बचपन में हुए यौन शोषण पर अब FIR कैसे दर्ज करें? जानिए  POCSO एक्ट के तहत क्या कहता है कानून।

How can I file an FIR for childhood sexual abuse Learn what the law says under the POCSO Act.

रेप (बलात्कार) का अपराध केवल शरीर के खिलाफ नहीं, बल्कि आत्मा और मन के खिलाफ भी होता है। और जब यह गंभीर अपराध किसी नाबालिग के साथ होता है, तो इसका प्रभाव जीवनभर रह सकता है।
कई बार पीड़ित बचपन में डर, शर्म या सामाजिक दबाव के कारण आवाज़ नहीं उठा पाती। लेकिन कानून यह मानता है कि न्याय में देरी हो सकती है, पर न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता।

आज भारत में ऐसा कोई समय सीमा नहीं है जो नाबालिग के साथ हुए यौन अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराने में बाधा बने। आप चाहे अब 25 साल के हों या 40 साल के, आप FIR दर्ज कर सकती हैं।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कानूनी स्थिति: कौन-से कानून लागू होते हैं?

1. भारतीय न्याय संहिता  (BNS), 2023

BNS की धारा 63 से 70 में रेप और यौन अपराधों की परिभाषा व सज़ा दी गई है।

  • धारा 63: बलात्कार की परिभाषा
  • धारा 64: बलात्कार की सज़ा (7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक)
  • धारा 65: नाबालिग के साथ यौन अपराध पर कठोरतम दंड — “मृत्युदंड तक” भी संभव।

2. POCSO एक्ट, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act)

POCSO एक्ट विशेष रूप से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। इसकी कुछ प्रमुख धाराएँ हैं:

धाराविवरण
धारा 3यौन उत्पीड़न की परिभाषा
धारा 4-6सज़ा (7 से 10 साल या अधिक)
धारा 19किसी भी व्यक्ति को घटना की जानकारी होते ही पुलिस में रिपोर्ट करना अनिवार्य
धारा 21रिपोर्ट न करने पर दंड
धारा 33(8)पीड़ित को मानसिक व आर्थिक सहायता का अधिकार

अगर रेप आपके साथ नाबालिग रहते हुआ था, तो अब FIR कैसे दर्ज करें?

अब आइए समझते हैं कि अगर घटना पुरानी है, तो FIR दर्ज करने का वास्तविक और व्यावहारिक तरीका क्या होगा।

(1) पुलिस स्टेशन का चयन

  • FIR उस पुलिस स्टेशन में दर्ज हो सकती है:
    • जहाँ अपराध हुआ था, या
    • जहाँ पीड़िता वर्तमान में रह रही है।
  • यदि आप महिला हैं, तो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173(1) के तहत  महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही बयान लिया जाएगा।
  • आप चाहें तो महिला थाना या “Crime Against Women Cell” में भी सीधे जा सकती हैं।
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(2) शिकायत (Complaint) का प्रारूप

आप FIR लिखित या मौखिक दोनों रूपों में दे सकती हैं। अगर आप लिखित देना चाहें, तो उसमें निम्न जानकारी शामिल करें:

  • आपका पूरा नाम और पता
  • घटना की तारीख (यदि याद हो)
  • उस समय आपकी उम्र (जैसे – “घटना के समय मेरी उम्र लगभग 16 वर्ष थी”)
  • आरोपी का नाम (यदि ज्ञात हो)
  • अब FIR दर्ज कराने का कारण – जैसे कि “घटना के समय मैं मानसिक रूप से असमर्थ थी रिपोर्ट कराने में” या “मुझे अब साहस मिला है कि न्याय के लिए आगे बढ़ सकूं।”

(3) पुलिस की जिम्मेदारी – BNSS की धारा 173 के तहत

नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS, 2023) के अनुसार:

  • जैसे ही शिकायत मिलती है, पुलिस को तुरंत FIR दर्ज करनी होती है।
  • रेप केस में FIR दर्ज करने से इनकार करना कानूनन अपराध है।
  • पुलिस अधिकारी पीड़िता को मेडिकल जांच और मनोवैज्ञानिक सहायता के लिए अस्पताल भेजेगी।

(4) अगर पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है

यदि पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती, तो आप निम्न विकल्पों का उपयोग कर सकती हैं:

  • SP को लिखित शिकायत: अपने जिले के Superintendent of Police (SP) को आवेदन दें, जिसमें बताएं कि थाना FIR दर्ज नहीं कर रहा।
  • मजिस्ट्रेट के पास आवेदन- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की  धारा 156(3): आप सीधे मजिस्ट्रेट के पास आवेदन देकर आदेश प्राप्त कर सकती हैं कि पुलिस FIR दर्ज करे और जांच करे।
  • ह्यूमन राइट्स कमीशन / चाइल्ड वेलफेयर समिति  (CWC):  ये संस्थाएँ नाबालिग अपराधों पर स्वतः संज्ञान लेकर पुलिस को जांच का निर्देश दे सकती हैं।

क्या पुरानी घटना पर भी FIR दर्ज हो सकती है?

हाँ, POCSO एक्ट में कोई लिमिटेशन पीरियड नहीं है।  अर्थात, चाहे घटना 10 साल पुरानी हो या 25 साल, FIR दर्ज की जा सकती है।

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सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

राज्य बनाम संजय कुमार उर्फ सनी, (2017) 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा  “जब किसी बच्चे के साथ यौन उत्पीड़न होता है, तो रिपोर्ट दर्ज करने में देरी होना स्वाभाविक और समझ में आने योग्य बात है। ऐसी देरी को अविश्वास का आधार नहीं माना जा सकता।” अर्थात , बलात्कार या यौन शोषण की रिपोर्ट में देरी होना सामान्य है, विशेषकर नाबालिग पीड़ित के मामलों में।

ईरा बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली), (2017) 

सुप्रीम कोर्ट ने कहाबाल यौन शोषण के मामलों में, पीड़ित पर पड़े मानसिक आघात और भय के कारण वह कई वर्षों तक मौन रह सकता है। केवल समय बीत जाने के कारण किसी को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता।” आप किसी भी समय FIR दर्ज करा सकती हैं, क्योंकि कानून में न्याय को समय से अधिक महत्व दिया गया है।

FIR के बाद की कानूनी प्रक्रिया

एक बार FIR दर्ज हो जाने के बाद, यह पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है:

चरणप्रक्रिया का विवरण
मेडिकल जांचपुलिस पीड़िता को सरकारी अस्पताल भेजती है, जहाँ महिला डॉक्टर मेडिकल प्रमाण देती है।
बयान दर्ज (BNSS 183)पीड़िता का बयान महिला अधिकारी द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है।
साक्ष्य संग्रहकपड़े, DNA सैंपल, मोबाइल चैट आदि साक्ष्य के रूप में इकट्ठा किए जाते हैं।
चार्जशीट (BNSS 193)पुलिस जांच पूरी कर अदालत में चार्जशीट दाखिल करती है।
ट्रायल (POCSO कोर्ट)मामला विशेष POCSO कोर्ट में चलता है, जो बच्चों के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट होता है।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान सुरक्षा और सहायता

(1) पहचान गोपनीय रखी जाती है – POCSO एक्ट की धारा 23 के तहत, मीडिया या किसी भी व्यक्ति को पीड़िता की पहचान उजागर करने की मनाही है।

(2) मानसिक और कानूनी सहायता

  • सरकार या NGO द्वारा कॉउंसलर और लीगल ऐड लॉयर  मुफ्त उपलब्ध कराए जाते हैं।
  • आप चाहें तो महिला वकील से ही बयान और जिरह करवा सकती हैं।
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(3) वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा- यदि पीड़िता अदालत में आने से डरती है, तो उसका बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से लिया जा सकता है।

यदि आरोपी अब किसी और राज्य में है तो क्या करें ?

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 78  – आपका FIR जहाँ दर्ज हुआ है, वहां की पुलिस के तहत Interstate Arrest Warrant जारी कर सकती है।

इसके अलावा, “Zero FIR” सुविधा भी मौजूद है — आप किसी भी राज्य में जाकर FIR दर्ज करा सकती हैं, और वह केस बाद में संबंधित क्षेत्र के थाने को ट्रांसफर कर दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट की कुछ और महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

1. इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया  (2017) 10 SCC 800

सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला दिया कि भले ही लड़की की शादी हो गई हो और उसकी उम्र 18 साल से कम हो, अगर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए गए हैं, तो यह बलात्कार (रेप) माना जाएगा। यानी नाबालिग विवाह में भी यौन संबंध रेप माना जाएगा।

2. निपुण सक्सेना  बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2019) 2 SCC 703

कोर्ट ने कहा कि मीडिया और पुलिस दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जांच या कोर्ट की सुनवाई के किसी भी चरण में पीड़िता की पहचान या उसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती।

व्यावहारिक सुझाव 

  • विश्वसनीय वकील से संपर्क करें: महिला अधिकार या POCSO मामलों के अनुभवी वकील से सलाह लें।
  • भावनात्मक सहायता लें: परिवार, NGO, या मनोवैज्ञानिक काउंसलर से मदद लें।
  • हर दस्तावेज़ की कॉपी रखें: FIR, मेडिकल रिपोर्ट, और कोर्ट दस्तावेज़ों की फोटो/स्कैन कॉपी रखें।
  • सोशल मीडिया पर बात करने से बचें: किसी भी सार्वजनिक मंच पर घटना का ज़िक्र करना आपके केस पर प्रभाव डाल सकता है।

निष्कर्ष 

नाबालिग रहते हुए हुए यौन उत्पीड़न की पीड़ा गहरी होती है, लेकिन अब आपको न्याय पाने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट और भारतीय कानून दोनों यह सुनिश्चित करते हैं कि समय बीत जाने के बावजूद अपराधी को सज़ा मिले और पीड़ित को न्याय मिले। याद रखें — “चुप रहना अपराधी की मदद करता है, पीड़ित की नहीं। आवाज उठाइए कानून हमेशा आपके साथ खड़ा है।”

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs 

1. क्या 15 साल पुरानी घटना पर भी FIR दर्ज हो सकती है?

हाँ, POCSO Act के तहत कोई समय सीमा नहीं है। आप किसी भी उम्र में FIR दर्ज करा सकती हैं।

2. क्या मुझे FIR दर्ज करने के लिए सबूत देना होगा?

नहीं, FIR दर्ज करने के लिए प्रारंभिक सबूत जरूरी नहीं। जांच के दौरान साक्ष्य इकट्ठे किए जाते हैं।

3. क्या आरोपी के खिलाफ गिरफ्तारी तुरंत होती है?

अगर केस प्राथमिक दृष्टि में सही पाया गया तो पुलिस तुरंत गिरफ्तारी कर सकती है।

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