कॉपीराइट उल्लंघन पर कोर्ट कौन-कौन से कानूनी उपाय देता है? जानिए पूरी जानकारी

What legal remedies does the court provide for copyright infringement? Learn all the details.

आज के डिजिटल ज़माने में किसी का काम कॉपी करना बहुत आसान हो गया है। चाहे वह गाना हो, किताब, फिल्म, फोटो या सॉफ़्टवेयर, सिर्फ़ एक क्लिक से उसे बार-बार कॉपी किया जा सकता है। यही वजह है कि कॉपीराइट उल्लंघन आज क्रिएटर्स और बिज़नेस के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

क्रिएटर्स की मेहनत की सुरक्षा के लिए भारतीय कानून, कॉपीराइट एक्ट, 1957 मज़बूत सुरक्षा देता है। अगर आपका कॉपीराइट उल्लंघन किया जाता है, तो आप कोर्ट जा सकते हैं। कोर्ट उल्लंघन रोक सकता है, दोषी को सज़ा दे सकता है और आपको मुआवज़ा भी दिला सकता है।

इस ब्लॉग में हम आपको समझाएँगे कि ऐसे मामलों में क्या उपाय मिलते हैं, कोर्ट में क्या प्रक्रिया होती है, कौन-कौन से अहम फ़ैसले आए हैं और क्लाइंट्स के लिए व्यावहारिक सलाह क्या है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कॉपीराइट उल्लंघन क्या है?

कॉपीराइट उल्लंघन का मतलब है, किसी और की बनाई हुई रचना (जैसे किताब, गाना, फिल्म, सॉफ़्टवेयर आदि) को बिना अनुमति या लाइसेंस के इस्तेमाल करना।

यह कई तरीकों से हो सकता है, जैसे:

  • किसी किताब, लेख या फिल्म की स्क्रिप्ट को कॉपी करना।
  • पायरेटेड (नकली) CDs, DVDs या डिजिटल फाइलें बाँटना।
  • इंटरनेट पर गाने, फिल्में या वीडियो बिना इजाज़त अपलोड करना।
  • सॉफ़्टवेयर, ऐप्स या कोड को बिना लाइसेंस कॉपी करना।
  • किसी का काम टीवी/रेडियो पर चलाना लेकिन रॉयल्टी न देना।

कॉपीराइट उल्लंघन पर कोर्ट के पास जाने के क्या कारण हो सकते है?

  • आर्थिक नुकसान (Financial Loss): जब कोई आपका काम कॉपी करके बेचता है, तो आपकी असली बिक्री और कमाई पर सीधा असर पड़ता है।
  • प्रतिष्ठा को नुकसान (Reputation Damage): नकली या घटिया कॉपी बाजार में आने से आपकी मेहनत की ब्रांड वैल्यू और ग्राहकों का भरोसा कमजोर हो जाता है।
  • अनधिकृत कमाई (Unauthorized Exploitation): आपकी रचना से कोई और बिना इजाज़त पैसे कमाता है, जबकि असली मेहनत और क्रिएटिविटी आपकी ही होती है।
  • कानूनी अधिकारों का हनन (Legal Rights Violation):कॉपीराइट आपके विशेष अधिकार की रक्षा करता है। कोर्ट जाकर आप उल्लंघन करने वालों को रोककर अपने हक़ बचा सकते हैं।

कोर्ट द्वारा दिए जाने वाले सिविल उपाय

सिविल उपाय सबसे सामान्य कानूनी कार्रवाई हैं, जो कॉपीराइट उल्लंघन की स्थिति में अदालत में की जा सकती हैं। ये उपाय कॉपीराइट एक्ट, 1957 की धारा 55 के अंतर्गत उपलब्ध हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने डाबर इंडिया लिमिटेड बनाम के.आर. इंडस्ट्रीज (2008) मामले में कॉपीराइट अधिनियम की धारा 55(1) पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की।

कोर्ट ने कहा कि इस धारा के तहत वादी (plaintiff) को कई तरह के कानूनी उपाय मिल सकते हैं, जैसे—

  • इंजंक्शन: कोर्ट आदेश दे सकता है कि उल्लंघन करने वाला तुरंत कॉपीराइटेड काम का उपयोग बंद करे। इससे आगे का नुकसान रुक जाता है।
  • डैमेजेस: अगर आर्थिक नुकसान हुआ है तो कोर्ट उल्लंघन करने वाले को भरपाई करने का आदेश दे सकता है। कई बार कोर्ट सज़ा देने के लिए अतिरिक्त मुआवज़ा भी तय करता है।
  • अकाउंट्स ऑफ प्रॉफिट्स: डैमेजेस की जगह कोर्ट यह भी कह सकता है कि उल्लंघन करने वाला जितना पैसा इस काम से कमाया है, वह मालिक को लौटाए।
  • इंफ्रिंजिंग कॉपीज़ की डिलीवरी: कोर्ट आदेश दे सकता है कि सभी नकली कॉपियाँ (जैसे CDs, DVDs, किताबें या सॉफ़्टवेयर) मालिक को सौंप दी जाएँ।
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मतलब, कोर्ट न सिर्फ़ उल्लंघन रोक सकता है बल्कि आपके नुकसान की भरपाई और नकली कॉपियों को हटवाने का भी आदेश दे सकता है।

धारा 55(2) – कॉपीराइट उल्लंघन पर अपवाद

इस प्रावधान में कहा गया है कि, अगर कोई व्यक्ति यह साबित कर दे कि जब उसने कॉपीराइटेड काम का इस्तेमाल किया, तब उसे यह पता ही नहीं था और न ही उसे यह विश्वास करने का कोई कारण था कि वह काम कॉपीराइट से सुरक्षित है, तो ऐसे मामले में उसे डैमेजेस या अकाउंट्स ऑफ प्रॉफिट्स की ज़िम्मेदारी नहीं होगी।

ध्यान रहे – फिर भी उस पर इंजंक्शन और नकली कॉपियों की डिलीवरी जैसे अन्य आदेश लागू हो सकते हैं।

हॉकिन्स कुकर्स लिमिटेड बनाम मैजिकूक एप्लायंसेज कंपनी, 2002 (दिल्ली हाई कोर्ट)

मामला: Hawkins कंपनी प्रेशर कुकर बनाती थी और उसने अपने लेबल (label) को कॉपीराइट एक्ट के तहत रजिस्टर करवा रखा था। दूसरी कंपनी Magicook भी प्रेशर कुकर बना रही थी, लेकिन उसने ऐसा लेबल इस्तेमाल किया जो बिल्कुल मिलता-जुलता था।

कोर्ट का फैसला: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि – कॉपीराइट एक्ट का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि असली मालिक (Hawkins) को उन धोखेबाज़ निर्माताओं से बचाया जाए जो जनता को भ्रमित करके अपने नकली सामान को असली जैसा दिखाना चाहते हैं।

  • ऐसे नकली निर्माता असली कंपनी की गुडविल और प्रतिष्ठा पर कब्ज़ा करके पैसा कमाना चाहते हैं।
  • जबकि असली कंपनी (Hawkins) ने अपने ब्रांड की पहचान बनाने के लिए विज्ञापनों और बिक्री पर भारी खर्च किया है
  • इसलिए, कॉपीराइट एक्ट की धारा 55 का मकसद है कि असली मालिक को इस अनुचित कमाई और अनुचित लाभ से बचाया जाए।

कोर्ट द्वारा दिए जाने वाले क्रिमिनल उपाय

कॉपीराइट का उल्लंघन केवल सिविल मामला नहीं है, यह आपराधिक अपराध भी है, और इसके लिए कॉपीराइट एक्ट, 1957 के तहत सजा मिल सकती है।

मुख्य आपराधिक उपाय:

  • जेल की सजा: उल्लंघनकर्ता को 6 महीने से 3 साल तक जेल हो सकती है।
  • जुर्माना: 50,000 रुपये से 2,00,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • उल्लंघनकारी वस्तुओं की जब्ती: पुलिस उल्लंघनकारी सामान जैसे पायरेटेड CDs, किताबें या सॉफ़्टवेयर जब्त कर सकती है।
  • उदाहरण: अगर कोई दुकान पायरेटेड फ़िल्में बेचते हुए पकड़ी जाती है, तो मालिक को जेल, जुर्माना और सामान जब्त होने का सामना करना पड़ सकता है।
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कृषिका लुल्ला और अन्य। बनाम श्याम विट्ठलराव देवकट्टा (Desi Boys केस)

यह मामला फिल्मों के टाइटल और कहानी से जुड़े कॉपीराइट उल्लंघन का अहम उदाहरण है।

मामला: शिकायतकर्ता ने “Desi Boys” नाम से एक कहानी लिखी और उसका सारांश (synopsis) फिल्म राइटर्स एसोसिएशन में रजिस्टर करवाया। बाद में उन्होंने देखा कि एक फिल्म “Desi Boyz” के नाम से रिलीज़ हो रही है।

विवाद: शिकायतकर्ता ने कहा कि फिल्म का टाइटल “Desi Boyz” उनके रजिस्टर्ड नाम “Desi Boys” से मिलता-जुलता है, इसलिए यह कॉपीराइट का उल्लंघन है। उन्होंने FIR दर्ज करवाई और कॉपीराइट एक्ट की धारा 63 और IPC की धारा 420 /BNS की धारा 318 के तहत कार्रवाई की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: कोर्ट ने साफ कहा कि फिल्म का टाइटल अपने आप में कॉपीराइट प्रोटेक्शन के अंतर्गत नहीं आता। टाइटल को साहित्यिक कृति (literary work) नहीं माना जा सकता। इसलिए सिर्फ नाम पर कॉपीराइट उल्लंघन का दावा नहीं किया जा सकता।

चेरिया पी जोसेफ बनाम प्रभाकरन मामला

इस केस में कॉपीराइट उल्लंघन को लेकर अहम बात कही गई।

मामला: शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उनकी किताब के कुछ हिस्सों का मलयालम में अनुवाद किया और बिना अनुमति के उसे बेचने के लिए रखा। इस तरह आरोपी ने कॉपीराइट का उल्लंघन किया और यह कॉपीराइट एक्ट की धारा 63 के तहत अपराध है।

कोर्ट का निर्णय:
  • स्पष्ट और ठोस सबूत जरूरी: कोर्ट ने कहा कि अपराध साबित करने के लिए साफ और पुख्ता सबूत होना चाहिए कि आरोपी को जानकारी थी और उसने जानबूझकर ऐसा किया।
  • सिविल और क्रिमिनल केस का अंतर: अगर कॉपीराइट उल्लंघन का मामला पहले से सिविल कोर्ट में चल रहा है, तो क्रिमिनल कोर्ट इस पर फैसला नहीं देगा।

कॉपीराइट सुरक्षा के लिए कोर्ट में कदम उठाने की प्रक्रिया

अगर कोई क्लाइंट अपने कॉपीराइट को सुरक्षित रखना चाहता है, तो यह आसान तरीके से किया जा सकता है:

  • सिविल मुकदमा दायर करें: डिस्ट्रिक्ट कोर्ट या हाई कोर्ट में जाके इंजंक्शन और मुआवजे की मांग करें।
  • क्रिमिनल शिकायत दर्ज करें: पुलिस या मजिस्ट्रेट के पास जाकर अपराध के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर सकते हैं।
  • अंतरिम राहत लें: अंतिम फैसले से पहले भी कोर्ट से फौरन उल्लंघन रोकने का आदेश (इंजंक्शन) माँगा जा सकता है।
  • कस्टम में आवेदन करें: अगर विदेश से पायरेटेड या नकली कॉपी आ रही है, तो कस्टम अधिकारी से रोकने की मांग की जा सकती है।

कॉपीराइट उल्लंघन केस दाखिल करने की प्रक्रिया

  • सबूत इकट्ठा करें: कॉपीराइट उल्लंघन साबित करने के लिए स्क्रीनशॉट, कॉपी, ईमेल, बिक्री रिकॉर्ड और गवाहों का विवरण इकट्ठा करें। ये सभी सबूत कोर्ट में आपकी मजबूती बढ़ाते हैं।
  • लीगल नोटिस भेजें: उल्लंघन करने वाले को लिखित नोटिस भेजें। इसमें काम रोकने, नुकसान की भरपाई और निश्चित समय में जवाब देने की मांग स्पष्ट रूप से बताएं।
  • सिविल केस दर्ज करें: डिस्ट्रिक्ट या हाईकोर्ट में सिविल केस दायर करें। इसमें असली नुकसान, मुआवजा और काम रोकने के लिए कोर्ट से आदेश की मांग करें।
  • अंतरिम राहत लें: अस्थायी रोक के लिए कोर्ट से अनुरोध करें ताकि केस चलने के दौरान उल्लंघन रोका जा सके और आगे का नुकसान टला जा सके।
  • आपराधिक शिकायत करें: अगर उल्लंघन जानबूझकर या बड़े पैमाने पर हुआ है, तो पुलिस में FIR दर्ज कराएं। आरोपी पर जेल, जुर्माना और जब्ती की कार्रवाई हो सकती है।
  • कोर्ट में सुनवाई: सभी प्रमाण कोर्ट में पेश करें। यह साबित करें कि रचना आपका अधिकार है और उल्लंघन करने वाला बिना अनुमति लाभ उठा रहा है।
  • अंतिम निर्णय: कोर्ट सभी तथ्यों और सबूतों के आधार पर रोक आदेश, मुआवजा, लाभ लौटाने या उल्लंघन की जब्ती का आदेश दे सकती है।
  • अन्य उपाय: कस्टम में पायरेटेड सामग्री रोकना, ऑनलाइन टेकेडाउन नोटिस भेजना, समझौता करना या लाइसेंसिंग के जरिए भी अपने कॉपीराइट की सुरक्षा की जा सकती है।
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निष्कर्ष

भारत में कॉपीराइट उल्लंघन एक गंभीर समस्या है, खासकर डिजिटल और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में। कोर्ट रचनाकारों को बचाने के लिए मजबूत उपाय देती है—सिविल, आपराधिक और प्रशासनिक।

लेकिन कानूनी कार्रवाई केवल सज़ा देने के लिए नहीं है। इसका मकसद रचनात्मकता की सुरक्षा करना, नवाचार को बढ़ावा देना और न्यायपूर्ण प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना भी है। इसका मतलब है कि क्लाइंट अपने व्यवसायिक संपत्ति की सुरक्षा, नुकसान से बचाव और प्रतिष्ठा की रक्षा कर सकते हैं।

अगर आपको लगता है कि आपके काम का उल्लंघन हुआ है, तो देर न करें—कॉपीराइट वकील से सलाह लें, सबूत इकट्ठा करें और कानूनी कार्रवाई करें। आपकी रचनात्मकता की सुरक्षा जरूरी है।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. क्या मैं तुरंत कोर्ट से आदेश लेकर उल्लंघन रोक सकता हूँ?

हाँ, आप इंटरिम इन्जंक्शन (अस्थायी रोक) के लिए तुरंत आवेदन कर सकते हैं।

2. क्या कॉपीराइट सुरक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी है?

नहीं, कॉपीराइट अपने आप बन जाता है। लेकिन रजिस्ट्रेशन होने से कानूनी कार्रवाई आसान होती है।

3. क्या पुलिस कोर्ट के आदेश के बिना कार्रवाई कर सकती है?

हाँ, क्योंकि कॉपीराइट उल्लंघन एक संज्ञानात्मक अपराध है, पुलिस तुरंत कार्रवाई कर सकती है।

4. कॉपीराइट केस में मुझे कितना मुआवजा मिल सकता है?

यह नुकसान और उल्लंघनकर्ता के मुनाफ़े पर निर्भर करता है। कोर्ट कभी-कभी दंडात्मक मुआवजा भी देती है।

5. क्या ऑनलाइन पायरेसी भी कॉपीराइट उल्लंघन में आती है?

हाँ। बिना अनुमति मूवी, गाना, वीडियो या सॉफ़्टवेयर अपलोड, स्ट्रीम या डाउनलोड करना उल्लंघन है।

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