SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा को रोकने हेतु बनाया गया एक विशेष कानून है। हालांकि, इस अधिनियम के तहत दर्ज अपराध गैर-जमानती होते हैं, जिससे आरोपी के लिए जमानत प्राप्त करना जटिल होता है।
इस लेख में हम जानेंगे:
- क्या इस अधिनियम के अंतर्गत अग्रिम जमानत मिल सकती है?
- सुप्रीम कोर्ट की क्या राय है?
- यदि कोई झूठा मामला दर्ज हो, तो कानूनी उपाय क्या हैं?
- कौन-कौन सी धाराएं महत्वपूर्ण हैं?
SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम क्या है?
SC/ST Act, 1989 (Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act) का उद्देश्य इन वर्गों को समाज में सम्मान और सुरक्षा प्रदान करना है। इसके तहत उन विशेष अपराधों को चिन्हित किया गया है, जो जातीय आधार पर SC/ST व्यक्तियों के साथ किए जाते हैं।
SC/ST एक्ट के अंतर्गत अत्याचार क्या-क्या माना जाता है?
धारा 3(1) के अंतर्गत निम्न कृत्य “अत्याचार” की श्रेणी में आते हैं:
- किसी SC/ST व्यक्ति को सार्वजनिक स्थान पर जातिसूचक शब्दों से अपमानित करना
- SC/ST व्यक्ति की जमीन या संपत्ति पर अवैध कब्ज़ा या बेदखली
- बंधुआ मजदूरी कराना
- जानबूझकर झूठे केस में फंसाना
- ज़बरदस्ती निर्वस्त्र कराना या अमानवीय व्यवहार
- मतदान या सरकारी योजनाओं से वंचित करना
- SC/ST महिला के साथ यौन अपराध
SC/ST एक्ट की महत्वपूर्ण धाराएं (Simplified)
| धारा | विवरण |
| 3(1)(r) | जातिसूचक अपमान सार्वजनिक रूप से |
| 3(1)(s) | धमकी देकर अपमानित करना |
| 3(2)(v) | SC/ST व्यक्ति के साथ गैर-बलात्कार अपराध |
| 18 | अग्रिम जमानत का निषेध (original) |
| 18A (2018 Amendment) | FIR और गिरफ्तारी के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं |
क्या SC/ST एक्ट में जमानत मिल सकती है?
नियमित जमानत (Regular Bail)
- गिरफ्तारी के बाद आरोपी सत्र न्यायालय में जमानत की याचिका दाखिल कर सकता है।
- कोर्ट साक्ष्य, शिकायतकर्ता का कथन, और केस की प्रकृति देखकर निर्णय लेती है।
- यदि प्रथम दृष्टया कोई गंभीर अपराध नहीं बनता, तो जमानत दी जा सकती है।
अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail)
- सीआरपीसी की धारा 438 के अंतर्गत आरोपी अग्रिम जमानत मांग सकता है।
- हालांकि, धारा 18 और 18A के अनुसार अग्रिम जमानत प्रतिबंधित है।
- लेकिन यदि आरोप दुर्भावनापूर्ण और मनगढ़ंत प्रतीत होते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय
सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र (2018)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि SC/ST एक्ट का अंधाधुंध प्रयोग नहीं होना चाहिए। गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच और सक्षम अधिकारी की अनुमति अनिवार्य होनी चाहिए।
Quote: इस कानून का इस्तेमाल निर्दोष लोगों को आतंकित करने के लिए नहीं किया जा सकता।” – न्यायमूर्ति ए.के. गोयल
यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र (2019 अमेंडमेंट केस)
सरकार ने कोर्ट के 2018 निर्णय के विरुद्ध संशोधन पारित किया जिसमें स्पष्ट किया गया कि अग्रिम जमानत का विकल्प सीमित रहेगा। लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि दुर्भावनापूर्ण आरोपों में राहत दी जा सकती है।
हितेश वर्मा बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तराखंड (2020)
कोर्ट ने कहा कि यदि जातिसूचक टिप्पणी व्यक्तिगत विवाद में की गई है, तो SC/ST एक्ट की धाराएं लागू नहीं होंगी जब तक कि सार्वजनिक अपमान नहीं हुआ हो।
पृथ्वी राज चौहान बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2020)
कोर्ट ने दोहराया कि अग्रिम जमानत पूरी तरह निषिद्ध नहीं है। यदि कोर्ट को लगे कि शिकायत फर्जी है, तो आरोपी को राहत मिल सकती है।
झूठे केस से कैसे बचें?
- FIR रद्द करने के लिए – BNSS की धारा 518 के अंतर्गत हाईकोर्ट में याचिका
- गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत के लिए – सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय
- सबूत सुरक्षित रखें – कॉल रिकॉर्ड, चैट, सीसीटीवी फुटेज
- मानहानि का केस करें – यदि झूठा आरोप साबित होता है
- पुलिस की निष्पक्ष जांच के लिए शिकायत करें – SP या DGP को लिखित शिकायत दें
न्यायपालिका का दृष्टिकोण
- न्यायालयों ने बार-बार दोहराया है कि SC/ST Act का उद्देश्य दुरुपयोग नहीं बल्कि सामाजिक न्याय है।
- कोर्ट यह भी मानता है कि निर्दोष व्यक्ति को झूठे केस में नहीं फंसाया जाना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने “बैलेंस ऑफ जस्टिस” की बात करते हुए निर्दोष व्यक्ति की रक्षा को भी समान महत्व दिया है।
निष्कर्ष
SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम एक सख्त और महत्वपूर्ण कानून है जिसका उद्देश्य जातीय उत्पीड़न से बचाव है। लेकिन यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ इस अधिनियम के तहत झूठा केस दर्ज हो, तो उसे भी न्याय पाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि अग्रिम जमानत पूर्णतः प्रतिबंधित नहीं है। न्यायालय इस बात का ध्यान रखता है कि निर्दोष को सज़ा न हो और दोषी बच न पाए।
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FAQs
Q1. क्या SC/ST एक्ट के तहत अग्रिम जमानत मिल सकती है?
हां, यदि कोर्ट को लगे कि मामला झूठा है या निजी दुश्मनी का परिणाम है, तो अग्रिम जमानत मिल सकती है।
Q2. अगर FIR झूठी हो तो क्या करें?
सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में FIR रद्द करने की अर्जी दे सकते हैं।
Q3. क्या पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है?
हां, क्योंकि ये अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होते हैं।



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