AI द्वारा बनाए गए कॉन्ट्रैक्ट – क्या ये भारतीय कानून में वैध हैं?

Contracts created by AI – are they valid under Indian law

अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब इस बात को पूरी तरह बदल रही है कि कॉन्ट्रैक्ट (समझौते) कैसे बनाए, तय और पूरे किए जाते हैं। अब स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट ऑटोमेशन और AI आधारित कॉन्ट्रैक्ट मैनेजमेंट टूल्स के ज़रिए भारत में व्यापारिक कानूनों का तरीका भी बदल रहा है।

कॉन्ट्रैक्ट हर बिज़नेस और व्यक्तिगत लेन-देन की बुनियाद होते हैं। पहले इसमें दो इंसान शामिल होते थे, एक व्यक्ति ऑफर (प्रस्ताव) देता था और दूसरा उसे स्वीकार करता था।

लेकिन अब जब AI डिजिटल लेन-देन का अहम हिस्सा बन गई है, तो कुछ नए हालात सामने आ रहे हैं —

  • कॉन्ट्रैक्ट AI सॉफ्टवेयर से तैयार किए जा रहे हैं,
  • बातचीत या नेगोशिएशन AI चैटबॉट्स के ज़रिए हो रही है,
  • और समझौते अपने आप ब्लॉकचेन पर स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स के ज़रिए पूरे हो रहे हैं।

अब सबसे बड़ा कानूनी सवाल उठता है – क्या AI द्वारा बनाया गया कॉन्ट्रैक्ट भारतीय कानून के तहत वैध माना जा सकता है? क्या कोई गैर-मानव इकाई (non-human entity) कानूनी रूप से कॉन्ट्रैक्ट करने, सहमति देने या ज़िम्मेदारी निभाने की क्षमता रखती है?

इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि भारतीय कानून कॉन्ट्रैक्ट को कैसे परिभाषित करता है, कौन लोग इसमें शामिल हो सकते हैं, और AI की कानूनी स्थिति क्या है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

भारत में कोई कॉन्ट्रैक्ट कानूनी रूप से वैध कब माना जाता है?

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 10 के अनुसार, कोई कॉन्ट्रैक्ट तभी वैध होता है जब ये शर्तें पूरी हों —

  • प्रस्ताव और स्वीकृति (Offer and Acceptance) – एक पक्ष प्रस्ताव देता है और दूसरा उसे स्वीकार करता है।
  • स्वतंत्र सहमति (Free Consent) – सहमति ज़बरदस्ती, धोखे या गलत जानकारी से नहीं होनी चाहिए।
  • पात्र पक्ष (Competent Parties) – दोनों पक्ष समझदार हों, 18 वर्ष से अधिक उम्र के हों और कानूनी रूप से सक्षम हों।
  • वैध उद्देश्य और लाभ (Lawful Consideration and Object) – कॉन्ट्रैक्ट का उद्देश्य और लाभ कानूनी होना चाहिए।
  • स्पष्टता और पूरा करने की संभावना (Certainty and Possibility of Performance) – समझौता साफ़ और पूरा करने योग्य होना चाहिए।

ये सारे नियम इंसानों की भागीदारी को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, यानी ऐसे लोग या संस्थाएँ जो समझ सकते हैं और सहमति दे सकते हैं।

अब सवाल उठता है – क्या AI इन शर्तों को पूरा कर सकती है?

क्या AI को भारत में कानूनी पहचान मिल सकती है?

फिलहाल, भारत के कानून में AI को कोई कानूनी पहचान नहीं दी गई है। भारतीय कानून दो तरह के “व्यक्तियों” को मान्यता देता है —

  1. प्राकृतिक व्यक्ति (Natural Person) – यानी इंसान
  2. कानूनी व्यक्ति (Legal or Juridical Person) – जैसे कंपनी, ट्रस्ट या संस्था

AI इन दोनों में से किसी श्रेणी में नहीं आती। AI खुद से सोच नहीं सकती, इरादा नहीं बना सकती और अपने कार्यों की कानूनी जिम्मेदारी नहीं ले सकती। इसलिए, वर्तमान कानून के तहत AI अपने आप कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं कर सकती।

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अगर AI एजेंट बनकर कॉन्ट्रैक्ट करे तो क्या वह वैध है?

भारतीय कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति अपने एजेंट के माध्यम से भी कॉन्ट्रैक्ट कर सकता है।

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 182 से 238 एजेंट और प्रिंसिपल के संबंधों को नियंत्रित करती है।

उदाहरण के तौर पर अगर कोई कंपनी AI सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है जो अपने आप स्टॉक खत्म होने पर सप्लायर से ऑर्डर भेज देता है, तो सवाल उठता है, क्या ऐसा ऑर्डर कानूनी रूप से मान्य होगा? 

हाँ, होगा अगर वह AI सिस्टम किसी इंसान या कंपनी द्वारा प्रोग्राम या अधिकृत किया गया हो, और सप्लायर को यह वाजिब विश्वास हो कि AI उस कंपनी की ओर से काम कर रही है।

इस स्थिति में कानूनी जिम्मेदारी AI की नहीं, बल्कि उस कंपनी या व्यक्ति की होगी जिसने AI को इस्तेमाल किया।

यानी, AI केवल एक तकनीकी एजेंट की तरह काम करती है, आदेश देती नहीं, सिर्फ इंसान के दिए निर्देशों को पूरा करती है।

इलेक्ट्रॉनिक कॉन्ट्रैक्ट और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (IT Act), 2000 इलेक्ट्रॉनिक कॉन्ट्रैक्ट्स और डिजिटल सिग्नेचर को कानूनी मान्यता देता है।

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट धारा 10A की कहती है “सिर्फ इसलिए कोई कॉन्ट्रैक्ट अमान्य नहीं माना जाएगा कि वह इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बनाया गया है।”

इसका मतलब है कि ऑनलाइन बने या साइन किए गए कॉन्ट्रैक्ट भी पूरी तरह कानूनी रूप से वैध हैं, बस यह ज़रूरी है कि वे बाकी कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों (जैसे सहमति, क्षमता, वैध उद्देश्य आदि) को पूरा करें।

उदाहरण के तौर पर अगर कोई AI प्लेटफ़ॉर्म दो लोगों के बीच ई-कॉमर्स साइट पर डिजिटल कॉन्ट्रैक्ट करवाता है, तो वह कॉन्ट्रैक्ट वैध रहेगा क्योंकि उसमें मानव की सहमति और इरादा शामिल है।

लेकिन अगर AI खुद से कॉन्ट्रैक्ट तैयार करे, बातचीत करे या शर्तें स्वीकार करे, और इसमें कोई मानव निगरानी न हो, तो उसकी कानूनी वैधता संदिग्ध हो जाती है।

स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट और ब्लॉकचेन – ऑटोमेशन का नया युग

स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट एक ऐसा डिजिटल कॉन्ट्रैक्ट होता है जो ब्लॉकचेन पर स्टोर किया जाता है और अपने आप शर्तें पूरी होने पर लागू हो जाता है। इसमें किसी इंसान के हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं होती, सब कुछ प्रोग्राम किए गए कोड और डेटा पर निर्भर करता है।

उदाहरण के तौर पर:

  • अगर फ्लाइट 3 घंटे से अधिक देर हो, तो सिस्टम अपने-आप यात्री को मुआवज़ा भेज देता है।
  • खरीदार के पेमेंट करते ही, सिस्टम अपने-आप मालिकाना हक ट्रांसफर कर देता है।
  • सामान समय पर डिलीवर होते ही, स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट विक्रेता को भुगतान जारी करता है।

भारतीय कानून के अनुसार:

स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट वैध हैं, अगर शुरुआत में दोनों पक्षों के बीच साफ़-साफ़ सहमति हुई हो। बाद में जो कुछ होता है, वह सिर्फ़ अपने आप लागू होने की प्रक्रिया है।

इसलिए, ऐसे कॉन्ट्रैक्ट कानूनी रूप से लागू हैं, बशर्ते उनमें मानव सहमति शुरुआत में मौजूद हो। हालाँकि, अदालतों के लिए ऐसे मामलों में कुछ चुनौतियाँ आ सकती हैं — जैसे

  • डिजिटल एविडेंस को प्रमाणित करना,
  • जस्टिस जूरिस्डिक्शन तय करना,
  • और डिस्प्यूट रेसोल्यूशन की प्रक्रिया समझना।
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इसलिए, स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट भविष्य के लिए बहुत उपयोगी हैं, लेकिन उनके साथ कानूनी स्पष्टता और नियमन भी ज़रूरी है।

AI कॉन्ट्रैक्ट में जिम्मेदारी और जवाबदेही

अगर कोई AI सिस्टम गलती कर दे, जैसे गलत कीमत बता दे या कॉन्ट्रैक्ट की कोई शर्त छोड़ दे, तो सवाल उठता है, जिम्मेदार कौन होगा?

भारतीय कानून के अनुसार —

  • डेवलपर जिम्मेदार होगा, अगर गलती सॉफ्टवेयर की खराब डिजाइन या तकनीकी कमी से हुई हो।
  • यूज़र या कंपनी जिम्मेदार होगी, अगर गलती लापरवाही या ठीक से निगरानी न करने के कारण हुई हो।

यह नियम विकेरियस लाइबिलिटी (Vicarious Liability) के सिद्धांत से जुड़ा है यानी, मुख्य व्यक्ति अपने एजेंट द्वारा किए गए काम के लिए ज़िम्मेदार होता है।

क्योंकि AI की अपनी कोई कानूनी पहचान नहीं होती, इसलिए उसे न तो मुकदमे में पक्ष बनाया जा सकता है, न ही सज़ा दी जा सकती है।

AI द्वारा बनाए गए कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ी कानूनी चुनौतियाँ

AI से बने कॉन्ट्रैक्ट्स भारतीय कानून के तहत कई कानूनी सवाल खड़े करते हैं:

  • सहमति: AI के पास सोचने या समझने की क्षमता नहीं होती, इसलिए वह खुद से सहमति नहीं दे सकती। इसलिए हर कॉन्ट्रैक्ट में किसी इंसान या कानूनी संस्था की वास्तविक सहमति होना ज़रूरी है।
  • इरादा: कानूनी कॉन्ट्रैक्ट के लिए यह दिखाना ज़रूरी होता है कि दोनों पक्षों का इरादा कानूनी संबंध बनाने का था। AI सिर्फ़ आदेशों को निभाती है, इरादा नहीं बना सकती
  • ज़िम्मेदारी: अगर AI कोई गलती करे, तो सवाल उठता है – ज़िम्मेदार कौन होगा? डेवलपर, यूज़र या कंपनी? वर्तमान कानून में इसका स्पष्ट जवाब नहीं है, लेकिन आमतौर पर ज़िम्मेदारी उस इंसान या संस्था की मानी जाती है जिसने AI का उपयोग किया।
  • गलती या गलत जानकारी: अगर AI किसी शर्त को गलत समझ ले या डेटा में गड़बड़ी करे, तो डिस्प्यूट पैदा हो सकता है। ऐसे मामलों में अदालत यह देखेगी कि इंसान ने AI का इस्तेमाल कितनी सावधानी से किया।
  • कानूनी दायरा और पालन: अगर AI द्वारा बना कॉन्ट्रैक्ट ऑनलाइन या अलग-अलग देशों के बीच हुआ हो, तो यह तय करना मुश्किल होता है कि कौन-सा कानून लागू होगा और किस अदालत में मामला सुना जाएगा।

कॉन्ट्रैक्ट की प्रक्रिया में AI की भूमिका – हर कदम पर कानूनी स्थिति

कॉन्ट्रैक्ट की प्रक्रियाAI की भूमिकाभारत में कानूनी स्थिति
ड्राफ्टिंगAI कॉन्ट्रैक्ट के ड्राफ्ट या क्लॉज़ बनाता हैवैध – जब इंसान अंतिम मंजूरी देता है
नेगोशिएशनचैटबॉट शर्तें या ऑफर सुझाता हैवैध – अगर इंसान की सहमति हो
लागू करनास्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट अपने आप शर्तें पूरी करता हैवैध – अगर पहले इंसान ने सहमति दी हो
निगरानीAI समय और जिम्मेदारियों पर नज़र रखता हैकानूनी रूप से मान्य सहायक काम
डिस्प्यूट रेसोल्यूशनAI जोखिम या नतीजों का अनुमान लगाता हैसिर्फ़ सलाह – कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं

AI से बने कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए ज़रूरी सावधानियाँ

  • AI टूल का चयन सोच-समझकर करें: केवल ऐसे टूल चुनें जो डेटा एन्क्रिप्शन और गोपनीयता की गारंटी देते हों।
  • मानव वकील से समीक्षा कराएं: AI द्वारा तैयार किसी भी अनुबंध को बिना मानव समीक्षा के साइन न करें।
  • डिजिटल सिग्नेचर करें: ताकि अनुबंध की वैधता और टाइम – स्टाम्प प्रमाणित रहे।
  • संवेदनशील डेटा साझा न करें: AI टूल में केवल सामान्य जानकारी ही डालें, गोपनीय विवरण न डालें।
  • Disclaimer जोड़ें: जैसे “यह दस्तावेज़ AI द्वारा तैयार किया गया ड्राफ्ट है, अंतिम रूप वकील की सलाह पर आधारित है। “
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सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय

  • सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2021 में SUPACE (Supreme Court Portal for Assistance in Courts Efficiency) नाम का एक AI आधारित पोर्टल शुरू किया। इसका मकसद मशीन लर्निंग की मदद से केस से जुड़ी जानकारियों का विश्लेषण करना है। लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि AI का इस्तेमाल फैसले देने या जजमेंट लिखने में नहीं किया जाएगा।
  • हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी कहा कि AI टूल्स या चैटबॉट्स (जैसे ChatGPT) पर भरोसा करके किसी कानूनी या तथ्यात्मक मामले का फैसला नहीं किया जा सकता, क्योंकि इनकी जानकारी हमेशा भरोसेमंद नहीं होती।
  • केरल हाई कोर्ट ने तो अपनी नीति में साफ लिखा है कि किसी भी जजमेंट या अंतिम फैसले में AI का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि फैसले में तर्क और विवेक इंसानों का ही होना चाहिए, मशीनों का नहीं।

निष्कर्ष

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से कॉन्ट्रैक्ट बनाना अब पहले से ज़्यादा आसान और तेज़ हो गया है। लेकिन याद रखें – AI खुद न सोच सकता है, न महसूस कर सकता है, न ही ज़िम्मेदारी ले सकता है। कोई मशीन इंसाफ़ या इरादे को नहीं समझ सकती, यह काम सिर्फ इंसान कर सकता है।

इसी वजह से भारतीय कानून के अनुसार, किसी भी कॉन्ट्रैक्ट की वैधता के लिए वास्तविक इंसानों की सहमति और ज़िम्मेदारी जरूरी होती है। भविष्य में जब AI की गति इंसान की ईमानदारी और समझदारी के साथ जुड़ेगी, तभी सही मायने में स्मार्ट और सुरक्षित कॉन्ट्रैक्ट बन पाएंगे।

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FAQs

1. क्या AI भारत में कानूनी रूप से कॉन्ट्रैक्ट कर सकता है?

नहीं। AI को कानून में “व्यक्ति” नहीं माना गया है। कॉन्ट्रैक्ट तभी वैध होता है जब किसी इंसान या कंपनी की सहमति हो।

2. क्या स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट भारत में मान्य हैं?

हाँ, अगर इंसानों की सहमति से बने हों और उनका उद्देश्य कानूनी हो। इनमें सिर्फ़ काम अपने-आप (ऑटोमैटिक) होता है।

3. अगर AI से कॉन्ट्रैक्ट में गलती हो जाए तो ज़िम्मेदार कौन होगा?

वह इंसान या कंपनी जो AI का इस्तेमाल कर रही है। कानूनी ज़िम्मेदारी AI की नहीं, उपयोगकर्ता की होती है।

4. क्या AI द्वारा बनाए दस्तावेज़ अदालत में सबूत के रूप में मान्य हैं?

हाँ, अगर उनकी असलियत और स्रोत को डिजिटल तरीके से साबित किया जा सके तो मान्य हैं।

5. क्या भारत में AI कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए अलग कानून बनेंगे?

संभावना है हाँ। आने वाले डिजिटल इंडिया एक्ट जैसे कानूनों में AI की भूमिका, ज़िम्मेदारी और सहमति के नियम तय किए जा सकते हैं।

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