कंपनी रजिस्टर होने के बाद कौन-से लीगल कम्प्लाइंस ज़रूरी हैं?

What legal compliances are required after the company is registered

बहुत से बिज़नेस शुरू करने वाले लोग यह मान लेते हैं कि कंपनी रजिस्टर होते ही उनका सारा कानूनी काम पूरा हो गया। लेकिन असल में कंपनी रजिस्ट्रेशन सिर्फ़ एक शुरुआत होती है। असली ज़िम्मेदारी कंपनी बनने के बाद शुरू होती है, जब कंपनी को अलग-अलग कानूनों, फाइलिंग और नियमों का पालन करना होता है।

ये सभी कम्प्लाइंस कोई विकल्प नहीं हैं, बल्कि कंपनी एक्ट 2013, इनकम टैक्स एक्ट 1961, GST कानून और अन्य लेबर व बिज़नेस कानूनों के तहत अनिवार्य होते हैं। अगर समय पर इनका पालन नहीं किया गया, तो भारी जुर्माना, सरकारी नोटिस, डायरेक्टर की अयोग्यता या यहां तक कि कंपनी का नाम रजिस्टर से हटाया जाना जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।

यह ब्लॉग आपको स्टेप-बाय-स्टेप समझाता है कि कंपनी रजिस्टर होने के बाद कौन-कौन से कानूनी कम्प्लाइंस ज़रूरी हैं, ताकि आप बिना किसी कानूनी चिंता के अपना बिज़नेस बढ़ा सकें और पूरी तरह सुरक्षित रह सकें।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कंपनी रजिस्ट्रेशन के तुरंत बाद ज़रूरी कम्प्लाइंस

कंपनी रजिस्टर होते ही कुछ जरूरी काम तुरंत पूरे करने होते हैं, आमतौर पर 30 दिन के अंदर

1. सर्टिफिकेट ऑफ़ इंकॉरपोरेशन (COI): कंपनी रजिस्टर होने के बाद रजिस्ट्रार COI जारी करता है। यह दस्तावेज़ साबित करता है कि आपकी कंपनी कानूनी रूप से मौजूद है। इसे सुरक्षित रखें, क्योंकि यह बैंक खाता खोलने, रजिस्ट्रेशन और भविष्य की फाइलिंग में चाहिए।

2. PAN और TAN

  • PAN (Permanent Account Number): इनकम टैक्स के लिए अनिवार्य।
  • TAN (Tax Deduction and Collection Account Number): अगर कंपनी TDS काटती है, तो ज़रूरी।
  • ये आमतौर पर रजिस्ट्रेशन के साथ जारी होते हैं, लेकिन सुनिश्चित करना आवश्यक है।

3. कंपनी बैंक अकाउंट खोलना: कंपनी को अपने नाम से करेंट अकाउंट खोलना होता है। सभी बिज़नेस लेन-देन इस खाते से ही होने चाहिए। जरूरी दस्तावेज़:

  • सर्टिफिकेट ऑफ़ इंकॉरपोरेशन
  • PAN
  • MOA & AOA
  • बोर्ड रेसोलुशन

4. पहला ऑडिटर नियुक्त करना: हर कंपनी को पहला स्टैच्यूटरी ऑडिटर 30 दिनों के अंदर बोर्ड द्वारा नियुक्त करना होता है।

  • ऑडिटर पहली AGM तक पद संभालेगा
  • ADT-1 फाइलिंग अनिवार्य है
  • ऑडिटर न लगाने पर जुर्माना लगता है

5. व्यवसाय की शुरुआत की घोषणा (INC-20A): रजिस्ट्रेशन के 180 दिनों के अंदर कंपनी को INC-20A फॉर्म फाइल करना होता है, जिसमें बताया जाता है कि कंपनी ने बिज़नेस शुरू कर दिया है।

  • सब्सक्राइबर्स द्वारा जमा किए गए फंड्स का प्रमाण
  • ROC द्वारा सत्यापन
  • इसके बिना कंपनी कानूनी रूप से बिज़नेस शुरू नहीं कर सकती
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स्टैच्यूटरी रजिस्टर और रिकॉर्ड का मेंटेनेंस

कंपनियों को अपने रजिस्टर्ड ऑफिस में कुछ जरूरी रजिस्टर और रिकॉर्ड रखना अनिवार्य होता है:

  • रजिस्ट्रार ऑफ़ मेंबर्स: कंपनी के सभी मेंबरों का रिकॉर्ड
  • रजिस्ट्रार ऑफ़ डायरेक्टर्स: सभी डायरेक्टरों की जानकारी
  • रजिस्ट्रार ऑफ़ चार्जेस: कंपनी के कर्ज या लेन-देन की जानकारी
  • मिनट्स ऑफ़ बोर्ड मीटिंग्स: बोर्ड मीटिंग की पूरी रिपोर्ट
  • शेयर सर्टिफिकेट: शेयर धारकों के प्रमाण पत्र

ये रिकॉर्ड हमेशा अपडेटेड रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर प्रस्तुत किए जाने चाहिए।

बोर्ड मीटिंग और जनरल मीटिंग

1. बोर्ड मीटिंग

  • पहली बोर्ड मीटिंग 30 दिनों के अंदर करनी होती है।
  • हर साल कम से कम 4 बोर्ड मीटिंग्स होनी चाहिए।
  • दो मीटिंग्स के बीच का अंतर 120 दिन से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
  • मीटिंग का उचित नोटिस और मिनट्स बनाना जरूरी है।

2. एनुअल जनरल मीटिंग (AGM)

  • पहली AGM फाइनेंशियल ईयर खत्म होने के 9 महीने के अंदर करनी होती है।
  • उसके बाद हर AGM 6 महीने के अंदर करनी अनिवार्य है।
  • AGM में कंपनी के वित्तीय रिपोर्ट, ऑडिटर की नियुक्ति और निदेशकों की पुष्टि जैसे महत्वपूर्ण मामलों को मंजूरी दी जाती है।

रजिस्ट्रार एनुअल कम्प्लाइंस

कंपनी चाहे लाभ में हो या नुकसान में, कुछ फॉर्म हर साल दाखिल करना अनिवार्य होते हैं:

  • AOC-4 – कंपनी के वित्तीय विवरण जमा करना, जिसमें बैलेंस शीट और लाभ-हानि (P&L) शामिल हैं। इसे AGM के 30 दिनों के भीतर फाइल करना होता है।
  • MGT-7 / MGT-7A – कंपनी का वार्षिक रिटर्न, जिसमें निदेशक, शेयरहोल्डर और पूंजी की जानकारी होती है। इसे AGM के 60 दिनों के भीतर जमा करना जरूरी है।

इनकम टैक्स कंप्लायंस

  • इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना – चाहे कंपनी को कोई आय हुई हो या नहीं, रिटर्न फाइल करना अनिवार्य है। सामान्यतः अंतिम तारीख 30 सितंबर होती है।
  • टैक्स ऑडिट – अगर कंपनी की टर्नओवर तय सीमा से अधिक हो, तो टैक्स ऑडिट कराना जरूरी है।
  • एडवांस टैक्स – अगर टैक्स देय राशि तय सीमा से अधिक हो, तो कंपनी को साल भर में किश्तों में एडवांस टैक्स देना पड़ता है।
  • GST कम्प्लायंस (यदि लागू हो): अगर आपकी कंपनी GST के तहत रजिस्टर है, तो आपको समय पर मासिक या त्रैमासिक (Monthly or quarterly) GST रिटर्न और वार्षिक GST रिटर्न दाखिल करना होगा, टैक्स का भुगतान करना होगा और ई-इनवॉइसिंग करनी होगी (यदि लागू हो), अन्यथा देरी पर ब्याज और जुर्माना लगाया जा सकता है।
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प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के लिए क्या कंप्लायंस हैं?

प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के लिए कुछ सख्त नियम होते हैं: अधिकतम 200 शेयरहोल्डर हो सकते हैं, शेयर ट्रांसफर पर सीमाएं होती हैं, ऑडिट करना अनिवार्य होता है और कुछ जानकारियाँ खुलासा करना जरूरी होता है। इन नियमों का पालन करने से कंपनी की विश्वसनीयता और निवेशकों का भरोसा बढ़ता है।

वन पर्सन कंपनी के लिए क्या कंप्लायंस हैं? 

इसमें कम्प्लायंस कम होते हैं, AGM करने की जरूरत नहीं होती, लेकिन सालाना फाइलिंग करना अनिवार्य है।

LLP के लिए कम्प्लायंस क्या हैं?

इसके लिए फॉर्म 8 और फॉर्म 11 भरना होता है और एनुअल रिटर्न्स या फिनांशियल स्टेटमेंट्स जमा करना जरूरी है।

कम्प्लायंस न करने पर क्या पेनल्टी हो सकती है?

अगर कंपनी अपने जरूरी कानून और नियमों का पालन नहीं करती है, तो इसके कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं:

  • भारी जुर्माना: नियमों का उल्लंघन करने पर सरकार या संबंधित प्राधिकरण बड़ी रकम का जुर्माना लगा सकते हैं।
  • डायरेक्टर्स का अयोग्य होना: अगर कंपनी कम्प्लायंस नहीं करती, तो उसके डायरेक्टर्स कुछ मामलों में अयोग्य भी हो सकते हैं।
  • कंपनी का स्ट्राइक-ऑफ: लगातार नियमों का पालन न करने पर कंपनी का नाम ROC (रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज) से हटा दिया जा सकता है।
  • कानूनी नोटिस: गैर-अनुपालन पर कंपनी को नोटिस या कोर्ट में कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
  • बिज़नेस की विश्वसनीयता में कमी: नियमों का पालन न करने से इन्वेस्टर्स, बैंक और पार्टनर्स का भरोसा कम हो सकता है, जिससे कंपनी की प्रतिष्ठा पर असर पड़ता है।

इसलिए, नियमित कम्प्लायंस करना बेहद जरूरी है। समय पर फाइलिंग और नियमों का पालन करने से कंपनी अनावश्यक कानूनी परेशानियों से बचती है और व्यवसाय सुचारू रूप से चलता रहता है।

बिज़नेस ग्रोथ के लिए कम्प्लायंस क्यों ज़रूरी है?

कानूनी नियमों और कम्प्लायंस का पालन करने से बिज़नेस को कई फायदे मिलते हैं: फंड जुटाना आसान होता है, बैंक लोन मिलते हैं, निवेशक आकर्षित होते हैं, कंपनी की प्रतिष्ठा बनी रहती है और कोर्ट केस से बचाव होता है। एक कम्प्लायंट कंपनी लंबे समय तक भरोसा और विश्वास हासिल करती है।

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नई कंपनियों से अक्सर होने वाली गलतियाँ

  • फाइलिंग की समय सीमा को मिस कर देना
  • NIL फाइलिंग (बिना लेन-देन वाली फाइलिंग) को नजरअंदाज करना
  • प्रोफेशनल सलाह न लेना
  • दस्तावेज़ों और रिकॉर्ड्स को सही तरीके से नहीं रखना
  • रजिस्टर और जरूरी रिकॉर्ड्स को अपडेट न करना

निष्कर्ष

कम्प्लायंस का मतलब सिर्फ नियमों का पालन नहीं, बल्कि बिज़नेस की सुरक्षा और स्थिरता है। नियमों का पालन करने से कंपनी में भरोसा, स्थिरता और लंबी अवधि का विकास आता है। अगर कम्प्लायंस को नजरअंदाज किया जाए, तो बाद में गंभीर कानूनी और वित्तीय समस्याएँ हो सकती हैं। रजिस्ट्रेशन के बाद की सभी कम्प्लायंस समझकर और पालन करके आप सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपकी कंपनी कानूनी रूप से सुरक्षित, प्रोफेशनल और भविष्य के अवसरों के लिए तैयार है। कम्प्लायंस सिर्फ़ कानूनी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समझदारी भरा बिज़नेस निर्णय है।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. कंपनी रजिस्ट्रेशन के बाद कौन-कौन से ज़रूरी कम्प्लायंस होते हैं?

कंपनी बनने के बाद ऑडिटर नियुक्त करना, बैंक खाता खोलना, INC-20A फाइल करना, बोर्ड मीटिंग करना और समय पर ROC, टैक्स व अन्य कानूनी फाइलिंग करना ज़रूरी होता है।

2. अगर कंपनी में कोई काम या कमाई नहीं है, तब भी ROC फाइलिंग ज़रूरी है क्या?

हाँ। हर रजिस्टर्ड कंपनी को AOC-4 और MGT-7 जैसी सालाना ROC फाइलिंग करनी होती है, चाहे कंपनी में कोई बिज़नेस या कमाई न हो।

3. अगर रजिस्ट्रेशन के बाद कम्प्लायंस पूरे न किए जाएँ तो क्या होता है?

कम्प्लायंस न करने पर जुर्माना लग सकता है, लीगल नोटिस आ सकते हैं, डायरेक्टर अयोग्य हो सकते हैं और कंपनी का नाम ROC से हटाया भी जा सकता है।

4. प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के लिए सालाना कौन-से कम्प्लायंस ज़रूरी होते हैं?

प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को सालाना फाइनेंशियल स्टेटमेंट, एनुअल रिटर्न, इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना और कानून के अनुसार ऑडिट कराना ज़रूरी होता है।

5. क्या कोई प्रोफेशनल कंपनी के कम्प्लायंस संभालने में मदद कर सकता है?

हाँ। कंपनी सेक्रेटरी, चार्टर्ड अकाउंटेंट या लीगल प्रोफेशनल समय पर फाइलिंग, डेडलाइन और दस्तावेज़ों का पूरा ध्यान रखकर कम्प्लायंस आसान बना सकते हैं।

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