कानूनी मामले अक्सर तनाव भरे और जटिल होते हैं, खासकर जब इंसाफ, कोर्ट की जगह या सुरक्षा को लेकर चिंता हो। भारत में, जब किसी को लगता है कि उनका केस किसी दूसरी अदालत में चलना चाहिए, तो वे केस को एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट में भेजने की मांग कर सकते हैं। इसे ही केस ट्रांसफर कहा जाता है। चाहे केस सिविल हो या क्रिमिनल, दोनों ही मामलों में ट्रांसफर पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जा सकती है।
इस ब्लॉग में बताया गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट में सिविल और क्रिमिनल दोनों तरह के मामलों में ट्रांसफर पिटीशन दायर की जा सकती है या नहीं। साथ ही इसमें ये भी समझाया गया है कि यह अर्जी कौन दे सकता है, कैसे दी जाती है, और इसका पूरा तरीका क्या होता है।
ट्रांसफर पिटीशन क्या होती है?
ट्रांसफर पिटीशन एक आधिकारिक अरजी होती है, जिसमें किसी केस को एक अदालत से दूसरी अदालत में भेजने की मांग की जाती है। यह अरजी उसी राज्य के अंदर या दूसरे राज्य के अदालत के लिए हो सकती है।
यदि यह सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की जाती है, तो सामान्यतः इसका अर्थ होता है कि मामला एक राज्य की अदालत से दूसरे राज्य की अदालत में ट्रांसफर करना।
क्या आप सिविल और क्रिमिनल दोनों केसों में ट्रांसफर पिटीशन दाखिल कर सकते हैं?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट में सिविल और क्रिमिनल दोनों मामलों में ट्रांसफर पिटीशन दी जा सकती है।
- सिविल केस के लिए: सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 25 के तहत
- क्रिमिनल केस के लिए: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 446 के तहत
ट्रांसफर पिटीशन कौन दाखिल कर सकता है?
कोई भी पक्षकार जो केस में शामिल हो, ट्रांसफर पिटीशन दाखिल कर सकता है, जैसे:
- सिविल केस में वादी या प्रतिवादी
- क्रिमिनल केस में पीड़ित/शिकायतकर्ता या आरोपी
- कुछ मामलों में राज्य या केंद्र सरकार भी, खासकर क्रिमिनल मामलों में, ट्रांसफर पिटीशन दाखिल कर सकती है।
ट्रांसफर पिटीशन दाखिल करने के कारण
सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर पिटीशन को बिना ठोस कारणों के स्वीकार नहीं करती। पिटीशन दायर करने वाली पार्टी को यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करना होता है कि यदि मामला वर्तमान अदालत में ही चला तो उसे न्यायिक असुविधा या अन्याय का सामना करना पड़ेगा। कुछ वैध कारण हो सकते है जैसे:
- पिटीशन देने वाले या गवाहों की जान या सुरक्षा को खतरा होना
- स्थानीय अदालत में पक्षपात या दबाव होना
- पक्षकारों की सुविधा, खासकर शादी या परिवार से जुड़े मामलों में
- स्वास्थ्य, पैसे या किसी जरूरी कारण से यात्रा न कर पाना
- अलग-अलग राज्यों में जुड़े हुए कई मामले हों, जिन्हें एक साथ देखना हो
- महिला पक्षकार की सुविधा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केस उसके निवास स्थान की अदालत में ट्रांसफर किया जा सकता है
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 25 – सुप्रीम कोर्ट का सिविल मामलों को ट्रांसफर करने का अधिकार
CPC की धारा 25 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देती है कि वह किसी केस को एक राज्य से दूसरे राज्य की अदालत में भेज सके। इसका तरीका कुछ ऐसा है:
- अर्जी दाखिल करना: केस में शामिल कोई भी पक्ष सुप्रीम कोर्ट से केस को एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने की मांग कर सकता है।
- सूचना और सुनवाई: अर्जी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट सभी पक्षों को इसकी सूचना देता है। दोनों पक्षों को अपनी बात रखने का मौका दिया जाता है।
- ट्रांसफर के कारण: कोर्ट तब ही केस ट्रांसफर करती है जब उसे लगता है कि ऐसा करने से न्याय जल्दी और सही तरीके से मिलेगा।
- राज्यों के बीच ट्रांसफर: यह नियम खासकर राज्यों के बीच केस ट्रांसफर करने के लिए बनाया गया है।
कुछ उदाहरण:
- संपत्ति विवाद (जैसे ज़मीन या मकान से जुड़ा केस)
- विवाह से जुड़े मामले (जैसे तलाक, भरण-पोषण या घरेलू हिंसा से जुड़ी याचिकाएं)
- उत्तराधिकार या वसीयत से संबंधित मामले
- कस्टडी (बच्चे की देखरेख) से जुड़े सिविल केस
- कॉन्ट्रैक्ट से जुड़े विवाद (जैसे समझौते की शर्तों को लेकर मामला)
- किसी कंपनी या बिज़नेस से जुड़ा सिविल विवाद
जैसे ही सुप्रीम कोर्ट केस ट्रांसफर करने का आदेश देती है, वह तुरंत प्रभावी हो जाता है। यह जरूरी नहीं है कि वह आदेश निचली अदालत को औपचारिक रूप से भेजा गया हो। एक बार आदेश जारी हो गया, तो केस उस तय की गई अदालत में ट्रांसफर मान लिया जाता है।
क्या सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर पिटीशन खारिज कर सकती है?
हाँ, यदि सुप्रीम कोर्ट को लगे कि ट्रांसफर पिटीशन ठोस कारणों पर आधारित नहीं है, तो वह इसे खारिज कर सकती है।
इंडियन ओवरसीज बैंक बनाम केमिकल कंस्ट्रक्शन कंपनी,1979 केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी केस को ट्रांसफर करने का सवाल हो, तो सबसे जरूरी बात होती है – दोनों पक्षों की सुविधा का संतुलन।
इसका मतलब यह है कि कोर्ट को सिर्फ एक पक्ष (जैसे कि वादी या प्रतिवादी) की सुविधा नहीं देखनी चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि ट्रांसफर करना दोनों के लिए मिलाकर कितना ठीक और सुविधाजनक रहेगा। फैसला इस आधार पर होना चाहिए कि सभी पक्षों के लिए क्या ज्यादा न्यायसंगत है।
शहनवाज़ खान बनाम नागालैंड (2023) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो तरह के नियम हैं केस ट्रांसफर करने के लिए।
- धारा 25: सुप्रीम कोर्ट को अधिकार देती है कि वह एक राज्य से दूसरे राज्य के अलग-अलग हाई कोर्ट के बीच केस ट्रांसफर करे।
- धारा 24: अगर एक ही हाई कोर्ट कई राज्यों के लिए काम करता है, तो वह अपने ही क्षेत्र के अंदर, भले ही अलग-अलग राज्य हों, केस ट्रांसफर कर सकता है।
इसका मतलब, अगर एक ही हाई कोर्ट कई राज्यों को देख रहा है, तो केस ट्रांसफर करने के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना पड़ता।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस को गौहाटी हाई कोर्ट को भेजो और वे धारा 24 के हिसाब से फैसला करें। सुप्रीम कोर्ट की धारा 25 की मांग अब काम नहीं करेगी, इसलिए इसे खारिज कर दिया गया।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 446 – सुप्रीम कोर्ट का क्रिमिनल मामलों को ट्रांसफर करने का अधिकार
BNSS की धारा 446 सुप्रीम कोर्ट को अधिकार देती है कि वह किसी क्रिमिनल केस या अपील को एक राज्य की कोर्ट से दूसरी राज्य की कोर्ट में ट्रांसफर कर सके। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हर किसी को सही और न्यायपूर्ण सुनवाई मिले, खासकर जब लोकल हालात सुनवाई में बाधा डालते हों।
सुप्रीम कोर्ट केस कब ट्रांसफर कर सकती है?
- न्याय सही से न हो पाए: अगर कोर्ट में पक्षपात, धमकी या दबाव की वजह से सही सुनवाई नहीं हो पा रही हो।
- गवाहों या आरोपी की सुरक्षा खतरे में हो: अगर गवाहों या आरोपी को धमकियां मिल रही हों या उनकी सुरक्षा को खतरा हो।
- सभी पक्षों के लिए आसान हो: अगर केस ट्रांसफर करने से सभी पक्षों (वादी, आरोपी, गवाह) के लिए सुनवाई आसान हो जाए।
- कानूनी जरूरत हो: जब कानून के हिसाब से केस दूसरी कोर्ट में ट्रांसफर करना जरूरी हो।
सुप्रीम कोर्ट केस ट्रांसफर कब नहीं करती?
- सिर्फ परेशानी की बात हो: सिर्फ इसलिए कि आरोपी को मौजूदा कोर्ट में जाना मुश्किल लग रहा है, यह कारण ट्रांसफर के लिए काफी नहीं होता।
- सिर्फ अंदेशा हो: अगर पक्षकार सिर्फ ऐसा महसूस कर रहा हो कि कोर्ट में पक्षपात हो सकता है, लेकिन कोई ठोस वजह या सबूत नहीं है।
- बिना ठोस वजह के आवेदन: अगर ट्रांसफर की मांग सिर्फ केस को टालने या परेशान करने के मकसद से की गई हो।
ट्रांसफर के लिए कैसे आवेदन करें?
अगर आप चाहते हैं कि आपका केस किसी और कोर्ट में ट्रांसफर हो, तो यह प्रक्रिया अपनाएं:
- पिटीशन फाइल करें: सुप्रीम कोर्ट में एक लिखित आवेदन (पिटीशन) दें जिसमें ट्रांसफर की वजह साफ-साफ बताई गई हो।
- सबूत दें: आपकी बातों को साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेज़ या एफिडेविट साथ में लगाएं।
- कौन आवेदन कर सकता है? केस से जुड़ा कोई भी पक्ष या भारत का अटॉर्नी जनरल यह आवेदन कर सकता है।
- दूसरे पक्ष को नोटिस: सुप्रीम कोर्ट बाकी पक्षों को भी इस आवेदन की सूचना देगी और सुनवाई का मौका दे सकती है।
योगेश उपाध्याय बनाम एटलांटा लिमिटेड (2023) केस में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 406 CrPC/ 446 BNSS के तहत एक राज्य से दूसरे राज्य में चेक बाउंस केस को ट्रांसफर करने की इजाज़त दी।
कोर्ट ने यह फैसला इसलिए लिया ताकि सभी पक्षों को न्याय मिल सके और सुनवाई की जगह सभी के लिए सुविधाजनक हो।
इससे यह साफ होता है कि अगर केस की निष्पक्ष सुनवाई किसी दूसरी जगह हो सकती है, तो सुप्रीम कोर्ट केस को ट्रांसफर कर सकती है।
विश्वनाथ गुप्ता बनाम उत्तरांचल राज्य (2004–2005) केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि सिर्फ वकील न मिलने की वजह से केस ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें विरोधी पक्ष के वकील नहीं मिल पा रहे हैं, इसलिए केस किसी और जगह ट्रांसफर किया जाए। लेकिन कोर्ट में एफिडेविटदिया गया जिसमें बताया गया कि उन्हें वकील मिल गया है।
इसके बाद कोर्ट ने जिला कलेक्टर एसोसिएशन को इस केस में शामिल होने की अनुमति नहीं दी और कहा कि केस ट्रांसफर करने की कोई ठोस वजह नहीं है।
ट्रांसफर पिटीशन फाइल करने में वकील की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन फाइल करना एक तकनीकी और औपचारिक कानूनी प्रक्रिया है। इसे केवल “एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड” (AOR) के ज़रिए ही फाइल किया जा सकता है — ये वो वकील होते हैं जिन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल करने का अधिकार होता है।
वकील आपकी मदद कैसे करते हैं?
- आपका वकील यह देखेगा कि आपका केस ट्रांसफर करने का मजबूत आधार है या नहीं।
- वकील सभी ज़रूरी तथ्यों, कारणों और दस्तावेज़ों के साथ सही फॉर्मेट में पिटीशन तैयार करता है।
- वकील आपकी तरफ से कोर्ट में पेश होगा, आपके पक्ष में दलील देगा और विरोधी पक्ष की बातों का जवाब भी देगा।
- अगर केस में कोई तुरंत राहत चाहिए, तो वकील उसके लिए भी आवेदन कर सकता है।
- वकील आपको हर स्टेप पर अपडेट देता है, कोर्ट के निर्देशों का पालन करवाता है और पूरी प्रक्रिया में आपकी सही तरीके से मदद करता है।
क्या ट्रांसफर पिटीशन फाइल करने के लिए कोई फीस लगती है?
- हाँ, ट्रांसफर पिटीशन फाइल करते समय एक छोटी सी कोर्ट फीस देनी होती है। आपके वकील इस फीस को फाइलिंग के कुल खर्च में शामिल कर लेते हैं।
- वकील की फीस केस की गंभीरता और कितनी जल्दी काम चाहिए, उस पर निर्भर करती है, इसलिए यह अलग-अलग हो सकती है।
हाई कोर्ट बनाम सुप्रीम कोर्ट – ट्रांसफर पिटीशन में अंतर
| विषय | हाई कोर्ट | सुप्रीम कोर्ट |
| ट्रांसफर की सीमा | राज्य के अंदर ट्रांसफर कर सकता है | राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर कर सकता है |
| लागू नियम | धारा 24 CPC/ धारा 447 BNSS | धारा 25 CPC / धारा 446 BNSS |
| किन अदालतों में ट्रांसफर | एक जिले से दूसरे जिले की अदालत में | एक राज्य की अदालत से दूसरे राज्य की अदालत में |
| उदाहरण | लखनऊ से वाराणसी (उ.प्र. के भीतर) | बिहार से महाराष्ट्र की अदालत में ट्रांसफर |
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का मकसद केवल कानून की व्याख्या करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि हर नागरिक को निष्पक्ष, सुरक्षित और सुविधाजनक तरीके से न्याय मिले। ट्रांसफर पिटीशन इस उद्देश्य को पूरा करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
ट्रांसफर पिटीशन एक ऐसा साधन है जो इस उद्देश्य को पूरा करता है। चाहे सिविल मामला हो या क्रिमिनल – अगर आपके अधिकार, सुरक्षा या सुविधा पर असर पड़ रहा है, तो सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन एक प्रभावी विकल्प हो सकता है।
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FAQs
1. क्या सुप्रीम कोर्ट क्रिमिनल केस ट्रांसफर कर सकता है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट BNSS की धारा 446 के तहत क्रिमिनल केस एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर कर सकता है।
2. सिविल मामलों में कौन से केस ट्रांसफर होते हैं?
तलाक, भरण-पोषण, प्रॉपर्टी, कस्टडी, कॉन्ट्रैक्ट आदि सिविल केस ट्रांसफर किए जा सकते हैं।
3. क्या ट्रांसफर पिटीशन के लिए वकील जरूरी है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन केवल एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR) के माध्यम से ही फाइल की जा सकती है।
4. केस ट्रांसफर होने में कितना समय लगता है?
औसतन 3 से 6 महीने का समय लगता है, लेकिन अर्जेंसी के आधार पर जल्दी भी हो सकता है।
5. क्या महिला की सुविधा के आधार पर केस ट्रांसफर हो सकता है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में महिला की सुविधा को प्राथमिकता दी है।



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