भारत में कभी-कभी कोई केस ऐसे राज्य में होता है जहाँ आरोपी या शिकायत करने वाला नहीं रहता। बार-बार कोर्ट जाना मुश्किल और महंगा होता है। कभी-कभी कोई पक्ष वहाँ असुरक्षित या डर महसूस करता है, जिससे न्याय सही नहीं मिल पाता।
इसीलिए भारत के कानून हमे मौका देता है कि हम अपने केस को एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर कर सके। लेकिन ऐसा केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है। यह ब्लॉग आपको बताएगा कि ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट में केस ट्रांसफर की प्रक्रिया क्या होती है, किन परिस्थितियों में ट्रांसफर मुमकिन है, और आपको क्या कदम उठाने चाहिए।
केस ट्रांसफर क्या होता है?
केस ट्रांसफर का मतलब है कि एक राज्य की कोर्ट में चल रहा मामला किसी दूसरे राज्य की कोर्ट में भेजना। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि दूरी, असुरक्षा या किसी परेशानी की वजह से इंसाफ मिलने में दिक्कत न हो।
उदाहरण:
सुमिता नाम की एक महिला मुंबई में रहती है। वह वहीं नौकरी करती है और उसका सारा परिवार भी वहीं रहता है। शादी के कुछ समय बाद, उसके पति ने उसके खिलाफ एक केस बिहार में अपने घर के पास की कोर्ट में दाखिल कर दिया।
अब सुमिता को बार-बार बिहार जाकर कोर्ट की तारीखों पर हाज़िर होना पड़ता है। यह उसके लिए बहुत महंगा, थकाने वाला और असुरक्षित भी है, क्योंकि वह वहाँ अकेली होती है और डर भी लगता है। साथ ही, नौकरी से बार-बार छुट्टी लेना भी मुश्किल हो जाता है।
ऐसी स्थिति में, सुमिता सुप्रीम कोर्ट में एक ट्रांसफर पिटीशन फाइल कर सकती है। इस पिटीशन में वह कह सकती है कि:
- वह मुंबई में रहती और काम करती है,
- बिहार जाना उसके लिए मुश्किल और असुरक्षित है,
- इसलिए केस को बिहार से मुंबई की किसी कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाए।
अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि उसकी बात सही है और ट्रांसफर जरूरी है, तो कोर्ट केस को मुंबई की कोर्ट में भेजने का आदेश दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट को केस ट्रांसफर करने का अधिकार किस कानून के तहत मिलता है?
यह अधिकार निम्नलिखित कानूनी प्रावधानों के तहत दिया गया है:
1. सिविल केस के लिए
अगर कोई सिविल केस एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर करना हो, तो सुप्रीम कोर्ट यह आदेश सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 25 के तहत दे सकता है। कुछ उदाहरण जिन सिविल मामलों को ट्रांसफर किया जा सकता है:
- तलाक या वैवाहिक विवाद
- दहेज से जुड़ा मामला
- बच्चे की कस्टडी
- संपत्ति का विवाद
- उत्तराधिकार या वसीयत से जुड़ी समस्या
- पारिवारिक विवाद
- अन्य सिविल केस
2. आपराधिक केस के लिए
अगर कोई आपराधिक केस ट्रांसफर करना हो, तो सुप्रीम कोर्ट भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 446 के तहत केस को एक राज्य से दूसरे राज्य में भेज सकता है। कुछ उदाहरण जिन आपराधिक मामलों को ट्रांसफर किया जा सकता है:
- FIR दर्ज होने के बाद केस
- क्रिमिनल ट्रायल
- घरेलू हिंसा
- धोखाधड़ी या ठगी का मामला
- दहेज उत्पीड़न
- धमकी या जान से मारने की कोशिश
- अन्य आपराधिक केस
3. संवैधानिक या जनहित के मामलों के लिए
अगर दो या दो से ज्यादा राज्यों में एक जैसे संवैधानिक मुद्दों पर केस चल रहे हों, तो सुप्रीम कोर्ट उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 139A के तहत एक साथ एक ही राज्य की कोर्ट में ट्रांसफर कर सकता है। कुछ उदाहरण:
- मौलिक अधिकारों से जुड़ी रिट पेटिशन
- पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL)
- राज्यों के बीच संवैधानिक विवाद
- एक से ज्यादा हाई कोर्ट में लंबित एक जैसे मुद्दों वाली याचिकाएं
किस आधार पर केस ट्रांसफर हो सकता है?
1. पक्षकार की सुविधा (खासतौर पर महिलाओं या बच्चों की): अगर किसी को बार-बार बहुत दूर यात्रा करनी पड़ रही है और इससे परेशानी हो रही है, तो कोर्ट केस ट्रांसफर करने पर विचार कर सकता है।
उदाहरण: अगर कोई महिला पति से अलग रह रही है और अपने मायके में है, तो वह सुप्रीम कोर्ट से कह सकती है कि केस को उसकी वर्तमान जगह ट्रांसफर कर दिया जाए।
2. जान का खतरा या असुरक्षा महसूस होना: अगर किसी को लगता है कि जहाँ केस चल रहा है वहाँ जाना उसके लिए जान का खतरा बन सकता है, तो यह भी एक बड़ा कारण होता है।
उदाहरण: अगर कोई गवाह या शिकायतकर्ता अपने इलाके में डर या धमकी का सामना कर रहा है, तो वह केस ट्रांसफर की मांग कर सकता है।
3. स्वास्थ्य संबंधी परेशानी: अगर किसी व्यक्ति को ऐसी बीमारी है जिससे वह लंबी यात्रा नहीं कर सकता, तो वह अपनी नजदीकी कोर्ट में केस ट्रांसफर करवाने की मांग कर सकता है।
उदाहरण: अगर किसी को दिल की बीमारी या चलने में दिक्कत है, तो वह कह सकता है कि केस उसके शहर में चलाया जाए।
4. एक जैसे कई केस अलग-अलग राज्यों में होना: अगर एक ही मामले से जुड़े सिविल और क्रिमिनल केस दो राज्यों में चल रहे हैं, तो कोर्ट उन्हें एक ही राज्य में ले जाकर साथ में चलाने का आदेश दे सकता है।
उदाहरण: अगर संपत्ति विवाद का सिविल केस राजस्थान में और उससे जुड़ा आपराधिक केस दिल्ली में है, तो दोनों को एक जगह ट्रांसफर किया जा सकता है।
5. केस में बहुत ज़्यादा देरी हो रही हो: अगर जिस कोर्ट में केस चल रहा है वहाँ सुनवाई सालों तक नहीं हो रही, तो कोई भी पक्ष केस को तेज सुनवाई वाले राज्य में ट्रांसफर करवाने की अर्जी दे सकता है।
उदाहरण: अगर केस 5 साल से रुका हुआ है और कोई उम्मीद नहीं है, तो पीड़ित कोर्ट से कह सकता है कि इसे किसी दूसरे राज्य में भेजा जाए जहाँ जल्दी फैसला हो सके।
6. दोनों पक्षों की आपसी सहमति: अगर दोनों पक्ष मान जाएं कि केस किसी तीसरे, सुविधाजनक राज्य में चलाया जाए, तो सुप्रीम कोर्ट आसानी से ट्रांसफर की इजाजत दे देता है।
उदाहरण: अगर दो कंपनियाँ एक बिजनेस केस राजस्थान से दिल्ली ले जाना चाहती हैं, और दोनों राज़ी हैं, तो कोर्ट आमतौर पर मंज़ूरी दे देता है।
सुप्रीम कोर्ट में केस ट्रांसफर करवाने की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के वकील से संपर्क करें
सुप्रीम कोर्ट में कोई भी केस सिर्फ “एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड” (AOR) ही दाखिल कर सकता है। चाहे आप खुद वकील हों या कोई सीनियर एडवोकेट हों, बिना AOR के आप ट्रांसफर पिटीशन दाखिल नहीं किया जा सकता।
AOR ही वो वकील होता है जो:
- केस की वकालतनामा दाखिल कर सकता है
- कोर्ट के साथ सारी आधिकारिक बातचीत करता है
- केस को रजिस्ट्री में जमा कराता है
- और कोर्ट से जुड़े दस्तावेज़ों को फॉलो-अप करता है
इसलिए जब आप सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन दाखिल करना चाहें, तो सबसे पहले किसी अच्छे और अनुभव वाले AOR वकील से संपर्क करना ज़रूरी होता है।
ट्रांसफर पिटीशन तैयार कराएं
इस पिटीशन में महत्वपूर्ण बातें होनी चाहिए:
- कौन सा केस ट्रांसफर करवाना है
- केस अभी किस कोर्ट और किस राज्य में चल रहा है
- आप केस किस राज्य और कोर्ट में ट्रांसफर करवाना चाहते हैं
- ट्रांसफर की वजह क्या है (और अगर कोई सबूत है तो उसे भी जोड़े)
ज़रूरी दस्तावेज़ जोड़ें
आपको अपनी पिटीशन के साथ कुछ ज़रूरी कागज़ भी लगाने होते हैं, जैसे:
- एफआईआर या शिकायत की कॉपी
- मेडिकल रिपोर्ट (अगर कोई स्वास्थ्य कारण है)
- रहने की जगह का सबूत (प्रूफ ऑफ रेसिडेंस)
- अगर किसी से खतरा है तो उसका सबूत (जैसे धमकी भरे पत्र)
- अगर मामला शादी से जुड़ा है तो शादी का प्रमाणपत्र
सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दाखिल करें
आपके वकील द्वारा यह पिटीशन सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ऑफिस में जमा की जाएगी। आप पिटीशनर होंगे, और दूसरा पक्ष रेस्पोंडेंट होगा।
दूसरे पक्ष को नोटिस भेजा जाएगा
कोर्ट रेस्पोंडेंट को नोटिस भेजेगा ताकि वे भी अपनी बात रख सकें। उन्हें यह अधिकार है कि वे आपके ट्रांसफर का विरोध कर सकें।
सुनवाई होगी
सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच में आपके केस की सुनवाई होगी। आपके वकील को कोर्ट में यह बताना होगा कि केस ट्रांसफर क्यों जरूरी है। दूसरा पक्ष भी अपनी बात रखेगा।
कोर्ट का फ़ैसला (आदेश)
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि केस ट्रांसफर किया जाए या नहीं। अगर कोर्ट को लगता है कि ट्रांसफर जरूरी है, तो वह आदेश जारी कर देगा और केस आपकी बताई गई कोर्ट में भेज दिया जाएगा।
क्या सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर पिटीशन को खारिज कर सकता है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर पिटीशन को रद्द या खारिज कर सकता है अगर उसे लगे कि अर्जी झूठी, कमजोर या कानून के हिसाब से गलत है। ट्रांसफर का फैसला कोर्ट की इच्छा पर निर्भर करता है – हर अर्जी मंज़ूर हो ये ज़रूरी नहीं।
ट्रांसफर पिटीशन खारिज होने के आम कारण:
- ठोस वजहों का न होना (जैसे असुरक्षा, बीमारी या यात्रा में भारी कठिनाई)
- गलत नीयत से दाखिल करना (सिर्फ केस लटकाने या सामने वाले को परेशान करने के लिए)
- सबूतों की कमी (जैसे मेडिकल रिपोर्ट, धमकी की शिकायत, आदि)
- दूसरे पक्ष को ज़्यादा नुकसान होना
- केस पहले से आखिरी स्टेज पर होना (जैसे ट्रायल पूरा होने वाला हो)
- आप या आपके वकील का कोर्ट में पेश न होना
अगर पिटीशन खारिज हो जाए तो क्या होगा?
- सुप्रीम कोर्ट का ट्रांसफर पर फैसला आखिरी होता है और आप इस पर अपील नहीं कर सकते।
- केस वहीं की कोर्ट में चलता रहेगा जहाँ पहले से चल रहा है।
- कोर्ट आप पर पेनल्टी या जुर्माना भी लगा सकता है।
- अगर बाद में कोई नई गंभीर परिस्थिति आ जाए (जैसे नया खतरा या नई मेडिकल परेशानी), तो आप फिर से नई पिटीशन दाखिल कर सकते हैं।
केस ट्रांसफर करने में कितना समय और खर्च लग सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर पिटीशन को आम तौर पर जल्दी निपटाने की कोशिश करता है। लेकिन केस की गंभीरता और कोर्ट का शेड्यूल देखकर इसमें लगभग 2 से 6 महीने का समय लग सकता है। कुछ मामलों में यह समय कम या ज्यादा भी हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन दाखिल करने के लिए एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AOR) की फीस लगभग ₹25,000 से ₹1,00,000 तक हो सकती है। इसके अतिरिक्त, कोर्ट फीस सामान्यतः ₹500 से ₹1,000 तक होती है। दस्तावेज़ों की प्रतिलिपि, स्टाम्प पेपर, नोटरी आदि से संबंधित खर्च अलग से देय होता है।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
श्री सेंधुर एग्रो एंड ऑयल इंडस्ट्रीज बनाम कोटक महिंद्रा बैंक, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि आपराधिक केस का ट्रांसफर सिर्फ इसलिए नहीं होगा कि कहीं जाने में असुविधा हो या भाषा अलग हो। ट्रांसफर तभी मिलेगा जब केस में गवाहों को धमकी हो, आरोपी का असर हो या स्थानीय माहौल पक्षपाती हो। कोर्ट ने बताया कि चेक बाउंस केस में, जहाँ चेक दिया गया है, वहीं की कोर्ट को केस सुनना चाहिए। इसका मतलब है, ट्रांसफर के लिए मजबूत और सही वजहें होनी चाहिए, सिर्फ असुविधा से नहीं।
ईशा अग्रवाल बनाम अनुज अग्रवाल, 2024
सुप्रीम कोर्ट ने इस वैवाहिक मामले में महिला द्वारा बार-बार केस ट्रांसफर पिटीशन दायर करने पर आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि बार-बार निवास बदलकर ट्रांसफर मांगना दूसरे पक्ष के अधिकारों का उल्लंघन है और न्याय प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए पिटीशन खारिज कर दी गई और मामले को मेडिएशन के लिए भेजा गया।
राजेंद्र खरे बनाम स्वाति निरखी एवं अन्य, 2021
सुप्रीम कोर्ट ने राजेंद्र खरे बनाम स्वाती निरखी मामले में कहा कि बिना पक्षकार को नोटिस दिए ट्रांसफर पिटीशन पर फैसला गलत था। कोर्ट ने पुराना आदेश रद्द करके पिटीशन फिर से शुरू की। साथ ही, कोर्ट ने बताया कि रिव्यु पिटीशन दायर करना वैध है और न्याय सुधारना जरूरी है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट में केस ट्रांसफर की प्रक्रिया जटिल जरूर है, लेकिन सही मार्गदर्शन से आसान हो सकती है। यह विकल्प केवल तभी अपनाएं जब न्याय की मांग वाजिब हो और ट्रांसफर की वास्तविक जरूरत हो। इससे न सिर्फ आपका समय और संसाधन बचते हैं, बल्कि निष्पक्ष न्याय भी सुनिश्चित होता है।
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FAQs
1. क्या हर केस सुप्रीम कोर्ट के द्वारा ट्रांसफर हो सकता है?
नहीं, केवल उन केसों का ट्रांसफर हो सकता है जिनमें दो अलग-अलग राज्यों की अदालतें जुड़ी हों।
2. केस ट्रांसफर में कितना समय लगता है?
आमतौर पर 2 से 6 महीने लगते हैं, लेकिन जरूरी मामलों में जल्दी भी हो सकता है।
3. क्या बिना वकील के ट्रांसफर पिटीशन लगाई जा सकती है?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR) के जरिए ही पिटीशन लगती है।
4. क्या शादी-विवाह के मामले ट्रांसफर हो सकते हैं?
हाँ, खासकर जब महिला को दूसरे राज्य में जाना मुश्किल हो।



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