आज के समय में इंटरनेट हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। मोबाइल, सोशल मीडिया, बैंकिंग, UPI, ऑनलाइन शॉपिंग, सब कुछ डिजिटल हो चुका है। लेकिन इसी सुविधा का फायदा उठाकर साइबर अपराधियों ने “डिजिटल अरेस्ट” नामक एक नए प्रकार की ठगी शुरू कर दी है।
इस ब्लॉग में आप जानेंगे कि यह ठगी कैसे होती है, लोग इसमें फंस क्यों जाते हैं, और सबसे ज़रूरी, आप और आपका परिवार इससे कैसे बच सकते हैं।
डिजिटल अरेस्ट क्या है?
यह एक ऐसा ऑनलाइन स्कैम है जिसमें अपराधी खुद को पुलिस अधिकारी, CBI, NCB, साइबर यूनिट अधिकारी या कोर्ट स्टाफ बताकर लोगों को डराते हैं। वे कहते हैं कि:
- आपका आधार कार्ड,
- आपका बैंक अकाउंट,
- या आपके नाम से भेजा गया कूरियर,
किसी गंभीर अपराध में शामिल पाया गया है। फिर वे कहते हैं कि आपको तुरंत “वीडियो कॉल पर जांच” में रहना होगा, और वहीं से अरेस्ट की घोषणा कर दी जाती है। इसे वे “डिजिटल अरेस्ट” या “वर्चुअल कस्टडी” कहते हैं।
इस स्कैम में अपराधी “जमानत”, “क्लियरेंस”, या “कंप्लेंस फीस” के नाम पर पैसे ठगते हैं।
यह स्कैम पिछले 2 वर्षों में भारत में तेजी से बढ़ा है। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, पुणे समेत कई शहरों में हजारों लोग इसका शिकार बने हैं।
असल में, पुलिस कभी भी फोन, वीडियो कॉल, या WhatsApp के माध्यम से किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती। इसलिए इस ब्लॉग का उद्देश्य है – लोगों को डिजिटल अरेस्ट स्कैम की पहचान, कानूनी अधिकार और सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूक करना।
लोग इस डिजिटल अरेस्ट वाले स्कैम के झांसे में क्यों आ जाते हैं?
डिजिटल अरेस्ट का पूरा खेल डर पैदा करने पर चलता है। ठग लोगों को इतना डराते हैं कि वे खुद सोच नहीं पाते। लोग इसलिए फँस जाते हैं क्योंकि:
- कॉल करने वाला बहुत ही सरकारी और आधिकारिक तरीके से बात करता है
- नकली आईडी, लोगो और वीडियो कॉल दिखाकर भरोसा दिलाता है
- अरेस्ट, FIR, पासपोर्ट रद्द जैसे डरावने शब्द बोलकर धमकाता है
- डर के कारण व्यक्ति घबरा जाता है और सही सोचने की क्षमता खो देता है
- ठग पीड़ित को अकेले में रखता है ताकि वह किसी से मदद न माँगे
- वे खुद को असली पुलिस या सरकारी एजेंसी का अधिकारी बताते हैं
यहाँ तक कि डॉक्टर, बुज़ुर्ग, और बड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोग भी इसका शिकार हो चुके हैं।
डिजिटल अरेस्ट स्कैम कैसे काम करता है?
डिजिटल अरेस्ट एक ऐसा अपराध है जिसमें अपराधी फोन या वीडियो कॉल के माध्यम से किसी व्यक्ति को धमकाकर यह विश्वास दिलाते हैं कि वह किसी बड़े अपराध में फँस गया है।
1. ठग पहले कॉल करते हैं और खुद को अधिकारी बताते हैं:
- वे कहते हैं मैं CBI से बोल रहा हूँ। आपकी आईडी अपराध में पाई गई है।
- NCB ने आपके कूरियर में ड्रग्स पाए हैं।
- आपके बैंक अकाउंट से मनी-लॉन्ड्रिंग हुई है।
- आवाज़ सख्त होती है और भाषा प्रोफेशनल।
2. झूठा आरोप लगाया जाता है जैसे –
- आपके आधार का दुरुपयोग
- कूरियर में नकली पासपोर्ट
- अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्करी
- आतंकवादी गतिविधि
- मनी लॉन्ड्रिंग
- पीड़ित डर जाता है और ठग की बातें सच लगने लगती हैं।
3. फिर कहा जाता है कि:
“आप अभी गिरफ्तार हैं” और व्यक्ति को “वीडियो कॉल” पर रखा जाता है। यह प्रक्रिया 2–6 घंटे तक चल सकती है।
4. पैसे माँगे जाते हैं:
- वे कहते हैं “कोर्ट फाइन जमा करो”
- “क्लियरेंस फीस भरें”
- “डिजिटल जमानत चाहिए”
- और UPI, IMPS, या ग्लोबल पेमेंट लिंक भेजते हैं।
5. पीड़ित से निजी जानकारी ली जाती है:
जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक लॉगिन, OTP की जानकारी
स्कैमर्स पैसे कैसे ऐंठते हैं?
जब पीड़ित डर जाता है, तो ठग तुरंत पैसे माँगना शुरू कर देते हैं।
- वे कहते हैं तुरंत पैसे ट्रांसफ़र करो।
- यह सिक्योरिटी डिपॉज़िट है, बाद में वापस मिल जाएगा।
- वॉरंट रोकना है तो फीस देनी होगी।
- यह कानूनी प्रक्रिया है, अभी भुगतान करो।
पैसे आमतौर पर इन जगहों पर भेजवाए जाते हैं:
- नकली बैंक खातों में
- पेमेंट वॉलेट और UPI IDs पर
- क्रिप्टो वॉलेट में
- गिफ्ट कार्ड खरीदकर
- फर्जी सरकारी खातों में
जैसे ही आप पैसे भेजते हैं—ठग तुरंत उन्हें आगे ट्रांसफ़र कर देते हैं, और पैसा वापस पाना बेहद मुश्किल हो जाता है।
क्या डिजिटल अरेस्ट भारत में कानूनी है?
नहीं। भारत में “डिजिटल अरेस्ट” नाम की कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है। कोई भी भारतीय पुलिस, CBI, NIA या सरकारी विभाग:
- फोन पर किसी को गिरफ्तार नहीं करता,
- पैसे नहीं माँगता,
- वीडियो कॉल पर जांच नहीं करता,
- बिना नोटिस बैंक खाता फ्रीज़ नहीं करता,
- FIR बिना बताए किसी को धमकाता नहीं,
- व्हाट्सऐप से कानूनी कार्रवाई नहीं करता।
- अगर कोई आपको कॉल या ऑनलाइन चैट में अरेस्ट की धमकी दे – वह एक स्कैम है
वास्तविक पुलिस प्रक्रिया क्या होती है?
भारतीय कानून में यह नियम साफ़ हैं:
- फिज़िकल अरेस्ट: पुलिस आपके घर/ऑफ़िस में आती है, पहचान पत्र दिखाती है और प्रक्रिया लिखित होती है।
- लिखित नोटिस: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35(3) के तहत अरेस्ट से पहले लिखित नोटिस दिया जाता है।
- पैसे की कोई मांग नहीं: सरकारी अधिकारी ऑनलाइन पैसे नहीं लेते।
- कोई गुप्त जांच नहीं: पुलिस आपको कभी नहीं कहती कि “किसी को मत बताना।”
- कानूनी मदद का अधिकार: आप किसी भी समय वकील से बात कर सकते हैं।
डिजिटल अरेस्ट कॉल आने पर तुरंत क्या करें?
- शांत रहें: स्कैमर्स का पहला लक्ष्य आपको डराना होता है। अगर आप घबराएँगे, तो वे आपको अपनी बात मानने पर मजबूर कर देंगे। इसलिए सावधानी से सोच समझके आगे कदम ले।
- कॉल तुरंत काट दें: ऐसे लोगों से बहस करने की ज़रूरत नहीं है। बस तुरंत कॉल काट दें। अगर आप लाइन पर बने रहते हैं, तो वे बार-बार डराकर दबाव बढ़ाएँगे।
- कभी पैसे न भेजें: कोई भी सरकारी एजेंसी फोन पर पैसे नहीं माँगती। इसलिए “बेल”, “वेरिफिकेशन”, “वॉरंट रोकने” के नाम पर पैसे बिल्कुल नहीं भेजने चाहिए।
- अपने दस्तावेज़ बिल्कुल शेयर न करें: आधार, पैन, बैंक डिटेल, ओटीपी या फोटो कुछ भी न भेजें। ये लोग आपकी पहचान और बैंक अकाउंट को निशाना बनाते हैं।
- वीडियो कॉल पर बिल्कुल न रहें: स्कैमर्स वीडियो कॉल का इस्तेमाल आपको डराने, रिकॉर्ड करने या आपकी लोकेशन समझने के लिए करते हैं। तुरंत कॉल बंद कर दें।
- नज़दीकी पुलिस स्टेशन में कॉल करें: स्थानीय पुलिस आपकी मदद करेगी और तुरंत बताएगी कि यह कॉल पूरी तरह फर्जी है। इससे आपका डर भी कम हो जाता है।
अगर आपने पहले ही पैसे ट्रांसफर कर दिए तो क्या करें?
- 1930 पर शिकायत दर्ज करें: यह भारत की राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन है। यहाँ तुरंत कॉल करें ताकि समय रहते उचित कार्रवाई हो सके।
- cybercrime.gov.in पर ऑनलाइन शिकायत दें: इस वेबसाइट पर पूरी जानकारी दर्ज करने से पुलिस को जांच शुरू करने में मदद मिलती है, और पैसे ट्रैक होने की संभावना भी बनती है।
- अपने बैंक को तुरंत बताएं: ट्रांज़ैक्शन ID, समय और राशि बताकर रिवर्सल या होल्ड के लिए अनुरोध करें।
- ज़रूरत पड़े तो खाता फ्रीज़ कराएँ: यदि संदेह है कि और ट्रांज़ॅक्शन हो सकते हैं, बैंक से खाते को अस्थायी रोकने के लिए कहें।
- स्थानीय थाने में FIR दर्ज कराएँ: साइबर क्राइम, फ्रॉड की धाराएं और IT एक्ट के प्रावधानों का उल्लेख कर के शिकायत दर्ज कराएँ।
- सभी सबूत संभाल कर रखें: WhatsApp चैट, कॉल रिकॉर्डिंग, स्क्रीनशॉट, बैंक स्लिप, ट्रांज़ैक्शन ID और कोई भी संदेश सुरक्षित रखें।
डिजिटल अरेस्ट को कौन सा कानून नियंत्रित करता है?
भारतीय न्याय संहिता 2023
| धारा | विषय | इसका मतलब |
| 318 | धोखाधड़ी | किसी व्यक्ति को झूठ बोलकर या फर्जी जानकारी देकर पैसे ठगना। |
| 316 | आपराधिक विश्वासघात | किसी का भरोसा तोड़कर आर्थिक नुकसान पहुँचाना। |
| 351 | आपराधिक धमकी | किसी को डराकर पैसे या लाभ लेना। |
| 129 | जबरन काम करवाना | व्यक्ति को डराकर या दबाव डालकर कोई काम करवाना। |
इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000
| धारा | विषय | इसका मतलब |
| 66C | पहचान की चोरी | किसी की पहचान, डॉक्यूमेंट या डिजिटल डिटेल का गलत इस्तेमाल करना। |
| 66D | कंप्यूटर/इंटरनेट से ठगी | ऑनलाइन माध्यम से किसी को धोखा देकर पैसे लेना। |
इन अपराधों की सज़ा आमतौर पर 3 साल से 7 साल की जेल तक हो सकती है।
भारत में डिजिटल अरेस्ट घोटालों में वृद्धि क्यों देखी जा रही है?
- लोगों में डिजिटल जानकारी की कमी होती है: कई लोग ऑनलाइन ठगी के तरीकों को नहीं जानते, इसलिए वे नकली कॉल, लिंक और सरकारी नामों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं।
- कानून-व्यवस्था का डर जल्दी लग जाता है: पुलिस, FIR या गिरफ्तारी का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं, और सोच-विचार किए बिना ठगों की बात मान लेते हैं।
- ऑनलाइन काम और फोन कॉल पर निर्भरता बढ़ गई है: वर्क-फ्रॉम-होम और डिजिटल कम्युनिकेशन बढ़ने से लोग अनजान नंबरों और ऑनलाइन वेरिफिकेशन पर ज्यादा विश्वास करने लगे हैं।
- डिजिटल पेमेंट का अधिक इस्तेमाल होता है: UPI, वॉलेट और ऑनलाइन ट्रांसफर आसान होने से ठग तुरंत पैसे मंगाकर गायब हो जाते हैं, जिससे लोग फंस जाते हैं।
- लोग भावनात्मक दबाव में जल्दी आ जाते हैं: डर, घबराहट या तनाव में लोग जल्दी फैसले ले लेते हैं, और स्कैमर्स इसी कमजोरी का फायदा उठाकर पैसे वसूलते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश
- सुप्रीम कोर्ट को पता लगा कि भारत में लगभग ₹3,000 करोड़ तक की राशि “डिजिटल अरेस्ट” नाम के साइबर घोटाले में ठगे गए लोगों से ली गई है।
- कोर्ट ने इस समस्या को “शॉकिंग” बताया और कहा कि तुरंत कठोर दिशा-निर्देश जारी करना ज़रूरी है।
- कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया है कि ऐसे मामलों को केंद्रीय एजेंसियों यानी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (CBI) को ट्रांसफर किया जाए, और सख्त कार्रवाई हो।
- सुप्रीम कोर्ट ने “डिजिटल अरेस्ट” स्कैम के बढ़ते मामलों पर स्व-प्रेरित (suo motu) कार्रवाई शुरू की है।
- कोर्ट ने फर्जी कोर्ट ऑर्डर और जजों के हस्ताक्षर बनाकर घोटलों के मामले को “गंभीर चिंता का विषय” कहा है।
- यह स्कैम खासकर वरिष्ठ नागरिकों को निशाना बना रहा है, और इसमें कोर्ट और एजेंसियों के नाम का गलत इस्तेमाल हो रहा है।
- कोर्ट ने केंद्र सरकार, CBI और राज्य पुलिस को संयुक्त कार्रवाई करने का आदेश दिया है ताकि ये पूरी जालसाजी खोलकर सामने लाई जाए।
निष्कर्ष
डिजिटल अरेस्ट असल में डर दिखाकर किया जाने वाला साइबर फ्रॉड है। ठग इसलिए पुलिस या सरकारी अधिकारी बनते हैं क्योंकि लोग “FIR” या “गिरफ्तारी” सुनकर घबरा जाते हैं। सच्चाई यह है कि कोई भी असली अधिकारी कभी फोन या वीडियो कॉल पर पैसे नहीं मांगता और न ही ऑनलाइन गिरफ्तारी की धमकी देता है। जब आप शांत रहते हैं, जानकारी जांचते हैं और जल्द निर्णय नहीं लेते, तो ये स्कैम आप पर असर नहीं कर पाते। अपने और अपने परिवार को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है—जागरूक रहना, सवाल पूछना और किसी भी संदिग्ध कॉल की तुरंत शिकायत करना।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. क्या पुलिस वीडियो कॉल पर किसी को गिरफ्तार कर सकती है?
नहीं। भारत में वीडियो कॉल, व्हाट्सऐप, स्काइप या किसी ऑनलाइन तरीके से गिरफ्तारी का कोई कानून नहीं है।
2. अगर कोई कहे कि आप ‘डिजिटल अरेस्ट’ में हैं, तो क्या करें?
फौरन कॉल काट दें, कोई जानकारी न दें, और तुरंत नेशनल साइबर क्राइम पोर्टल (cybercrime.gov.in) पर शिकायत करें।
3. कैसे पहचानें कि कॉल फर्जी है?
सच्चे अधिकारी कभी पैसे नहीं मांगते, तुरंत गिरफ्तारी की धमकी नहीं देते, और वीडियो कॉल पर रोककर नहीं रखते। ये सब साफ संकेत हैं कि कॉल नकली है।
4. अगर मैं डिजिटल अरेस्ट स्कैम में पैसे दे दूँ, तो क्या वापस मिल सकते हैं?
हाँ, लेकिन तुरंत कार्रवाई जरूरी है। साइबर पुलिस में जल्दी शिकायत करें, जल्दी रिपोर्ट से खाते फ्रीज़ होने की संभावना बढ़ती है।
5. क्या स्कैमर डिजिटल अरेस्ट के दौरान मेरी लोकेशन ट्रैक कर सकता है?
आमतौर पर नहीं, जब तक आप लोकेशन शेयर न करें, कोई ऐप इंस्टॉल न करें, या OTP जैसी जानकारी न दें। अनजान लिंक कभी न खोलें।



एडवोकेट से पूछे सवाल