पहले ट्रेडमार्क सिर्फ़ नाम, शब्द, निशान या लोगो (logo) तक सीमित माने जाते थे, जिन्हें कंपनियाँ अपने प्रोडक्ट या सेवाओं को अलग पहचान देने के लिए इस्तेमाल करती थीं। लेकिन समय और तकनीक के साथ अब कंपनियाँ अपनी ब्रांड पहचान बनाने के लिए ध्वनि (आवाज़), रंग और यहाँ तक कि गंध का भी इस्तेमाल करने लगी हैं।
इसका मतलब है कि ट्रेडमार्क अब सिर्फ़ नाम और लोगो तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसमें ध्वनि और गंध भी शामिल हो सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारतीय कानून इसे मान्यता देता है? इस ब्लॉग में हम समझाएँगे कि भारत में ध्वनि और गंध के ट्रेडमार्क का क्या प्रावधान है, प्रक्रिया क्या है, इसमें क्या मुश्किलें आती हैं और भारतीय व अंतरराष्ट्रीय कानून इस बारे में क्या कहते हैं।
ट्रेडमार्क क्या है?
ट्रेडमार्क एक ऐसा निशान या चिन्ह होता है जिससे लोग आसानी से किसी कंपनी के सामान या सेवाओं को दूसरी कंपनी से अलग पहचान सकें।यह किसी व्यवसाय की ब्रांड पहचान की सुरक्षा करता है।
ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999 की धारा 2(1) (zb) के अनुसार, ट्रेडमार्क में शब्द, लोगो, नाम, हस्ताक्षर, रंगों का मेल, वस्तुओं का आकार, पैकेजिंग या यहाँ तक कि ध्वनि भी शामिल हो सकती है, बशर्ते उसे ग्राफ़िक रूप में दिखाया जा सके और वह सामान/सेवा को अलग पहचान दिला सके।
नॉन ट्रेडिशनल ट्रेडमार्क क्या हैं?
परंपरागत ट्रेडमार्क केवल शब्द, नाम या लोगो तक सीमित होते हैं, लेकिन नॉन ट्रेडिशनल ट्रेडमार्क इनकी सीमाओं से बाहर जाकर ब्रांड की अलग पहचान बनाते हैं।
इनमें शामिल हैं:
- ध्वनि चिह्न (Sound Marks): किसी उत्पाद की पहचान करने वाले जिंगल, धुन या संगीत नोट। उदाहरण: Nokia का ट्यून।
- गंध चिह्न (Smell Marks): उत्पाद से जुड़ी विशिष्ट खुशबू या सुगंध, जो ग्राहक को उस ब्रांड की याद दिलाए।
- रंग चिह्न (Color Marks): किसी ब्रांड से जुड़ा विशेष रंग या रंगों का मेल। उदाहरण: Cadbury का गहरा बैंगनी रंग।
- आकार चिह्न (Shape Marks): किसी उत्पाद का विशिष्ट आकार या पैकेजिंग। उदाहरण: Coca-Cola की बोतल का आकार।
इन प्रकार के ट्रेडमार्क को रजिस्टर करना पारंपरिक ट्रेडमार्क की तुलना में कठिन होता है, क्योंकि इन्हें अलग पहचान देने योग्य और ग्राफ़िक रूप में दिखाने योग्य होना जरूरी है।
क्या भारत में ध्वनि को ट्रेडमार्क कराया जा सकता है?
हाँ, भारत में किसी विशिष्ट ध्वनि को ट्रेडमार्क के रूप में रजिस्टर किया जा सकता है।
कानूनी आधार:
- ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999 के तहत, यदि कोई ध्वनि विशेष और अलग पहचान देने योग्य हो और उसे ग्राफिकल रूप में प्रदर्शित किया जा सके, तो उसे ट्रेडमार्क के रूप में रजिस्टर किया जा सकता है।
- ट्रेड मार्क्स नियम, 2017 (Rule 26) में विशेष रूप से साउंड मार्क्स की अनुमति दी गई है। इसके तहत ध्वनि को MP3 फॉर्मेट में 30 सेकंड तक अपलोड किया जा सकता है, साथ ही उसकी संगीतात्मक या ग्राफिकल नोटेशन भी जमा करनी होती है।
उदाहरण:
- Yahoo का प्रसिद्ध “yodel” भारत में पहले रजिस्टर्ड साउंड मार्क्स में से एक था।
- जब LG का टीवी या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ऑन होता है, तो उसका विशेष “स्टार्टअप साउंड” रजिस्टर्ड साउंड मार्क है।
शर्तें:
- ध्वनि सामान्य नहीं होनी चाहिए, जैसे कि कार हॉर्न या घंटी।
- यह अद्वितीय और ब्रांड से तुरंत जुड़ी होनी चाहिए।
- इसे सुनते ही ग्राहक उस ब्रांड के साथ जोड़ सके।
ध्वनि ट्रेडमार्क केवल तभी मान्य होगी जब वह अलग पहचान देने वाली, अद्वितीय और ब्रांड के साथ तुरंत जुड़ी हो। इसे MP3 और ग्राफिकल नोटेशन के रूप में दाखिल करना अनिवार्य है।
क्या गंध (Smell) को भारत में ट्रेडमार्क बनाया जा सकता है?
- नहीं। भारत में गंध ट्रेडमार्क (Olfactory Marks) को रजिस्टर नहीं किया जा सकता। मुख्य कारण है ग्राफिकल रिप्रज़ेंटेशन की आवश्यकता।
- ट्रेडमार्क एक्ट की धारा 2(1) (zb) के अनुसार, कोई भी ट्रेडमार्क ऐसा होना चाहिए जिसे चित्र या ग्राफ़िकल रूप में दिखाया जा सके।
- जैसे ध्वनि (Sound) को नोटेशन से और आकार (Shape) को ड्राइंग से दिखाया जा सकता है, वैसे गंध को ग्राफिकली दिखाना संभव नहीं है। केमिकल फॉर्मूला या लिखित विवरण पर्याप्त नहीं माना जाता।
- इसलिए, भले ही गंध असल में ब्रांड पहचान के लिए इस्तेमाल हो, भारतीय कानून अभी इसे रजिस्टर करने का तरीका विकसित नहीं कर पाया है।
ध्वनि और गंध ट्रेडमार्क: अंतरराष्ट्रीय और भारत का दृष्टिकोण
यूनाइटेड स्टेट्स अमेरिका (USA):
- साउंड मार्क्स को मान्यता मिलती है और रजिस्टर किए जा सकते हैं।
- अमेरिका में पहला गंध ट्रेडमार्क एक कंपनी को मिला था, जिसमें सिलाई के धागे के लिए प्लुमेरिया फूल जैसी खुशबू को ट्रेडमार्क किया गया था।
- USPTO (यूनाइटेड स्टेट्स पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस) और कोर्ट अलग-अलग मामलों में मार्क की अलग पहचान और व्यवसायिक इस्तेमाल देखते हैं।
यूरोपीय यूनियन (EU):
- साउंड मार्क्स रजिस्टर हो सकते हैं, अगर इन्हें ऑडियो या नोटेशन के रूप में दिखाया जा सके।
- स्मेल मार्क्स आमतौर पर रजिस्ट्रेशन में असफल हो जाते हैं क्योंकि इन्हें दिखाने का कोई मानक तरीका नहीं है।
- EUIPO (यूरोपियन यूनियन इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑफिस) में गैर-परंपरागत मार्क्स के लिए स्पष्ट विवरण और अलग पहचान का सबूत चाहिए।
भारत:
- साउंड मार्क्स को रजिस्टर किया जा सकता है।
- स्मेल मार्क्स स्वीकार नहीं किए जाते क्योंकि इन्हें ग्राफिक रूप में दिखाना संभव नहीं है।
- अभी तक भारत में गंध जैसी गैर-दृश्य मार्क्स के लिए कोई नियम नहीं बने हैं।
ध्वनि और गंध के ट्रेडमार्क में क्या चुनौतियाँ आती है?
ध्वनि ट्रेडमार्क
- विशेषता साबित करना: किसी साउंड को ट्रेडमार्क बनाने के लिए यह दिखाना जरूरी है कि यह केवल आपके ब्रांड से जुड़ा है।
- ग्राहक पहचान: साउंड यूनिक होने पर भी यह साबित करना मुश्किल है कि ग्राहक इसे तुरंत आपके ब्रांड से जोड़ते हैं।
गंध ट्रेडमार्क
- ग्राफिकल रूप में दिखाना मुश्किल: भारत में ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन के लिए मार्क को चित्र या ग्राफिक में दिखाना जरूरी है।
- ब्रांड से जोड़ना साबित करना: स्मेल का ग्राहकों के दिमाग में ब्रांड से संबंध दिखाना कठिन और व्यक्तिगत अनुभव पर निर्भर करता है।
- कार्यात्मक या विशिष्ट: परफ्यूम या खाने-पीने की चीज़ों में खुशबू अक्सर उत्पाद का हिस्सा होती है, इसलिए यह यूनिक ब्रांड पहचान नहीं मानी जाती।
भारत में साउंड मार्क रजिस्टर करने की प्रक्रिया
- फॉर्म भरें: सबसे पहले TM-A फॉर्म भरकर आवेदन करना होता है।
- साउंड जमा करें: अपनी आवाज़ या म्यूज़िक को MP3 फॉर्मेट (30 सेकंड तक) में जमा करें।
- नोटेशन दें: उस साउंड की म्यूज़िकल नोटेशन (ग्राफिक रूप) भी देना ज़रूरी है।
- जांच प्रक्रिया: ट्रेडमार्क रजिस्ट्री आपका आवेदन जांचती है कि सब सही है या नहीं।
- जर्नल में छपना: अगर सब सही है तो आपका साउंड मार्क ट्रेडमार्क जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा।
- रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट: अगर कोई आपत्ति नहीं आई तो अंत में रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है।
निष्कर्ष
ट्रेडमार्क अब सिर्फ़ नाम और लोगो तक सीमित नहीं है। भारत में अब साउंड मार्क (जिंगल और ट्यून) को भी कानूनी मान्यता मिल चुकी है। कई कंपनियाँ अपने जिंगल और धुनों से ब्रांड पहचान मजबूत कर रही हैं।
लेकिन अभी तक स्मेल मार्क (खुशबू वाला ट्रेडमार्क) भारत में रजिस्टर्ड नहीं हो सकता, क्योंकि उसकी पहचान को लिखित या ग्राफिक रूप में दिखाना मुश्किल है।
ग्राहकों के लिए ज़रूरी बात:
- हाँ, आप भारत में साउंड मार्क रजिस्टर कर सकते हैं।
- नहीं, अभी आप स्मेल मार्क रजिस्टर नहीं कर सकते, कानून इस पर काम कर रहा है।
भविष्य में जैसे-जैसे ब्रांडिंग और इनोवेशन बढ़ेगा, वैसे-वैसे भारतीय ट्रेडमार्क कानून भी बदलेगा और शायद स्मेल मार्क और अन्य सेंसरी मार्क्स को भी कवर करेगा।
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FAQs
1. क्या मैं भारत में साउंड (आवाज़) का ट्रेडमार्क करवा सकता हूँ?
हाँ, भारत में साउंड मार्क को ट्रेडमार्क्स एक्ट, 1999 के तहत रजिस्टर्ड कराया जा सकता है।
2. साउंड मार्क कैसे रजिस्टर्ड होता है?
इसके लिए MP3 फॉर्मेट (30 सेकंड तक) और म्यूज़िक नोटेशन के साथ TM-A फॉर्म भरकर आवेदन करना होता है।
3. क्या भारत में स्मेल (खुशबू) का ट्रेडमार्क मिल सकता है?
अभी नहीं। भारत में स्मेल मार्क के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
4. क्या भारत में साउंड मार्क के उदाहरण हैं?
हाँ, जैसे Yahoo का योडल, ICICI का जिंगल, और NSE टर्मिनल की आवाज़।
5. क्या भविष्य में स्मेल मार्क भी मिल सकेगा?
संभव है। अगर टेक्नोलॉजी से खुशबू को ग्राफिक रूप में दिखाना आसान हो गया, तो कानून में बदलाव हो सकता है।



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