अगर मुझे सम्मन ईमेल या मोबाइल पर मिला है, तो क्या वो वैध है?

If I have received a summons on email or mobile, is it valid Validity of digital summons

परंपरागत रूप से कोर्ट सम्मन की हार्ड कॉपी हाथ से या डाक से भेजती है। आमतौर पर सम्मन सीधे व्यक्ति को देना या रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजना जरूरी होता है।

लेकिन जब सामने वाला व्यक्ति मिल नहीं रहा हो, दूर रहता हो, या सम्मन देने में देरी हो रही हो, तो ये तरीके असरदार नहीं रहते।

ऐसे मामलों में कोर्ट “वैकल्पिक सेवा” की इजाजत देती है। अब हाल के कुछ सालों में इसमें बदलाव आया है, कोर्ट ने ईमेल, वॉट्सऐप जैसे डिजिटल तरीकों से भी सम्मन भेजने की इजाजत देना शुरू कर दिया है।

अगर इन डिजिटल तरीकों से भेजे सम्मन का कोई सबूत हो, जैसे डिलीवरी रिपोर्ट या वॉट्सऐप का नीला टिक, तो कोर्ट इसे मान्यता देने लगी है। ये तरीका आज के समय में तेज और प्रभावी साबित हो रहा है।

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सम्मन क्या होता है और इसका उद्देश्य क्या है?

सम्मन का मतलब है, अदालत द्वारा भेजा गया कानूनी आदेश, जिसमें किसी व्यक्ति को अदालत में उपस्थित होने या कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के ऑर्डर 5 में सम्मन की प्रक्रिया बताई गई है। सम्मन का उद्देश्य है:

  • पक्षकार को जानकारी देना कि केस चल रहा है
  • उसे सुनवाई का मौका देना
  • न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखना

सम्मन और नोटिस में अंतर:

  • सम्मन अदालत द्वारा जारी होता है, जबकि नोटिस पक्षकार या वकील द्वारा भेजा जा सकता है।
  • सम्मन अनदेखा करना दंडनीय हो सकता है।

सम्मन कैसे भेजे जाते हैं: पारंपरिक तरीके

  • व्यक्तिगत सेवा: कोर्ट का कर्मचारी या बेलिफ़ आरोपी को सीधे हाथ में सम्मनदेकर उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने की कोशिश करता है।
  • रजिस्टर्ड पोस्ट या कूरियर: सम्मनव्यक्ति के पते पर रजिस्टर्ड डाक या विश्वसनीय कूरियर सेवा द्वारा भेजा जाता है, जिससे प्राप्ति का सबूत मिल सके।
  • वैकल्पिक सेवा: जब व्यक्ति नहीं मिलता, तो कोर्ट की अनुमति से अखबार में नोटिस प्रकाशित कर सम्मनकी जानकारी सार्वजनिक की जाती है।
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डिजिटल सम्मन की शुरुआत: क्यों और कैसे?

क्यों शुरू हुई डिजिटल सम्मन? 

COVID‑19 लॉकडाउन में फिजिकल सम्मनभेजना मुश्किल था। अदालतों ने महामारी के दौरान डिजिटल माध्यमों से सम्मन भेजने का रास्ता अपनाया।

किससे भेजे जाते हैं सम्मन? 

अब सम्मन ईमेल, वॉट्सऐप, एसएमएस या फ़ैक्स से भेजे जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि इन माध्यमों का प्रयोग वैध होगा ।

मान्यता की शर्तें क्या हैं? 

डिजिटल सेवा के लिए “ब्लू टिक” या डिलीवरी रिपोर्ट जैसे सबूत जरूरी हैं। अगर प्राप्तकर्ता ने मैसेज पढ़ा है, तो अदालत इसे वैध मानेगी ।

न्यायिक और कानूनी फायदा: 

यह तरीका तेज़, किफ़ायती और समय की बचत करने वाला है। कई उच्च न्यायालयों और SC ने इसे ई‑कोर्ट पहल का हिस्सा माना है।

वैध डिजिटल सम्मन के कानूनी आधार

CPC ऑर्डर 5, नियम 20–21: वैकल्पिक सेवा

अगर पारंपरिक तरीके से सम्मननहीं मिल पाता, तो कोर्ट ऑर्डर 5 रूल 20 के अंतर्गत “अन्य तरीके” से सेवा करने का निर्देश दे सकती है। इसमें ईमेल, व्हाट्सएप, एसएमएस जैसे डिजिटल माध्यम शामिल हो सकते हैं। कई अदालतों ने यह माना है कि जब पारंपरिक प्रयास विफल हों, तब यह वैध विकल्प है।

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 की धारा 4

यदि किसी कानून में लिखित या टाइप की हुई जानकारी की जरूरत हो, तो उसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (जैसे ई‑मेल, पीडीएफ, डेटा फाइल) में भेजना भी मान्य होगा। बस यह ज़रूरी है कि वह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बाद में पढ़ा, खोला या इस्तेमाल किया जा सके, मतलब उसे सुरक्षित और स्पष्ट रूप में रखा जाए।

हाई कोर्ट के नियम

बॉम्बे हाई कोर्ट – 2017 नियम: बॉम्बे हाई कोर्ट ने ऑर्डर 5 रूल 20 के तहत कहा कि अगर पारंपरिक तरीके (हाथ से सेवा, पोस्ट, आदि) से सम्मन नहीं भेजे जा सकते, तो ईमेल, व्हाट्सएप, कूरियर जैसे डिजिटल तरीके अपनाए जा सकते हैं। केसों में अदालत ने यह स्पष्ट किया कि इंटरनेट आधारित सेवा भी मान्य है जब पारंपरिक प्रयास विफल हों।

दिल्ली हाई कोर्ट – 2010 नियम: दिल्ली कोर्टों ने 2010 में नियम बनाकर ईमेल, फैक्स या कूरियर से सम्मन भेजने की अनुमति दी। इसमें कहा गया कि ये माध्यम भी वैध माने जाएंगे, बशर्ते डिलीवरी का प्रमाण मौजूद हो।

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डिजिटल सम्मनकब मान्य नहीं होता?

  • अगर ईमेल या मोबाइल नंबर गलत हो – गलत पते पर भेजा सम्मनमान्य नहीं होगा।
  • अगर सामने वाले की पहचान पक्की न हो – जिसे सम्मनभेजा, वो सही व्यक्ति है या नहीं, ये साफ न हो।
  • अगर भेजे जाने का कोई सबूत न हो – जैसे स्क्रीनशॉट, डिलीवरी रिपोर्ट या ब्लू टिक न दिखे।
  • अगर मैसेज भेजा गया हो लेकिन खोला ही न गया हो – मतलब सम्मनपढ़ा ही नहीं गया, तो वह स्वीकार नहीं होगा।
  • ध्यान रखें: सम्मनतभी वैध माना जाता है जब सही व्यक्ति को, सही माध्यम से, और सही सबूत के साथ भेजा गया हो।

जनवरी 2025 – सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस WhatsApp / इलेक्ट्रॉनिक नोटिस पर लगाया ‘बैन’

  • क्या हुआ? 21 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट की बेंच (न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरश और राजेश बिंदल) ने स्पष्ट कहा कि क्रिमिनल कानूनों (CrPC/BNSS) में आरोपी या गवाह को WhatsApp, SMS, ईमेल जैसे किसी भी डिजिटल माध्यम से नोटिस देना वैध नहीं है।
  • क्या निर्देश दिए गए? सभी राज्यों और UTs को पुलिस को लिखित आदेश जारी करने को कहा गया कि वे मात्र कागज़-आधारित नोटिस ही दें, न कि डिजिटल।
  • क्यों महत्वपूर्ण है? इससे क्रिमिनल मामलों में इलेक्ट्रॉनिक सेवा को पूरी तरह रोक दिया गया, केवल पारंपरिक, हस्ताक्षरयुक्त लिखित नोटिस को मान्यता दी गई है।

मई 2023 – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दी सुविधा: WhatsApp-ईमेल सेवा को मंजूरी

क्या हुआ? अमर सिंह बनाम संजीव कुमा  मामले में, पंजाब–हरियाणा हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राजस्व अथवा सिविल कोर्टों में नोटिस, समन, दस्तावेज़ भेजना WhatsApp, Telegram, ई‑मेल, फैक्स, या Signal से किया जा सकता है।

क्या शर्तें लगीं?

  • वकील/पक्षकार अपना डिजिटल संपर्क (ई‑मेल / मोबाइल / WhatsApp) कोर्ट को पहले दें।
  • नोटिस WhatsApp भेजा तो उसके साथ या पहले ई‑मेल करना जरूरी है।
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क्यों महत्वपूर्ण है? इससे घरेलू/सिविल मामलों में डिजिटल सेवा को आसान और मान्य तरीका मिल गया, खासकर तब जब पारंपरिक सेवा न हो पा रही हो।

अगस्त 2024 – केरल के एर्नाकुलम कंज्यूमर फोरम ने WhatsApp से नोटिस को माना वैध

  • क्या हुआ? एलीना नेल्सन बनाम बुटीक  मामले में, अगर पारंपरिक सेवा न हो पा रही हो, तो WhatsApp पर नोटिस देना भी वैध माना गया है। फ़ोरम ने इस पर सहमति दी कि डिजिटल माध्यम (WhatsApp) को इस्तेमाल करना ठीक है।
  • क्यों महत्वपूर्ण है? यह पहला मामला था जहाँ कंज्यूमर प्रोटेक्शन अधिनियम के अंतर्गत डिजिटल सेवा को स्पष्ट रूप से मान्यता मिली।

निष्कर्ष

डिजिटल सम्मन(ईमेल, व्हाट्सएप, एसएमएस) भारत में वैध है, लेकिन तभी जब यह CPC नियमों के अनुसार, सही व्यक्ति को, सबूत और कोर्ट की अनुमति के साथ भेजा जाए। फर्जी सम्मनसे सावधान रहें और हर बार कोर्ट या वकील से पुष्टि करें। सही प्रक्रिया अपनाने से डिजिटल सम्मनतेज़, सुरक्षित और भरोसेमंद बनता है।

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FAQs

1. वॉट्सएप पर आया सम्मन क्या कोर्ट में मान्य है?

हाँ, अगर नंबर सही हो और ब्लू टिक या Delivery Report हो, तो मान्य है।

2. अगर मैंने ईमेल नहीं खोला तो क्या सम्मन माना जाएगा?

अगर कोर्ट को दिखाया गया कि ईमेल भेजा गया और सिस्टम ने Delivered दिखाया, तो यह वैध माना जा सकता है।

3. मुझे सम्मन का जवाब कैसे देना चाहिए?

तुरंत वकील से संपर्क करें और कोर्ट में जवाब (Written Statement या Appearance) दाखिल करें।

4. क्या डिजिटल सम्मन सभी केस में लागू होता है?

हाँ, परंतु कोर्ट को यकीन दिलाना होगा कि सेवा सही व्यक्ति तक पहुंची और प्रमाण मौजूद हैं।

5. सम्मन को अनदेखा करने पर क्या सज़ा हो सकती है?

कोर्ट आपके खिलाफ ex-parte आदेश दे सकती है, और बाद में आपका बचाव मुश्किल हो सकता है।

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