अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर केस 2017: म्युचुअल डाइवोर्स में 6 महीने की वेटिंग खत्म करने पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Amardeep Singh vs Harveen Kaur case 2017: Supreme Court decision to abolish 6-month waiting period in mutual divorce

भारत में शादी एक पवित्र बंधन माना जाता है, लेकिन जब यह रिश्ता टूट जाता है और पति-पत्नी साथ नहीं रह सकते, तो तलाक ही एकमात्र समाधान बन जाता है। तलाक या तो आपसी सहमति से लिया जा सकता है या फिर यह एकतरफा भी हो सकता है। ऐसे में म्युचुअल डाइवोर्स से शादी को खत्म करने का सबसे आसान और शांतिपूर्ण तरीका माना जाता है। इसमें लंबे समय तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर और अनावश्यक झगड़े नहीं होते।

लेकिन हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B के तहत, फर्स्ट मोशन करने के बाद पति-पत्नी को सेकंड मोशन करने से पहले 6 महीने इंतज़ार करना पड़ता था। लेकिन कई मामलों में ऐसा होता था कि पति-पत्नी तलाक के लिए आवेदन करने से पहले ही कई सालों से अलग रह रहे होते थे। ऐसे में यह 6 महीने का इंतज़ार उनके लिए बोझ बन जाता था, न कि मदद।

इसी बात को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर AIR 2017 SC 4417 मामले में फैसला दिया कि यह 6 महीने की वेटिंग पीरियड हर केस में ज़रूरी नहीं है।

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अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर केस 2017 – पृष्ठभूमि

शुरुआत कहाँ से हुई? यह केस पंजाब और हरियाणा से शुरू हुआ, जहां अमरदीप सिंह और हरवीन कौर के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद ने एक बड़ा कानूनी मोड़ लिया।

8 साल से अलगाव: पति-पत्नी के बीच रिश्ते इतने बिगड़ गए कि वे लगातार 8 साल से अलग रह रहे थे।

आपसी सहमति का फैसला: दोनों ने तय किया कि झगड़ों को खत्म करके आपसी सहमति से तलाक लिया जाए, ताकि दोनों अपनी जिंदगी फिर से शुरू कर सकें।

समझौते की शर्तें:

  • पति ने पत्नी को ₹2.75 करोड़ स्थायी एलीमोनी देने का वादा किया।
  • बच्चों की कस्टडी पति के पास रहेगी।
  • संपत्ति और अन्य विवादित मुद्दों पर पूरी सहमति बन गई।

कानूनी अड़चन: तलाक के लिए याचिका दायर की गई, लेकिन हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B के अनुसार उन्हें 6 महीने का इंतजार करना पड़ता।

दोनों की दलील:

  • हम पिछले 8 साल से अलग हैं, सुलह की कोई संभावना नहीं है।
  • और देरी होने से हमारी जिंदगी दोबारा बसाने में मुश्किल होगी।

मामला कहाँ तक गया? यह मामला पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट गया और फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।

सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य प्रश्न

  • क्या धारा 13B (2) के तहत 6 महीने का कूलिंग-ऑफ पीरियड अनिवार्य (Mandatory) है?
  • क्या कोर्ट को यह अधिकार है कि वह परिस्थितियों के आधार पर इस पीरियड को माफ कर सके?
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इस निर्णय से संबंधित कानूनी प्रावधान

हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce) का प्रावधान करती है। इसमें दो हिस्से हैं:

धारा 13B (1): 

  • पति-पत्नी को मिलकर तलाक की अर्जी देनी होती है। इसमें यह लिखना ज़रूरी है कि
  • वे कम से कम एक साल से अलग रह रहे हैं
  • उन्होंने आपसी सहमति से शादी खत्म करने का फैसला किया है

धारा 13B (2):

  • फर्स्ट मोशन देने के बाद, पति-पत्नी को 6 महीने इंतज़ार करना पड़ता है
  • इसके बाद ही वे सेकंड मोशन देकर तलाक का डिक्री ले सकते हैं।
  • इस 6 महीने को कूलिंग ऑफ पीरियड कहा जाता है।

कूलिंग ऑफ पीरियड का मकसद क्या है?

  • ताकि पति-पत्नी को फिर से सोचने का मौका मिले
  • अगर चाहें तो समझौता कर लें या तलाक की अर्जी वापस ले लें, तलाक फाइनल होने से पहले।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार देता है। इसका मतलब यह है कि:

  • अगर कोई मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, तो कोर्ट के पास यह विशेष अधिकार है कि वह ऐसा आदेश या डिक्री दे सके जिससे पूरी तरह न्याय हो सके
  • सरल शब्दों में, सुप्रीम कोर्ट ज़रूरत पड़ने पर कानून से अलग जाकर भी फैसला दे सकता है, ताकि किसी को पूरा न्याय मिल सके।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017) केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

  • 6 महीने का इंतज़ार अनिवार्य (Mandatory) नहीं है, बल्कि केवल सुझाव (advisory) है।
  • अगर कुछ शर्तें पूरी हों, तो कोर्ट यह 6 महीने की अवधि खत्म कर सकता है।
  • इस नियम का मकसद पति-पत्नी को सुलह का मौका देना है, न कि उन लोगों की परेशानी बढ़ाना जिन्होंने पहले ही अलग होने का पक्का फैसला कर लिया है।

धारा 13B (2) की में “shall” शब्द का इस्तेमाल हुआ है, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह सुझाविक प्रावधान (directory provision) है, यानी इसका पालन सामान्य स्थिति में करना चाहिए, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर छूट दी जा सकती है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि न्याय का सिद्धांत (Principle of Justice) यही है कि जब रिश्ते में सुलह का कोई मौका न हो, तो अनावश्यक प्रतीक्षा नहीं कराई जानी चाहिए।

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कानून का उद्देश्य यह होना चाहिए कि विवाद जल्दी खत्म हों, खासकर तब जब दोनों पक्ष तलाक के लिए राज़ी हों।

6 महीने की वेटिंग पीरियड हटाने की शर्तें

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नियम बताए, जिनके आधार पर यह इंतज़ार हटाया जा सकता है:

  • जरूरी समय पूरा हो चुका हो: पति-पत्नी कम से कम 18 महीने से अलग रह रहे हों (इसमें 1 साल का अलगाव और अतिरिक्त 6 महीने शामिल है) ।
  • सुलह की कोई संभावना न हो: कोर्ट को यह यकीन हो जाए कि दोनों के बीच मेल-मिलाप का कोई मौका नहीं है और वे सच में तलाक चाहते हैं।
  • सभी मुद्दों का निपटारा हो चुका हो: गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी, संपत्ति का बंटवारा जैसे सभी मामले आपसी सहमति से सुलझ चुके हों
  • फालतू देरी न हो: अगर इंतज़ार हटाने से अनावश्यक परेशानी और लंबा केस खत्म हो सकता है, तो कोर्ट यह छूट दे सकता है।

कूलिंग-ऑफ पीरियड हटाने के लिए कैसे आवेदन करें?

अगर आप 6 महीने का इंतज़ार हटवाना चाहते हैं, तो आपको ये कदम उठाने होंगे:

1. उसी कोर्ट में आवेदन दें जहाँ आपकी म्युचुअल डाइवोर्स पिटीशन लंबित है।

2. आवेदन में ये बातें साफ लिखें:

  • आप दोनों काफी समय से अलग रह रहे हैं
  • सभी मुद्दे (गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी, संपत्ति) आपसी सहमति से सुलझा लिए हैं।
  • आप दोनों का सच में शादी खत्म करने का इरादा है

3. इसके बाद कोर्ट इन तथ्यों की जाँच करेगा और सब चीज़ें वैध पायी गयी तो कोर्ट 6 महीने का वेटिंग पीरियड हटाने की अनुमति दे सकता है

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जल्दी तलाक मिलना

  • पहले क्या होता था? भले ही पति-पत्नी कई साल से अलग हों और सुलह की कोई संभावना न हो, फिर भी कानून के तहत 6 महीने और इंतज़ार करना पड़ता था। इससे तलाक की प्रक्रिया लंबी हो जाती थी।
  • अब क्या होगा? अब यह 6 महीने का इंतज़ार जरूरी नहीं है। अगर कोर्ट को लगता है कि शादी पूरी तरह टूट चुकी है और सुलह का कोई मौका नहीं है, तो वह यह अवधि हटा सकता है
  • फायदा: तलाक की प्रक्रिया जल्दी पूरी हो सकती है। समय और मेहनत दोनों बचते हैं।

मानसिक तनाव कम होना

  • पहले क्या होता था? अतिरिक्त 6 महीने का इंतज़ार कई बार बहुत परेशान करने वाला होता था। पति-पत्नी जो पहले ही अलग हो चुके हैं, उन्हें और लंबा इंतज़ार करना पड़ता था।
  • अब क्या होगा? अब ज़रूरी होने पर कोर्ट यह इंतज़ार हटा सकता है, जिससे पति-पत्नी को अनावश्यक तनाव नहीं झेलना पड़ेगा
  • फायदा: लोग अपनी नई जिंदगी जल्दी शुरू कर सकते हैं। बार-बार कोर्ट जाने और कानूनी झंझट कम हो जाएंगे।
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आपसी समझौते को बढ़ावा

  • पहले क्या होता था? पहले पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेने में संकोच करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि प्रक्रिया बहुत लंबी चलेगी और 6 महीने और इंतज़ार करना पड़ेगा।
  • अब क्या होगा? अब जब यह साफ है कि कोर्ट जरूरत पड़ने पर 6 महीने का इंतज़ार हटा सकता है, तो पति-पत्नी झगड़े खत्म करके आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए ज्यादा तैयार होंगे।
  • फायदा: गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी, संपत्ति का बंटवारा जैसी बातें आसानी से तय हो जाती हैं। कोर्ट के केस कम होते हैं, समय और पैसा बचता है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017) केस में यह समझा कि जब शादी पूरी तरह टूट चुकी हो, तो कानून बोझ नहीं बनना चाहिए। इसलिए कोर्ट ने कानून को लचीले (flexible) तरीके से लागू करने का रास्ता दिया।

इस फैसले से यह साफ हो गया कि अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं और सभी शर्तें पूरी कर चुके हैं, तो वे कोर्ट से 6 महीने का इंतज़ार हटाने की मांग कर सकते हैं। इससे वे जल्दी तलाक लेकर अपनी नई जिंदगी शुरू कर सकते हैं

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FAQs

1. क्या म्युचुअल डाइवोर्स में हमेशा 6 महीने इंतजार करना पड़ता है?

नहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह अवधि अनिवार्य नहीं है। जरूरत पड़ने पर कोर्ट इसे माफ कर सकता है।

2. किन परिस्थितियों में यह छूट मिल सकती है?

जब पति-पत्नी लंबे समय से अलग रह रहे हों, सभी मुद्दे सुलझ चुके हों और सुलह की कोई संभावना बिल्कुल न हो।

3. क्या फैमिली कोर्ट भी यह छूट दे सकता है?

हाँ, कोर्ट को यह विवेकाधिकार मिला है कि अगर शर्तें पूरी हों तो 6 महीने का समय हटा सकता है।

4. म्युचुअल डाइवोर्स में कुल कितना समय लगता है?

अगर कोर्ट छूट दे दे, तो तलाक तुरंत मिल सकता है, नहीं तो सामान्य प्रक्रिया में 6 महीने लगते हैं।

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