क्या पुलिस शादी करने वाले बालिग लड़का-लड़की को पकड़ सकती है? जानिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Can the police arrest an adult man and woman who are getting married – Learn the Supreme Court's decision

भारत में शादी सिर्फ़ दो लोगों का निजी फ़ैसला नहीं मानी जाती, बल्कि इसे समाज, धर्म और परंपराओं से भी जोड़ा जाता है। इसलिए जब कोई बालिग़ लड़का और लड़की अपनी मर्ज़ी से शादी करना चाहते हैं—ख़ासकर अगर वह अलग धर्म या जाति से हों—तो उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, जैसे:

  • परिवार का दबाव, कभी-कभी धमकी या हिंसा तक।
  • समाज या पंचायत का विरोध।
  • पुलिस की दखल, जहाँ माता-पिता झूठे केस (जैसे अपहरण) दर्ज करवा देते हैं।

लेकिन असली कानूनी सवाल ये है – अगर लड़का और लड़की दोनों बालिग़ हैं और अपनी सहमति से शादी कर रहे हैं, तो क्या पुलिस दखल दे सकती है? क्या सिर्फ़ शादी करने पर उन्हें गिरफ़्तार किया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने इसमें तर्क करते हुए कहा कि अगर दोनों बालिग़ अपनी इच्छा से शादी कर रहे हैं, तो पुलिस उन्हें गिरफ़्तार नहीं कर सकती।

यह ब्लॉग बताता है कि शादी से जुड़े मामलों में कानून क्या कहता है, सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फ़ैसले क्या हैं, पुलिस की सही भूमिका क्या होनी चाहिए, स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट के तहत क्या प्रावधान हैं, और कपल्स को किन व्यावहारिक बातों का ध्यान रखना चाहिए।

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शादी की न्यूनतम आयु और कानूनी मान्यता

शादी सिर्फ़ एक सामाजिक रीति नहीं है, बल्कि क़ानून से जुड़ा अधिकार भी है। इसलिए भारतीय क़ानून ने शादी की न्यूनतम उम्र तय की है ताकि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा बनी रहे।

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5 (iii) के तहत महिलाओं के लिए शादी करने कि न्यूनतम आयु 18 है और पुरुषों के लिए 21 है। यह अन्य व्यक्तिगत कानूनों के तहत भी लागु होती है।

क़ानूनी स्थिति

  • अगर पुरुष 21 और महिला 18 की उम्र पूरी कर चुके हैं, वे बालिग माने जाएंगे और अपनी मर्ज़ी से शादी कर सकते हैं।
  • इस स्थिति में माता-पिता की अनुमति आवश्यक नहीं है।

अगर आयु से पहले शादी हो जाए तो? ऐसा विवाह वैध तो माना जाएगा, लेकिन वह वॉइडेबल होता है। बालिग होने पर पति/पत्नी कोर्ट में जाकर इसे प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006 की धारा 3 के तहत रद्द करा सकते हैं।

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शादी करने का संवैधानिक अधिकार

भारत का संविधान हर बालिग को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार देता है। यह अधिकार अलग-अलग अनुच्छेदों में सुरक्षित है:

  • अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार इसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जीवन साथी चुनना हर व्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है।
  • अनुच्छेद 19 – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपना जीवनसाथी चुनना आपकी पहचान और सोच को व्यक्त करने का एक तरीका है।
  • अनुच्छेद 25 – धर्म की स्वतंत्रता अगर शादी में धर्म बदलने या अंतर्धार्मिक विवाह हो, तो वह भी आपके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से सुरक्षित है।

यानी अगर दो बालिग अपनी मर्जी और सहमति से शादी करना चाहते हैं, तो यह सिर्फ़ निजी निर्णय नहीं है, बल्कि उनका मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है।

शादी के मामलों में पुलिस की भूमिका

कई बार पुलिस को माता-पिता या रिश्तेदारों की शिकायतें मिलती हैं, खासकर अंतरधार्मिक या भागकर शादी करने वाले मामलों में। आम आरोप होते हैं:

  • अपराधियों द्वारा अगवा करना
  • गलत तरीके से बंद रखना।
  • ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन।
  • कुछ मामलों में बलात्कार के आरोप।

लेकिन अगर दोनों बालिग हैं और दोनों की सहमति है, तो पुलिस उन्हें गिरफ्तार या रोक नहीं सकती।

पुलिस की जिम्मेदारी: शादी करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा

पुलिस का मुख्य कर्तव्य है शादी करने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, न कि उन्हें डराना या परेशान करना। इसका मतलब है:

  • शारीरिक सुरक्षा: अगर परिवार या समाज से धमकी, हिंसा या दबाव का खतरा हो, तो पुलिस शादी करने वाले व्यक्तियों को सुरक्षित रखने के लिए कदम उठाए।
  • कानूनी सुरक्षा: झूठे केस, झूठे FIR या झूठे आरोपों से शादी करने वाले लोगों को बचाना।
  • शांतिपूर्ण विवाह सुनिश्चित करना: शादी के समय गवाहों और मैरिज अफसर तक उनकी सुरक्षित पहुंच।
  • सामाजिक दबाव से बचाव: खाप पंचायत या अन्य समाजिक समूहों के दबाव और धमकियों से रक्षा करना।
  • आपातकालीन हस्तक्षेप: यदि शादी करने वाले व्यक्तियों पर किसी तरह का तत्काल खतरा हो, तो पुलिस तुरंत कार्रवाई करे।

अगर पुलिस धमकी दे तो क्या करें?

  • आयु प्रमाण रखें: विवाह करने वाले दोनों पक्षों के 18/21 साल पूरे होने का प्रमाण हमेशा साथ रखें, जैसे आधार और पासपोर्ट।
  • शादी सुरक्षित तरीके से करें: स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह करें, क्योंकि यह धर्म और जाति से स्वतंत्र कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
  • धमकी का रिकॉर्ड रखें: पुलिस द्वारा भेजी गई धमकी, कॉल, मैसेज या वीडियो सबूत के रूप में सुरक्षित रखें।
  • शिकायत करें: स्थानीय SP या DCP को लिखित शिकायत देकर पुलिस के गलत व्यवहार के खिलाफ कदम उठाएँ।
  • हाई कोर्ट में सुरक्षा: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट पिटीशन दाखिल करे और कोर्ट से सुरक्षा का आदेश मांगें।
  • ह्यूमन राइट्स कमीशन: अगर पुलिस अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है, तो नेशनल या स्टेट ह्यूमन राइट्स कमीशन में शिकायत दर्ज कराएँ।
  • वकील की मदद: विशेषज्ञ वकील से सलाह लेने पर आप कानूनी प्रक्रिया को मजबूत बना सकते हैं। वे रिट पिटीशन या शिकायत तैयार करें, अदालत में आपके अधिकारों की रक्षा करें, सभी दस्तावेज सही तरीके से प्रस्तुत करें और सुरक्षा सुनिश्चित करें।
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स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 – एक मजबूत कानूनी सुरक्षा कवच

स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA) एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो अलग धर्म, जाति या समुदाय के जोड़ों को बिना धर्म बदलने शादी करने की कानूनी अनुमति देता है। यह कानून व्यक्तिगत आज़ादी और समानता का समर्थन करता है।

  • धार्मिक अनुष्ठान की जरूरत नहीं: जोड़े अपनी इच्छा से शादी कर सकते हैं, बिना किसी पूजा या धार्मिक रिवाज के।
  • रजिस्ट्रेशन: शादी को मैरिज रजिस्ट्रार के सामने रजिस्टर कराया जाता है, जिससे कानूनी मान्यता और अधिकार सुनिश्चित होते हैं।
  • सार्वजनिक नोटिस: दोनों पक्षों को 30 दिन का नोटिस देना होता है, ताकि कोई आपत्ति दर्ज कर सके। यह कभी-कभी परिवार द्वारा उत्पीड़न या विरोध के लिए दुरुपयोग भी हो सकता है।

लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006, सुप्रीम कोर्ट)

  • एक महिला ने अपनी मर्जी से दूसरी जाति के व्यक्ति से शादी कर ली। परिवार नाराज़ हुआ और पुलिस ने दबाव में आकर उन्हें परेशान किया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा – बालिग लड़का-लड़की को किसी से भी शादी करने का पूरा अधिकार है। पुलिस और प्रशासन का काम है उन्हें सुरक्षा देना, परेशान करना नहीं।
  • महत्व: यह पहला बड़ा फैसला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को सीधे निर्देश दिए कि ऐसे मामलों में सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

निष्कर्ष

शादी केवल धर्म या जाति का मामला नहीं है, बल्कि दो व्यक्तियों का आपसी चयन है कि वे अपनी ज़िंदगी एक साथ बिताएँ। सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि कोई पुलिस अधिकारी, माता-पिता या समाज, दोनों बालिगों की सहमति वाली शादी को रोकने या गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं रखते।

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हालाँकि, केवल कानून पर्याप्त नहीं है। वास्तविक चुनौती सामाजिक है। जोड़े अक्सर उत्पीड़न, धमकियों और परिवार के विरोध का सामना करते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि:

  • SMA के 30 दिन के नोटिस पीरियड को कम या हटाया जाए, ताकि शादी करने वाले जोखिम से बच सकें।
  • पुलिस को संवेदनशील बनाया जाए, ताकि वे शादी करने वाले की सुरक्षा करें, न कि परिवार या समाज के दबाव पर कार्रवाई।
  • समाज में जागरूकता बढ़ाई जाए कि विवाह व्यक्तिगत अधिकार और संवैधानिक स्वतंत्रता का हिस्सा है।

भारत के युवाओं का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि क्या हम प्यार और सहमति पर आधारित विवाह को डर-मुक्त बना सकते हैं। सच्ची आज़ादी तब होगी जब न केवल अदालतें शादी की सुरक्षा करें, बल्कि परिवार और समाज भी इसे बिना हस्तक्षेप स्वीकार करें।

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FAQs

1. क्या लड़की के माता-पिता की अनुमति बिना शादी करने पर लड़के को पुलिस गिरफ्तार कर सकती है?

नहीं। अगर लड़की बालिग है और उसने अपनी मर्ज़ी से शादी की है, तो पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती।

2. अगर माता-पिता किडनैपिंग का केस दर्ज कर दें तो?

कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर लड़की बालिग है और अपनी मर्जी से गई है, तो ऐसा केस मान्य नहीं होगा।

3. क्या कोर्ट मैरिज के लिए माता-पिता की इजाज़त ज़रूरी है?

नहीं। सिर्फ़ उम्र और दोनों की सहमति मायने रखती है, माता-पिता की अनुमति की ज़रूरत नहीं।

4. अगर पुलिस परेशान करे तो क्या करना चाहिए?

हाई कोर्ट में सुरक्षा के लिए याचिका दायर करें। सुप्रीम कोर्ट के फैसले आपके पक्ष में हैं।

5. क्या बिना धर्म बदलें इंटरफेथ मैरिज हो सकती है?

हाँ। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत आप बिना धर्म बदले शादी कर सकते हैं।

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