अगर पत्नी झूठा केस करें और जेल जाने की धमकी दे तो क्या करें? सुप्रीम कोर्ट के फैसले और अधिकार जानिए

What should you do if your wife files a false case and threatens to send you to jail Learn about Supreme Court rulings and your rights.

शादी प्यार, भरोसे और साथ निभाने का रिश्ता होता है। लेकिन कभी-कभी आपसी झगड़े और ग़लतफहमियाँ इतनी बढ़ जाती हैं कि मामला गुस्से और बदले तक पहुँच जाता है। भारत में कई बार कुछ महिलाएँ सुरक्षा के लिए बने कानूनों का गलत इस्तेमाल करने लगती हैं और इन्हें बदले का हथियार बना लेती हैं।

सबसे ज़्यादा गलत इस्तेमाल होने वाले कानून हैं:

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 85: पति या उसके परिवार द्वारा क्रूरता का आरोप।
  • डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट: दहेज मांगने या लेने का मामला।
  • डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005: शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 144: पत्नी द्वारा मेंटेनेंस की मांग।
  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 356: मानहानि से जुड़ा कानून।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

ये सभी कानून असली पीड़ित महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कई बार ये झूठे मामलों में भी इस्तेमाल होते हैं। ऐसे झूठे केस न केवल परिवार को तोड़ देते हैं, बल्कि निर्दोष पति और उसके परिवार को मानसिक तनाव, सामाजिक बदनामी और आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि – कानून सुरक्षा का साधन है, प्रतिशोध का नहीं। अर्थात, कानून का दुरुपयोग न तो महिला के लिए उचित है, न पुरुष के लिए।

कई बार केस दर्ज होने से पहले ही पति को तरह-तरह की धमकियाँ दी जाती हैं, जैसे –

  • “मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को जेल भिजवा दूँगी।”
  • “मैं तुम्हारे खिलाफ दहेज का केस कर दूँगी।”
  • “तुम्हारी नौकरी चली जाएगी।”

ऐसी बातें डर और दबाव बनाने के लिए कही जाती हैं। अगर आपको ऐसी धमकियाँ मिल रही हैं, तो घबराएँ नहीं और गुस्से में कोई कदम न उठाएँ, क्योंकि इससे आपकी स्थिति और बिगड़ सकती है।

इसके बजाय शांत रहें और सबूत इकट्ठा करना शुरू करें, जैसे कॉल रिकॉर्डिंग, चैट, या गवाह, ताकि जरूरत पड़ने पर आप अपनी सच्चाई साबित कर सकें।

क्या पति झूठे आपराधिक मामलों और गिरफ्तारी से सुरक्षित रह सकता है?

जब पत्नी झूठा आपराधिक मामला दर्ज करती है, तो पति और उसका परिवार अक्सर डर, और असमंजस में पड़ जाता है। बहुत लोग सोचते हैं कि केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है।

भारतीय कानून और सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कानूनों के दुरुपयोग से बचाने के लिए स्पष्ट नियम बनाए हैं। हर पुरुष के पास कानूनी तरीके से खुद को झूठी शिकायत और गलत गिरफ्तारी से बचाने का अधिकार है।

अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014)

सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि IPC की धारा 498A/ 85 BNS (क्रूरता) के कई मामले पति और उनके परिवार को परेशान करने के लिए दर्ज किए जा रहे हैं।

  • कोर्ट ने कहा ऐसे मामलों में स्वतः गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
  • पुलिस को पहले शिकायत की जांच करनी होगी और गिरफ्तारी से पहले धारा 41A CrPC/ 35(3) के तहत नोटिस देना होगा।
  • गिरफ्तारी का कारण लिखित में दर्ज होना चाहिए।
इसे भी पढ़ें:  मानहानि का केस करने की पूरी प्रक्रिया: सिविल और क्रिमिनल दोनों तरीके से?

यह निर्णय निर्दोष पुरुषों को अचानक गिरफ्तारी से बचाता है और जांच को निष्पक्ष बनाता है।

एंटिसिपेटरी बेल

अगर किसी पुरुष को डर है कि झूठे मामले में उसे गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 482 के तहत एंटिसिपेटरी बेल के लिए सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट में आवेदन कर सकता है।

एक बार बेल मिलने के बाद, पुलिस उसे बिना अदालत की अनुमति गिरफ्तार नहीं कर सकती। एंटिसिपेटरी बेल परेशानी से सुरक्षा देती है और पति को शांतिपूर्ण तरीके से अपनी रक्षा करने में मदद करती है।

FIR को रद्द करना

अगर FIR पूरी तरह झूठी है या केवल बदला लेने के लिए दर्ज की गई है, तो पति हाई कोर्ट से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के तहत FIR रद्द करने का अनुरोध कर सकता है।

हाई कोर्ट FIR रद्द कर सकता है जब:

  • कोई ठोस सबूत न हो, या
  • मामला स्पष्ट रूप से फर्जी हो, या
  • दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझ चुका हो।

यह उपाय कानून के दुरुपयोग को रोकता है और पति की प्रतिष्ठा की सुरक्षा करता है।

दहेज कानून के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट महिलाओं को क्रूरता और दहेज के शोषण से बचाने के लिए बनाए गए हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ महिलाएं इन कानूनों का गलत इस्तेमाल पति और उनके परिवार को परेशान करने के लिए करती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसलों में इस गलत इस्तेमाल को रोका और इस पर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं।

राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017)

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना मामलों दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम बनाए:

  • फैमिली वेलफेयर कमिटी (FWC): हर जिले में समितियाँ बनाई जाएँगी, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता और रिटायर्ड सदस्य शामिल होंगे। ये शिकायतों की जांच करेंगे और पुलिस को रिपोर्ट देंगे, ताकि बिना जांच के गिरफ्तारी न हो।
  • गिरफ्तारी की शर्तें: पुलिस केवल तब आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है जब शिकायत भरोसेमंद और साक्ष्यों द्वारा पुष्टि की गई हो। गिरफ्तारी में कानूनी प्रक्रिया और वकील की उपस्थिति जरूरी है।
  • पुलिस और न्यायिक अधिकारियों की भूमिका: पुलिस और न्यायालय को निर्दोष परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठे आरोपों से सतर्क रहना होगा। अगर शिकायत बदले या झूठी पाई जाती है, तो शिकायतकर्ता के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

सुषिल कुमार शर्मा बनाम भारत संघ (2005)

  • तथ्य: सुषिल कुमार शर्मा ने धारा 498A IPC/ 85 BNS को असंवैधानिक घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, क्योंकि उनका कहना था कि इसका दुरुपयोग पति और उसके परिवार के खिलाफ हो रहा है।
  • मुद्दा: क्या धारा 498A IPC/ 85 BNS असंवैधानिक है और इसे दुरुपयोग से बचाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A/ 85 BNS की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन झूठे आरोपों और दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए।
  • प्रभाव: इस निर्णय ने महिलाओं की सुरक्षा और पति-पक्ष के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित किया, और भविष्य में ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया के लिए मार्गदर्शन तय किया।
इसे भी पढ़ें:  हस्बैंड के स्पर्म कलेक्शन के लिए महिला ने कोर्ट में की अपील

पत्नी की अनावश्यक मेंटेनेंस की मांग से कैसे बचें?

धारा 144 BNSS और संबंधित नियमों के तहत मेंटेनेंस के कानून महिलाओं की मदद के लिए बनाए गए हैं, जो अपने खर्चे खुद नहीं उठा सकतीं। लेकिन कभी-कभी इन कानूनों का गलत इस्तेमाल करके अधिक या अनावश्यक मेंटेनेंस की मांग की जाती है, जबकि पत्नी खुद कमा सकती है।

कल्याण डे चौधरी बनाम रीता डे (2017)

इस फैसले ने यह स्पष्ट किया कि पति की नेट सैलरी का 25% स्थायी मेंटेनेंस के लिए सही और उचित माना जा सकता है। साथ ही, पति की नई परिवार के प्रति वित्तीय जिम्मेदारियों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। यह केस भविष्य में मेंटेनेंस की राशि तय करने में मार्गदर्शन देता है और न्याय व संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

रजनीश बनाम नेहा (2020)

कोर्ट ने कहा कि पत्नी अपने खुद के कमाई की क्षमता होने पर भी अत्यधिक मेंटेनेंस का झूठा दावा नहीं कर सकती। पति को अधिकार है कि वह पत्नी की आय, शिक्षा और कमाने की क्षमता का सबूत पेश करे ताकि मेंटेनेंस की राशि कम की जा सके या उसे रोक दिया जाए, अगर वह पर्याप्त कमा सकती है।

पति और पत्नी दोनों को अपनी उम्र, पता, शिक्षा, नौकरी या व्यवसाय, वेतन, अन्य आय, संपत्ति, कर्ज, आश्रित, मासिक खर्च और जीवनशैली का पूरा विवरण कोर्ट में अफिडेविट के रूप में देना जरूरी है।

मान-सम्मान की सुरक्षा: झूठे मामलों और मानहानि से बचाव

मानहानि तब होती है जब कोई व्यक्ति किसी के बारे में झूठ बोलकर उसकी साख को नुकसान पहुँचाता है।

  • आपराधिक मानहानि: BNS की धारा 356 के तहत, कोई भी पुरुष झूठे बयान के खिलाफ केस दर्ज कर सकता है, यदि उसका उद्देश्य उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना हो।
  • सिविल मानहानि: झूठे आरोपों से हुई मानसिक कष्ट, शर्मिंदगी या प्रतिष्ठा हानि के लिए सिविल कोर्ट में मुआवजे की मांग की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2016) के मामले में माना कि प्रतिष्ठा एक मौलिक अधिकार है। इस मामले ने स्पष्ट किया कि झूठे आरोपों के लिए कानूनी कार्रवाई की जा सकती है और व्यक्ति अपनी साख और सम्मान की सुरक्षा कर सकता है।

बरी होने के बाद मामला और मजबूत

  • अगर कोई पुरुष झूठे आपराधिक मामले में बरी या डिस्चार्ज हो जाता है, तो मानहानि का मामला और मजबूत हो जाता है।
  • क्योंकि झूठ साबित हो चुका होता है, इसे आपराधिक और सिविल दोनों मामलों में न्याय और मुआवजा पाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसे भी पढ़ें:  पिता की संपत्ति में बेटियों का हक़ – हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के तहत पूरी जानकारी

झूठे मामलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई

अगर किसी पर झूठा मामला दर्ज किया गया है, तो पति कानूनी रूप से इसका जवाब दे सकता है। भारतीय कानून में ऐसे झूठे या दुर्भावनापूर्ण मामलों के लिए कुछ प्रावधान मौजूद हैं।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 217– झूठी जानकारी देना

  • अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी सरकारी अधिकारी को झूठी जानकारी देता है, तो यह अपराध है।
  • सजा: एक साल तक की जेल और दस हज़ार रुपया तक तक जुर्माना।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 248– जानबूझकर नुकसान पहुँचाने के लिए झूठा मामला

  • अगर कोई व्यक्ति किसी को नुकसान पहुँचाने की मंशा से झूठा मामला दर्ज करता है, तो यह धारा लागू होती है।
  • सजा: पांच साल तक की जेल और एक लाख रुपया तक तक जुर्माना।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 379– गलत तरीके से मुकदमा चलाना

  • यदि किसी व्यक्ति को गलत तरीके से मुकदमा का सामना करना पड़ा है, तो वह अदालत में न्याय की मांग कर सकता है।
  • अदालत झूठा मामला दर्ज करने वाले व्यक्ति के खिलाफ जांच या उचित कार्रवाई करने का आदेश दे सकती है।
  • यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि कानून का दुरुपयोग न हो और बेगुनाह व्यक्ति को न्याय मिले।

निष्कर्ष

झूठे आरोप और धमकियां मानसिक दबाव डाल सकते हैं, लेकिन कानून आपकी सुरक्षा करता है। समय पर कानूनी कदम उठाकर और सही सबूत रखकर कोई भी व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और परिवार की सुरक्षा कर सकता है। न्याय सच्चाई के पक्ष में होता है, और कानून का सही इस्तेमाल शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

याद रखें: सच्चाई + सबूत + धैर्य = कानूनी जीत।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. क्या पति एंटिसिपेटरी बेल ले सकता है अगर पत्नी झूठा केस दर्ज करे?

हाँ। पति अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है ताकि झूठे केस में गिरफ्तारी रोकी जा सके।

2. क्या झूठी FIR रद्द की जा सकती है?

हाँ। धारा 528 BNSS के तहत हाई कोर्ट झूठी या बदनीयत एफआईआर को रद्द कर सकती है और मासूम की रक्षा कर सकती है।

3. झूठे आरोपों के खिलाफ पति क्या कानूनी कार्रवाई कर सकता है?

पति काउंटर केस दर्ज कर सकता है और गलत मुकदमे रोकने के लिए कोर्ट में जा सकता है।

4. क्या मेंटेनेंस कानून का दुरुपयोग हो सकता है और पति अपनी सुरक्षा कैसे कर सकता है?

हाँ। पति पत्नी की आय, शिक्षा और कमाई की क्षमता दिखाकर भरण-पोषण की मांग को सीमित या खारिज कर सकता है।

5. अगर झूठे आरोपों से मानहानि हुई तो क्या उपाय हैं?

पति BNS की धारा 356 के तहत आपराधिक मानहानि और सिविल कोर्ट में मुआवजा मांग सकता है, खासकर जब उसे आरोपों में बरी या डिस्चार्ज किया गया हो।

Social Media