कोर्ट में सबूतों की जांच कैसे होती है?

How is evidence examined in court

अदालत में सबूतों की जांच क्यों ज़रूरी है?

जब भी कोई केस अदालत में जाता है, तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं — सबूत। यही सबूत तय करते हैं कि कौन सही है और कौन गलत। अदालत का उद्देश्य होता है न्याय करना, और इसके लिए उसे हर दावे की सच्चाई को परखना होता है।

सबूत दस्तावेज, फोटो, वीडियो, ऑडियो, गवाह की गवाही या इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में हो सकते हैं। लेकिन क्या हर सबूत कोर्ट में मान्य होता है? नहीं। इसके लिए कानूनी प्रक्रिया और नियम होते हैं।

भारत में सबूतों की जांच के लिए कौन से कानून लागू होते हैं?

भारत में सबूतों की जांच मुख्य रूप से दो कानूनों के तहत होती है:

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भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 

  • यह तय करता है कि कौन सा सबूत कोर्ट में स्वीकार्य होगा।
  • इसमें मौखिक साक्ष्य (Sections 54–55), दस्तावेजी साक्ष्य (Sections 56–72), और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Section 61) से संबंधित दिशा-निर्देश शामिल हैं।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023

  • इसमें बताया गया है कि कैसे गवाहों से बयान लिया जाए (धारा 183, 187), सबूत कैसे रिकॉर्ड किए जाएं, और कोर्ट में प्रक्रिया कैसे चले।

कोर्ट में सबूतों की जांच की प्रक्रिया क्या होती है?

कोर्ट में हर सबूत की जांच एक विशेष प्रक्रिया के तहत होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह सच्चा, प्रामाणिक और केस से संबंधित है।

प्रस्तुतीकरण (Presentation): दोनों पक्ष (याचिकाकर्ता और प्रतिवादी) अपने-अपने सबूत कोर्ट में पेश करते हैं — जैसे दस्तावेज, रिकॉर्डिंग, फोटो आदि।

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प्रमाणीकरण (Authentication): अदालत देखती है कि क्या सबूत असली है।

जैसे:

  • दस्तावेज की तारीख और हस्ताक्षर सही हैं या नहीं
  • डिजिटल सबूत का 65B सर्टिफिकेट है या नहीं

साक्ष्य (Testimony): अगर सबूत किसी गवाह से जुड़ा है, तो कोर्ट उसकी गवाही सुनती है और जिरह (Cross-examination) के जरिए उसकी विश्वसनीयता की जांच करती है।

कोर्ट में गवाह की भूमिका क्या होती है?

गवाहों की गवाही सबसे महत्वपूर्ण सबूतों में मानी जाती है। लेकिन सिर्फ बोल देना ही पर्याप्त नहीं — गवाह की ईमानदारी, मूल्यांकन क्षमता और जवाबों की स्थिरता को भी जज किया जाता है।

गवाह से जुड़े अहम बिंदु:

  • धारा 124: कौन गवाह बन सकता है
  • धारा 142–143: एग्जामिनेशन इन चीफ और क्रॉस  एग्जामिनेशन की प्रक्रिया
  • धारा 158: गवाह की विश्वसनीयता को चुनौती देना

क्या गवाह के बिना भी सबूत मान्य हो सकते हैं?

हां, लेकिन उनकी प्रमाणिकता साबित करना जरूरी है।
उदाहरण:
अगर कोई वीडियो या ऑडियो क्लिप कोर्ट में दी जाती है, तो उसके साथ भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 61 और  63 के तहत डिजिटल प्रमाणपत्र देना आवश्यक होता है।

सबूतों की जांच कौन करता है?

जज  ही अदालत में पेश किए गए हर सबूत की जांच करते हैं।

वे यह तय करते हैं:

  • क्या सबूत वैध और स्वीकार्य है?
  • क्या सबूत का स्रोत प्रमाणिक है?
  • क्या वह केस के तथ्यों से मेल खाता है?

यदि कोई सबूत गलत या नकली हो, तो कोर्ट उसे अस्वीकार भी कर सकता है।

क्या झूठे सबूत देने पर सज़ा हो सकती है?

बिलकुल।

  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 229 के तहत अगर कोई जानबूझकर कोर्ट में झूठा सबूत देता है, तो उसे 7 साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है।
  • गवाह अगर झूठी गवाही देता है, तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है।
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निष्कर्ष – सबूतों की जांच से ही सच्चाई सामने आती है

कोर्ट का मकसद होता है न्याय देना, और न्याय बिना सटीक सबूतों के अधूरा है। इसीलिए सबूतों की जांच एक गहरी और जिम्मेदार प्रक्रिया होती है जिसमें हर दस्तावेज, हर बयान और हर गवाह की जांच ईमानदारी से की जाती है। सही प्रक्रिया अपनाकर ही एक निष्पक्ष निर्णय संभव है।

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FAQs

1. कोर्ट में सबूतों की जांच कौन करता है?

कोर्ट के जज ही सबूतों की वैधता और महत्व तय करते हैं।

2. क्या गवाह की गवाही ही सबसे अहम सबूत होती है?

नहीं, अन्य सबूत जैसे दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी उतने ही अहम हो सकते हैं।

3. क्या इलेक्ट्रॉनिक सबूत बिना गवाह के मान्य होते हैं?

हां, लेकिन Section 65B सर्टिफिकेट के साथ।

4. क्या झूठे सबूत देने पर सजा मिलती है?

हां, BNS की धारा 229 के तहत सजा का प्रावधान है।

5. क्या कोर्ट में बिना गवाह के केस जीता जा सकता है?

संभव है, अगर दस्तावेज या अन्य साक्ष्य पर्याप्त और प्रमाणिक हों।

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