क्या शादीशुदा व्यक्ति किसी ओर के साथ लिव-इन रिलेशन में रह सकता है? जानिए सुप्रीम कोर्ट का रुख

Can a married person live in a live-in relationship with someone else Learn the Supreme Court's stance.

आज के बदलते समाज में रिश्ते अब केवल पारंपरिक तरीकों तक सीमित नहीं हैं। बिना शादी के साथ रहने का विचार, जो पहले गलत माना जाता था, अब खासकर शहरों और युवा पीढ़ी में धीरे-धीरे स्वीकार किया जा रहा है। लेकिन जब किसी रिश्ते में एक व्यक्ति पहले से कानूनी रूप से शादीशुदा हो, तो मामला सिर्फ सामाजिक नहीं, बल्कि कानूनी तौर पर भी जटिल हो जाता है।

सवाल उठता है — क्या कोई शादीशुदा व्यक्ति बिना कानूनी जोखिम के किसी और के साथ रह सकता है? इसमें जुड़े सभी लोगों के अधिकार क्या हैं, और कानून इसे कैसे देखता है?

यह ब्लॉग इसी बारे में है। इसमें बताया गया है कि कानून ऐसे रिश्तों को कैसे देखता है, और इससे जुड़े अधिकार, जिम्मेदारियाँ और नतीजे क्या हो सकते हैं। इसे पढ़कर आप समझ पाएंगे कि शादीशुदा व्यक्ति, उसका जीवनसाथी और लिव-इन पार्टनर अपने अधिकार और जिम्मेदारियों को कैसे समझें और कानूनी तरीके से सुरक्षित रहें।

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लिव-इन रिलेशनशिप क्या है?

लिव-इन रिलेशनशिप तब होती है जब दो बालिग बिना शादी किए, आपस में लंबे समय तक एक साथ रहते हैं और रिश्ता निभाने का फैसला करते हैं। इसमें दोनों की सहमति और अपनी पसंद होती है, और वे आमतौर पर पैसे, घर के काम और भावनात्मक सहारा साझा करते हैं।

लिव-इन रिलेशनशिप में कानूनी रजिस्ट्रेशन, शादी की रस्में या किसी धर्म के नियमों का पालन जरूरी नहीं होता।

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के कानूनी नियम

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को सीधे नियंत्रित करने वाला कोई कानून नहीं है, लेकिन अदालतें कुछ शर्तों के आधार पर इसे मानती हैं, खासकर जब विवाद हो:

  • दोनों पक्ष बालिग होने चाहिए – दोनों पक्ष की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए।
  • स्वेच्छा से सहमति – दोनों को बिना किसी दबाव, धोखाधड़ी या मजबूरी के साथ रहने की सहमति होनी चाहिए।
  • साथ रहने का लिखित समझौता – बेहतर है कि एक वकील की मदद से लिखित समझौता तैयार किया जाए और नोटरी से प्रमाणित कराया जाए। इसमें वित्तीय व्यवस्था, संपत्ति के अधिकार, जिम्मेदारियाँ और विवाद सुलझाने के तरीके स्पष्ट किए जा सकते हैं, जिससे भविष्य में दोनों की सुरक्षा होती है।
  • लंबे समय तक साथ रहने की मंशा – अदालतें ऐसे रिश्ते को मानती हैं जो शादी जैसे स्थिर, साथ रहने वाले, वित्तीय साझेदारी और सामाजिक रूप से स्वीकार्य हों।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशन सामाजिक रूप से अस्वीकार्य हो सकता है, परंतु अवैध नहीं। यानी समाज इसे पसंद न करे, लेकिन कानून इसे अपराध नहीं मानता।

शादीशुदा व्यक्ति और लिव-इन रिलेशन: कानूनी जटिलताएँ

अगर कोई शादीशुदा व्यक्ति किसी और के साथ लिव-इन रिलेशन में रहता है, तो इसे अडल्ट्री कहा जाता है। पहले यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 के तहत अपराध माना जाता था। इसका मतलब था कि किसी शादीशुदा व्यक्ति का किसी और के साथ रिश्ता कानून के खिलाफ था और इसके लिए सजा हो सकती थी।

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लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट के जोसफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले में यह फैसला आया कि अडल्ट्री अब अपराध नहीं है। अदालत ने कहा कि किसी बालिग व्यक्ति का निजी जीवन और संबंध उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है, इसलिए इसे अपराध नहीं माना जा सकता।

ध्यान देने वाली बात यह है कि भले ही अब अडल्ट्री अपराध नहीं है, यह वैवाहिक कर्तव्यों का उल्लंघन जरूर है। शादीशुदा व्यक्ति पर अपने जीवनसाथी के प्रति वफादारी और जिम्मेदारी होती है। किसी अन्य के साथ लिव-इन रिलेशन में रहना इस जिम्मेदारी का उल्लंघन माना जाएगा।

शादीशुदा व्यक्ति का किसी और के साथ लिव-इन रिलेशन कानूनी अपराध नहीं है, लेकिन वैवाहिक और सामाजिक दृष्टि से अस्वीकार्य है और इससे तलाक, संपत्ति विवाद और बच्चे के अधिकारों पर असर पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के प्रमुख फैसले

एस खुशबू बनाम कन्नियाम्मल (2010)

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दो बालिग जो अपनी मर्जी से एक साथ रहना चाहते हैं, वह कोई अपराध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि राज्य को बालिगों के बीच निजी और सहमति आधारित संबंधों को अपराध मानकर दखल नहीं देना चाहिए। इस फैसले में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और बालिगों के अपने रिश्ते चुनने के अधिकार पर जोर दिया गया।

इस केस ने यह मूल सिद्धांत स्थापित किया कि सहमति से रहने वाले बालिगों के लिए लिव-इन रिलेशनशिप कानूनन गैरकानूनी नहीं है।

इस फैसले ने भारतीय न्याय व्यवस्था में लिव-इन रिलेशनशिप को ‘सहमति आधारित संबंध’ के रूप में स्वीकार किया।

इन्द्रा शर्मा बनाम वी.के.वी. शर्मा (2013)

तथ्य:

  • इन्द्रा शर्मा, एक अविवाहित महिला, ने 1993 में वी.के.वी. शर्मा (जो पहले से शादीशुदा थे और दो बच्चों के पिता थे) के साथ लिव-इन रिलेशन शुरू किया।
  • इन्द्रा को पता था कि वी.के.वी. शर्मा पहले से शादीशुदा हैं।
  • यह रिश्ता 2007 तक चला, जब वी.के.वी. शर्मा ने पारिवारिक दबाव में इन्द्रा को छोड़ दिया।
  • इसके बाद इन्द्रा ने डोमेस्टिक वोइलेंस एक्ट, 2005 के तहत मेंटेनेंस और सुरक्षा के लिए मामला दायर किया।

विवाद: मुख्य सवाल यह था कि क्या इन्द्रा और वी.के.वी. शर्मा का लिव-इन रिश्ता “शादी जैसा रिश्ता” माना जाएगा या नहीं, और क्या इसे डोमेस्टिक वोइलेंस एक्ट के तहत घरेलू हिंसा माना जा सकता है।

फैसला:

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्योंकि इन्द्रा को पता था कि वी.के.वी. शर्मा शादीशुदा हैं, इसलिए उनका रिश्ता “शादी जैसा संबंध” नहीं माना जा सकता।
  • इसलिए इन्द्रा को डोमेस्टिक वोइलेंस एक्ट के तहत कोई संरक्षण या मेंटेनेंस का अधिकार नहीं है।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई महिला जानबूझकर शादीशुदा पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशन में रहती है, तो वह अवैध संबंध में मानी जाएगी और कानून के तहत उसका संरक्षण नहीं होगा।
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यह फैसला उन मामलों के लिए मार्गदर्शक है जहाँ लिव-इन संबंध पहले से शादीशुदा व्यक्ति के साथ हो, और यह तय करता है कि ऐसे रिश्ते को कानूनी संरक्षण नहीं मिलेगा।

पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन (2001)

तथ्य:

  • पायल शर्मा एक 21 वर्षीय महिला थीं, जिन्होंने नारी निकेतन, आगरा में रहने के दौरान एक विवाहित पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप शुरू किया।
  • उनके पिता ने इस संबंध को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि पायल को अपहरण कर लिया गया है।
  • पायल ने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में हैबियस कॉर्पस पिटीशन दायर की।

विवाद: क्या एक बालिग महिला को अपनी इच्छा से किसी के साथ रहने का अधिकार है, और क्या समाजिक दृष्टिकोण से यह “अवैध संबंध” माना जाएगा?

निर्णय:

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पायल शर्मा के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि वह एक बालिग हैं, उन्हें अपनी इच्छा से कहीं भी जाने और किसी के साथ रहने का अधिकार है।
  • कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एक पुरुष और महिला, भले ही उन्होंने शादी न की हो, यदि वे साथ रहते हैं, तो यह कानून के खिलाफ नहीं है।
  • हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि समाज में इसे ” सामाजिक रूप से अस्वीकार्य” माना जा सकता है, लेकिन यह कानूनी रूप से अपराध नहीं है।

शादीशुदा व्यक्ति के लिव-इन में रहने के कानूनी परिणाम

सिविल परिणाम

  • तलाक का अधिकार: पति या पत्नी अदालत में जाकर अडल्ट्री के आधार पर तलाक का दावा कर सकता है।
  • मेंटेनेंस: अगर अदालत पति को दोषी पाए, तो पत्नी मेंटेनेंस का हक़दार हो सकती है।
  • बच्चों की कस्टडी: ऐसे मामलों में अदालत “Best Interest of Child” यानी बच्चे के सर्वोत्तम हित के आधार पर कस्टडी तय करती है।

आपराधिक परिणाम  

  • धोखाधड़ी या क्रूरता की शिकायत: अगर कोई शादीशुदा व्यक्ति अपनी शादी छिपाकर लिव-इन रिलेशन में रहता है, तो महिला अदालत में धोखाधड़ी या क्रूरता का केस दर्ज करा सकती है।
  • मानसिक उत्पीड़न या घरेलू हिंसा: महिला यह शिकायत दर्ज करा सकती है कि लिव-इन रिलेशन के दौरान उसे मानसिक उत्पीड़न या घरेलू हिंसा झेलनी पड़ी, और अदालत इसके आधार पर कार्रवाई कर सकती है।

अगर आप शादीशुदा व्यक्ति हैं और किसी और के साथ लिव-इन में रहने का सोच रहे हैं

  • अडल्ट्री अब अपराध नहीं है, लेकिन अगर कोई दबाव, अपहरण या धोखाधड़ी हुई तो कानूनी कार्रवाई हो सकती है। किसी भी जबरदस्ती या गैरकानूनी काम से बचें।
  • आपका जीवनसाथी तलाक के लिए अदालत जा सकता है, अडल्ट्री को तलाक का कारण मान सकता है, और बच्चों या भरण-पोषण के लिए आदेश मांग सकता है।
  • अगर आप अपने जीवनसाथी से अलग होते हैं, तो संपत्ति के विवाद और वित्तीय दावे हो सकते हैं। समर्थन संबंधी जिम्मेदारियाँ बनी रह सकती हैं।
  • समाज, परिवार या नौकरी पर असर पड़ सकता है। ये कानूनी नहीं हैं, लेकिन असली और महत्वपूर्ण परिणाम हो सकते हैं।
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अगर आप लिव-इन पार्टनर (अविवाहित) हैं और किसी शादीशुदा व्यक्ति के साथ रहते हैं

  • अगर रिश्ता शादी जैसा था और आप अनजाने में किसी शादीशुदा व्यक्ति के साथ रहे, तो कुछ मामलों में अदालत से मेंटेनेंस या सुरक्षा मिल सकती है। लेकिन इंद्रा शर्मा मामले के अनुसार, अगर आपको पता था कि व्यक्ति शादीशुदा है, तो आपको संरक्षण नहीं मिलेगा।
  • इस तरह के रिश्ते में जन्मे बच्चों के अधिकार हैं, जैसे अभिरक्षा और भरण-पोषण। कानून माता-पिता की शादीशुदा स्थिति से स्वतंत्र बच्चों की सुरक्षा करता है।
  • भविष्य में कानूनी सुरक्षा के लिए अपने योगदान, साथ रहने का रिकॉर्ड और पार्टनर के रूप में पहचान रखने के सबूत रखें।

निष्कर्ष

आज के समय में लिव-इन रिलेशनशिप व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आधुनिक सोच का प्रतीक हैं, लेकिन कानून अब भी विवाह संस्था और नैतिक जिम्मेदारी को गंभीरता से लेता है।

सुप्रीम कोर्ट का रुख स्पष्ट है, सहमति से साथ रहना अपराध नहीं, लेकिन ईमानदारी और पारदर्शिता जरूरी है।

शादीशुदा व्यक्ति के लिए ऐसा रिश्ता कानूनी रूप से अपराध नहीं है, पर यह वैवाहिक अधिकारों और परिवार पर असर डाल सकता है।

इसलिए किसी भी निर्णय से पहले अपने अधिकार और दायित्व समझें, और कानूनी सलाह अवश्य लें।

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FAQs

1. क्या शादीशुदा व्यक्ति कानूनी रूप से लिव-इन रिलेशन में रह सकता है?

हाँ, शादीशुदा व्यक्ति लिव-इन रिलेशन में रह सकता है, लेकिन ऐसा करने से कानूनी परेशानी हो सकती है, जैसे बायगेमी का मामला या तलाक से जुड़ी जटिलताएँ।

2. क्या लिव-इन रिलेशनशिप को भारतीय कानून मान्यता देता है?

हाँ, भारतीय कानून लिव-इन रिलेशन को मान्यता देता है, अगर रिश्ता लंबे समय तक साथ रहने, आपसी सहमति और शादी जैसे संबंध पर आधारित हो।

3. क्या लिव-इन पार्टनर मेंटेनेंस मांग सकता है?

अगर रिश्ता शादी जैसा माना जाए, तो महिला डोमेस्टिक वोइलेंस एक्ट के तहत मेंटेनेंस मांग सकती है। हालांकि, अदालत हर मामले को अलग-अलग देखकर निर्णय लेती है।

4. क्या शादीशुदा व्यक्ति के साथ रहना अडल्ट्री माना जाएगा?

हाँ, अगर कोई व्यक्ति शादीशुदा है और किसी और के साथ रहता है, तो इसे अडल्ट्री माना जा सकता है। यह तलाक का कारण बन सकता है और बच्चों की अभिरक्षा या मेंटेनेंस पर असर डाल सकता है।

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