न्याय पाने का सबसे बड़ा आधार है फेयर ट्रायल। लेकिन अगर किसी व्यक्ति को लगे कि पक्षपात, दबाव या परिस्थितियों के कारण उसे किसी कोर्ट में न्याय नहीं मिलेगा, तो कानून में इसकी व्यवस्था है कि ट्रायल को दूसरी जगह ट्रांसफर किया जा सकता है।
भारतीय न्याय व्यवस्था का मानना है कि न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए, बल्कि दिखना भी चाहिए। अगर किसी केस में आरोपी, पीड़ित या सरकार को यह लगता है कि उन्हें किसी कोर्ट से निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिलेगी, तो सुप्रीम कोर्ट केस को किसी दूसरी अदालत में ट्रांसफर कर सकते हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धाराओं में भी यह हक बरकरार रखा गया है, ताकि हर व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई, बराबरी का न्याय और संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा मिल सके।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि सुप्रीम कोर्ट किन परिस्थितियों में ट्रायल को दूसरी जगह ट्रांसफर कर सकता है, इसके लिए BNSS की कौन-सी धाराएँ लागू होती हैं, ट्रांसफर की प्रक्रिया क्या है और सुप्रीम कोर्ट के कुछ प्रमुख फैसले जिन्होंने इस विषय को स्पष्ट किया है।
क्या सुप्रीम कोर्ट किसी ट्रायल को ट्रांसफर कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट किसी भी केस, अपील या ट्रायल को एक हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट या एक राज्य की निचली अदालत से दूसरे राज्य की निचली अदालत में ट्रांसफर कर सकता है।
यह कदम इसलिए उठाया जाता है ताकि किसी भी पक्ष को न्याय पाने में कठिनाई न हो और सुनवाई पूरी तरह निष्पक्ष तरीके से हो सके।
कब ट्रायल ट्रांसफर होता है?
- पक्षपात या पक्षधरता का डर हो – अगर किसी पक्ष को लगे कि मौजूदा कोर्ट में निष्पक्ष सुनवाई नहीं होगी।
- प्रभावशाली लोग शामिल हों – जैसे बड़े राजनेता, उद्योगपति या ताकतवर लोग, जिनका असर केस पर पड़ सकता हो।
- गवाहों या आरोपी की सुरक्षा का सवाल हो – अगर गवाह या आरोपी उसी जगह सुरक्षित न हों।
- न्याय की मांग (Ends of Justice) – जब सुप्रीम कोर्ट को लगे कि सही न्याय दिलाने के लिए केस को दूसरी अदालत में भेजना जरूरी है।
इस तरह, सुप्रीम कोर्ट का ट्रायल ट्रांसफर करने का अधिकार एक असाधारण लेकिन ज़रूरी शक्ति है, ताकि हर व्यक्ति को न्याय पर भरोसा बना रहे।
क्या है भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 446?
- सुप्रीम कोर्ट की शक्ति – सुप्रीम कोर्ट किसी केस, ट्रायल या अपील को एक हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट या एक राज्य की अदालत से दूसरे राज्य की अदालत में भेज सकता है, अगर उसे लगे कि न्याय के लिए यह ज़रूरी है।
- कौन आवेदन कर सकता है? – कोई भी पक्ष या अटॉर्नी जनरल पिटीशन देकर ट्रांसफर माँग सकता है। सामान्य व्यक्ति को यह पिटीशन अफिडेविट के साथ दाखिल करनी होगी।
- झूठी पिटीशन पर सज़ा – अगर पिटीशन सिर्फ परेशान करने या हल्के कारण से डाली गई हो, तो सुप्रीम कोर्ट उस पर जुर्माना या मुआवज़ा लगा सकता है।
धारा 406 BNSS के तहत ट्रायल ट्रांसफर की प्रक्रिया
- एक्सपर्ट वकील से सलाह लें: सबसे पहले किसी अनुभवी वकील से मिलें, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करने के लिए सही कानूनी तैयारी बहुत ज़रूरी है।सुप्रीम कोर्ट में किसी भी पिटीशन दाखिल करने के लिए एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR) अनिवार्य है।
- पिटीशन दाखिल करना: सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन दाखिल की जाती है। यह आरोपी, शिकायतकर्ता/प्रॉसीक्यूटर, राज्य सरकार या खुद सुप्रीम कोर्ट (suo motu) भी कर सकता है।
- ट्रांसफर के कारण बताना: अर्जी में साफ-साफ लिखना होगा कि ट्रांसफर क्यों ज़रूरी है – जैसे पक्षपात का डर, जान का खतरा, प्रभावशाली लोगों का दबाव, या जनहित।
- जरूरी दस्तावेज़ लगाना: एफआईआर, चार्जशीट, निचली अदालत के आदेश की कॉपी और एक शपथ पत्र (अफिडेविट)।
- दूसरे पक्ष को नोटिस: सुप्रीम कोर्ट दूसरे पक्ष (राज्य या आरोपी/शिकायतकर्ता) को नोटिस भेजता है ताकि वे भी अपना जवाब दे सकें।
- सुनवाई: दोनों पक्ष अपने-अपने वकील के ज़रिए कोर्ट में दलीलें रखते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट का आदेश: अगर सुप्रीम कोर्ट को लगे कि न्याय के लिए ट्रांसफर ज़रूरी है, तो वह केस को दूसरी अदालत/हाई कोर्ट में भेज देता है। यह आदेश सबको मानना पड़ता है।
श्री सेंधुराग्रो एंड ऑयल इंडस्ट्रीज बनाम कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड, 2025
अगर कोई पक्ष कहता है कि उसका केस एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर होना चाहिए, तो सिर्फ़ यह कहना काफी नहीं है कि दूरी ज्यादा है या थोड़ी असुविधा है।
ट्रायल ट्रांसफर तभी होगा जब:
- केस में न्याय होने पर सीधा खतरा हो।
- आरोपी और पुलिस या सरकारी वकील में मिलीभगत हो।
- गवाहों या शिकायत करने वाले को डराया-धमकाया जा रहा हो।
- केस में शामिल सभी लोग किसी वजह से गंभीर परेशानी में हों।
- समाज या इलाके में तनाव हो, जिससे निष्पक्ष सुनवाई संभव न हो।
- केस पर बाहरी दबाव इतना ज्यादा हो कि अदालत निष्पक्ष फैसला न कर पाए।
मतलब यह है: सुप्रीम कोर्ट सिर्फ़ उन्हीं मामलों में ट्रायल ट्रांसफर करेगा जहाँ साफ़ दिखे कि मौजूदा जगह पर निष्पक्ष सुनवाई असंभव है।
नीलिमा सूरी बनाम राज्य मध्य प्रदेश, 2024
मुद्दा: क्या सुप्रीम कोर्ट जांच (Investigation) को भी एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर कर सकता है, जबकि कानून में सिर्फ ट्रायल/अपील ट्रांसफर की बात है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा – हाँ, आमतौर पर धारा 446 BNSS सिर्फ ट्रायल/अपील पर लागू होती है, लेकिन अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट ज़रूरत पड़ने पर जांच भी ट्रांसफर कर सकता है। इस केस में, सब FIRs और ट्रायल को एक जगह करने का आदेश दिया गया।
प्रभाव: अब साफ़ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट असाधारण हालात में जांच और केस दोनों ट्रांसफर कर सकता है, ताकि निष्पक्ष सुनवाई हो और विरोधाभासी फैसले न आएँ।
अफजल अली शाह (अफजल शौकत शा) बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, 2023
मुद्दा: आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट से गुज़ारिश की कि उसके ख़िलाफ़ हत्या का केस पश्चिम बंगाल से बाहर किसी और राज्य की अदालत में ट्रांसफर कर दिया जाए। उसका कहना था कि उसे राज्य के अंदर निष्पक्ष ट्रायल नहीं मिलेगा और सुरक्षा को लेकर भी खतरा है।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ट्रायल को राज्य से बाहर ले जाने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन यह भी देखा कि मामले में निष्पक्षता और सुरक्षा सुनिश्चित करनी ज़रूरी है। इसलिए कोर्ट ने केस को कोलकाता के चीफ़ जज, सिटी सेशन कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया। साथ ही आदेश दिया कि ट्रायल जल्दी से जल्दी पूरा किया जाए और अदालत में पर्याप्त सुरक्षा इंतज़ाम हों।
प्रभाव: इस फ़ैसले से साफ़ हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ट्रायल को तभी राज्य के बाहर ट्रांसफर करता है जब बहुत मज़बूत कारण हो। लेकिन अगर राज्य के अंदर ही निष्पक्ष सुनवाई और सुरक्षा दी जा सकती है, तो ट्रायल को वहीं रखा जाएगा। कोर्ट ने यहाँ बैलेंस बनाया – एक तरफ़ आरोपी की सुरक्षा और निष्पक्ष ट्रायल का हक़ बचाया और दूसरी तरफ़ अनावश्यक रूप से केस को राज्य से बाहर नहीं भेजा।
सुप्रीम कोर्ट से ट्रांसफर पिटीशन खारिज होने पर विकल्प
1. रीव्यू पिटीशन
- सुप्रीम कोर्ट से उसी आदेश पर दोबारा सोचने की गुज़ारिश।
- तभी दायर की जा सकती है जब आदेश में कोई बड़ी गलती या चूक हो।
- जल्दी दाख़िल करना ज़रूरी है (निर्धारित समय सीमा में)।
2. क्यूरेटिव पिटीशन
- यह आख़िरी और बेहद अपवाद उपाय है।
- तब ही दाख़िल की जाती है जब न्याय में भारी चूक (miscarriage of justice) हुई हो।
- बहुत ही कम मामलों में कोर्ट इसे स्वीकार करता है।
3. स्थानीय अदालत में आवेदन
- गवाहों की सुरक्षा की मांग कर सकते हैं।
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की गुज़ारिश कर सकते हैं।
- अदालत से अतिरिक्त सुरक्षा या सुविधाएँ माँगी जा सकती हैं।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट को BNSS, 2023 की धारा 406 के तहत ट्रायल ट्रांसफर करने का अधिकार है। लेकिन यह अधिकार केवल खास हालातों में इस्तेमाल होता है, जब कोर्ट को लगता है कि मौजूदा अदालत में निष्पक्ष न्याय मिलना मुश्किल है। यह इसलिए ज़रूरी है क्योंकि निष्पक्ष ट्रायल हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, और इसे किसी भी स्थानीय पक्षपात, डर या दबाव से प्रभावित नहीं होने दिया जा सकता।
क्लाइंट्स के लिए मुख्य बात यह है: अगर आपको सच में लगता है कि आपके केस में मौजूदा कोर्ट में न्याय नहीं मिलेगा, तो आप सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन दायर कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें – कोर्ट तभी ट्रांसफर मंज़ूर करता है जब आपके पास मज़बूत कारण और ठोस सबूत हों।
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FAQs
1. क्या सुप्रीम कोर्ट से हर केस का ट्रायल ट्रांसफर हो सकता है?
नहीं, केवल उन्हीं मामलों में जहाँ निष्पक्ष सुनवाई पर सवाल उठे।
2. ट्रायल ट्रांसफर पिटीशन दाखिल करने की प्रक्रिया क्या है?
एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के जरिए सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन दाखिल की जाती है।
3. ट्रांसफर पिटीशन के लिए कौन-कौन से दस्तावेज़ चाहिए?
FIR, चार्जशीट, निचली अदालत के आदेश, पहचान प्रमाण और हलफनामा।
4. क्या महिला की सुविधा के आधार पर केस ट्रांसफर हो सकता है?
हाँ, कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने महिला/पीड़िता की सुविधा को महत्व दिया है।
5. सुप्रीम कोर्ट ट्रायल ट्रांसफर पिटीशन में कितना समय लेता है?
यह केस की जटिलता और कोर्ट के पेंडेंसी पर निर्भर करता है, लेकिन प्रक्रिया आमतौर पर कुछ हफ्तों से महीनों तक चल सकती है।



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