आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और गोपनीयता का अधिकार – क्या आपका डेटा अब भी सुरक्षित है?

Artificial Intelligence (AI) and the right to privacy – is your data still safe

आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। जब आप अपने फोन को चेहरे से अनलॉक करते हैं या अलेक्सा से बात करते हैं, तब हर बार AI चुपचाप बैकग्राउंड में काम कर रही होती है। वह आपकी पसंद, आदतें और यहां तक कि आपके मूड या भावनाओं को भी समझने की कोशिश करती है।

लेकिन असली बात यह है कि AI को सीखने के लिए डेटा चाहिए होता है, और वह डेटा अक्सर आपसे ही आता है, आपकी फोटो, आवाज़, इंटरनेट ब्राउज़िंग की जानकारी, खरीदारी का रिकॉर्ड, नींद का पैटर्न, सब कुछ।

इन जानकारियों से हमें कई सुविधाएं मिलती हैं जैसे चीज़ें आसान होती हैं, टेक्नोलॉजी हमें बेहतर सेवा देती है। लेकिन साथ ही एक बड़ा सवाल उठता है – “क्या हम सुविधा के बदले अपनी प्राइवेसी खो रहे हैं?”

इस ब्लॉग में हम सरल भाषा में समझेंगे कि AI और निजता के बीच यह टकराव कैसे हो रहा है, भारत के कानून इस स्थिति में हमें क्या सुरक्षा देते हैं, और आप खुद अपने डिजिटल डेटा की रक्षा कैसे कर सकते हैं।

क्योंकि सवाल सिर्फ़ इतना है – टेक्नोलॉजी हमें कितना जानती है, और हम खुद को कितना बचा पा रहे हैं?

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या है और यह भारत में कैसे काम करती है?

AI का मतलब है — ऐसी मशीनें या कंप्यूटर सिस्टम जो इंसानों की तरह सोचने, सीखने और निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं। भारत में आज AI कई क्षेत्रों में इस्तेमाल हो रही है:

  • बैंकिंग में: धोखाधड़ी पकड़ने और क्रेडिट स्कोर तय करने के लिए।
  • हेल्थकेयर में: बीमारियों की पहचान करने, मरीजों का रिकॉर्ड संभालने और इलाज में मदद के लिए।
  • शिक्षा में: हर छात्र के लिए अलग-अलग पढ़ाई के तरीके और डिजिटल लर्निंग टूल्स बनाने के लिए।
  • ई-कॉमर्स में: आपकी पसंद के हिसाब से विज्ञापन दिखाने के लिए।
  • कानून व्यवस्था में: चेहरों की पहचान (facial recognition) और अपराध की भविष्यवाणी (predictive policing) के लिए।

इन सभी सिस्टम्स के पीछे एक चीज़ कॉमन है – डेटा। यह डेटा आपका हो सकता है, आपका नाम, उम्र, लिंग, फोटो, बायोमेट्रिक जानकारी, लोकेशन, और आपकी आदतें या रुचियाँ।

सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह डेटा अक्सर अपने-आप इकट्ठा किया जाता है, बिना आपकी साफ-साफ अनुमति के। और कभी-कभी यह डेटा ऐसे सिस्टम्स में रखा जाता है, जो न तो पूरी तरह सुरक्षित होते हैं, न ही पारदर्शी।

निजता का अधिकार – भारत में एक मौलिक अधिकार

भारत के संविधान में “प्राइवेसी शब्द सीधे तौर पर नहीं लिखा गया है। लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले के.एस. पुट्टस्वामी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में कहा कि “निजता का अधिकार” हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत आता है।

इस फैसले की कुछ अहम बातें:

निजता का मतलब सिर्फ़ शारीरिक गोपनीयता नहीं, बल्कि जानकारी पर भी नियंत्रण है, यानी आपकी निजी जानकारी कैसे ली, रखी या इस्तेमाल की जाती है, उस पर आपका हक है।

किसी भी संस्था या सरकार को आपकी प्राइवेसी में दखल देने के लिए तीन नियमों को पूरा करना होगा:

  • कानूनी आधार (Legality): यह हस्तक्षेप किसी वैध कानून के तहत होना चाहिए।
  • ज़रूरत (Necessity): यह हस्तक्षेप किसी जरूरी और वैध उद्देश्य के लिए होना चाहिए।
  • संतुलन (Proportionality): यह हस्तक्षेप सीमित और उचित होना चाहिए, ज़रूरत से ज़्यादा नहीं।
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यही फैसला भारत में आने वाले सभी डेटा प्रोटेक्शन कानूनों की नींव बना, जैसे कि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023

AI और डेटा प्राइवेसी पर कौन सा कानून लागू होता है?

भारत में अभी AI के लिए कोई अलग कानून नहीं बना है। लेकिन कुछ मौजूदा कानून ऐसे हैं जो डेटा की सुरक्षा और AI के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाने में मदद करते हैं।

भारत का संविधान

  • अनुच्छेद 21: हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता हैं। इसमें निजता का अधिकार भी शामिल है।
  • अनुच्छेद 19(1)(a) और 19(1)(g): बोलने, अभिव्यक्ति और पेशे की आज़ादी देता हैं। AI निगरानी या प्रोफाइलिंग से यह अधिकार प्रभावित हो सकता है।
  • अनुच्छेद 14: सबके लिए समानता की गारंटी देता हैं। अगर AI सिस्टम भेदभाव करता है, तो यह अनुच्छेद लागू होगा।

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000

यह भारत का पहला डिजिटल कानून था, जो इलेक्ट्रॉनिक डेटा और उसकी सुरक्षा पर केंद्रित था।

  • धारा 43A: अगर कोई कंपनी आपकी संवेदनशील जानकारी को सुरक्षित नहीं रख पाती, तो उसे नुकसान झेलने वाले व्यक्ति को मुआवज़ा देना पड़ सकता है।
  • धारा 72A: किसी व्यक्ति द्वारा अनुचित तरीके से या बिना अनुमति निजी जानकारी साझा करने पर सज़ा हो सकती है।

लेकिन इस कानून की एक कमी है – इसमें सहमति (consent), निजी डेटा (personal data), या स्वचालित निर्णय (automated decision-making) जैसे शब्द स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं हैं, जो AI सिस्टम्स में बहुत ज़रूरी हैं।

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 (DPDP Act)

यह भारत का पहला बड़ा डेटा सुरक्षा कानून है। इसका उद्देश्य है कि नागरिकों को अपने डिजिटल डेटा पर नियंत्रण देना।

इस कानून की मुख्य बातें:

  • भारत में सभी डिजिटल डेटा पर लागू होता है।
  • किसी भी डेटा को इस्तेमाल करने से पहले स्पष्ट सहमति जरूरी है।
  • हर व्यक्ति को अपने डेटा तक पहुंचने, सुधार करने, मिटाने या शिकायत करने का अधिकार है।
  • “Data Fiduciary” यानी डेटा संभालने वाली कंपनी और “Data Principal” यानी डेटा देने वाला व्यक्ति — दोनों की भूमिकाएं तय की गई हैं।
  • डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड ऑफ़ इंडिया बनाया गया है जो शिकायतों की जांच करेगा और जरुरी होने पर जुर्माना लगाएगा।

यह कानून AI डेवलपर्स, कंपनियों और सरकारी विभागों पर भी लागू होता है जो AI मॉडल्स के लिए डेटा इस्तेमाल करते हैं।

भारत में AI से प्राइवेसी को होने वाले खतरे

चेहरा पहचानना और निगरानी

पुलिस और एयरपोर्ट्स अब AI से चेहरों की पहचान कर रहे हैं। पर बिना कानून के यह हर नागरिक पर नज़र रखने जैसा हो सकता है, जो निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

डेटा प्रोफाइलिंग और विज्ञापन

सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स वेबसाइटें आपके व्यवहार को ट्रैक करती हैं और फिर उसी के आधार पर विज्ञापन दिखाती हैं। अक्सर यह काम बिना आपकी अनुमति और आपके डेटा का पूरा प्रोफाइल बनाकर किया जाता है।

बायोमेट्रिक और हेल्थ डेटा का दुरुपयोग

फिटनेस ऐप्स और हेल्थ टेक कंपनियां आपकी बायोमेट्रिक जानकारी (जैसे दिल की धड़कन, नींद, वजन आदि) इकट्ठा करती हैं। अगर यह डेटा लीक हो जाए, तो बीमा कंपनियां या तीसरे पक्ष इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं।

सहमति और पारदर्शिता की कमी

कई बार ऐप्स या वेबसाइट्स छोटे अक्षरों में छिपे हुए नियमों में आपकी जानकारी लेने की अनुमति मांग लेते हैं। लोग यह समझे बिना “Agree” पर क्लिक कर देते हैं कि उनका डेटा कैसे और कहाँ इस्तेमाल होगा।

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पक्षपात और भेदभाव

AI सिस्टम्स उसी डेटा से सीखते हैं जो उन्हें दिया जाता है। अगर डेटा पहले से पक्षपातपूर्ण (biased) है, तो AI भी भेदभावपूर्ण निर्णय ले सकता है, जैसे किसी महिला या ग्रामीण व्यक्ति को लोन या नौकरी से वंचित कर देना।

नतीजा: AI हमारे जीवन को आसान बनाता है, लेकिन अगर डेटा का गलत इस्तेमाल हुआ, तो यह हमारी निजता, स्वतंत्रता और समानता तीनों को खतरे में डाल सकता है।

AI पर भारत सरकार की नीतियाँ और पहल

भारत में AI को लेकर सरकार का रुख इनोवेशन पर आधारित है। नीति आयोग ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण रिपोर्टें जारी की हैं, जैसे Responsible AI for All (2021) और National Strategy for AI

नीतियों का मुख्य लक्ष्य:

  • समाज के हित में AI का उपयोग जैसे स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा और पर्यावरण सुधार के लिए।
  • नैतिक और पारदर्शी AI सिस्टम्स को बढ़ावा देना ताकि मशीनें किसी के साथ अन्याय न करें।
  • डेटा सुरक्षा और जवाबदेही का फॉर्मेट तैयार करना।
  • एल्गोरिदमिक पक्षपात को रोकना और गलत इस्तेमाल से बचाव।

इन रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि AI का विकास मानव-केंद्रित रहे, जहाँ मानव अधिकार और निजता की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता हो।

AI इनोवेशन और निजता के अधिकार में संतुलन कैसे बनाए?

भारत के सामने सबसे बड़ी कानूनी चुनौती है AI इनोवेशन और निजता के बीच सही संतुलन बनाए रखना। दोनों ज़रूरी हैं, AI से अर्थव्यवस्था बढ़ती है, लेकिन निजता व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा करती है।

संतुलन बनाए रखने के कुछ तरीके:

  • हर AI सिस्टम को बनाते समय ही निजता की सुरक्षा के फीचर शामिल किए जाएँ।
  • सिर्फ उतना ही डेटा इकट्ठा किया जाए जितना जरूरी है, ज़रूरत से ज़्यादा नहीं।
  • यूज़र को साफ-साफ बताया जाए कि कौन-सा डेटा लिया जा रहा है और क्यों।
  • AI सिस्टम्स को अपने निर्णयों का आधार समझाने में सक्षम होना चाहिए, जिसे “Explainable AI” कहते हैं।
  • जहाँ AI के निर्णय किसी की ज़िंदगी पर बड़ा असर डालते हैं (जैसे लोन, नौकरी या निगरानी), वहाँ इंसान का दखल ज़रूरी हो।

अगर भारत इन सिद्धांतों को अपनाता है, तो हम जिम्मेदार AI को बढ़ावा दे सकते हैं, जो हमारे संवैधानिक निजता अधिकार का सम्मान करे।

AI युग में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 की भूमिका

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 भारत में डेटा सुरक्षा का मुख्य आधार बनने जा रहा है। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी संस्था या कंपनी, चाहे वह AI सिस्टम चला रही हो या नहीं, यूज़र के डेटा का जिम्मेदारी से इस्तेमाल करे।

यह कानून कैसे मदद करता है:

  • AI डेवलपर्स को यूज़र की सहमति को गंभीरता से लेने के लिए मजबूर करता है।
  • यूज़र्स को अपने डेटा को देखने, सुधारने और हटवाने का अधिकार देता है।
  • डेटा लीक या नियमों के उल्लंघन पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है।
  • कंपनियों को “Data Protection by Design” अपनाने के लिए प्रेरित करता है, यानी डेटा सुरक्षा शुरुआत से ही सिस्टम का हिस्सा बने।

आप खुद अपनी निजता की रक्षा कैसे कर सकते हैं?

  • ऐप्स और डिवाइसेज़ की प्राइवेसी सेटिंग जरूर जांचें। देखें कि कौन-सा ऐप आपके कैमरा, माइक्रोफोन या लोकेशन तक पहुँच रहा है।
  • जानें कि कौन-सा डेटा लिया जा रहा है, किस काम के लिए और किसके साथ साझा किया जा रहा है।
  • अगर किसी सेवा (जैसे लोन, नौकरी आदि) से वंचित कर दिया गया है, तो पूछें कि उस निर्णय का आधार क्या था।
  • संवेदनशील डेटा साझा करने से बचें, जैसे बायोमेट्रिक, हेल्थ रिकॉर्ड्स, या लोकेशन डिटेल्स।
  • अगर कोई AI सिस्टम आपका डेटा प्रोफाइलिंग या विज्ञापनों के लिए इस्तेमाल कर रहा है, तो उससे बाहर निकलने या डेटा हटवाने का अनुरोध करें।
  • जब DPDP Act पूरी तरह लागू होगा, तब आप डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड के पास औपचारिक शिकायत कर सकते हैं।
  • जहाँ फेस रिकग्निशन या CCTV का इस्तेमाल होता है, वहाँ निजता पर सवाल उठाना आपका अधिकार है।
  • निजता और डेटा सुरक्षा के प्रति जागरूक रहें और दूसरों को भी शिक्षित करें।
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निष्कर्ष

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने हमारी ज़िंदगी को आसान और स्मार्ट बनाया है लेकिन इसके साथ आपकी निजता पहले से कहीं ज़्यादा खतरे में भी है। अब आपका डेटा सिर्फ वही नहीं है जो आप खुद साझा करते हैं, बल्कि वह भी है जो AI आपके बारे में समझता है, अनुमान लगाता है या आपके लिए निर्णय लेता है।

भारत में क़ानून ने इस दिशा में कई मजबूत कदम उठाए हैं जैसे कि निजता को मौलिक अधिकार मानना, डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट,2023 बनाना, और कंपनियों को यह ज़िम्मेदारी देना कि वे आपके डेटा को सुरक्षित रखें।

लेकिन अब भी चुनौतियाँ हैं, AI सिस्टम्स की पारदर्शिता की कमी, AI पर कोई अलग कानून न होना, निगरानी का डर, और एल्गोरिदम में छिपे भेदभाव।

AI के इस युग में निजता अपने आप नहीं मिलती, उसे समझना, माँगना और बचाना ज़रूरी है। सावधान रहें, जागरूक रहें, और अपने डेटा पर नियंत्रण बनाए रखें। क्योंकि अब आपका डेटा ही आपकी सबसे बड़ी ढाल है।

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FAQs

1. क्या AI मेरी जानकारी मेरी अनुमति के बिना इस्तेमाल कर सकता है?

नहीं, ज़्यादातर मामलों में नहीं। DPDP Act, 2023 के अनुसार, किसी भी व्यक्तिगत डेटा का इस्तेमाल करने के लिए आपकी सहमति जरूरी है, सिवाय कुछ वैध अपवादों के।

2. अगर किसी AI सिस्टम ने मुझे कोई सेवा देने से मना कर दिया और मुझे कारण नहीं बताया तो क्या करें?

आप उस संस्था या कंपनी से पूछ सकते हैं कि यह निर्णय किस आधार पर लिया गया था। अगर वे जानकारी नहीं देते, तो यह पारदर्शिता और जवाबदेही का उल्लंघन हो सकता है।

3. क्या सार्वजनिक स्थानों पर फेस रिकग्निशन या बायोमेट्रिक सिस्टम कानूनी है?

यह अपने आप गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन इसे निजता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए जैसे सीमित डेटा संग्रह, स्पष्ट उद्देश्य, सुरक्षा और मानवीय निगरानी।

4. अगर मेरे डेटा का दुरुपयोग AI सिस्टम से हो जाए, तो मुझे कब तक सूचना मिलेगी?

कानूनी ढाँचों के अनुसार (जैसे प्रस्तावित नियमों में), कंपनियों को 72 घंटे के भीतर डेटा उल्लंघन की सूचना देनी चाहिए।

5. क्या कानून बनने तक AI तकनीक रुक जाएगी?

नहीं। तकनीक लगातार आगे बढ़ती रहेगी। इसीलिए ज़रूरी है कि आप जागरूक रहें और मजबूत कानूनों की माँग करें। कानून समय के साथ विकसित होंगे, लेकिन आपकी सावधानी और समझदारी ही आपको सुरक्षित रखेगी।

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