क्या सुप्रीम कोर्ट से FIR रद्द करवाई जा सकती है? जानिए प्रक्रिया और आपके अधिकार

Can an FIR be quashed by the Supreme Court Know the procedure and your rights

FIR (First Information Report) वह दस्तावेज़ है जिसे पुलिस तब दर्ज करती है जब उसे किसी संज्ञेय अपराध (जैसे हत्या, बलात्कार, चोरी, धोखाधड़ी आदि) की सूचना मिलती है। यह आपराधिक न्याय प्रणाली का पहला और बहुत महत्वपूर्ण कदम होता है, क्योंकि इससे ही पूरा आपराधिक मुकदमा शुरू होता है।

लेकिन कई बार FIR गलत इरादे से भी दर्ज कराई जाती है, जैसे कि –

  • व्यक्तिगत दुश्मनी या बदले की भावना से,
  • वैवाहिक विवादों में (झूठे दहेज या उत्पीड़न के केस),
  • व्यापारिक झगड़ों में दबाव बनाने के लिए,
  • या तब जब वास्तव में कोई अपराध हुआ ही न हो।

ऐसे मामलों में FIR और जाँच जारी रखना कानून का दुरुपयोग माना जाता है। यहीं पर यह सवाल उठता है – क्या सुप्रीम कोर्ट FIR को रद्द कर सकता है?

इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि सुप्रीम कोर्ट किन परिस्थितियों में FIR रद्द कर सकता है, इसकी प्रक्रिया क्या है, और एक नागरिक के रूप में आपके अधिकार क्या हैं। साथ ही, हम उन महत्वपूर्ण फैसलों पर भी बात करेंगे जिनसे अदालतें ऐसे मामलों में मार्गदर्शन लेती हैं।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

FIR रद्द करने के कानूनी प्रावधान

FIR को रद्द करने की शक्ति सीधे संविधान में नहीं लिखी गई है, लेकिन अलग-अलग कानूनी प्रावधानों से यह अधिकार अदालतों को मिला है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528

इस धारा के तहत हाई कोर्ट को यह अधिकार है कि अगर किसी FIR या मुकदमे से कानून का दुरुपयोग हो रहा है, तो उसे रद्द कर सके। इसका उद्देश्य है – न्याय दिलाना और गलत मुकदमों से बचाना।

संविधान का अनुच्छेद 136

इस अनुच्छेद से सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति मिलती है कि वह “स्पेशल लीव टू अपील” यानी विशेष अनुमति देकर मामले में दखल कर सकता है। जब न्याय की ज़रूरत हो, तो सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।

संविधान का अनुच्छेद 142

यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को यह ताकत देता है कि वह “पूरा न्याय” (कम्पलीट जस्टिस ) करने के लिए कोई भी आदेश दे सके। अगर किसी मामले में मूल अधिकार (Fundamental Rights) की रक्षा के लिए FIR रद्द करनी ज़रूरी हो, तो सुप्रीम कोर्ट ऐसा कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: भजन लाल गाइडलाइंस

हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल (1992) केस में सुप्रीम कोर्ट ने सात परिस्थितियाँ (भजन लाल गाइडलाइंस) बताई थीं, जिनमें FIR रद्द की जा सकती है। ये हैं:

  • FIR या शिकायत में लिखे आरोप किसी भी अपराध का गठन ही नहीं करते।
  • आरोप इतने अस्पष्ट, बेबुनियाद या अविश्वसनीय हों कि कोई अपराध बनता ही न हो।
  • उपलब्ध सबूतों को देखने के बाद भी कोई अपराध साबित न होता हो।
  • FIR केवल बदले की भावना, दुश्मनी या दबाव बनाने के लिए दर्ज की गई हो।
  • मुकदमा चलाने से सिर्फ़ कानून का दुरुपयोग हो और न्याय का कोई उद्देश्य न बचे।
  • आरोप किसी भी कानून या धारा के दायरे में आते ही न हों।
  • न्यायालय को लगे कि मुकदमा जारी रखना न्याय की प्रक्रिया का मज़ाक उड़ाना होगा।
  • आज भी FIR रद्द करने के लिए अदालतें इन्हीं गाइडलाइंस को आधार मानती हैं।
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सुप्रीम कोर्ट कब FIR रद्द कर सकता है?

जब FIR झूठी या बदनीयती से दर्ज की गई हो

उदाहरण: किसी प्रॉपर्टी विवाद में दुश्मनी के कारण एक पक्ष ने दूसरे पर झूठा हत्या का आरोप लगाकर FIR दर्ज करा दी।

जब FIR पढ़ने पर भी कोई अपराध साबित न होता हो

उदाहरण: किसी ने FIR में लिखा कि पड़ोसी ने मुझे गुस्से में देखा, लेकिन इसमें भारतीय न्याय संहिता 2023 की कोई अपराध धारा लागू ही नहीं होती।

जब दोनों पक्ष आपस में समझौता कर लें

उदाहरण: पति-पत्नी के बीच झगड़े के कारण दहेज उत्पीड़न की FIR हुई, लेकिन बाद में दोनों ने आपसी सहमति से समझौता कर लिया।

जब केस चलाना कानून का दुरुपयोग हो

उदाहरण: FIR में चोरी का आरोप लगाया गया, लेकिन कोई सबूत ही नहीं मिला। ऐसे में मुकदमा चलाना सिर्फ समय और संसाधन की बर्बादी होगी।

जब मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो

उदाहरण: पुलिस ने बिना क्षेत्रीय अधिकार (Jurisdiction) के किसी पर FIR दर्ज कर ली या बिना वजह गिरफ्तार कर लिया।

सुप्रीम कोर्ट में FIR रद्द करने की प्रक्रिया क्या है?

वकील से सलाह लें: सबसे पहले किसी अनुभवी क्रिमिनल वकील से सलाह लें, जिसे सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस का अनुभव हो।

आवश्यक दस्तावेज़ तैयार करें: FIR की कॉपी, चार्जशीट (अगर बनी हो), हाई कोर्ट के आदेश (अगर कोई हो), पहचान पत्र, और अन्य सबूत/दस्तावेज़ इकट्ठा करें।

स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) दाखिल करें

  • अनुच्छेद 136 संविधान के तहत SLP दाखिल की जाती है।
  • इसमें FIR का विवरण, FIR रद्द करने के कारण, और मांगी गई राहत का ज़िक्र होता है।

कोर्ट द्वारा नोटिस जारी करना: सुप्रीम कोर्ट दूसरी पार्टी और राज्य सरकार को नोटिस भेजकर जवाब माँग सकता है।

बेंच के सामने सुनवाई

  • दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क रखते हैं।
  • कोर्ट देखती है कि FIR असली है या बदनीयती से दर्ज की गई है।

निर्णय: सुप्रीम कोर्ट यह कर सकता है:

  • FIR पूरी तरह रद्द कर दे,
  • आंशिक रूप से रद्द करे (कुछ आरोपियों को छोड़कर),
  • या फिर सुप्रीम कोर्ट FIR को रद्द करने से इंकार कर सकती है, अगर पहली नज़र में लगता है कि अपराध सच में हुआ है।

FIR झूठी होने पर आरोपी के अधिकार

अगर आपके खिलाफ़ झूठी FIR दर्ज हो गई है, तो आपके पास ये अधिकार हैं:

  • हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाना – आप FIR को रद्द करवाने की गुज़ारिश कर सकते हैं।
  • ज़मानत का हक़ – गिरफ्तारी से बचने के लिए एंटीसिपेटरी बेल ले सकते हैं।
  • ईमानदार जाँच का हक़ – संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष और सही जाँच पाना आपका अधिकार है।
  • जल्द सुनवाई का हक़ – आपको बिना वजह परेशान नहीं किया जा सकता, केस का ट्रायल जल्दी होना चाहिए।
  • मुआवज़े का हक़ – अगर FIR झूठी साबित होती है तो आप गलत मुकदमे के लिए मुआवज़ा मांग सकते हैं।
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नौशे अली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025)

मुद्दा

क्या धारा 307 IPC/ 109 BNSS (हत्या की कोशिश) वाले आरोपों के तहत अदालत की कार्यवाही को धारा 482 CrPC/ 528 BNSS की शक्ति से रद्द किया जा सकता है, जब आरोपी और पीड़ित के बीच समझौता हो गया हो और घटनाएँ इतनी गंभीर न हों कि अपराध बनता ही न हो।

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ FIR में 307 का ज़िक्र होने से मामला स्वचालित रूप से चलेगा, यह ज़रूरी नहीं है। अगर चोटें मामूली हों, हथियार जानलेवा न हो, और समझौता हो गया हो, तो High Court को कार्यवाही रद्द करने की शक्ति है। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस की सुनवाई रद्द करने की अनुमति दे दी।

प्रभाव

  • इस फैसले से यह साफ़ हुआ कि गंभीर अपराधों के आरोपों वाले मामलों में भी समझौता और स्वास्थ्य/स्थिति देखी जाएगी।
  • FIR रद्द करना सिर्फ़ नाम या धारा के ज़िक्र पर आधारित नहीं होगा, बल्कि सबूत, चोट की गंभीरता, हथियार का प्रकार और आरोपी/पीड़ित की हालत को देखा जाएगा।
  • यह न्याय प्रणाली में दुरुपयोग को रोकने और मामलों को न्याय की दृष्टि से निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक कदम है।

रमेश चंद्र गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश (2022)

  • मुद्दा: रमेश चंद्र गुप्ता पर धोखाधड़ी और जालसाजी का आरोप लगा था। उन्होंने दावा किया कि FIR झूठी और बेबुनियाद है।
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि आरोपों का कोई ठोस सबूत नहीं है। भजनलाल गाइडलाइंस के आधार पर कोर्ट ने FIR और चार्जशीट को रद्द कर दिया।
  • प्रभाव: यह फैसला बताता है कि अगर FIR में ठोस आधार नहीं है, तो न्यायालय अपनी शक्तियों का उपयोग कर उसे रद्द कर सकता है, जिससे निर्दोष व्यक्ति सुरक्षित रहते हैं।

ग्यान सिंह बनाम पंजाब राज्य (2012)

  • मुद्दा: क्या अपराधी मुकदमों में समझौते के आधार पर FIR रद्द की जा सकती है, विशेषकर जब दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाद सुलझा लिया हो?
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि अपराध का स्वरूप गंभीर नहीं है और दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाद सुलझा लिया है, तो हाई कोर्ट अपने स्वाभाविक अधिकारों का उपयोग करके FIR रद्द कर सकता है। हालांकि, गंभीर अपराधों जैसे हत्या, बलात्कार आदि में ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसे मामलों में सार्वजनिक हित जुड़ा होता है।
  • प्रभाव: इस निर्णय ने यह स्थापित किया कि आपसी समझौते के आधार पर कुछ अपराधों में FIR रद्द की जा सकती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में लचीलापन आया और न्याय की त्वरित प्राप्ति संभव हुई।
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एम/एस निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा. लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र (2021)

  • मुद्दा: क्या हाई कोर्ट को धारा 482 के तहत FIR रद्द करते समय अंतरिम आदेश (जैसे गिरफ्तारी पर रोक) पारित करने से पहले उचित कारण देना आवश्यक है?
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट को धारा 482 के तहत FIR रद्द करने के लिए अंतरिम आदेश पारित करते समय उचित कारण देना अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे आदेश पुलिस की विवेचना में हस्तक्षेप न करें और केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही ऐसे आदेश पारित किए जाएं।
  • प्रभाव: यह निर्णय हाई कोर्ट को निर्देशित करता है कि वे FIR रद्द करने के मामलों में अंतरिम आदेश पारित करते समय सतर्कता बरतें और विवेचना में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचें। इससे न्यायिक विवेक और प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के पास FIR रद्द करने का अधिकार है, लेकिन इसे बहुत ही विशेष मामलों में ही इस्तेमाल किया जाता है, ताकि न्याय सुनिश्चित हो। आम मामलों में, FIR रद्द कराने के लिए हाई कोर्ट में CrPC धारा 482/ 528 BNSS के तहत आवेदन करना सही तरीका है।

सुप्रीम कोर्ट तभी हस्तक्षेप करती है जब:

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो,
  • कानून का खुला दुरुपयोग हुआ हो,
  • या “पूरा न्याय” देने के लिए आवश्यकता हो।

अगर आप किसी झूठी FIR में फंस गए हैं, तो घबराएं नहीं। कानून में आपके अधिकार सुरक्षित हैं और सही कानूनी मार्गदर्शन से आप अपनी सुरक्षा और प्रतिष्ठा की रक्षा कर सकते हैं।

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FAQs

1. क्या सुप्रीम कोर्ट FIR रद्द कर सकता है?

हाँ, लेकिन सिर्फ़ विशेष परिस्थितियों में, जैसे झूठी, द्वेषपूर्ण या कानून के दुरुपयोग वाली FIR।

2. FIR रद्द करने की प्रक्रिया क्या है?

सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) या रिट पिटीशन दाखिल करनी होती है और अपने कारण साबित करने होते हैं।

3. भजन लाल गाइडलाइंस क्या हैं?

1992 के भजन लाल केस में सुप्रीम कोर्ट ने 7 परिस्थितियाँ तय कीं, जिनमें FIR रद्द की जा सकती है।

4. किन मामलों में FIR रद्द करना मुश्किल है?

हत्या, बलात्कार, आतंकवाद जैसे गंभीर अपराधों में FIR रद्द करना लगभग असंभव होता है, कोर्ट इसे बहुत कम मानती है।

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