जब कोई बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है, तो कानून उसकी बात बहुत सावधानी और संवेदनशीलता से सुनता है। बच्चे डर, दर्द या सच को बड़े लोगों की तरह नहीं बता पाते, इसलिए कानून उनके लिए अलग और सुरक्षित प्रक्रिया बनाता है। इसमें बच्चे की सुविधा, सुरक्षा और मानसिक स्थिति को सबसे ज़्यादा महत्व दिया जाता है।
POCSO मामलों में बच्चे का बयान बहुत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन उसे कैसे लिया जा रहा है, यह भी उतना ही ज़रूरी है। मकसद एक ही है – बच्चा बिना डरे, बिना घबराए और बिना आरोपी को देखे अपनी बात आराम से बता सके।
यह ब्लॉग बच्चों के माता-पिता को समझने में मदद करेगा कि बच्चे का बयान कैसे लिया जाता है, कौन-कौन सी सुरक्षा दी जाती है और अदालत कैसे सुनिश्चित करती है कि बच्चे की गरिमा और भलाई हमेशा पहले आए।
बच्चे का बयान रिकॉर्ड करना क्यों ज़रूरी है?
पोक्सो मामलों में अक्सर बच्चे का बयान ही सबसे अहम सबूत होता है। क्योंकि बच्चा डरा हुआ, परेशान या दबाव में हो सकता है, इसलिए कानून ने उसके बयान रिकॉर्ड करने के लिए एक सुरक्षित और खास प्रक्रिया बनाई है। इसका दो मुख्य उद्देश्य न्याय दिलाना और बच्चे की सुरक्षा है।
अगर यह प्रक्रिया ठीक से न अपनाई जाए, तो अदालत में चुनौती दिया जा सकता है, जिससे केस में देरी होती है और न्याय मिलने में रुकावट आती है।
कानूनी आधार
1. पोक्सो एक्ट, 2012
- यह कानून बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों के लिए बनाया गया है।
- इसमें साफ़ कहा गया है कि बच्चे का बयान बच्चे-अनुकूल तरीके से ही रिकॉर्ड किया जाए।
- धारा 22 और 33: बच्चे का बयान जल्दी और सुरक्षित माहौल में रिकॉर्ड करना ज़रूरी है।
2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS)
- धारा 183: इसमें मजिस्ट्रेट द्वारा पीड़ित बच्चा/बच्ची का बयान रिकॉर्ड किया जाता है।
- इस प्रक्रिया का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि बयान पूरी तरह स्वैच्छिक हो, बच्चा किसी दबाव में न हो और जो भी बात लिखी जाए, वह बिल्कुल सही और उसके अनुसार हो।
बच्चे का बयान कब और कहाँ रिकॉर्ड किया जाता है?
कब रिकॉर्ड किया जाता है? FIR दर्ज होने के बाद बच्चे का बयान जल्दी से जल्दी लिया जाता है। जल्दी बयान लेने से बच्चे की याद साफ़ रहती है और किसी दबाव या डर की संभावना कम हो जाती है।
कहाँ रिकॉर्ड किया जाता है? बच्चे के घर, अस्पताल, या पुलिस स्टेशन में बने चाइल्ड फ्रेंडली कमरे में। जगह हमेशा सुरक्षित, शांत और बच्चे को आराम महसूस कराने वाली होनी चाहिए। बहुत ही संवेदनशील मामलों में अदालतें कोशिश करती हैं कि बयान पुलिस स्टेशन में न लिया जाए ताकि बच्चा न डरे।
बयान कौन रिकॉर्ड करता है? बच्चा/बच्ची का बयान मजिस्ट्रेट रिकॉर्ड करते हैं, पुलिस नहीं। ज़रूरत होने पर बच्चे के साथ सपोर्ट पर्सन (जैसे माता-पिता, सामाजिक कार्यकर्ता या काउंसलर) मौजूद हो सकता है। लड़की पीड़िता के मामलों में कोशिश की जाती है कि बयान महिला मजिस्ट्रेट द्वारा ही लिया जाए ताकि बच्चा अधिक सुरक्षित महसूस करे।
बच्चे का बयान रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया
स्टेप 1: प्री-इंटरव्यू तैयारी: बयान लेने से पहले बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार आसान भाषा में बताया जाता है कि क्या होने वाला है, क्यों यह जरूरी है और किस तरह से बात करनी है; साथ ही बच्चे को भरोसा दिलाया जाता है कि वह सुरक्षित रहेगा और सच बोलने पर उसे कोई सजा या डांट-डपट नहीं मिलेगी, इसलिए कोई उलझे हुए कानूनी शब्द नहीं इस्तेमाल किए जाते।
स्टेप 2: सपोर्ट पर्सन की मौजूदगी: बच्चे के साथ अक्सर कोई भरोसेमंद व्यक्ति रहता है -जैसे अभिभावक, चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसर या मनोवैज्ञानिक, ताकि बच्चा अकेला महसूस न करे, उसे हिम्मत मिले और बयान के समय कोई डर या दबाव न बने।
स्टेप 3: सवाल पूछना: सवाल बहुत सीधे, सरल और बिना रास्ता दिखाए पूछे जाते हैं, ताकि बच्चा अपनी बात अपने शब्दों में कह सके; आवाज़ का लहजा नरम रखा जाता है और ऐसे सवाल टाल दिए जाते है जो बच्चे को डराएँ, जैसे “क्या हुआ, तुम मुझे बता सकते हो?” जैसे खुले सवाल पूछे जाते हैं।
स्टेप 4: बयान रिकॉर्ड करना: मजिस्ट्रेट बच्चे की बात को वही लिखते हैं जैसा बच्चा बोल रहा है, और जरूरत हो तो ऑडियो या वीडियो में भी रिकॉर्ड किया जाता है ताकि बाद में अदालत में चीज़ें साफ़ और भरोसेमंद तरीके से सामने आ सकें, बच्चे को बार-बार वही घटना दोहराने के लिए मजबूर नहीं किया जाता ताकि उसका ट्रामा कम रहे।
स्टेप 5: स्वैच्छिकता सुनिश्चित करना: पूरी प्रक्रिया में यह देखा जाता है कि बच्चा किसी से डरकर, दबाव में या ज़बरदस्ती बयान न दे; बच्चे को समय दिया जाता है कि वह आराम से सोचकर अपनी बात कहे और बयान पूरी तरह उसकी मर्जी से दिया जाए।
स्टेप 6: सर्टिफिकेशन: अंत में मजिस्ट्रेट लिखित रूप से प्रमाणित करते हैं कि बयान बच्चे की इच्छा से, बच्चे-अनुकूल और सुरक्षित जगह पर, बिना किसी दबाव के रिकॉर्ड किया गया है, इसी वजह से यह बयान धारा 183 BNSS के तहत अदालत में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
चाइल्ड फ्रेंडली कोर्ट की भूमिका Top of Form
1. इन-कैमरा ट्रायल: मामले की सुनवाई बंद कमरे में होती है जहाँ न तो आम लोग होते हैं और न मीडिया। इससे बच्चे की पहचान और सम्मान सुरक्षित रहता है।
2. स्क्रीन या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग: बच्चे को ज़रूरत हो तो वह बयान अदालत में आए बिना या आरोपी को देखे बिना दे सकता है। इसके लिए कोर्ट स्क्रीन लगाती है या वीडियो कॉल के ज़रिए बयान लिया जाता है।
3. प्रशिक्षित कर्मचारी: जज, पुलिस और अभियोजन अधिकारी बच्चों की मनोविज्ञान से संबंधित ट्रेनिंग लेते हैं ताकि वे बच्चे से नरमी और समझदारी से बात कर सकें और उसे दोबारा ट्रामा न पहुँचे।
4. कम इंतज़ार समय: ऐसे मामलों की सुनवाई जल्दी की जाती है ताकि बच्चा लंबे समय तक तनाव में न रहे। कई मामलों में FIR दर्ज होने के 30 दिनों के अंदर बयान रिकॉर्ड करने का नियम है।
बयान रिकॉर्ड करते समय बच्चे के अधिकार
1. गोपनीयता का अधिकार: बच्चे का नाम, फोटो या पहचान किसी भी मीडिया या पब्लिक को नहीं बताई जा सकती।
2. साथ रहने का अधिकार: बच्चे के साथ पूरा समय एक सपोर्ट पर्सन—जैसे माता-पिता, सोशल वर्कर या काउंसलर, रह सकता है ताकि बच्चा सुरक्षित महसूस करे।
3. बार-बार पूछताछ से सुरक्षा: बच्चे से एक ही बात बार-बार पूछकर उसे परेशान नहीं किया जा सकता, अनावश्यक दोहराव से बचा जाता है।
4. सम्मान और सुरक्षा का अधिकार: पूरी प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया जाता है कि बच्चा डरा या असहज महसूस न करे। माहौल शांत, सुरक्षित और बच्चे-अनुकूल होता है।
5. कानूनी सहायता का अधिकार: बच्चे की तरफ से कानूनी मदद या अभिभावक भी मौजूद हो सकते हैं ताकि उसके अधिकार सुरक्षित रहें।
नाबालिगों के लिए विशेष ध्यान
1. उम्र की पुष्टि
पोक्सो एक्ट केवल 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर लागू होता है। इसलिए कभी-कभी जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल ID या अन्य दस्तावेज़ दिखाने पड़ सकते हैं।
2. दिव्यांग (Differently-Abled) बच्चे
अगर बच्चा सुन या बोल नहीं सकता या किसी विशेष सहायता की ज़रूरत है, तो उसके लिए विशेष शिक्षक, साइन-लैंग्वेज इंटरप्रेटर या अन्य विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं।
3. तनाव या आघात में बच्चे
अगर बच्चा मानसिक रूप से बहुत डर या सदमे में है, तो काउंसलर या मनोवैज्ञानिक पहले उसे समझाते और शांत करते हैं ताकि वह अपनी बात खुलकर और बिना डर के बता सके।
माता-पिता और अभिभावकों के लिए सुझाव
- हमेशा ध्यान रखें कि बच्चा खुद को सुरक्षित और सुना हुआ महसूस करे।
- मजिस्ट्रेट के पास बच्चे के साथ जाएँ, लेकिन उस पर कोई दबाव न डालें।
- सारे जरूरी कागज़ – जैसे मेडिकल रिपोर्ट, स्कूल रिकॉर्ड और अन्य सबूत, पहले से तैयार रखें।
- अगर ज़रूरत लगे, तो बच्चे के बयान से पहले किसी काउंसलर या कानूनी सलाहकार से बात कर लें।
- कोर्ट के निर्देशों का पालन करें, लेकिन पूरे समय बच्चे को भावनात्मक सहारा देते रहें।
निष्कर्ष
पोक्सो मामलों में बच्चे का बयान रिकॉर्ड करना कानूनी प्रक्रिया भी है और भावनात्मक रूप से बहुत संवेदनशील काम भी। कानून का उद्देश्य यह है कि बच्चे को डर, धमकी या मानसिक तनाव से बचाया जाए और साथ ही उसे न्याय भी मिले।
बच्चों के अनुकूल कोर्ट, सपोर्ट पर्सन, गोपनीयता की सुरक्षा और विशेष प्रक्रियाओं का मकसद यही है कि बच्चा सुरक्षित रहे और सच अदालत तक साफ़-साफ़ पहुँचे। जागरूकता, धैर्य और सही मार्गदर्शन परिवार की इस कठिन समय में बहुत मदद करते हैं और बच्चे की गरिमा तथा भावनाओं की रक्षा करते हैं।
आख़िरकार, कानून बच्चे को सशक्त बनाता है—उसे बिना डर के अपनी बात कहने का हक़ देता है, ताकि सच सामने आए और बच्चा कम से कम भावनात्मक चोट के साथ आगे बढ़ सके।
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FAQs
1. पोक्सो मामलों में बच्चे का बयान कैसे रिकॉर्ड किया जाता है?
बच्चे का बयान मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 183 BNSS के तहत लिया जाता है। यह प्रक्रिया बच्चे-अनुकूल, सुरक्षित और निजी माहौल में होती है। कई बार बयान ऑडियो-वीडियो में भी रिकॉर्ड किया जाता है ताकि बच्चे से बार-बार सवाल न करने पड़ें।
2. क्या बयान देते समय माता-पिता या सपोर्ट पर्सन बच्चे के साथ रह सकते हैं?
हाँ। कानून के अनुसार बच्चे के साथ उसका माता-पिता, अभिभावक, सपोर्ट पर्सन, काउंसलर या सोशल वर्कर रह सकते हैं ताकि बच्चा सुरक्षित और सहज महसूस करे।
3. क्या बच्चे को बयान देते समय आरोपी का सामना करना पड़ता है?
नहीं। पोक्सो में बच्चे की सुरक्षा सबसे ज़रूरी है। इसलिए स्क्रीन, अलग कमरे या वीडियो-कॉलरूप में व्यवस्था की जाती है ताकि बच्चा किसी भी समय आरोपी को न देखे।
4. अगर बच्चा बहुत डरा हुआ हो या बोल न पा रहा हो तो क्या होता है?
कोर्ट बच्चे को समय देता है, ज़रूरत पड़े तो काउंसलर की मदद ली जाती है। सवाल बहुत आसान और शांत तरीके से पूछे जाते हैं। बच्चा चाहे तो बयान छोटे-छोटे सत्रों में भी दे सकता है ताकि उसे तनाव न हो।
5. क्या दिव्यांग बच्चों को बयान देते समय विशेष सहायता मिलती है?
हाँ। ऐसे बच्चों के लिए विशेष शिक्षक, साइन-लैंग्वेज इंटरप्रेटर या अन्य सहायता उपलब्ध कराई जाती है ताकि बच्चा अपनी बात साफ़-साफ़ और आराम से बता सके।



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