कोर्ट से सम्मन आने पर क्या करें? – जानिए पूरी कानूनी प्रक्रिया

What to do when you receive a court summons – Learn the complete legal process

एक कोर्ट सम्मन आमतौर पर बिना किसी शोर-शराबे के प्राप्त हो जाता है कभी एक लिफाफे के रूप में, तो कभी फोन पर संदेश के रूप में। लेकिन इसके साथ आने वाली चिंता अक्सर बहुत भारी महसूस होती है। लोगों को वास्तव में कोर्ट से नहीं, बल्कि अज्ञात स्थिति से डर लगता है।

सम्मन का क्या अर्थ है? आगे क्या प्रक्रिया होगी? कहीं कोई भूल तो नहीं हो जाएगी? ऐसे प्रश्न किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकते हैं।

वास्तविकता यह है कि कोर्ट सम्मन न तो कोई सज़ा है और न ही कोई फैसला। यह केवल एक सूचना है कि आपको एक कानूनी प्रक्रिया में उपस्थित होना है, जिसका अधिकार आपको कानून देता है।

यह ब्लॉग समझाता है कि सम्मन क्या होता है, क्यों भेजा जाता है, कैसे जवाब देना है, कितने समय में कार्रवाई करनी है, और आपके कानूनी अधिकार क्या-क्या हैं।

चाहे मामला सिविल हो, क्रिमिनल हो, चेक बाउंस, पारिवारिक झगड़ा, प्रॉपर्टी डिस्प्यूट या कोई अन्य मुद्दा, यह पूरी गाइड आपको स्थिति को शांत और कानूनी तरीके से संभालने में मदद करेगी।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कोर्ट सम्मन क्या होता है?

कोर्ट सम्मन एक लिखित आदेश है, जिसमें कोर्ट आपको यह बताती है कि आपको:

  • कोर्ट में हाज़िर होना है,
  • लिखित जवाब देना है,
  • दस्तावेज़ जमा करने हैं, या
  • आपके खिलाफ की गई शिकायत का उत्तर देना है।

यह न सज़ा है, न गिरफ्तारी वारंट, यह सिर्फ़ कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है।

कोर्ट सम्मन के प्रकार

1. सिविल सम्मन: यह सिविल मामलों में भेजा जाता है, जैसे: पारिवारिक झगड़ा, प्रॉपर्टी डिस्प्यूट, कॉन्ट्रैक्ट संबंधी मामले, पैसे की रिकवरी, इन्जंक्शन वाले केस। इसमें आपको कोर्ट में आकर अपना लिखित बयान देना होता है।

2. क्रिमिनल सम्मन: यह क्रिमिनल मामलों में भेजा जाता है, जैसे: चेक बाउंस, FIR वाले मामले, छोटे अपराध, BNSS में सम्मन वाले केस, इसका मतलब है कि कोर्ट आपकी मौजूदगी चाहती है।

3. फेमली कोर्ट सम्मन: यह पारिवारिक मामलों में भेजा जाता है, जैसे: तलाक के केस, बच्चे की कस्टडी, मेंटेनेंस का केस, घरेलू हिंसा के मामले, इसमें आपको कोर्ट में उपस्थित होकर अपना पक्ष रखना होता है।

4. कंस्यूमर कोर्ट सम्मन: जब किसी कंपनी, दुकान, बैंक, बीमा या सर्विस प्रोवाइडर द्वारा गलत सेवा दी जाती है, तो कंस्यूमर कोर्ट दोनों पक्षों, शिकायतकर्ता और कंपनी/सर्विस प्रोवाइडर को सम्मन भेजती है। इसमें आपको जवाब और दस्तावेज़ जमा करने होते हैं।

सम्मन क्यों जारी किया जाता है?

सम्मन तब भेजा जाता है जब:

  • किसी ने आपके खिलाफ केस दर्ज किया हो।
  • कोर्ट को आपकी गवाही या मौजूदगी की ज़रूरत हो।
  • कुछ दस्तावेज़ या आपका बयान चाहिए हो।
  • किसी कानूनी विवाद में आपका नाम शामिल हो।
  • कोर्ट आपके जवाब या स्पष्टीकरण चाहती हो।
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यह हमेशा नकारात्मक नहीं होता। कई बार आपको सिर्फ़ गवाह के रूप में भी सम्मन भेजा जाता है, न कि आरोपी के रूप में।

सम्मन मिलने के तुरंत बाद क्या करें?

  • घबराएँ नहीं — सम्मन सज़ा या गिरफ्तारी का वॉरंट नहीं, यह केवल कोर्ट में आने का आदेश है। शांत रहें हमेशा।
  • सम्मन ध्यान से पढ़ें — तारीख, कोर्ट, केस नंबर और कारण नोट करें; गलतियों पर तुरंत नोटिस दें। अपने पास रखें।
  • केस की कॉपी लें — कोर्ट या संबंधित वकील से पूरा दस्तावेज़ प्राप्त कर अपनी कॉपी सुरक्षित रखें। बाद में दिखाएँ।
  • फौरन एक अनुभवी वकील से संपर्क करें — वे सम्मन समझकर कानूनी सलाह व अगले कदम बताएँगे। फोन कर तुरंत मिलें।
  • वकील से वैधता जाँचें — क्या सम्मन वास्तविक है, मामले की पहचान और परतीक्षिप्त जवाब तैयार करें। दस्तावेज़ साथ लेकर जाएँ।
  • कोर्ट में पेशी की तैयारी करें — वकील से दलीलें, दस्तावेज़ और गवाह व्यवस्थित कर कोर्ट में समय पर उपस्थित रहें।
  • सम्मन को अनदेखा न करें — नज़रअंदाज़ करने से जुरमाना, वॉरंट या अतिरिक्त क़ानूनी परेशानी बढ़ सकती है। समय रहते समाधान।

सम्मन वैध है या फर्जी? – कैसे पहचाने?

आजकल कई लोग डराने या पैसे वसूलने के लिए फर्जी सम्मन भेजते हैं।

फ़र्ज़ी सम्मन की पहचान:

  • कोर्ट की ऑफिसियल सील नहीं होती।
  • जज के असली साइन नहीं होते।
  • केस नंबर कोर्ट पोर्टल पर नहीं मिलता।
  • WhatsApp या अज्ञात ईमेल से सम्मन आता है।
  • पैसों की मांग की जाती है।
  • दस्तावेज़ की भाषा और फॉर्मेट सही नहीं होता।

फ़र्ज़ी सम्मन मिले तो क्या करें? फ़र्ज़ी सम्मन मिलने पर तुरंत साइबर सेल या लोकल पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाएं।

असली सम्मन हमेशा आधिकारिक तरीके से आता है। यदि कुछ भी संदिग्ध लगे, पहले जाँच करें और फिर पुलिस/साइबर सेल में रिपोर्ट करें।

क्रिमिनल सम्मन आने पर क्या करें?

क्रिमिनल सम्मन थोड़ा गंभीर माना जाता है, इसलिए इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। नीचे हर स्थिति के लिए आसान और स्पष्ट मार्गदर्शन दिया गया है।

यदि आप आरोपी के रूप में बुलाए गए हैं:

  • वकील से तुरंत संपर्क करें: वकील आपके केस, आरोप और सम्मन देखकर यह तय करेगा कि कौन-सी बेल सबसे सुरक्षित और जल्दी मिल सकती है।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 35 का नोटिस और सम्मन का अंतर समझें: 35 BNSS का नोटिस सिर्फ पूछताछ के लिए होता है, जबकि सम्मन में कोर्ट में उपस्थित होना कानूनी रूप से अनिवार्य होता है।
  • कोर्ट में समय पर उपस्थित रहें: अगर आप तय तारीख पर नहीं गए, तो कोर्ट इसे जानबूझकर गैर-हाज़िरी मानेगा और आपके खिलाफ सख्त आदेश दे सकता है।
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यदि आप गवाह के रूप में बुलाए गए हैं:

  • गवाही के लिए बुलाना सामान्य प्रक्रिया है: अगर आप किसी घटना या तथ्य के साक्षी हैं, तो अदालत आपकी गवाही सुनकर सच्चाई की पुष्टि करती है।
  • अनुपस्थित होने पर कोर्ट बेलेबल वारंट निकाल सकता है: अगर आप बार-बार गैरहाज़िर रहे, तो कोर्ट आपकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए बेलेबल वारंट जारी कर सकता है।

यदि आप शिकायतकर्ता हैं:

  • यह आपके केस की आगे की कार्रवाई है: सम्मन बताता है कि आपका मामला सुनवाई के लिए स्वीकार हुआ और अब अगला कदम कोर्ट के सामने प्रस्तुत होना है।
  • कोर्ट आपकी मौजूदगी से केस आगे बढ़ता है: आपका समय पर पहुँचना आवश्यक है ताकि कोर्ट आपकी शिकायत पर उचित आदेश दे सके और सुनवाई में देरी न हो।

सिविल सम्मन आने पर क्या करें?

1. रिटेन स्टेटमेंट (WS) समय पर दाखिल करें: सिविल केस में आपको अपने पक्ष का लिखित जवाब देना होता है, ताकि कोर्ट जान सके कि आप आरोपों को कैसे देखते हैं।

2. 30 दिन की समय सीमा का पालन करें: सम्मन मिलने के बाद WS दाखिल करने की कानूनी समय सीमा 30 दिन है, इसलिए देर करने से आपका पक्ष कमजोर हो सकता है।

3. रिकवरी केस में भुगतान वाले दावों को समझें: बैंक, संस्थान या व्यक्ति आपके ऊपर बकाया रकम का दावा करते हैं, इसलिए दस्तावेज़ और ट्रांजैक्शन की जानकारी वकील को तुरंत दें।

4. कोर्ट में उपस्थित न होने पर एक्स पार्टी आर्डर हो सकता है: अगर आप सम्मन पर कोर्ट में नहीं गए, तो कोर्ट बिना आपका पक्ष सुने, पूरा फैसला सामने वाले के पक्ष में दे सकता है।

5. सिविल सम्मन में मेडिएशन का विकल्प भी मिलता है: कई बार कोर्ट दोनों पक्षों को बातचीत से मामला सुलझाने का मौका देता है, जिससे बिना लंबी सुनवाई के विवाद खत्म हो सकता है।

फ़ैमिली कोर्ट सम्मन – तलाक़, मेंटेनेंस, DV केस

फ़ैमिली कोर्ट सम्मन का उद्देश्य दोनों पक्षों को सुनना और मामला सही तरीके से आगे बढ़ाना होता है।

  • तलाक मामलों में – सबसे पहले काउंसलिंग करवाई जाती है।
  • मेंटेनेंस मामलों में – आपकी आय और खर्च से जुड़े दस्तावेज़ मांगे जाते हैं।
  • डोमेस्टिक वायलेंस मामलों में – प्रोटेक्शन अफसर प्रक्रिया में शामिल होता है।
  • चाइल्ड कस्टडी मामलों में – अदालत बच्चे के हित को सबसे पहले देखती है।

सम्मन को नज़रअंदाज़ करने पर क्या होता है?

सम्मन को नज़रअंदाज़ करना सबसे बड़ी गलती मानी जाती है। ऐसा करने से कोर्ट आपके खिलाफ सख्त कदम उठा सकता है।

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संभावित परिणाम:

  • एक्स पार्टी आर्डर कोर्ट आपके बिना ही फैसला दे देता है।
  • बेलेबल वारंट पुलिस आपको कोर्ट में लाने के लिए वारंट जारी कर सकती है।
  • नॉन – बेलेबल वारंट पुलिस मौके पर ही बिना बेल के गिरफ्तारी कर सकती है।
  • संपत्ति की कार्रवाई कुछ मामलों में कोर्ट आपके सामान या संपत्ति पर कार्रवाई कर सकता है।
  • जुर्माना या पेनल्टी कोर्ट गैर-हाज़िरी पर फाइन लगा सकता है।

इसलिए सम्मन को कभी भी नज़रअंदाज़ न करें, हमेशा समय पर कार्रवाई करें।

सम्मन और वारंट में अंतर

सम्मनवारंट
सिर्फ एक नोटिसगिरफ्तारी का आदेश
कोई गिरफ्तारी नहींपुलिस सीधे गिरफ्तार कर सकती है
आप खुद कोर्ट आते हैंआपको ज़बरदस्ती लाया जाता है
उतना गंभीर नहींगंभीर माना जाता है
आसानी से चुनौती दी जा सकती हैचुनौती देना मुश्किल होता है

अगर आप सम्मन पर समय से प्रतिक्रिया देते हैं, तो मामला कभी वारंट तक नहीं पहुँचता।

निष्कर्ष

सम्मन मिलना डराने वाली बात लगता है, लेकिन असल में यह कोर्ट का सिर्फ इतना कहना होता है “आकर अपनी बात बताइए।” बस इतना ही। गलती सम्मन नहीं होता, गलती उसे डर की वजह से नज़रअंदाज़ करना होता है।

जब आप प्रक्रिया को समझ लेते हैं, समय पर वकील से बात कर लेते हैं और अपना जवाब तैयार कर लेते हैं, तो पूरा मामला संभालना आसान हो जाता है।

सम्मन किसी परेशानी का अंत नहीं, बल्कि आपका पक्ष रखने का मौका होता है। अगर आप इसे समय पर, ईमानदारी से और समझदारी से संभालते हैं, तो कानूनी प्रक्रिया भी आपके साथ न्याय करती है।

जानकारी रखने से ही आप स्थिति पर नियंत्रण में रहते हैं।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. सम्मन मिलते ही क्या करना चाहिए?

तारीख, कोर्ट का नाम और केस नंबर चेक करें। फिर तुरंत वकील से बात करें ताकि कोई समय सीमा न छूटे।

2. क्या सम्मन को रद्द या चुनौती दी जा सकती है?

हाँ। अगर सम्मन गलत कारण से भेजा गया है, अधूरा है या कानूनी आधार नहीं है, तो वकील इसे क्वैश करवा सकता है।

3. अगर मैं सम्मन को नज़रअंदाज़ कर दूँ तो क्या होगा?

ऐसा करने पर कोर्ट बेलेबल या नॉन – बेलेबल वारंट जारी कर सकता है, या आपका एक्स पार्टी फैसला हो सकता है।

4. क्या मुझे पहली तारीख पर खुद कोर्ट जाना ज़रूरी है?

हर बार नहीं। कई मामलों में वकील आपकी ओर से उपस्थित होकर आपकी तरफ से पेश हो सकता है।

5. सम्मन  असली है या नकली—कैसे पहचानें?

कोर्ट की सील, जज के साइन, केस नंबर चेक करें और उसे ऑनलाइन या कोर्ट रजिस्ट्री से जरूर सत्यापित करें।

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