जब दो लोग अलग होते हैं, तो टूटन सिर्फ रिश्ते ही नहीं टूटते बल्कि आर्थिक मुश्किलें भी साथ आती हैं। पहले जो खर्च, ज़िम्मेदारियाँ और सहारा दोनों मिलकर संभालते थे, वो अचानक एक व्यक्ति पर आ जाता है। ऐसे में एक साथी के पास स्थिर इनकम होती है, जबकि दूसरा अपनी ज़िंदगी दोबारा संभालने की कोशिश करता है।
यहीं से कई सवाल उठते हैं —
- अब घर का किराया या बच्चों की फीस कौन देगा?
- आर्थिक मदद कितने समय तक मिलेगी?
- क्या “एलिमनी” और “मेंटेनेंस” एक ही चीज़ हैं या दोनों अलग हैं?
अक्सर लोग इन दोनों शब्दों का मतलब तभी समझ पाते हैं जब मामला कोर्ट तक पहुँचता है। दरअसल, एलिमनी और मेंटेनेंस दोनों ही आर्थिक सहायता के रूप हैं, लेकिन इनमें फर्क होता है, कब, कितने समय के लिए और किस कानून के तहत यह मदद दी जाती है।
इनका फर्क समझना सिर्फ कानूनी जानकारी के लिए नहीं, बल्कि आर्थिक सुरक्षा और सम्मान के लिए भी ज़रूरी है। अगर आप तलाक़ की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं तो इन दोनों के मायने जानना आपको गलतफहमियों और देरी से बचा सकता है।
इस ब्लॉग में हम समझेंगे, एलिमनी और मेंटेनेंस में असली फर्क क्या है, और अदालतें इन्हें “पति-पत्नी की आर्थिक सहायता” के रूप में कैसे देखती हैं।
एलिमनी और मेंटेनेंस का क्या मतलब है
मेंटेनेंस का मतलब है – आर्थिक मदद जो एक पति या पत्नी, दूसरे साथी को (या बच्चों और माता-पिता को) देता है, जब वे खुद का खर्च नहीं उठा पाते।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जरूरतमंद व्यक्ति को खाना, कपड़े, रहने की जगह और दवाई जैसी बुनियादी ज़रूरतें मिलती रहें, चाहे पति-पत्नी के बीच विवाद चल रहा हो या वे अलग रह रहे हों।
मेंटेनेंस दो तरह का होता है —
- अंतरिम मेंटेनेंस (Interim Maintenance): जब तलाक या विवाद का मामला कोर्ट में चल रहा होता है, तब आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष को अस्थायी खर्चों जैसे किराया, भोजन और बच्चों की पढ़ाई के लिए कोर्ट मासिक सहायता देती है।
- स्थायी मेंटेनेंस (Permanent Maintenance): जब कोर्ट अंतिम निर्णय देती है, तब आर्थिक रूप से निर्भर पक्ष को जीवनभर या तय अवधि तक नियमित आर्थिक सहायता दी जाती है, ताकि वह सम्मानपूर्वक और सुरक्षित जीवन जी सके।
एलिमनी वह आर्थिक सहायता है जो तलाक के बाद दी जाती है ताकि निर्भर जीवनसाथी अपना भविष्य सुरक्षित रख सके। यह ज़्यादातर एकमुश्त (एक बार में) राशि होती है, जबकि मेंटेनेंस आमतौर पर हर महीने दी जाती है।
एलिमनी कब दी जाती है:
- जब शादी कानूनी रूप से तलाक या रद्द हो जाती है।
- जब एक साथी के पास खुद का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त आय नहीं होती।
- यह दूसरे साथी की आय, जीवनशैली और भुगतान करने की क्षमता के आधार पर तय की जाती है।
मेंटेनेंस के कानूनी प्रावधान
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 144
अगर पत्नी, बच्चे या माता-पिता के पास खुद की कमाई नहीं है और कोई उन्हें छोड़ देता है, तो कोर्ट उस व्यक्ति को हर महीने खर्च (मेंटेनेंस) देने का आदेश दे सकती है। यह सबसे आम और जल्दी राहत देने वाला कानून है।
हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 24
अगर तलाक या शादी से जुड़ा केस चल रहा है और एक पक्ष की आमदनी नहीं है, तो कोर्ट केस के दौरान ही खर्चा देने का आदेश देती है। इसे अंतरिम मेंटेनेंस कहते हैं।
मुस्लिम लॉ
मुस्लिम पति शादी के दौरान और तलाक के बाद इद्दत की अवधि तक पत्नी का खर्च उठाने के लिए जिम्मेदार होता है। जरूरत पड़ने पर कोर्ट इद्दत के बाद भी महिला को आर्थिक मदद दिला सकती है।
क्रिस्चियन लॉ – इंडियन डाइवोर्स एक्ट की धारा 36
अगर पत्नी के पास खुद की कोई आमदनी नहीं है और तलाक का केस चल रहा है, तो कोर्ट पति को आदेश दे सकती है कि वह केस के दौरान पत्नी को हर महीने कुछ राशि दे।
पार्सी लॉ – पार्सी मैरिज एंड डाइवोर्स एक्ट की धारा 39
अगर तलाक या अलगाव का केस चल रहा है और एक पक्ष आर्थिक रूप से कमजोर है, तो कोर्ट दूसरे पक्ष को आदेश दे सकती है कि वह केस के दौरान खर्च दे। यह अस्थायी सहायता होती है ताकि मुकदमे के दौरान आर्थिक कठिनाई न हो।
एलिमनी के कानूनी प्रावधान
हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 25
यह धारा परमानेंट एलिमनी से जुड़ी है। अगर शादी का अंत तलाक, अनुलमेंट या अलगाव से होता है, तो कोर्ट किसी एक पक्ष (पति या पत्नी) को आदेश दे सकती है कि वह दूसरे को एकमुश्त रकम या नियमित किस्तों में राशि दे।
यह सहायता तब तक जारी रह सकती है जब तक पाने वाले की शादी दोबारा न हो जाए या परिस्थितियाँ न बदलें।
मुस्लिम लॉ
मुस्लिम वूमेन (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट, 1986 की धारा 3 और 4 के तहत तलाक के बाद इद्दत अवधि में पति पत्नी के सभी खर्च उठाएगा, जिसमें मेहर और दी गई संपत्ति की वापसी शामिल है। इद्दत के बाद अगर पत्नी खुद का गुज़ारा नहीं कर सकती, तो वह रिश्तेदारों या वक्फ बोर्ड से आर्थिक मदद मांग सकती है।
क्रिस्चियन लॉ – इंडियन डाइवोर्स एक्ट की धारा 37
इस धारा के तहत, जब पति-पत्नी का तलाक हो जाता है, तो कोर्ट पत्नी को पति की आय और परिस्थितियों के आधार पर परमानेंट एलिमनी दे सकती है।
कोर्ट यह रकम एकमुश्त या नियमित अंतराल पर देने का आदेश दे सकती है। अगर पत्नी दोबारा शादी कर लेती है, तो यह सहायता बंद हो जाती है।
पार्सी लॉ – पार्सी मैरिज एंड डाइवोर्स एक्ट की धारा 40
इस धारा में तलाक के बाद पति या पत्नी, दोनों में से कोई भी कोर्ट से परमानेंट एलिमनी की मांग कर सकता है।
कोर्ट दोनों की आय, संपत्ति और ज़रूरतों को देखकर तय करती है कि कितनी राशि दी जाए। यह रकम एक बार में या हर महीने दी जा सकती है।
| आधार | मेंटेनेंस | एलिमनी |
| समय | शादी के दौरान या तलाक की प्रक्रिया चलने पर दी जाती है। | सिर्फ तलाक हो जाने के बाद दी जाती है। |
| अवधि | हर महीने या कुछ समय के अंतराल पर मिलती है। | ज़्यादातर एक बार में पूरी रकम दी जाती है। |
| उद्देश्य | रोज़मर्रा के खर्च पूरे करने के लिए। | लंबे समय की आर्थिक सुरक्षा देने के लिए। |
| लागू कानून | धारा 144 BNSS, धारा 24 HMA। | मुख्य रूप से धारा 25 HMA। |
| कौन ले सकता है | पति या पत्नी, दोनों (कुछ कानूनों में पति भी)। | आमतौर पर तलाक के बाद निर्भर जीवनसाथी। |
| बदलाव संभव है? | हाँ, हालात बदलने पर कोर्ट रकम बदल सकती है। | नहीं, यह आमतौर पर एक बार तय होकर अंतिम होती है। |
एलिमनी या मेंटेनेंस तय करते समय कोर्ट किन बातों पर ध्यान देती है?
कोर्ट एलिमनी या मेंटेनेंस किसी अंदाज़े से तय नहीं करती। फैसले से पहले कई ज़रूरी बातें ध्यान में रखी जाती हैं:
- दोनों पक्षों की आमदनी और संपत्ति – पति-पत्नी की तनख्वाह, बिज़नेस, जमीन-जायदाद या कमाई की क्षमता देखी जाती है।
- जीवन-स्तर – शादी के दौरान दोनों किस तरह का जीवन जीते थे, उसी के आधार पर सहायता तय होती है।
- व्यवहार और आचरण – अगर किसी ने क्रूरता, बेवफाई या छोड़ देने जैसा व्यवहार किया हो, तो कोर्ट उसे ध्यान में रखती है।
- परिवार और ज़िम्मेदारियाँ – अगर पति के ऊपर बूढ़े माता-पिता या बच्चों की ज़िम्मेदारी है, तो कोर्ट रकम तय करते समय उसे भी मानती है।
- शादी की अवधि – ज़्यादा समय तक चली शादी में आमतौर पर ज़्यादा या लंबी अवधि का मेंटेनेंस मिलता है।
- उम्र और सेहत – अगर निर्भर जीवनसाथी बीमार है या उम्रदराज़ है, तो कोर्ट ज़्यादा सहायता दे सकती है।
टैक्स और इनकम के हिसाब से फर्क
एलिमनी – इसे पूंजी प्राप्ति (Capital Receipt) माना जाता है। इसका मतलब है कि यह किसी कमाई या व्यापार से जुड़ी आय नहीं है, बल्कि एक बार में दी गई सहायता राशि है। इसलिए इस पर इनकम टैक्स नहीं लगता।
मेंटेनेंस – इसे नियमित आय (Regular Income) माना जा सकता है, क्योंकि यह हर महीने मिलती है। इसलिए टैक्स विभाग इसे आय की तरह देख सकता है और इस पर टैक्स लग सकता है। हालांकि, कुछ मामलों में कोर्ट के आदेश या परिस्थितियों के आधार पर राहत भी मिल सकती है।
मेंटेनेंस की रकम कैसे तय होती है?
कोर्ट में मेंटेनेंस की रकम किसी अनुमान से तय नहीं होती — इसके पीछे कुछ तय नियम और केस लॉ (न्यायिक निर्णय) होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में साफ दिशानिर्देश दिए हैं
संपत्ति और आय का खुलासा जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने राजनेश बनाम नेहा (2021) केस में कहा कि जो भी पति या पत्नी मेंटेनेंस मांगता या देता है, दोनों को अपनी आय, संपत्ति और खर्चों का पूरा ब्योरा “Disclosure of Assets and Liabilities” नाम के एफिडेविट में देना होता है। इससे कोर्ट को दोनों पक्षों की वास्तविक आर्थिक स्थिति समझने में मदद मिलती है।
कमाई के अनुसार रकम तय होती है
कल्याण डे चौधरी बनाम रीता डे चौधरी (2017) केस में सुप्रीम कोर्ट ने पुराने केस डॉ. कुलभूषण कुमार बनाम राज कुमारी (1970) का हवाला देते हुए कहा कि – पति की नेट सैलरी का लगभग 25% हिस्सा पत्नी के मेंटेनेंस के लिए उचित माना जा सकता है।
निष्कर्ष
एलिमनी और मेंटेनेंस का मकसद किसी को सज़ा देना नहीं, बल्कि आर्थिक बराबरी और सम्मान बनाए रखना है। जब रिश्ता खत्म होता है, तो एक पक्ष को नई शुरुआत के लिए मदद की ज़रूरत होती है, और दूसरा पक्ष अपनी क्षमता के अनुसार उस जिम्मेदारी को निभाता है।
इसका उद्देश्य संतुलन बनाना है, बोझ डालना नहीं। अगर दोनों पक्ष ईमानदारी और समझदारी से चलते हैं, तो ये कानून किसी पर आरोप लगाने का हथियार नहीं, बल्कि न्याय की ढाल बन जाते हैं।
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FAQs
1. क्या कामकाजी महिला भी मेंटेनेंस मांग सकती है?
हाँ, अगर उसकी कमाई शादी के समय के जीवनस्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है, तो वह मेंटेनेंस पा सकती है।
2. क्या हर तलाक में एलिमनी देना जरूरी है?
नहीं, यह कोर्ट के निर्णय पर निर्भर करता है, जैसे शादी की अवधि, आय और जरूरत।
3. क्या तलाक के बाद एलिमनी की रकम बदली जा सकती है?
हाँ, अगर किसी की आर्थिक स्थिति बदल जाए या पत्नी की दोबारा शादी हो जाए, तो कोर्ट इसे बदल सकता है।
4. मेंटेनेंस कब तक मिलता है?
जब तक लाभ पाने वाला जीवनसाथी दोबारा शादी नहीं कर लेता या खुद आत्मनिर्भर नहीं हो जाता।
5. क्या पति मेंटेनेंस देने से इंकार कर सकता है?
नहीं, अगर कोर्ट ने आदेश दिया है और पति नहीं देता, तो उसकी संपत्ति जब्त हो सकती है या जेल की सज़ा भी मिल सकती है।



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