घर खरीदना बहुत खुशी की बात होती है, लेकिन रियल एस्टेट में फ्रॉड भी सबसे ज़्यादा यहीं होता है, क्योंकि कई लोग कागज़ों पर आँख मूँदकर भरोसा कर लेते हैं। आजकल नकली डॉक्यूमेंट इतने असली जैसे दिखते हैं कि असली-नकली पहचानना मुश्किल हो जाता है। कई बार जमीन या घर से जुड़े झगड़े शुरू में छिपे रहते हैं और सच तब पता चलता है, जब बहुत देर हो चुकी होती है।
सबसे सुरक्षित तरीका किस्मत नहीं, बल्कि सही तैयारी है। हर असली प्रॉपर्टी के पीछे साफ़ कागज़ी रिकॉर्ड होता है, और हर फर्जी सौदे में कुछ न कुछ गड़बड़ी जरूर मिलती है। जब आप जान लेते हैं कि कौन सा कागज़ देखना है, कहाँ से चेक करना है, और जानकारी कैसे पक्की करनी है, तो डर खत्म हो जाता है और आप अपने निवेश पर पूरा नियंत्रण पा लेते हैं। यह ब्लॉग आपको इसी में मदद करेगा: हर डॉक्यूमेंट को समझने में, उसे भरोसे के साथ चेक करने में, और ऐसा फ़ैसला लेने में जो कानूनी तौर पर सही हो और आपके पैसों को सुरक्षित रखे।
भारत में होने वाले आम प्रॉपर्टी फ्रॉड
सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि प्रॉपर्टी में फ्रॉड कैसे होता है, ताकि आप पहले से सावधान रह सकें।
- असली मालिक न होना और फिर भी जमीन बेचना: कुछ लोग खुद को मालिक बताकर नकली कागज़ों से जमीन बेच देते हैं।
- एक ही जमीन कई लोगों को बेचना: फ्रॉड एक ही प्रॉपर्टी कई खरीदारों को बेचकर सबका पैसा ले लेते हैं।
- नकली कागज़ बनाना: जैसे फर्जी सेल डीड, फर्जी NOC, या झूठा पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करना।
- गिरवी या विवाद वाली प्रॉपर्टी बेचना: बैंक लोन पर चल रही या अदालत में चल रहे विवाद वाली प्रॉपर्टी अनजान खरीदार को बेच दी जाती है।
- पावर ऑफ अटॉर्नी का गलत इस्तेमाल: POA रखने वाला व्यक्ति मालिक की सही मंज़ूरी के बिना प्रॉपर्टी बेच देता है।
- फर्जी बिल्डर और अवैध निर्माण: कुछ बिल्डर बिना मंज़ूरी, बिना रजिस्ट्रेशन या गलत नक्शे पर प्रोजेक्ट बेच देते हैं।
इन फ्रॉड को समझने से आपको किसी भी संदिग्ध या गड़बड़ दस्तावेज़ को पकड़ने में आसानी होगी।
दस्तावेज़ों की जाँच क्यों ज़रूरी है?
ज़्यादातर लोग कागज़ों को जाँचने की जिम्मेदारी दलाल या बिल्डर पर छोड़ देते हैं, और यहीं से समस्या शुरू होती है, क्योंकि—
- दलाल को हमेशा कानूनी जानकारी नहीं होती
- बिल्डर कई बार मंज़ूरियाँ छुपा लेते हैं
- कुछ विक्रेता खरीदार को जानबूझकर गलत बताकर गुमराह करते हैं
- कई खरीदार बिना पढ़े दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर कर देते हैं
दस्तावेज़ों की सही तरीके से जाँच करने से आपको ये फायदे मिलते हैं:
- प्रॉपर्टी का असली मालिक कौन है, यह पता चलता है
- जमीन पर कोई विवाद या केस नहीं होता
- उस पर कोई बकाया लोन या बंधक नहीं होता
- निर्माण और मंज़ूरियाँ कानून के अनुसार होती हैं
- आपका पैसा सुरक्षित रहता है और फ्रॉड होने की संभावना कम हो जाती है
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले ज़रूरी कागज़ात की पूरी जाँच – आसान और सुरक्षित तरीका
1. टाइटल डीड – मालिकाना हक़ का मुख्य सबूत
यह वह असली कागज़ होता है जो बताता है कि प्रॉपर्टी का असली मालिक कौन है। जाँचें:
- नाम सही है या नहीं
- मालिक ने यह प्रॉपर्टी कैसे पाई
- यह ओरिजिनल पेपर है या फोटो कॉपी
- प्रॉपर्टी का विवरण ज़मीन/फ्लैट से मेल खाता है या नहीं
क्यों ज़रूरी: गलत या नकली टाइटल डीड मिलने पर पूरी प्रॉपर्टी धोखे में चली जा सकती है।
2. एन्कम्ब्रेन्स सर्टिफिकेट (EC) – प्रॉपर्टी पर कोई कर्ज़ या केस है या नहीं
यह सर्टिफिकेट बताता है कि प्रॉपर्टी पर:
- कोई बैंक का लोन है या नहीं
- कोई पुराना क़र्ज़ बकाया है या नहीं
- कोई कानूनी झगड़ा या ट्रांज़ैक्शन रिकॉर्ड में है या नहीं
क्यों ज़रूरी: EC साफ़ होने का मतलब – प्रॉपर्टी बिना झंझट और सुरक्षित है।
3. सेल एग्रीमेंट / एग्रीमेंट टू सेल
यह पहला कानूनी पेपर होता है जिसमें खरीदार–विक्रेता की शर्तें लिखी होती हैं। इसमें देखें:
- पैसे देने की शर्तें
- प्रॉपर्टी की सीमा/साइज
- रजिस्ट्रेशन की तारीख
- कोई बकाया बिल/चार्ज कौन भरेगा
क्यों ज़रूरी: गलत एग्रीमेंट आगे बड़े झगड़ों और धोखाधड़ी का कारण बनता है।
4. पावर ऑफ अटॉर्नी (POA) – अगर कोई और व्यक्ति बेच रहा हो
अगर मालिक की जगह कोई और बेच रहा है तो POA ज़रूरी होता है। जाँचें:
- POA असली है या नकली
- POA रजिस्टर्ड है या नहीं
- मालिक ज़िंदा है और उसने यह POA रद्द तो नहीं किया
क्यों ज़रूरी: गलत POA वाले केस में खरीदार सबसे बड़ा नुकसान झेलता है।
5. प्रॉपर्टी टैक्स रसीदें
यह रसीदें साबित करती हैं कि मालिक ने सरकारी टैक्स समय पर भरे हैं।
क्यों ज़रूरी: अगर टैक्स नहीं भरा गया हो, तो जुर्माना या बकाया आपकी जिम्मेदारी बन सकता है।
6. म्यूटेशन रिकॉर्ड / खाता / 7/12 एक्सट्रैक्ट
यह सरकारी रिकॉर्ड होता है जिसमें लिखा होता है कि प्रॉपर्टी किसके नाम पर दर्ज है। इससे पता चलता है:
- असली मालिक कौन है
- ज़मीन की श्रेणी क्या है
- कुल क्षेत्रफल कितना है
क्यों ज़रूरी: इससे सरकारी रिकॉर्ड और असल मालिकाना हक़ साफ़ होता है।
7. अप्रूव्ड बिल्डिंग प्लान
अगर आप घर या फ्लैट ले रहे हैं, तो बिल्डर का नक्शा सरकारी अथॉरिटी से पास होना चाहिए।
क्यों ज़रूरी: ग़ैर-कानूनी निर्माण पकड़ा गया तो मकान तोड़ा भी जा सकता है।
8. ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट (OC) और कम्प्लीशन सर्टिफिकेट (CC)
- कम्प्लीशन सर्टिफिकेट बताता है कि बिल्डिंग ठीक से बनकर पूरी हो गई है।
- ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट बताता है कि बिल्डिंग में रहना सुरक्षित और कानूनी रूप से अनुमति है।
क्यों ज़रूरी: बिना OC/CC की इमारत “ग़ैर-कानूनी” मानी जाती है।
9. RERA रजिस्ट्रेशन (नई प्रोजेक्ट के लिए)
हर नए प्रोजेक्ट को RERA में रजिस्टर्ड होना जरूरी है। आप देख सकते हैं:
- प्रोजेक्ट कब पूरा होगा
- बिल्डर ने कौन सा नक्शा और वादा किया
- किसी केस या शिकायत की जानकारी
क्यों ज़रूरी: RERA खरीदार के पैसे की सुरक्षा करता है।
10. NOCs (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट)
कई विभागों की अनुमति ज़रूरी होती है, जैसे:
- बिजली विभाग
- पानी बोर्ड
- फायर विभाग
- पर्यावरण विभाग
क्यों ज़रूरी: अगर NOC न हो, तो बाद में कानूनी रोक या जुर्माना लग सकता है।
11. बैंक रिलीज़ लेटर (अगर प्रॉपर्टी पर लोन है)
अगर मालिक ने इस प्रॉपर्टी पर पहले लोन लिया था, तो यह ज़रूरी है कि:
- बैंक ने लोन बंद किया हो
- “नो ड्यूज़” लेटर दिया हो
- बैंक ने प्रॉपर्टी को अपनी गिरवी से रिलीज़ किया हो
क्यों ज़रूरी: अगर रिलीज़ लेटर नहीं है, तो प्रॉपर्टी बैंक के कब्ज़े में भी हो सकती है।
प्रॉपर्टी के दस्तावेज़ों को कैसे वेरिफाई करें?
स्टेप 1: सब-रजिस्ट्री ऑफिस जाएँ सबसे पहले रजिस्ट्री ऑफिस में जाकर देखें कि प्रॉपर्टी का असली मालिक कौन है, पहले किसके नाम थी और कोई केस या विवाद तो दर्ज नहीं है।
स्टेप 2: एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट (EC) लें EC से पता चलता है कि इस प्रॉपर्टी पर कोई लोन, बकाया या कानूनी बोझ तो नहीं है।
स्टेप 3: नगरपालिका/नगर निगम ऑफिस में जानकारी लें यहाँ जाकर जमीन/फ्लैट के सरकारी रिकॉर्ड, म्यूटेशन (नाम चढ़ना) और टैक्स भुगतान की स्थिति जाँचें।
स्टेप 4: प्रॉपर्टी की मौके पर जाँच करें दस्तावेज़ों में लिखी जानकारी को असली जगह से मिलाएँ – जैसे प्लॉट का आकार, सीमाएँ, बिल्डिंग नंबर और मंज़ूरशुदा नक्शा।
स्टेप 5: RERA वेबसाइट पर प्रोजेक्ट जाँचें यह देखें कि बिल्डर रेरा में रजिस्टर्ड है या नहीं, प्रोजेक्ट के पास जरूरी मंज़ूरियाँ हैं या नहीं और बिल्डर पर कोई शिकायत तो नहीं।
स्टेप 6: किसी प्रॉपर्टी वकील से जाँच कराएँ वकील आसानी से यह जाँच सकते हैं:
- सेल डीड
- टाइटल चेन
- एनओसी
- पुराने विवाद या मुकदमे
स्टेप 7: विक्रेता की पहचान की पुष्टि करें आधार, पैन और पता जाँचें ताकि कोई फर्जी व्यक्ति मालिक बनकर प्रॉपर्टी न बेच रहा हो।
किन बातों से सावधान रहें?
डील रोक दें अगर आपको ये बातें दिखें—
- विक्रेता असली डॉक्यूमेंट दिखाने से मना करे
- प्रॉपर्टी की कीमत बाजार से बहुत कम हो
- तुरंत पैसा जमा करने का दबाव बने
- बिल्डिंग के पास एप्रूव्ड प्लान न हो
- अनरजिस्टर्ड पावर ऑफ अटॉर्नी से प्रॉपर्टी बेची जा रही हो
- सिर्फ टोकन मनी पर बुकिंग की जा रही हो
- बिल्डर कैश मांग रहा हो
- अगर इनमें से कुछ भी दिखे, तुरंत रुकें और दोबारा पूरी जाँच करें।
अगर आप प्रॉपर्टी फ्रॉड का शिकार हो जाएँ तो क्या करें?
अगर आपके साथ प्रॉपर्टी में धोखा हो गया है, तो घबराएँ नहीं। क़ानून आपके साथ खड़ा है। आप ये कदम उठा सकते हैं:
1. पुलिस में FIR दर्ज करवाएँ
अगर किसी ने नकली कागज़ दिखाए, फर्जी सिग्नेचर किए या पैसे लेकर धोखाधड़ी की है, तो भारतीय न्याय संहिता 2023 की इन धाराओं के तहत FIR हो सकती है:
- धारा 318 – धोखाधड़ी
- धारा 336 – नकली कागज़ बनाना
2. सिविल कोर्ट में केस करके फर्जी सेल डीड कैंसिल करवाएँ
अगर प्रॉपर्टी गलत तरीके से बेच दी गई है तो:
- कोर्ट उस सेल डीड को अवैध घोषित कर सकता है।
- इससे आपकी प्रॉपर्टी वापस सुरक्षित हो जाती है।
3. RERA में शिकायत (अगर बिल्डर ने धोखा किया है)
अगर प्रोजेक्ट टाइम पर नहीं दिया, गलत वादा किया या पैसा लेकर काम नहीं किया, तो RERA में शिकायत करके रिफंड, कंपेंसेशन या पजेशन मांग सकते हैं।
4. कंज़्यूमर कोर्ट में केस
अगर बिल्डर या ब्रोकर ने खराब सर्विस दी है या गलत जानकारी दी है, तो कंज़्यूमर कोर्ट से मुआवज़ा और रिफंड मिल सकता है।
5. कोर्ट से स्टे ऑर्डर लें
- अगर आपकी प्रॉपर्टी को आगे बेचने की कोशिश हो रही है, तो कोर्ट से इंटरिम इंजंक्शन लेकर आगे की बिक्री रोक सकते हैं।
- एक विशेषज्ञ प्रॉपर्टी वकील की मदद लेकर आप अपने पैसे और हक को आसानी से वापस पा सकते हैं।
प्रॉपर्टी फ्रॉड से बचने के आसान और भरोसेमंद उपाय
ये छोटे-छोटे कदम आपको बड़े नुकसान से बचा सकते हैं:
- सिर्फ बातों पर भरोसा न करें, हर वादा लिखित में लें
- हमेशा ओरिजिनल डॉक्यूमेंट ही देखें
- कैश पेमेंट न करें, सिर्फ बैंक ट्रांजैक्शन करें
- प्रॉपर्टी के रिकॉर्ड ऑनलाइन चेक करें
- खरीदने से पहले प्रॉपर्टी वकील से डॉक्यूमेंट्स चेक करवाएँ
- बिल्डर प्रोजेक्ट का RERA नंबर ज़रूर देखें
- प्रॉपर्टी के आसपास के लोगों से जानकारी लें
- जल्दबाज़ी न करें, धोखेबाज़ लोग जल्दी फैसले का दबाव डालते हैं
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय
शांति देवी बनाम जगन देवी (2025)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई सेल डीड शुरुआत से ही फर्जी या अवैध है, तो इसे वैसा ही माना जाएगा जैसे कभी मौजूद ही नहीं थी। अलग से “डिक्लेरेशन सूट” दायर करने की ज़रूरत नहीं।
- ऐसी डीड पर केस करने की लिमिटेशन पीरियड 12 साल होती है (न कि 3 साल)।
- मतलब: फर्जी डीड होने पर भी आप या आपके वारिस 12 साल के भीतर प्रॉपर्टी का हक़ वापस ले सकते हैं।
- महत्व: फर्जी डीड के खिलाफ लंबी कानूनी सुरक्षा मिलती है।
के. गोपी बनाम सब‑रजिस्टार (2025)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रजिस्टर्ड डीड = मालिकाना हक़ नहीं। असली मायना यह है कि विक्रेता के पास साफ़ टाइटल, वैध कब्ज़ा और ओनरशिप चेन हो।
- रजिस्ट्रार केवल दस्तावेज़ रिकॉर्ड करता है, मालिकाना हक़ तय नहीं करता।
- मतलब: सिर्फ रजिस्ट्री पर भरोसा न करें; टाइटल, EC, कब्ज़ा और अन्य कानूनी चीज़ें खुद चेक करें।
- महत्व: यह फैसला खरीदारों को पूरी जांच करने की चेतावनी देता है।
निष्कर्ष
प्रॉपर्टी फ्रॉड अचानक नहीं होता, यह तब होता है जब हम कागज़ों की जाँच ठीक से नहीं करते। भारत में प्रॉपर्टी खरीदना बिल्कुल सुरक्षित है, बस आपको हर डॉक्यूमेंट को ध्यान से चेक करना होता है। कुछ घंटे की जाँच आपको सालों की टेंशन, कोर्ट केस और पैसों के नुकसान से बचा सकती है।
याद रखें – आपके साइन हमेशा जाँच के बाद ही होने चाहिए, दबाव में नहीं।
जब आप सही जानकारी, सही कागज़ और सही सलाह के साथ प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो आप सिर्फ एक घर नहीं लेते – आप अपने परिवार के भविष्य की शांति और सुरक्षा खरीदते हैं। एक कानूनी तौर पर जाँची हुई प्रॉपर्टी ही असली “सुरक्षित निवेश” है।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. प्रॉपर्टी खरीदने से पहले दस्तावेज़ कैसे चेक करें?
टाइटल डीड, एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट, खाता/म्यूटेशन रिकॉर्ड, NOC, अप्रूव्ड बिल्डिंग प्लान और RERA रजिस्ट्रेशन जरूर चेक करें। अच्छे से चेक करने के लिए प्रॉपर्टी वकील की मदद लें।
2. भारत में आम प्रॉपर्टी फ्रॉड के प्रकार क्या हैं?
सामान्य फ्रॉड में शामिल हैं: फर्जी सेल डीड बनाना, एक ही प्रॉपर्टी कई लोगों को बेचना, बंधक या विवादित प्रॉपर्टी बेचना, पावर ऑफ अटॉर्नी का गलत इस्तेमाल, और अवैध या अप्रूव्ड न होने वाली निर्माण परियोजनाएँ।
3. प्रॉपर्टी खरीदने में एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट क्यों जरूरी है?
यह साबित करता है कि प्रॉपर्टी पर कोई लोन, बंधक या कानूनी विवाद नहीं है। EC देखने से आप साफ और कानूनी रूप से सुरक्षित प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं।
4. क्या RERA रजिस्ट्रेशन प्रॉपर्टी फ्रॉड रोकने में मदद करता है?
हाँ। RERA रजिस्ट्रेशन यह सुनिश्चित करता है कि बिल्डर या प्रोजेक्ट कानूनी रूप से मंज़ूर है। इससे स्कैम, देर से कब्ज़ा मिलने या अवैध निर्माण के जोखिम कम होते हैं।
5. अगर प्रॉपर्टी खरीदने के बाद फ्रॉड पता चले तो क्या करें?
आप IPC की धारा 318, 336 के तहत FIR दर्ज करवा सकते हैं, सिविल कोर्ट में सेल डीड रद्द कराने का केस कर सकते हैं, RERA से मदद ले सकते हैं और वकील की सलाह लेकर कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं



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