तलाक के आदेश की शर्तों का उल्लंघन करने पर क्या सज़ा हो सकती है?

What are the penalties for violating the terms of a divorce decree

अक्सर लोग सोचते हैं कि तलाक हो जाने के बाद सब खत्म हो जाता है – न कोई रिश्ता, न कोई जिम्मेदारी। लेकिन सच यह है कि तलाक का आदेश (Divorce Decree) सिर्फ आज़ादी नहीं देता, बल्कि यह एक वादा भी होता है कि आप अदालत के आदेशों का पालन करेंगे।

कई बार लोग ग़ुस्से या लापरवाही में इन आदेशों की अनदेखी कर देते हैं। पर याद रखें – कोर्ट का आदेश कोई विकल्प नहीं, बल्कि क़ानूनी ज़िम्मेदारी है। पिछले कुछ सालों में भारतीय अदालतों ने साफ़ कर दिया है कि तलाक के बाद अगर आप अदालत के आदेश नहीं मानते, तो यह बिल्कुल भी मंज़ूर नहीं किया जाएगा।

इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि अगर कोई तलाक के आदेश का उल्लंघन करता है, तो कानून कोर्ट की अवमानना (Contempt of Court), सज़ा और कानूनी उपायों के बारे में क्या कहता है।

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डाइवोर्स डिक्री क्या होती है?

डाइवोर्स डिक्री कोर्ट द्वारा दिया गया अंतिम फैसला होता है, जो दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद जारी किया जाता है। इसमें आम तौर पर ये बातें शामिल होती हैं —

  • तलाक को मंजूरी देना
  • बच्चे की कस्टडी और विज़िटेशन राइट्स
  • एलिमनी या स्थायी मेंटेनेंस की रकम तय करना
  • संपत्ति और पैसे का बंटवारा
  • बच्चे की पढ़ाई या रहने की व्यवस्था से जुड़े निर्देश

जब कोर्ट यह आदेश दे देती है, तो यह कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर इसका पालन नहीं करता, तो यह कोर्ट के आदेश का उल्लंघन माना जाती है।

तलाक के बाद सबसे ज़्यादा होने वाले कानूनी उल्लंघन

1. मेंटेनेंस या एलिमनी न देना – जब कोर्ट द्वारा तय की गई मासिक या एकमुश्त रकम जानबूझकर नहीं दी जाती।

2. बच्चे की कस्टडी या मुलाकात के हक का उल्लंघन – दूसरे माता-पिता को बच्चे से मिलने नहीं देना या बच्चे को बिना अनुमति कहीं ले जाना।

3. संपत्ति या पैसे का बंटवारा न करना – कोर्ट के आदेश के बावजूद संपत्ति ट्रांसफर या हिस्सेदारी देने से मना करना।

4. इन्जंक्शन की अनदेखी करना – कोर्ट ने संपर्क या परेशान करने से मना किया है, फिर भी ऐसा करना।

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5. आपसी समझौते की शर्तों से पीछे हटना – कोर्ट में दर्ज किए गए लिखित समझौते का पालन न करना।

तलाक के आदेश का पालन न करने के कानूनी परिणाम

अगर कोई व्यक्ति कोर्ट के तलाक से जुड़े आदेशों का पालन नहीं करता, तो उसके खिलाफ सिविल और क्रिमिनल दोनों तरह की कार्रवाई हो सकती है। नीचे इसे आसान भाषा में समझाया गया है —  

कोर्ट की अवमानना (Contempt of Court)

कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट, 1971 के तहत अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर कोर्ट के आदेश को नहीं मानता, तो इसे सिविल कंटेम्प्ट कहा जाता है।

सज़ा: 6 महीने तक की जेल हो सकती है, या ₹2,000 तक जुर्माना, या दोनों।

अगर बार-बार ऐसा किया जाए या कोर्ट की अवमानना की जाए, तो इसे क्रिमिनल कंटेम्प्ट माना जाता है, जिसकी सज़ा और भी सख्त होती है।

आदेश लागू करवाना (आर्डर XXI CPC)

अगर मेंटेनेंस, एलिमनी या संपत्ति ट्रांसफर जैसे आदेशों का पालन नहीं होता, तो पीड़ित पक्ष आर्डर XXI CPC के तहत एग्ज़िक्यूशन पिटीशन दायर कर सकता है। कोर्ट निम्न कदम उठा सकती है:

  • आदेश न मानने वाले की सैलरी या संपत्ति जब्त कर सकती है।
  • चल-अचल संपत्ति (घर, गाड़ी आदि) सीज़ कर सकती है।
  • पालन न करने पर व्यक्ति को सिविल जेल भेजा जा सकता है।

मेंटेनेंस की वसूली – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144(3)

अगर कोर्ट ने मेंटेनेंस का आदेश दिया है और भुगतान नहीं किया जा रहा है:

  • तो कोर्ट गिरफ्तारी का वारंट जारी कर सकती है।
  • हर महीने के बकाया पर एक महीने तक की जेल की सज़ा दे सकती है।

फैमिली कोर्ट में अवमानना (फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984)

फैमिली कोर्ट को यह अधिकार है कि अगर उसके आदेशों का पालन नहीं हो रहा है, तो वह खुद कंटेम्प्ट की कार्रवाई शुरू कर सकती है। इससे कस्टडी, मेंटेनेंस या विज़िटेशन जैसे मामलों में तेज़ी से न्याय मिल सकता है।

तलाक के बाद हक़ न मिलने पर क्या करें?

1. आपसी सहमति से तलाक में शर्तें तोड़ना

जब पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेते हैं, तो दोनों कुछ लिखित शर्तों पर सहमत होते हैं, जैसे एलिमनी देना, प्रॉपर्टी बाँटना, या बच्चे की देखभाल का जिम्मा तय करना।

अगर बाद में कोई एक पक्ष इन शर्तों का पालन नहीं करता (जैसे एलिमनी नहीं देना या समझौते से मुकर जाना), तो दूसरा पक्ष कोर्ट में नीचे दिए गए कदम उठा सकता है —

  • एग्ज़िक्यूशन पिटीशन: आदेश लागू करवाने के लिए।
  • कंटेम्प्ट पिटीशन: आदेश की अनदेखी पर सज़ा दिलवाने के लिए।
  • रिवोकेशन एप्लीकेशन: अगर धोखाधड़ी से समझौता हुआ हो, तो तलाक आदेश को रद्द करवाने के लिए।
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2. बच्चे की कस्टडी का आदेश न मानना

अगर कोई माता या पिता दूसरे को बच्चे से मिलने नहीं देता, तो यह सिविल कंटेम्प्ट  माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है – “बच्चे को हथियार की तरह इस्तेमाल करना कोर्ट के आदेश का अपमान है।”

ऐसे मामलों में कोर्ट पुलिस की मदद से बच्चा वापस दिलवा सकती है, या अरेस्ट वारंट जारी कर सकती है।

3. एलिमनी या मेंटेनेंस का भुगतान न करना

अगर कोर्ट ने मेंटेनेंस या एलिमनी देने का आदेश दिया है और कोई उसका पालन नहीं करता, तो यह कानूनी अपराध है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144(3) के तहत कोर्ट गिरफ़्तारी का आदेश दे सकती है।

रजनेश बनाम नेहा (2020) केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा – “मेंटेनेंस न देने पर आरोपी को ब्याज सहित पूरी राशि चुकानी होगी।” कोर्ट वेतन, बैंक अकाउंट या संपत्ति से वसूली भी करवा सकती है।

4. झूठी जानकारी देना या इनकम छिपाना

अगर कोई व्यक्ति कोर्ट में झूठ बोलता है या अपनी असली इनकम छिपाता है, तो यह भारतीय न्याय संहिता की धारा 228 के तहत गंभीर अपराध है।

सज़ा: 7 साल तक की जेल हो सकती है।

ऐसी स्थिति में कोर्ट कंटेम्प्ट और क्रिमिनल केस दोनों चला सकती है।

मेडिएशन और सेटलमेंट की भूमिका

भारतीय अदालतें हमेशा चाहती हैं कि पति-पत्नी आपसी बातचीत और समझदारी से अपने विवाद सुलझाएँ। अगर दोनों पक्ष तैयार हों, तो कोर्ट उन्हें मेडिएशन का मौका देती है, जहाँ शांत माहौल में दोनों अपनी बात रख सकते हैं और नया समाधान निकाल सकते हैं।

अगर दोनों आपसी सहमति से मेंटेनेंस की रकम, विज़िटेशन, या अन्य शर्तों में बदलाव करने पर राज़ी हों, तो अदालत सज़ा देने की बजाय उन्हें समय देती है ताकि वे आदेश का पालन कर सकें।

इसका मकसद यह है कि न्याय केवल सज़ा देना नहीं, बल्कि रिश्तों में सुधार और समझदारी बढ़ाना भी है।

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निष्कर्ष

डाइवोर्स डिक्री सिर्फ़ एक कानूनी कागज़ नहीं होता, बल्कि यह अदालत की ओर से न्याय और भरोसे का प्रतीक होता है। जब कोई पक्ष इसके नियमों का पालन नहीं करता, तो यह न केवल कानून की अनदेखी होती है, बल्कि पुराने घावों को भी फिर से खोल देती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि न्याय तभी पूरा होता है जब उसका पालन किया जाए। अगर कोई तलाक के आदेश को जानबूझकर नज़रअंदाज़ करता है, तो यह विरोध या बदला नहीं, बल्कि खुद के लिए सज़ा, जुर्माना और कानूनी परेशानी का कारण बन जाता है।

बेहतर रास्ता यह है कि बातचीत करें, आदेश का पालन करें और आगे बढ़ें। क्योंकि असली आज़ादी तलाक के बाद कानून का सम्मान करने में है, न कि उसका उल्लंघन करने में।

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FAQs

1. अगर मेरा एक्स-जीवनसाथी कोर्ट द्वारा तय मेंटेनेंस नहीं देता तो क्या करूँ?

आप एग्ज़िक्यूशन पिटीशन दायर कर सकते हैं। कोर्ट उसकी सैलरी या प्रॉपर्टी जब्त कर सकती है और ज़रूरत पड़ने पर गिरफ़्तारी वारंट भी जारी कर सकती है।

2. क्या एलिमनी न देने पर जेल हो सकती है?

हाँ। अगर कोई जानबूझकर आदेश का पालन नहीं करता, तो BNSS की धारा 125(3) या     एक्ट के तहत 6 महीने तक की सज़ा हो सकती है।

3. क्या भारत में कस्टडी या विज़िटेशन का आदेश लागू कराया जा सकता है?

हाँ। कोर्ट ऐसे आदेशों को लागू करवा सकती है। अगर कोई माता-पिता बार-बार नियम तोड़ता है, तो कोर्ट कस्टडी बदलने तक का आदेश दे सकती है।

4. अगर मैं आर्थिक रूप से कमजोर हूँ और मेंटेनेंस नहीं दे सकता तो क्या करूँ?

आप कोर्ट में संशोधन आवेदन दायर कर सकते हैं, और अपनी वास्तविक आर्थिक स्थिति का प्रमाण देकर राहत माँग सकते हैं।

5. क्या तलाक से जुड़े मामलों में कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट लागू होता है?

बिलकुल। तलाक से जुड़े आदेशों का पालन न करना सिविल कंटेम्प्ट माना जाता है, और अदालत को सज़ा देने का पूरा अधिकार होता है।

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