अगर कोर्ट का फैसला मेरे खिलाफ है तो मैं अपील कैसे करूं? CPC की धारा 96 की प्रक्रिया

How do I appeal if the court's decision is against me Procedure under section 96 of CPC

किसी अदालत का फैसला आपके खिलाफ आना बहुत ही भावनात्मक और मानसिक रूप से परेशान करने वाला अनुभव हो सकता है। ऐसे में आम आदमी का सबसे पहला सवाल होता है – “अब मैं क्या करूं?”

क्या अदालत का हर फैसला अंतिम होता है? नहीं। भारत का कानून आपको यह अधिकार देता है कि अगर आपको लगता है कि निचली अदालत ने गलत निर्णय दिया है, तो आप ऊँची अदालत में अपील कर सकते हैं।

यह अपील सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 96 के तहत दाखिल की जाती है।

अपील का मतलब क्या है?

अपील वह प्रक्रिया है जिसके जरिए कोई भी पक्ष जो किसी कोर्ट के निर्णय से असहमत है, वह ऊँची अदालत में जाकर उस निर्णय की समीक्षा की मांग करता है।

अपील और रिव्यु में अंतर:

  • अपील: उच्च न्यायालय में की जाती है और यह पूरी तरह से केस की दोबारा जांच हो सकती है।
  • रिव्यु: उसी अदालत से किया जाता है जिसने फैसला दिया हो और यह बहुत सीमित आधार पर होता है।

क्यों करें अपील? – एक आम नागरिक का अनुभव

  • अगर आपको लगता है कि निर्णय में कानूनी या तथ्यों की गलती हुई है।
  • आपने मुकदमा सही से लड़ा लेकिन जज ने गलत व्याख्या की।
  • न्यायिक प्रणाली में एक और अवसर पाने के लिए।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कोड ऑफ़ सिविल प्रोसीजर की धारा 96 क्या कहती है?

अगर ट्रायल कोर्ट (जैसे सिविल जज या डिस्ट्रिक्ट जज) किसी सिविल केस में अंतिम फैसला देता है और वह फैसला किसी पक्ष के खिलाफ जाता है, तो वह व्यक्ति उस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में पहली अपील कर सकता है।

यानी अगर आप केस हार जाते हैं, तो कानून आपको एक और मौका देता है कि आप ऊपरी अदालत में अपना पक्ष फिर से रख सकें।

धारा 96 के तहत अपील कब कर सकते हैं?

आप धारा 96 सीपीसी के तहत अपील कर सकते हैं अगर:

  • ट्रायल कोर्ट ने किसी सिविल केस में अंतिम फैसला (डिक्री) दे दिया हो।
  • वह फैसला आपके खिलाफ गया हो – पूरी तरह या कुछ हद तक।
  • कानून में ऐसा कोई नियम न हो जो अपील करने से रोकता हो।

लेकिन आप अपील नहीं कर सकते अगर:

  • फैसला केस खत्म होने से पहले दिया गया कोई अस्थायी (इंटरिम) आदेश हो।
  • दोनों पक्षों की सहमति से फैसला हुआ हो।
  • फैसला स्मॉल कॉज कोर्ट (छोटे मामलों की अदालत) ने दिया हो।
इसे भी पढ़ें:  क्या आर्य समाज मंदिर 'स्पेशल मैरिज एक्ट' से जुड़ा है?

अपील कौन कर सकता है?

  • कोई भी व्यक्ति जिसे कोर्ट के फैसले से सीधे तौर पर नुकसान हुआ हो।
  • जो व्यक्ति असली केस में पक्षकार (वादी या प्रतिवादी) था।
  • अगर वह व्यक्ति अब ज़िंदा नहीं है, तो उसके कानूनी वारिस, प्रतिनिधि या जिन्हें उसने अपना हक सौंपा हो।

उदाहरण: अगर आप किसी सिविल केस में प्रतिवादी (Defendant) थे और कोर्ट ने आदेश दिया कि आप वादी (Plaintiff) को ₹5 लाख चुकाएं, तो आप इस फैसले के खिलाफ धारा 96 के तहत अपील कर सकते हैं।

अपील कहां दाखिल की जाती है?

  • अपील हमेशा उस अदालत में की जाती है जो ट्रायल कोर्ट से एक स्तर ऊपर होती है।
  • अगर ट्रायल कोर्ट सिविल जज (जूनियर डिवीजन) थी, तो अपील डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में की जाती है।
  • अगर ट्रायल कोर्ट डिस्ट्रिक्ट जज थे, तो अपील हाई कोर्ट में करनी होती है।
  • सीधी भाषा में कहें तो, जहां से फैसला आया है उससे एक ऊंची अदालत में अपील करनी होती है।

अपील करने की समय सीमा

  • आपको अपील फैसले या डिक्री की तारीख से 90 दिनों के अंदर करनी होती है। अगर आप इस समय सीमा से चूक जाते हैं, तो आपको लीमीटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत एक अलग अर्जी लगानी पड़ेगी जिसमें देरी का कारण बताना होगा। कोर्ट आपकी देरी को मान भी सकता है और मना भी कर सकता है।
  • ज़रूरी सलाह: अगर आप अपील करने का सोच रहे हैं, तो फैसला आते ही किसी वकील से तुरंत सलाह लें, ताकि समय रहते अपील की जा सके।

अपील में क्या-क्या होना चाहिए?

अपील लिखित में होनी चाहिए और इसमें ये बातें शामिल होनी जरूरी हैं:

  • अपील का मेमोरेंडम जिसमें आप बताएं कि आप अपील क्यों कर रहे हैं (अपील के कारण) ।
  • उस फैसला (जजमेंट/डिक्री) की कॉपी जिसके खिलाफ आप अपील कर रहे हैं।
  • जरूरी कोर्ट फीस।
  • ट्रायल कोर्ट में पेश किए गए सबूत (अगर जरूरत हो) ।
  • प्रमाणित दस्तावेज़ और जरूरी संलग्नक।
  • मेमोरेंडम में साफ-साफ बताया जाना चाहिए कि आपको क्यों लगता है कि फैसला गलत है, जैसे कानून की गलत व्याख्या, तथ्यों को गलत समझना, या न्याय न मिलना।
इसे भी पढ़ें:  CARA Act में कपल द्वारा अविवाहित महिला से बच्चा गोद लेने की प्रकिया

अपील दायर करने के बाद क्या होता है?

जब आप अपील दाखिल कर देते हैं, तो उसके बाद ये प्रक्रिया होती है:

  • कोर्ट जांच करती है – क्या सारे दस्तावेज़ ठीक से लगे हैं या नहीं।
  • नोटिस जारी होता है – दूसरी पार्टी (प्रतिवादी) को बताया जाता है कि आपने अपील की है।
  • जवाब दाखिल होता है – दूसरी पार्टी अपनी तरफ से जवाब दे सकती है।
  • सुनवाई होती है – दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क कोर्ट के सामने रखते हैं।
  • फैसला आता है
    • कोर्ट अपील खारिज कर सकती है (मतलब ट्रायल कोर्ट का फैसला सही मानती है),
    • कोर्ट अपील मंजूर कर सकती है (फैसला बदल सकती है या हटा सकती है),
    • या कोर्ट केस को दोबारा सुनने का आदेश दे सकती है।

अगर अपील में आपका पक्ष सही निकलता है तो क्या होता है?

अगर ऊपरी अदालत (अपील कोर्ट) को लगता है कि आपकी अपील सही है, तो वह:

  • ट्रायल कोर्ट का फैसला पलट सकती है,
  • फैसले में बदलाव कर सकती है,
  • केस को दोबारा सुनवाई के लिए निचली अदालत भेज सकती है (इसे रिमांड कहते हैं),
  • या जो राहत पहले नहीं मिली थी, वह अब दे सकती है।

इसका मतलब हो सकता है कि आपको कम मुआवज़ा देना पड़े, पैसे चुकाने का आदेश हट जाए, या पुराना केस पूरी तरह से खारिज हो जाए।

क्या अपील में नए सबूत पेश किए जा सकते हैं?

सामान्य तौर पर, अपील में नए सबूत नहीं दिए जा सकते। अपील कोर्ट ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड पर ही फैसला लेती है।

लेकिन Order XLI Rule 27 CPC के अनुसार कुछ खास हालात में नए सबूत दिए जा सकते हैं, जैसे:

  • जब ट्रायल के समय वह सबूत मौजूद नहीं था, जबकि आपने पूरी कोशिश की थी,
  • जब ट्रायल कोर्ट ने गलती से सबूत लेने से मना कर दिया था,
  • या जब अपील कोर्ट को लगता है कि न्याय के लिए वह सबूत ज़रूरी है।

अगर अपील भी हार जाए तो क्या करें?

अगर अपील में भी कोर्ट का फैसला आपके खिलाफ जाता है, तो आपके पास एक और मौका हो सकता है, सेकंड अपी जो धारा 100 CPC के तहत होती है।

लेकिन सेकंड अपील तभी होती है जब मामला किसी कानूनी सवाल से जुड़ा हो, ना कि सिर्फ तथ्यों से।

इसे भी पढ़ें:  मुस्लिम महिलाओं के अधिकार ट्रिपल तलाक़ कानून का असली प्रभाव क्या है?

यह अपील बहुत सीमित मामलों में ही मंज़ूर होती है, जैसे अगर ट्रायल या अपील कोर्ट ने कोई बड़ा कानूनी नियम गलत तरीके से लागू किया हो। ऐसे मामलों में आप फिर से हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं।

अंतविचार

अगर आपका केस कोर्ट में हार गया है, तो दुख होना स्वाभाविक है। लेकिन घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि भारतीय कानून आपको एक और मौका देता है। सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 96 के तहत आप अपने फैसले को ऊपरी अदालत में चैलेंज कर सकते हैं। इसका मतलब है कि अगर निचली अदालत में कोई गलती हुई हो, तो उसे सुधारा जा सकता है। बस सही समय पर सही कानूनी सलाह लें और ज़रूरी कदम उठाएँ। हो सकता है कि फैसला आपके हक़ में बदल जाए।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQ

1. क्या मैं बिना वकील के भी अपील कर सकता हूँ?

हां, आप स्व-प्रतिनिधित्व (self-representation) कर सकते हैं। परन्तु अपील प्रक्रिया बहुत तकनीकी होती है—डेडलाइन, नोटिस, दस्तावेज़—इसलिए वकील की सहायता आपके केस की सफलता बढ़ा सकती है।

2. अगर अपील हार जाए तो आगे क्या विकल्प हैं?

अगर पहली अपील असफल रहती है, तो आप धारा 100 के तहत द्वितीय अपील, पुनर्विचार याचिका, या SLP (सुप्रीम कोर्ट में सीधी अपील) का रास्ता अपना सकते हैं, विशिष्ट परिस्थितियों में मान्यता मिलती है।

3. अपील दाखिल करने में कितना खर्च आता है?

अपील का खर्च कोर्ट फीस, वकील की फीस और दस्तावेज तैयार करने की लागत पर निर्भर करता है। ये आपके केस के मूल्य, कोर्ट का स्तर और वकील के अनुभव से तय होता है।

4. क्या अपील करने से निचली अदालत का आदेश रुक जाता है?

नहीं, अपील करने भर से आदेश रुका नहीं रहता। रोक चाहिए तो आपको स्टे आर्डर के लिए कोर्ट में अलग अर्जी लगानी होगी, वहीं से असर शुरू होता है।

5. क्या सिविल डिक्री के खिलाफ सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं?

सामान्यतः नहीं। सिविल डिक्री पर सीधे सुप्रीम कोर्ट की अपील संभव नहीं—पहले पहली अपील, फिर द्वितीय अपील के रास्ते अपनाने होते हैं, तभी SLP विचारित होती है।

Social Media