हैं तो क्या करें?

  • शक पैदा करने वाले वाले दस्तावेज स्वीकार न करें और न ही उनका इस्तेमाल करें।
  • फर्जी दस्तावेज के मामले में अनुभव रखने वाले वकील से सलाह लें।
  • अपनी नजदीकी पुलिस स्टेशन में शिकायत (FIR) दर्ज कराएं। अपने पास जितने भी सबूत हों, वे पुलिस को दें।
  • दस्तावेज जारी करने वाली संस्था (जैसे शिक्षा बोर्ड, संपत्ति रजिस्ट्रेशन ऑफिस, आधार कार्यालय) को सूचित करके दस्तावेज की असलियत जांचें।
  • मामले से जुड़ी सभी बातें और दस्तावेजों की कॉपी अपने पास सुरक्षित रखें।
  • ध्यान रखें: सही कदम उठाने से आप खुद को और दूसरों को धोखे से बचा सकते हैं।
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कौन-कौन सी एजेंसियाँ दस्तावेजों की जांच करती हैं?

जब किसी फर्जी दस्तावेज या धोखाधड़ी का मामला सामने आता है, तो अलग-अलग एजेंसियाँ इसकी जांच करती हैं। हर एजेंसी की अपनी जिम्मेदारी और काम होता है।

  • स्थानीय पुलिस: सबसे पहले जांच की शुरुआत स्थानीय पुलिस करती है। वे शिकायत दर्ज करते हैं, सबूत इकट्ठा करते हैं, गवाहों से पूछताछ करते हैं और शुरुआती जांच करते हैं।
  • साइबर क्राइम सेल: अगर धोखाधड़ी डिजिटल तरीके से हुई है, जैसे फर्जी डिजिटल दस्तावेज, ऑनलाइन ठगी या हैकिंग, तो साइबर क्राइम सेल मामले की जांच करती है। वे कंप्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट के जरिये हुए अपराधों को समझते और पकड़ते हैं।
  • फोरेंसिक साइंस लैब (FSL): फोरेंसिक साइंस लैब दस्तावेजों की जांच में मदद करती है। वे दस्तावेजों के असली या फर्जी होने का पता लगाने के लिए तकनीकी जांच करते हैं, जैसे स्याही, कागज, छपाई की गुणवत्ता, और दस्तावेज़ों में हुए बदलाव।
  • केंद्रीय एजेंसियाँ (CBI, ED): जब मामला बड़ा या जटिल होता है, या राज्य सीमा से बाहर जाता है, तब केंद्रीय जांच एजेंसियाँ जैसे CBI (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन) और ED (एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट) मामले की जांच करती हैं। ये एजेंसियाँ बड़े भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध, और क्रॉस-बॉर्डर धोखाधड़ी के मामलों को संभालती हैं।

फर्जी दस्तावेज़ से नुकसान होने पर क्या सिविल राहत मिल सकती है?

अगर फर्जी दस्तावेज़ से आपको नुकसान हुआ है, तो आप सिविल कोर्ट में भी अपनी मदद ले सकते हैं:

  • दस्तावेज़ रद्द करवाना: कोर्ट से मांग करें कि फर्जी दस्तावेज़ को अवैध घोषित करके रद्द किया जाए।
  • नुकसान की भरपाई: फोर्जरी करने वाले की वजह से हुए नुकसान का मुआवजा मांग सकते हैं।
  • संपत्ति का ट्रांसफर रद्द करवाना: अगर आपकी संपत्ति फर्जी दस्तावेज़ से गलत तरीके से ट्रांसफर हुई हो तो उसे रद्द करवाएं।
  • अपने अधिकारों की रक्षा: सिविल कोर्ट में अपने कानूनी अधिकारों की पूरी सुरक्षा कर सकते हैं।
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इसलिए नुकसान होने पर जल्दी वकील से सलाह लेकर सिविल कोर्ट में सही कदम उठाएं।

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

शंमुगम @ लक्ष्मीनारायणन बनाम मद्रास हाई कोर्ट (2025)

कुछ लोगों ने मद्रास हाई कोर्ट के फर्जी आदेश बनाए ताकि एक कोर्ट के फैसले को टाला जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बहुत बड़ी गलती है और ऐसे नकली कोर्ट के दस्तावेज़ बनाना गलत है। अपील करने वालों को एक महीने की साधारण जेल की सजा दी गई, जो कि हाई कोर्ट ने दी गई छह महीने की सजा से कम है।

केजी मार्केटिंग इंडिया बनाम रशी संतोष सोनी (2024)

दिल्ली हाई कोर्ट ने पाया कि एक कंपनी ने कोर्ट में फर्जी अखबार के विज्ञापन जमा कराए ताकि अपना दावा मजबूत कर सके। कोर्ट ने पुलिस को केस दर्ज करने के लिए कहा।

विराट पचौरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023)

कोर्ट ने कहा कि अगर कोई फर्जी दस्तावेज़ बना कर इस्तेमाल करता है, तो उस पर पुलिस केस चल सकता है, भले ही उस मामले में सिविल केस पहले से चल रहा हो।

निष्कर्ष

फर्जी दस्तावेज़ बनाना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा, जीवन और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाता है। इसे रोकने के लिए जागरूकता, सतर्कता और कानून का सहारा लेना आवश्यक है। अगर आप फंसे हैं तो तुरंत कानूनी सलाह लें और बिना देरी के कार्रवाई करें।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. फर्जी दस्तावेज़ की शिकायत कहाँ करें?

नजदीकी पुलिस थाने में जाकर या साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज कराएं।

2.  क्या RTI से फर्जीवाड़ा पकड़ सकते हैं?

हाँ, RTI के जरिए दस्तावेज़ की वैधता की पुष्टि हो सकती है।

3. क्या सरकारी कर्मचारी पर फर्जी दस्तावेज़ बनाने का केस किया जा सकता है?

बिलकुल, यदि वह दोषी पाया गया तो सख्त कार्रवाई होती है।

4. FIR होने के बाद गिरफ्तारी तुरंत होती है क्या?

नहीं, गिरफ्तारी केस की गंभीरता और सबूतों के आधार पर होती है।

5. फर्जी दस्तावेज़ से हुई प्रॉपर्टी खरीद को कैसे रद्द करें?

कोर्ट में सिविल सूट दाखिल करके प्रॉपर्टी ट्रांसफर को रद्द करवाया जा सकता है।

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