क्या एग्रीमेंट टू सेल का रजिस्ट्रेशन जरूरी है? जानिए कोर्ट की राय

Is registration of agreement to sell necessary Know the opinion of the court

रियल एस्टेट की बिक्री में दस्तावेज़ों की सही तरीके से तैयारी और कानूनी प्रक्रिया का पालन बहुत ज़रूरी होता है। इन्हीं में से एक अहम दस्तावेज़ होता है – “एग्रीमेंट टू सेल

यह एक लिखित समझौता होता है, जो खरीदार और विक्रेता के बीच भविष्य में प्रॉपर्टी की बिक्री को लेकर किया जाता है। लेकिन बहुत से लोग इसे ही अंतिम और कानूनी रूप से पूरा सौदा मान लेते हैं, जो कि एक बड़ी गलती साबित हो सकती है।

आखिर विवाद क्यों होते हैं?

  • अक्सर लोग बिना रजिस्ट्रेशन के ही एग्रीमेंट टू सेल बना लेते हैं और समझते हैं कि अब प्रॉपर्टी पर उनका हक हो गया।
  • लेकिन बाद में विक्रेता वो प्रॉपर्टी किसी और को बेच देता है या सौदा करने से इनकार कर देता है।
  • तब मामला कोर्ट तक पहुँच जाता है और वहां पता चलता है कि बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट की कानूनी वैल्यू बहुत सीमित होती है।

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एग्रीमेंट टू सेल क्या होता है?

यह एक लिखित वादा होता है जिसमें विक्रेता कहता है कि वह भविष्य में कुछ तय शर्तों पर प्रॉपर्टी बेचेगा, और खरीदार उसे खरीदेगा। यह सिर्फ एक समझौता होता है, न कि मालिकाना हक देने वाला दस्तावेज़।

एग्रीमेंट टू सेल और सेल दीड में अंतर:

पहलूएग्रीमेंट टू सेलसेल दीड
उद्देश्यभविष्य की बिक्री का वादाप्रॉपर्टी की वास्तविकबिक्री
कानूनी असरसिर्फ एक कॉन्ट्रैक्ट हैमालिकाना हक ट्रांसफर हो जाता है
रजिस्ट्रेशनहर बार जरूरी नहींहमेशा जरूरी होता है

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 के तहत यह एक वैध कॉन्ट्रैक्ट माना जाता है। लेकिन असली मालिकाना हक तभी ट्रांसफर होता है:

जब सेल दीड बनता है और उसे रजिस्टर्ड किया जाता है। यह बात ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 में साफ कही गई है।

सिर्फ एग्रीमेंट टू सेल से मालिकाना हक नहीं मिलता

जब आप कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो कई लोग सोचते हैं कि एग्रीमेंट टू सेल बन जाने से वे मालिक बन गए। लेकिन यह सही नहीं है।

कानून क्या कहता है?

ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 54: धारा 54 के अनुसार ₹100 या उससे अधिक मूल्य की प्रॉपर्टी (आज के समय में लगभग सभी प्रॉपर्टीज़) का मालिकाना हक तभी ट्रांसफर होता है, जब रजिस्टर्ड सेल डीड बनाई जाती है।

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सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि एग्रीमेंट टू सेल सिर्फ भविष्य में बिक्री का वादा करता है, लेकिन इससे खरीदार को प्रॉपर्टी पर कोई कानूनी हक या मालिकाना अधिकार नहीं मिलता।

रजिस्ट्रेशन क्यों जरूरी होता है?

जब आप कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो सिर्फ एग्रीमेंट एग्रीमेंट टू सेल बना लेना काफी नहीं होता। उसका रजिस्ट्रेशन करना कानूनी रूप से जरूरी है।

रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 – धारा 17 और 49 क्या कहती हैं?

धारा 17: अगर कोई दस्तावेज़ (जैसे एग्रीमेंट टू सेल) किसी भी तरह का हक या मालिकाना अधिकार देता है, तो उसे रजिस्टर्ड करना जरूरी है।

धारा 49: अगर आपने ऐसा दस्तावेज़ रजिस्टर्ड नहीं करवाया, तो:

  • वो कानूनन मान्य नहीं होगा।
  • उससे मालिकाना हक ट्रांसफर नहीं होगा।
  • वो कोर्ट में भी सबूत के तौर पर नहीं माना जाएगा, सिवाय कुछ सीमित मामलों के।

चार महीने की समय सीमा – धारा 23 के अनुसार:

  • अगर कोई दस्तावेज़ रजिस्टर्ड करना जरूरी है, तो उसे बनने की तारीख से 4 महीने के अंदर रजिस्ट्रेशन ऑफिस में पेश करना होता है।
  • अगर यह समय निकल गया, तो वो दस्तावेज़ मालिकाना हक ट्रांसफर के लिए अमान्य हो जाता है।

रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 की धारा 53A – पार्ट परफॉर्मेंस का नियम

पहले क्या होता था? अगर आपने बिना रजिस्ट्रेशन वाला एग्रीमेंट टू सेल साइन किया,
प्रॉपर्टी का कब्जा ले लिया और पेमेंट कर दिया या देने को तैयार थे, तो धारा 53A के तहत आपको कब्जा बनाए रखने की कानूनी सुरक्षा मिलती थी।

अब क्या बदल गया है? साल 2001 के बाद कानून बदल गया। अब सिर्फ रजिस्टर्ड एग्रीमेंट टू सेल वाले लोगों को ही यह सुरक्षा मिलती है।

इसका मतलब ये है कि अगर आपके पास रजिस्टर्ड एग्रीमेंट टू सेल है, आपने प्रॉपर्टी का कब्जा ले लिया है और पेमेंट कर दिया है या देने को तैयार हैं, तो विक्रेता आपको प्रॉपर्टी से जबरन नहीं निकाल सकता, यानी आपको कब्जे की कानूनी सुरक्षा मिल जाती है।

लेकिन इससे मालिकाना हक नहीं मिलता और अगर कोई और व्यक्ति सही तरीके से रजिस्टर्ड सेल डीड के साथ प्रॉपर्टी खरीद ले, तो आपकी एग्रीमेंट टू सेल उस पर लागू नहीं होती।

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क्या बिना रजिस्टर्ड के एग्रीमेंट टू सेल पूरी तरह बेकार है?

नहीं, बिल्कुल नहीं। ऐसी एग्रीमेंट टू सेल की भी कुछ सीमित कानूनी वैल्यू होती है। रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 की धारा 49 के तहत: बिना रजिस्टर वाले एग्रीमेंट टू सेल को कोर्ट में स्पेसिफिक परफॉरमेंस के केस में सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसका मतलब: आप कोर्ट से कह सकते हैं कि विक्रेता को रजिस्टर्ड सेल डीड बनाने का आदेश दिया जाए। इसके अलावा, इसे पक्षों की नीयत और कब्जा साबित करने जैसे मामलों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य, 2012 1 SCC 656

  • इस अहम फैसले में कोर्ट ने कहा: एग्रीमेंट टू सेल, जनरल पावर ऑफ़ अटॉर्नी या वसीयत जैसी चीजों से लोग रजिस्ट्रेशन की कानूनी प्रक्रिया से बचने की कोशिश करते हैं, जो गलत है।
  • कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे दस्तावेज़ों से प्रॉपर्टी का मालिकाना हक ट्रांसफर नहीं होता।

के.बी. साहा एंड संस बनाम डेवलपमेंट कंसल्टेंट (2008) 8 SCC 564

बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट टू सेल को भी सुप्रीम कोर्ट में सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, जब आप विक्रेता को रजिस्टर्ड डीड बनवाने के लिए कह रहे हों।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: एग्रीमेंट टू सेल से न तो प्रॉपर्टी का मालिकाना हक मिलता है और न ही उस पर कोई कानूनी अधिकार बनता है, 2025

  • बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट टू सेल (चाहे कब्जा हो या नहीं) से मालिकाना हक नहीं बनता।
  • ऐसा एग्रीमेंट टू सेल किसी तीसरे खरीदार पर लागू नहीं होता।
  • मालिकाना हक तभी मिलता है, जब रजिस्टर्ड सेल डीड बनती है।

विनोद इंफ्रा डेवलपर्स बनाम महावीर लूनिया एवं अन्य, 2025

  • कोर्ट ने कहा कि बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट टू सेल और रद्द की गई जनरल पावर ऑफ़ अटॉर्नी से कोई भी रजिस्टर्ड सेल डीड वैध नहीं बन सकती।
  • खरीदार द्वारा जो केस दाखिल किया गया था, वह जायज था, उसे खारिज नहीं किया जा सकता।
  • साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड (जैसे नाम दर्ज होना), मालिकाना हक का कानूनी सबूत नहीं होता।

एग्रीमेंट टू सेल को वैध और सुरक्षित बनाने के उपाय

  • स्टाम्प पेपर पर सही ड्राफ्टिंग कराएं।
  • नोटरी से कराने की बजाय रजिस्ट्रेशन करवाना ज्यादा सुरक्षित है।
  • एग्रीमेंट में शर्तें स्पष्ट होनी चाहिए – जैसे एडवांस अमाउंट, कब्जा, डिफॉल्ट की स्थिति आदि।
  • दो गवाहों के हस्ताक्षर और तारीख जरूर होनी चाहिए।
  • बैक डेट या मौखिक समझौते से बचें।
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रजिस्टर्ड एग्रीमेंट टू सेल के फायदे

  • दोनों पक्षों का कानूनी संरक्षण होता है।
  • कोर्ट में यह मजबूत सबूत बनता है।
  • बैंक लोन में स्वीकृत दस्तावेज होता है।
  • भविष्य में विक्रेता डबल डील नहीं कर सकता।
  • स्पेसिफिक परफॉरमेंस सूट में मजबूती देता है।

निष्कर्ष

हाँ, एग्रीमेंट टू सेल बनवाना जरूरी है, लेकिन उसे रजिस्टर्ड कराना और भी जरूरी है। सिर्फ एग्रीमेंट टू सेल से प्रॉपर्टी का मालिकाना हक नहीं मिलता। असली कानूनी सुरक्षा और खरीदार-बेचने वाले दोनों के अधिकार तभी सुरक्षित होते हैं जब रजिस्टर्ड सेल दीड तैयार होती है। बिना रजिस्ट्रेशन वाला एग्रीमेंट टू सेल न तो मालिकाना हक देता है, न ही टाइटल ट्रांसफर करता है। हां, कुछ सीमित मामलों में धारा 53A और स्पेसिफिक परफॉरमेंस के तहत मदद मिल सकती है, लेकिन पूरा मालिकाना हक और तीसरे पक्ष से सुरक्षा सिर्फ रजिस्टर्ड सेल डीड से ही मिलती है।

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FAQs

1. क्या बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट टू सेल से प्रॉपर्टी का मालिकाना हक मिल सकता है?

नहीं, जब तक रजिस्टर्ड सेल दीड नहीं होती, तब तक प्रॉपर्टी का मालिकाना हक ट्रांसफर नहीं होता।

2. नोटरी किया हुआ एग्रीमेंट टू सेल वैध होता है?

हां, नोटरी एग्रीमेंट वैध होता है, लेकिन कोर्ट में इसकी कानूनी वैल्यू बहुत सीमित होती है। पूरी सुरक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है।

3. रजिस्ट्रेशन कराने पर कितनी स्टाम्प ड्यूटी लगती है?

यह हर राज्य में अलग होती है और प्रॉपर्टी की कीमत पर निर्भर करती है। आमतौर पर 1% से 5% तक स्टाम्प ड्यूटी लगती है।

4. अगर एग्रीमेंट टू सेल रजिस्टर्ड न हो, तो क्या कोर्ट में मान्य होता है?

कुछ मामलों में हां, जैसे अगर आप स्पेसिफिक परफॉरमेंस सूट दायर कर रहे हों। लेकिन इसके लिए एग्रीमेंट का साफ, निष्पक्ष और वैध होना जरूरी है। यह पूरी तरह से मालिकाना हक नहीं दिलाता।

5. क्या एग्रीमेंट टू सेल के आधार पर स्पेसिफिक परफॉरमेंस सूट किया जा सकता है?

हां, किया जा सकता है, लेकिन शर्त ये है कि कॉन्ट्रैक्ट कानूनी रूप से सही, स्पष्ट और निष्पक्ष हो।

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