क्या अडल्ट्री से महिला का मेंटेनेंस का अधिकार खत्म हो जाता है? जानिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Does adultery void a women right to maintenance Read the Supreme Court's decision.

परिवार के रिश्ते बहुत निजी होते हैं, लेकिन जब ये टूट जाते हैं, तो कानून निष्पक्षता और ज़िम्मेदारी बनाए रखने के लिए कदम उठाता है। भारत में अक्सर सवाल उठता है—अगर पत्नी पर अडल्ट्री का आरोप लगे तो क्या वह मेंटेनेंस का हक़ खो देती है?

इस मामले में समाज और नैतिकता के अलग-अलग दृष्टिकोण होते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ी से रूल दिया है। कानून केवल भावनाओं या समाज के फैसलों पर भरोसा नहीं करता, बल्कि सबूत, न्याय और वास्तविक जरूरत को देखता है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी आश्रित पति या पत्नी बिना सहारे न रह जाए।

यह ब्लॉग सुप्रीम कोर्ट के अडल्ट्री और मेंटेनेंस संबंधी रुख़ को सरल तरीके से समझाएगा और बताएगा कि व्यक्तिगत चुनाव और कानूनी अधिकारों के बीच सीमाएँ क्या हैं।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कानून क्या कहता है? भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता BNSS की धारा 144

धारा 144 BNSS यह सुनिश्चित करती है कि पत्नी, बच्चे और माता-पिता, जो खुद से अपने खर्चे नहीं चला सकते, मेंटेनेंस (maintenance) का दावा कर सकें। इसे समाजिक न्याय के लिए बनाया गया है और यह सभी व्यक्तिगत कानूनों पर लागू होता है। इसका उद्देश्य यह है कि कोई आश्रित व्यक्ति भूखा या बेसहारा न रहे।

धारा 144(4) BNSS की शर्तें: हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में पत्नी मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती। ये परिस्थितियाँ हैं:

  • अगर पत्नी अपने पति के अलावा किसी और के साथ संबंध रखती है, तो वह मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती।
  • अगर पत्नी बिना कोई न्यायसंगत वजह पति के साथ रहने से मना करती है।
  • अगर पति-पत्नी अलग रहने पर आपस में सहमत हैं।
इसे भी पढ़ें:  किरायेदार और मकान मालिक के कानूनी अधिकार क्या हैं? जानिए सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले

“अडल्ट्री में जीवन यापन” का मतलब

  • कोर्ट ने साफ किया है कि अडल्ट्री में रहना का मतलब है लगातार किसी और व्यक्ति के साथ संबंध रखना, सिर्फ एक बार की गलती नहीं।
  • शादी के बाहर कभी-कभी का अंतरंग संबंध पर्याप्त नहीं माना जाता; साबित होना चाहिए कि रिश्ता लगातार और स्थायी है।
  • इसे साबित करने की जिम्मेदारी पति पर होती है कि पत्नी अडल्ट्री में रह रही है।
  • सिर्फ एक गलती या छोटी-सी बात से मेंटेनेंस का अधिकार छीन नहीं सकते। कोर्ट को यह दिखाना होगा कि रिश्ता लगातार चल रहा था।

जोसफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2018)

  • सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अडल्ट्री अब अपराध नहीं है, यानी इसे अब जेल या अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा।
  • लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अडल्ट्री के कारण पत्नी या पति के मेंटेनेंस के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे।

अडल्ट्री साबित करने के लिए जरूरी सबूत

अडल्ट्री साबित करना आसान नहीं होता क्योंकि सीधे सबूत (Direct Evidence) कम मिलते हैं। कोर्ट में आमतौर पर परिस्थितिजन्य सबूत (Circumstantial Evidence) काम आते हैं। साबूत के उदाहरण:

  • मोबाइल संदेश, कॉल और ईमेल्स
  • बार-बार यात्रा और होटल रिकॉर्ड
  • आंखों देखी गवाहों की बात
  • तस्वीरें और वीडियो

सिर्फ शक या संदेह के आधार पर मेंटेनेंस रोकना संभव नहीं है। कोर्ट को ठोस सबूत चाहिए।

व्यावहारिक सलाह

अगर आप पति हैं (मेंटेनेंस के झूठे दावे से बचाव करना चाहते हैं):

  • सबूत इकट्ठा करें: संदेश, फोटो, गवाह की बातें।
  • धारा 144(4) BNSS के तहत आप आपत्ति दर्ज कराएँ।
  • बेवजह के आरोप न लगाएँ – कोर्ट झूठे आरोप लगाने पर सजा भी दे सकती है।
  • फैमिली लॉ वकील से सलाह लें और ज़रूरत पड़ने पर काउंटरक्लेम (कस्टडी, तलाक आदि) दायर करें।
इसे भी पढ़ें:  क्या दामाद को ससुर की प्रॉपर्टी में हक़ है? सुप्रीम कोर्ट का सख़्त जवाब

अगर आप पत्नी हैं (अडल्ट्री का आरोप है):

  • याद रखें – अब अडल्ट्री अपराध नहीं है।
  • इसे साबित करने की जिम्मेदारी पति पर है।
  • अगर आरोप लगाए जाएँ, लेकिन सबूत कमजोर हों, तो आप मेंटेनेंस का दावा कर सकती हैं।
  • तलाक लेने से मेंटेनेंस का हक़ नहीं रुकता जब तक अडल्ट्री साबित न हो।

रेशम लाल देवांगन बनाम सुमन देवांगन (2025, छत्तीसगढ़ 5619)

रेशम लाल देवांगन बनाम सुमन देवांगन (2025) मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने साफ कहा कि अगर पत्नी अडल्ट्री (ग़ैरकानूनी संबंध) में रहती है और उसी आधार पर उसे तलाक दिया गया है, तो वह धारा 125 CrPC/ 144 BNSS के तहत मेंटेनेंस नहीं ले सकती।

न्यायालय ने बताया कि जब अडल्ट्री साबित हो चुका है और उसी कारण से तलाक मिला है, तो तलाक के बाद भी पत्नी को मेंटेनेंस का हक नहीं रहेगा।

इसी वजह से कोर्ट ने पति की याचिका मान ली, पत्नी की मांग खारिज कर दी और फैमिली कोर्ट का ₹4,000 मासिक मेंटेनेंस देने का आदेश रद्द कर दिया।

निष्कर्ष: अडल्ट्री और मेंटेनेंस में न्याय और हक़

असल जिंदगी में कई बार पति मेंटेनेंस देने से बचने के लिए झूठे अडल्ट्री के आरोप लगाते हैं। कोर्ट इस बात से वाकिफ़ है और इसलिए सुप्रीम कोर्ट हमेशा ठोस सबूत मांगता है, तभी मेंटेनेंस रोका जा सकता है। वहीं, महिलाओं को यह समझना चाहिए कि अगर अडल्ट्री साबित हो जाता है, तो मेंटेनेंस के अधिकार खत्म हो जाते हैं।

इस तरह, कानून दावों के दुरुपयोग को रोकते हुए, असली हक़दारों की सुरक्षा भी करता है।

इसे भी पढ़ें:  पुलिस को इन्वेस्टीगेशन करने की शक्तियां क्या है?

अडल्ट्री अब भारत में अपराध नहीं है, लेकिन परिवारिक विवादों में इसका असर अभी भी पड़ता है। मेंटेनेंस कोई चैरिटी नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और कानूनी अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट का रुख़ याद दिलाता है कि नैतिक गलतियाँ शादी को कमजोर कर सकती हैं, लेकिन केवल स्पष्ट, लगातार और प्रमाणित अडल्ट्री ही महिला के कानूनी हक़ को प्रभावित कर सकता है।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. अगर मेरे पति सिर्फ अडल्ट्री का आरोप लगाते हैं लेकिन सबूत नहीं है, क्या मेंटेनेंस रुक जाएगा?

नहीं। जब तक ठोस सबूत नहीं है, आपको मेंटेनेंस से वंचित नहीं किया जा सकता।

2. क्या तलाक होने पर मेंटेनेंस अपने आप खत्म हो जाता है?

नहीं। तलाकशुदा पत्नी भी धारा 144 BNSS के तहत मेंटेनेंस का दावा कर सकती है, जब तक अडल्ट्री साबित न हो।

3. अगर मां पर अडल्ट्री का आरोप है, क्या बच्चों का मेंटेनेंस रुक सकता है?

नहीं। बच्चों का मेंटेनेंस का हक़ मां के व्यवहार पर निर्भर नहीं करता।

4. अगर पत्नी किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशन में है, क्या पति मेंटेनेंस रोक सकता है?

हाँ, अगर पति यह साबित कर सके कि संबंध लगातार और स्थायी अडल्ट्री था।

5. क्या पत्नी मेंटेनेंस रोकने के फैसले को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है?

हाँ। अगर निचली अदालत ने गलत तरीके से मेंटेनेंस रोक दिया, तो आप उच्च न्यायालय में अपील कर सकती हैं।

Social Media