क्या सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसले की समीक्षा कर सकता है?

Can the Supreme Court review its own decision

क्या आपने कभी सोचा है कि अगर खुद सुप्रीम कोर्ट से कोई गलती हो जाए तो क्या होता है? क्या देश की सबसे बड़ी अदालत अपना ही फैसला बदल सकती है? और अगर बाद में कोई नया और महत्वपूर्ण सबूत मिल जाए तो क्या कोई उपाय बचता है?

यह सवाल उन सभी लोगों के लिए अहम है जो न्याय पाने के लिए अदालतों पर भरोसा करते हैं। इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि क्या सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसले की समीक्षा कर सकता है, यह प्रक्रिया कैसी होती है और आपके पास कौन-कौन से कानूनी विकल्प उपलब्ध होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट की सर्वोच्चता और फैसले की अंतिमता

सुप्रीम कोर्ट भारत की सबसे बड़ी और सबसे ऊँची अदालत है। ये आख़िरी अदालत होती है जहाँ कोई भी केस जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला देती है, वो देश की सभी निचली अदालतों पर लागू होता है।

अक्सर जब सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला दे देती है, तो समझा जाता है कि अब केस का आख़िरी फैसला हो गया है और मामला ख़त्म हो गया। इसे ही फैसले की अंतिमता कहते हैं। इसका मतलब है कि मुकदमे हमेशा नहीं चलते रह सकते, लोगों को किसी नतीजे की ज़रूरत होती है और न्याय व्यवस्था को भी मामले तय करने होते हैं।

लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट से ही कोई गलती हो जाए तो? या फिर अगर किसी पक्ष को बाद में कोई ज़रूरी और नया सबूत मिल जाए, जो पहले नहीं था? ऐसे में क्या कोई रास्ता बचता है?

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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 137 – फैसले की समीक्षा का अधिकार

भारत का सुप्रीम कोर्ट अपने स्वयं के दिए गए फैसलों की समीक्षा (Review) करने का अधिकार रखता है। लेकिन यह अधिकार स्वतः प्राप्त नहीं है, बल्कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 से आता है।

अनुच्छेद 137 में स्पष्ट रूप से लिखा है:

“संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून या अनुच्छेद 145 के अंतर्गत बनाए गए किसी नियम के अधीन रहते हुए, सुप्रीम कोर्ट को अपने द्वारा दिए गए किसी भी निर्णय या आदेश की समीक्षा करने का अधिकार होगा।”

इसका अर्थ यह है कि संविधान स्वयं सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह अपने किसी भी निर्णय की दोबारा जांच कर सके, लेकिन यह अधिकार कुछ शर्तों और नियमों के अंतर्गत ही प्रयोग की जा सकती है।

यह जानना ज़रूरी है कि रिव्यु पेटिशन, अपील के समान नहीं होती

अपील में मामला किसी उच्च न्यायालय में दोबारा सुना जाता है, जबकि रिव्यु में सुप्रीम कोर्ट से यह अनुरोध किया जाता है कि वह अपने ही पूर्व फैसले की दोबारा जांच करे, केवल विशेष परिस्थितियों में।

सुप्रीम कोर्ट किस आधार पर अपने फैसले की समीक्षा कर सकता है?

  • स्पष्ट गलती: अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई ऐसी गलती हो जो साफ़-साफ़ दिख रही हो, चाहे वो तथ्य से जुड़ी हो या कानून से। ऐसी गलती जो बहस करने लायक न हो, बल्कि सीधे समझ में आ जाए कि गलती है।
  • नया और ज़रूरी सबूत: अगर फैसला आने के बाद कोई ऐसा महत्त्वपूर्ण सबूत सामने आया हो जो पहले उपलब्ध नहीं था, और जो पूरी मेहनत के बाद भी पहले पेश नहीं किया जा सका।
  • न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन: अगर किसी पक्ष को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला, या सुनवाई की प्रक्रिया में कोई अन्य अन्याय हुआ हो।
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ध्यान देने वाली बात: अगर आपको सिर्फ कोर्ट के फैसले से असहमति है, यानी फैसला पसंद नहीं आया, तो सिर्फ इस वजह से रिव्यू पिटिशन नहीं डाली जा सकती। रिव्यू पिटिशन का मकसद यह देखना होता है कि कहीं कोई गंभीर गलती तो नहीं रह गई, ना कि फैसले को दोबारा बहस के लिए खोलना।

सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम संदूर मैंगनीज एंड आयरन ओर्स लिमिटेड (2013) में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत कोर्ट अपने फैसले की समीक्षा केवल उन्हीं मामलों में करेगा, जहां कोई नया और जरूरी सबूत सामने आया हो जो पहले उपलब्ध नहीं था, या फिर फैसले में कोई साफ़ और बड़ी गलती हो, या फिर कोई अन्य ठोस कारण हो जिससे न्याय प्रभावित हुआ हो। सिर्फ फैसले से असहमति होना रिव्यू के लिए पर्याप्त नहीं है।

क्या कोई तीसरा व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दायर कर सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम सेबी (2013) के मामले में कहा कि अगर कोई व्यक्ति उस फैसले का पक्षकार (पार्टी) नहीं था, जिसके खिलाफ रिव्यू पिटिशन डाली जा रही है, तो उसे रिव्यू पिटिशन दाखिल करने का अधिकार नहीं है। यानि, कोई तीसरा व्यक्ति जो उस केस से जुड़ा ही नहीं था, वो रिव्यू पिटिशन नहीं डाल सकता।

रिव्यू पिटिशन दायर करने की समय-सीमा क्या है?

रिव्यू पिटिशन सुप्रीम कोर्ट के फैसले या आदेश की तारीख से 30 दिनों के अंदर दायर करनी होती है। अगर किसी वजह से देरी हो जाए, तो कोर्ट कुछ मामलों में देर से दाखिल पिटिशन भी स्वीकार कर सकता है, लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है और हर मामला कोर्ट अपने हिसाब से देखता है।

रिव्यू पिटिशन की सुनवाई कौन करता है?

आमतौर पर वही जजों की बेंच, जिसने पहले फैसला दिया था, रिव्यू पिटिशन की भी सुनवाई करती है। इसका मकसद यह होता है कि वही जज देखें कि कहीं उनसे कोई गलती तो नहीं हो गई।

रिव्यू पिटिशन दाखिल करने के बाद क्या होता है?

जब आप सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दायर करते हैं, तो आमतौर पर दो ही नतीजे हो सकते हैं:

  • रद्द कर दी जाती है (Dismissed): अगर कोर्ट को लगता है कि रिव्यू पिटिशन में कोई ठोस वजह नहीं है या कोई बड़ी गलती नहीं हुई थी, तो वो पिटिशन को खारिज कर देता है।
  • मंज़ूर कर ली जाती है (Allowed): अगर कोर्ट को लगता है कि पहले के फैसले में कोई गंभीर गलती हो गई थी, तो वो अपने फैसले को बदल सकता है, वापस ले सकता है या पूरी तरह से पलट भी सकता है।

अगर रिव्यू पिटिशन भी खारिज हो जाए, तो एक आखिरी उपाय होता है जिसे क्यूरेटिव पिटिशन (Curative Petition) कहते हैं। लेकिन ध्यान रहे, यह केवल बहुत ही खास और दुर्लभ मामलों में ही स्वीकार की जाती है।

क्यूरेटिव पिटिशन क्या होती है?

क्यूरेटिव पिटिशन सुप्रीम कोर्ट में मिलने वाला आखिरी और विशेष न्यायिक उपाय होता है — जब रिव्यू पिटिशन भी खारिज हो चुकी हो, तब इसे दायर किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (2002) के मामले में शुरू किया था। कोर्ट ने कहा:

“अगर कोर्ट की प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल हुआ हो या न्याय में बहुत बड़ी गलती हुई हो, तो सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को फिर से देख सकता है।”

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किन मामलों में क्यूरेटिव पिटिशन दायर की जा सकती है?

क्यूरेटिव पिटिशन हर उस व्यक्ति के लिए नहीं है जो फैसले से नाराज़ हो। इसे सिर्फ उन्हीं मामलों में माना जाता है जब:

  • अगर किसी पक्ष को अपनी बात रखने का पूरा मौका नहीं मिला हो।
  • अगर फैसला देने वाले जज का किसी एक पक्ष से निजी संबंध था और उसने यह जानकारी नहीं दी।
  • अगर कोर्ट की प्रक्रिया को गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया हो।

क्यूरेटिव पिटिशन कैसे दायर की जाती है?

  • यह पिटिशन रिव्यू पिटिशन खारिज होने के तुरंत बाद उचित समय के अंदर दाखिल करनी होती है।
  • इसके साथ एक सीनियर एडवोकेट का सर्टिफिकेट लगाना जरूरी होता है, जिसमें लिखा हो कि यह केस क्यूरेटिव पिटिशन के नियमों को पूरा करता है।
  • पहले यह पिटिशन सुप्रीम कोर्ट के तीन सबसे सीनियर जजों और उन जजों को भेजी जाती है जिन्होंने पहले फैसला दिया था।
  • अगर ये सभी जज एकमत हों कि मामला दोबारा सुना जाना चाहिए, तभी क्यूरेटिव पिटिशन की सुनवाई आगे बढ़ती है।
  • क्यूरेटिव पिटिशन पर आमतौर पर जज अपने चेंबर में ही फैसला करते हैं, ना कि खुले कोर्ट में।
  • लेकिन अगर याचिकाकर्ता (पिटीशन लगाने वाला) खुली अदालत में सुनवाई की खास मांग करता है और कोर्ट उसे जरूरी मानता है, तभी ओपन कोर्ट में सुनवाई होती है।

निर्भया केस (2012 दिल्ली गैंग रेप केस)

सबसे पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने कुछ आरोपियों को “बहुत ही दुर्लभ” और सख्त मौत की सजा सुनाई। इसके खिलाफ आरोपियों और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2017 को इस सजा को सही ठहराया और कहा कि यह एक बहुत ही हिंसक और डरावना अपराध था जिसने समाज को हिला दिया।

फिर, तीन मुख्य आरोपियों (विनय शर्मा, मुकेश सिंह और अक्षय ठाकुर) ने सुप्रीम कोर्ट से रिव्यू पिटिशन दायर की, यानी अपने फैसले की दोबारा जांच की मांग की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 9 जुलाई 2018 को इन सभी रिव्यू याचिकाओं को खारिज कर दिया क्योंकि कोई नया सबूत या वजह नहीं थी।

उसके बाद, दो आरोपियों (विनय और मुकेश) ने क्यूरेटिव पिटिशन दायर की और अक्षय ने बाद में अपनी क्यूरेटिव पिटिशन दी। पांच जजों की एक बेंच ने जनवरी 2020 में सभी क्यूरेटिव पिटिशन भी खारिज कर दीं। उन्होंने कहा कि कोई ऐसी कानूनी गलती नहीं हुई जो सुधार की जरूरत हो।

इस पूरे मामले का मतलब यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि रिव्यू और क्यूरेटिव पिटिशन कोई “सांत्वना” या दूसरी मौका देने वाली याचिका नहीं हैं। अगर कोई नया ठोस सबूत या बड़ा कारण नहीं होता, तो ये रास्ते बंद हो जाते हैं, चाहे मामला कितना भी चर्चित क्यों न हो।

NJAC फैसला (16 अक्टूबर 2015) और रिव्यू पिटिशन

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की खास बेंच ने अक्टूबर 2015 में 99वें संशोधन और नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट्स कमीशन एक्ट, 2014 को रद्द कर दिया। फिर, 2017 के आखिर में एक कानूनी समूह (नेशनल लॉयर कैंपेन) ने इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल की। लेकिन 2 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे बिना किसी चर्चा के ही खारिज कर दिया। कोर्ट ने इसके पीछे ये वजहें बताई:

  • रिव्यू पिटिशन 470 दिन बाद दाखिल हुई, और इस देरी का कोई ठोस कारण नहीं दिया गया।
  • कोई नया या अलग कानूनी तर्क नहीं था, जो पहले पांच जजों की बेंच के सामने नहीं रखा गया हो।
  • संविधान बेंच के फैसलों की अंतिमता को बनाए रखना जरूरी है, ताकि फैसलों को बार-बार न दोहराना पड़े।
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इसका मतलब क्या है?

यह दिखाता है कि चाहे मामला संविधान से जुड़ा हो या शक्तियों के बंटवारे का हो, सुप्रीम कोर्ट रिव्यू पिटिशन को आसानी से स्वीकार नहीं करता। फैसलों की अंतिमता बहुत महत्वपूर्ण होती है और रिव्यू केवल तभी दिया जाता है जब सच में नए और मजबूत कारण हों।

कानून में फैसले की अंतिमता क्यों जरूरी है?

कभी-कभी यह लग सकता है कि आपको सिर्फ सीमित मौके ही मिलते हैं किसी फैसले को चुनौती देने के लिए। लेकिन फैसले की अंतिमता न्याय प्रणाली का बहुत जरूरी हिस्सा है। इसके कुछ फायदे हैं:

  • कानूनी स्पष्टता: लोग जानते हैं कि उनका मामला किस मोड़ पर है।
  • न्यायिक दक्षता: कोर्ट नए और जरूरी मामलों पर ध्यान दे पाता है।
  • जनता का भरोसा: बार-बार मुकदमे लड़ने से लोगों का सिस्टम पर विश्वास कम हो जाता है।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट अपने फैसलों की समीक्षा बहुत सोच-समझकर ही करता है।

महत्वपूर्ण बातें:

अगर आपको लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आपके मामले में बहुत बड़ी गलती पर आधारित है, तो ध्यान रखें:

  • एक अनुभवी वकील से जरूर सलाह लें।
  • तय समय के अंदर ही पिटिशन दाखिल करें।
  • रिव्यू के कारणों को साफ और स्पष्ट बताएं।
  • वो बातें दोहराएं नहीं जो पहले ही कोर्ट ने देख ली हों।

निष्कर्ष

हाँ, सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसले की दोबारा जांच (रिव्यू) कर सकता है, लेकिन ये मौका बहुत ही खास और दुर्लभ मामलों में ही दिया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत रिव्यू पिटिशन का प्रावधान है, और कुछ बहुत गंभीर मामलों में क्यूरेटिव पिटिशन भी लगाई जा सकती है।

इन उपायों का मकसद यह है कि अगर कभी किसी फैसले में भारी गलती हो जाए, तो उसे सुधारा जा सके, लेकिन साथ ही, मुकदमों को हमेशा के लिए खींचते न रहें, यह भी जरूरी है।

अगर आपको लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आपके साथ अन्याय हुआ है या कोई बड़ी गलती रह गई है, तो किसी अनुभवी वकील से तुरंत सलाह लें

समय पर और सही जानकारी के साथ फैसला लेना आपके केस में बड़ा बदलाव ला सकता है।

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FAQs

1. क्या सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले की समीक्षा कर सकता है?

हाँ, संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय की समीक्षा कर सकता है।

2. रिव्यू पिटिशन दाखिल करने की प्रक्रिया क्या है?

आपको 30 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल करनी होती है।

3. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटिशन दायर करने के बाद कोर्ट क्या कदम उठाता है?

कोर्ट पहले चैंबर में सुनवाई करता है, और ज़रूरत पड़ने पर ओपन कोर्ट में सुनवाई भी हो सकती है।

4. क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटिशन दायर करने का समय सीमा है?

हाँ, आमतौर पर 30 दिन के अंदर याचिका दाखिल करनी होती है।

5. क्या सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को पूरी तरह से बदल सकता है?

अगर कोर्ट को लगता है कि पहले का फैसला गलत था, तो वो पूरी तरह से बदल सकता है।

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