क्या कभी किसी ने आपसे कहा है, “अब केस नहीं कर सकते, टाइम हो गया”? ऐसा सुनकर व्यक्ति भ्रमित हो सकता है और निराशा महसूस कर सकता है। लेकिन असल में इसका मतलब क्या है? अगर आपकी आखिरी तारीख निकल गई हो तो क्या आप फिर भी कोर्ट से मदद मांग सकते हैं? इस ब्लॉग में हम बताएंगे कि केस फाइल करने की समय सीमा क्या होती है, ये क्यों जरूरी है, और अगर समय निकल गया तो आपके पास क्या विकल्प हो सकते हैं।
केस दर्ज करने की समय सीमा क्या है?
केस दाखिल करने की एक तय समय सीमा होती है, जिसे कानून में “लिमिटेशन पीरियड” कहा जाता है। इसे आप ऐसे समझें जैसे कोई घड़ी चालू हो गई हो, और आपको तय समय के अंदर कोर्ट में केस करना हो।
जैसे अगर किसी ने आपको चोट पहुंचाई है, तो कानून आपको केस करने के लिए 2 साल का समय दे सकता है। अगर आप 2 साल से ज़्यादा इंतज़ार करते हैं, तो हो सकता है कि आपको केस करने का हक़ ना मिले। इसलिए जरूरी है कि जैसे ही आपको कोई कानूनी परेशानी हो, समय रहते कार्रवाई करें।
केस दर्ज करने के लिए समय सीमा क्यों होती है?
आपके मन में यह सवाल उठ सकता है, “कानून इतनी जल्दी केस करने को क्यों कहता है?” इसके पीछे कुछ आसान वजहें हैं:
सबूत खो सकते हैं या बदल सकते हैं – समय के साथ गवाह भूल जाते हैं, कहीं चले जाते हैं या उनका देहांत हो सकता है। कागज़ात भी गायब हो सकते हैं। इससे सच्चाई साबित करना मुश्किल हो जाता है।
कानूनी स्पष्टता जरूरी है – कानून चाहता है कि लोग जल्दी कदम उठाएं और सालों-साल झगड़े ना चलते रहें।
दूसरे पक्ष की सुरक्षा – जिन पर केस करना है, वो हमेशा डर में नहीं रह सकते कि कब कोई पुराना मामला फिर से उठ जाए।
इसलिए कानून कोशिश करता है कि सभी पक्षों के साथ बराबरी और इंसाफ हो सके – आपके भी अधिकार सुरक्षित रहें और सामने वाले को भी बेवजह तकलीफ न हो।
ये समय सीमाएं कितनी लम्बी हैं?
| केस का प्रकार | समय सीमा (लगभग) |
| व्यक्तिगत चोट | 1 से 3 साल |
| कॉन्ट्रैक्ट विवाद | 3 से 6 साल |
| संपत्ति को हुए नुकसान के दावों के लिए | 3 से 6 साल |
| उधारी/कर्ज का दावा | 3 से 6 साल |
| बदनामी | लगभग 1 साल |
| आपराधिक मामले | अलग-अलग होते हैं, कुछ गंभीर अपराधों पर समय सीमा नहीं होती |
नोट: समय सीमा राज्य के हिसाब से अलग हो सकती है। इसलिए केस दाखिल करने से पहले स्थानीय कानून जरूर जांचें या किसी वकील से सलाह लें।
यदि आप समय सीमा के बाद फाइल करते हैं तो क्या होगा?
सवाल उठता है कि अगर लिमिटेशन पीरियड निकल गया तो क्या केस पूरी तरह से खारिज हो जाएगा? ज़रूरी नहीं।
- कोर्ट यह जांचता है कि समय सीमा कब खत्म हुई।
- अगर आपने देरी के बावजूद कोई वाजिब कारण दिखाया है, तो कोर्ट आपकी पेटिशन सुन सकता है।
- हाँ, बिना देरी माफी के आवेदन के केस सीधे खारिज भी हो सकता है।
लिमिटेशन एक्ट – धारा 5
लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति तय समय सीमा के बाद अपील, रिवीजन, रिव्यू या स्पेशल लीव पेटिशन (SLP) दाखिल करता है, तो कोर्ट के पास यह पावर होती है कि वह देरी को माफ कर सके, बशर्ते उस देरी के पीछे उचित कारण हो।
यह धारा किन मामलों में लागू होती है
- अपील: अगर किसी निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील देरी से होती है।
- रिवीजन: गलत आदेश को ठीक करने के लिए जब समय निकल चुका हो।
- रिव्यु: कोर्ट के निर्णय पर दोबारा विचार करने का अनुरोध।
- स्पेशल लीव पेटिशन (SLP): सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति पेटिशन, अगर समय सीमा चूक गई हो।
कब माफ की जा सकती है देरी?
- बीमारी, दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा, कानूनी सलाह में चूक या किसी व्यक्तिगत कारण से अगर देरी हुई हो।
- कोर्ट को यह मानना ज़रूरी है कि देरी जानबूझकर नहीं की गई, और वादी की मंशा न्याय पाने की थी।
ध्यान दें:
- सभी मामलों में यह धारा लागू नहीं होती।
- खासकर सिविल केस में धारा 5 का उपयोग सीमित होता है – वहाँ देरी को माफ नहीं किया जा सकता अगर फाइलिंग की समय सीमा बीत चुकी हो।
- इसलिए अगर आप समय से चूक गए हैं, तो वकील की मदद से पर्याप्त कारण बताते हुए देरी माफ करवाने के लिए आवेदन किया जा सकता है।
देरी माफ कराने की प्रक्रिया: कैसे करें आवेदन?
कन्डोनेशन ऑफ़ डिले की एप्लीकेशन फाइल करने की प्रक्रिया:
- मुख्य केस के साथ कन्डोनेशन ऑफ़ डिले अर्जी लगानी होती है।
- उसमें देरी के दिन स्पष्ट बताने होते हैं, कितने दिन की देरी हुई।
- देरी का “उचित कारण” विस्तार से समझाना होता है।
- जरूरी दस्तावेज़ जैसे मेडिकल रिपोर्ट, प्रमाण-पत्र संलग्न करने होते हैं।
वकील की भूमिका इसमें अहम होती है क्योंकि ड्राफ्टिंग में एक भी चूक केस को खारिज करवा सकती है।
कोर्ट देरी कब माफ करती है? जानिए आम कारण
कोर्ट अक्सर कुछ खास कारणों को मानकर देरी माफ कर देती है। नीचे कुछ आम वजहें दी गई हैं जो कोर्ट में स्वीकार की जाती हैं:
- गंभीर बीमारी या दुर्घटना
- परिवार में किसी की मृत्यु
- प्राकृतिक आपदा (जैसे बाढ़, भूकंप आदि)
- कानूनी जानकारी की कमी (खासकर ग्रामीण इलाकों में)
- सरकारी प्रक्रियाओं में देरी
- वकील की गलती (कुछ मामलों में)
- कोविड-19 महामारी के दौरान उत्पन्न बाधाएं
लेकिन ध्यान रहे — हर केस को कोर्ट अलग से देखती है। अगर कोर्ट को आपकी वजह वाजिब और सच्ची लगेगी, तभी देरी माफ की जाएगी। इसलिए पूरी ईमानदारी और ठोस कारण के साथ ही आवेदन करें।
कलेक्टर, भूमि अधिग्रहण बनाम कातिजी (1987) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 5 के तहत देरी को माफ करना तकनिकी बाधा के कारण नहीं होना चाहिए, बल्कि न्याय को प्राथमिकता देनी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “हर दिन की देरी बताइए” का मतलब कठोर दृष्टिकोण नहीं, बल्कि तर्कसंगत और व्यावहारिक होना चाहिए
COVID-19 और लिमिटेशन में छूट – सुप्रीम कोर्ट के विशेष आदेश
- Re Cognizance of Extension of Limitation (2020) इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कोविड के कारण लिमिटेशन अवधि को स्थगित कर दिया था।
- COVID के दौरान (15 मार्च 2020 के) सभी लिमिटेशन पीरियड रोक दिए जाएंगे।
- यह छूट कई बार बढ़ाई गई और 2022 तक लागू रही।
- आज के समय में यह छूट अब नियमित रूप से लागू नहीं है, लेकिन उस समय की देरी अब भी छूट के दायरे में आती है।
कौन से केसों में लिमिटेशन समय-सीमा बहुत सख्त होती है?
सिविल मामलों में:
- सिविल सूट्स (जमीन, संपत्ति विवाद): लिमिटेशन एक्शन शुरू करने या कोर्ट में केस फाइल करने में सख्ती से लागू होती है।
- उपभोक्ता कोर्ट शिकायतें: लोक अदालतों में दावा करने के सीमित समय के अंदर ही किया जाना चाहिए।
- IBC (दिवालिया प्रक्रिया): दिवालिया मामलों में भी समय-सीमा का सख्त पालन होता है।
- सरकारी सेवा, पेंशन या वेतन संबंधी दावे: जैसे पेंशन, वेतन, नौकरी से जुड़ी समस्याओं के लिए समय सीमा जरूरी होती है।
आपराधिक मामलों में:
गंभीर अपराध (जैसे हत्या, बलात्कार): इनके लिए कोई लिमिटेशन नहीं होती—कभी भी केस दाखिल किया जा सकता है।
छोटे अपराध (जैसे जुर्माना, कम सज़ा वाले अपराध): भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 514 के अनुसार समय सीमा होती है:
- जुर्माना वाले मामलों में – 6 महीने
- 1 वर्ष तक की सजा वाले – 1 साल
- 1–3 साल की सजा वाले – 3 साल
नोट: कुछ आर्थिक अपराध और विशेष मामले (जैसे करप्शन, 85 BNS) लिमिटेशन एक्ट से बाहर होते हैं—उनके लिए समय सीमा लागू नहीं होती ।
क्या देरी माफी के बाद केस जीतने की संभावना रहती है?
बिल्कुल, अगर आपका केस मजबूत है और देरी का कारण वाजिब है तो:
- कोर्ट केवल देरी नहीं देखता, वह केस की गंभीरता भी देखता है।
- यदि आपकी देरी माफ हो जाती है, तो केस सामान्य प्रक्रिया में आगे बढ़ता है।
वकील की सही सलाह कब बेहद जरूरी होती है?
- जब आपको संदेह हो कि लिमिटेशन निकल गया है।
- जब केस पुराने दस्तावेज़ों और तारीखों से जुड़ा हो।
- जब देरी माफ कराने के लिए उचित कारण और प्रमाण जुटाने हों।
एक अनुभवी वकील सही दस्तावेज़, भाषा और रणनीति तय कर सकता है, जो कोर्ट को संतुष्ट कर सके।
निष्कर्ष: देर से सही, लेकिन कानूनी अधिकार बच सकते हैं
लिमिटेशन एक्ट एक ज़रूरी कानून है, लेकिन यह अंतिम रेखा नहीं है। अगर देरी का कारण वाजिब है और साक्ष्य मजबूत हैं, तो कोर्ट दरवाज़े बंद नहीं करता। सही सलाह, दस्तावेज़, और समय पर आवेदन आपको न्याय दिलाने में मदद कर सकते हैं।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. क्या लिमिटेशन निकल जाने के बाद केस फाइल हो सकता है?
हाँ। यदि आपके पास देरी का “ठोस कारण” हो, जैसे बीमारी या प्राकृतिक आपदा, तो कोर्ट डेरी माफ कर सकती है और केस स्वीकार कर सकती है ।
2. देरी माफ करने के लिए कौन‑से कारण कोर्ट में स्वीकार होते हैं?
कॉर्ट अक्सर गंभीर बीमारी, एक्सीडेंट, प्राकृतिक आपदा, लॉकडाउन, सरकारी देरी, वकील की गलती या कानूनी जानकारी की कमी जैसे कारण मानती है ।
3. देरी माफी याचिका का प्रारूप क्या होता है?
वकील एक आवेदन तैयार करता है जिसमें देरी का “उचित कारण”, कितने दिन की देरी हुई और उसके समर्थन में प्रमाण (जैसे मेडिकल रिपोर्ट या दस्तावेज़) शामिल होते हैं ।
4. कोर्ट कितना समय तक की देरी माफ कर सकता है?
कोर्ट के पास विवेक होता है, और यह छोटा या बड़ा समय मान सकती है—सब संभव है—काफी हद तक “उचित कारण” और देरी की स्पष्ट व्याख्या पर निर्भर करता है।
5. क्या देरी माफी के बाद केस सामान्य तरीके से चलता है?
जी हाँ। अगर देरी माफ हो जाती है, तो केस सामान्य प्रक्रिया—जैसे सुनवाई, सबूत, निर्णय—पर आगे बढ़ता है और मेरिट (मामले की सच्चाई) के आधार पर निर्णय दिया जाता है ।



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