कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत कैसे करें? जानिए POSH एक्ट के तहत महिला कर्मचारी के अधिकार

How to complain about sexual harassment at workplace Know the rights of a female employee under POSH Act

सोचिए अगर आपको हर दिन काम पर जाकर डर लगे, असहज महसूस हो या कोई आपका अपमान करे। अफ़सोस की बात है कि आज भी भारत में कई महिलाएं ऐसी स्थिति से गुजरती हैं। लेकिन अच्छी बात ये है, आपको चुप रहने की ज़रूरत नहीं है। आपके पास कानून का साथ है।

प्रिवेंशन ऑफ़ सेक्सुअल हरस्मेंट एक्ट, 2013 (पॉश एक्ट) एक ऐसा कानून है जो खासतौर पर महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया है।

इस ब्लॉग में आप जानेंगे:

  • यौन उत्पीड़न क्या होता है?
  • शिकायत कैसे करें?
  • कंपनी या ऑफिस की क्या ज़िम्मेदारी है?
  • महिलाओं को क्या-क्या सुरक्षा मिलती है?
  • शिकायत के बाद क्या होता है?

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न क्या होता है?

पॉश कानून के अनुसार, यौन उत्पीड़न सिर्फ शारीरिक नहीं होता, यह शारीरिक, बोलचाल से जुड़ा या इशारों में भी हो सकता है। इसमें शामिल हो सकता है:

  • बिना अनुमति के छूना या पास आने की कोशिश करना
  • यौन संबंध बनाने के लिए दबाव डालना या कोई मांग करना
  • अश्लील या दोहरे मतलब वाली बातें करना
  • अश्लील फोटो या वीडियो दिखाना
  • कोई भी ऐसा व्यवहार जो अश्लील हो और महिला को बुरा लगे

यह उत्पीड़न कोई भी कर सकता है, बॉस, सहकर्मी, ग्राहक या कोई भी जो ऑफिस या कार्यस्थल से जुड़ा हो। अगर एक ही बार भी ऐसा व्यवहार होता है जिससे महिला को डर लगे या असहज महसूस हो, तो वह भी यौन उत्पीड़न माना जाता है।

पॉश एक्ट किन महिलाओं को सुरक्षा देता है?

पॉश एक्ट उन सभी महिलाओं को सुरक्षा देता है जो किसी भी तरह से काम करती हैं, जैसे:

  • ऑफिस, फैक्ट्री, स्कूल, हॉस्पिटल, सरकारी दफ्तर, NGO या किसी भी छोटे-बड़े संस्थान में काम करने वाली महिलाएं
  • इंटर्न, ट्रेनिंग पर आई महिलाएं, कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाली या वॉलंटियर के तौर पर काम करने वाली महिलाएं
  • घरों में काम करने वाली घरेलू कामकाजी महिलाएं
  • ऑफिस या कार्यस्थल पर आई ग्राहक या विज़िटर महिलाएं

मतलब ये कि अगर आप किसी भी तरीके से कहीं काम कर रही हैं, तो यह कानून आपकी सुरक्षा के लिए है।

महिला कर्मचारी के कानूनी अधिकार

  • सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार (अनुच्छेद 21 – जीवन और गरिमा का अधिकार): हर महिला को ऐसा कार्यस्थल पाने का अधिकार है जहाँ उसे सम्मान, सुरक्षा और आत्मसम्मान के साथ काम करने का माहौल मिले। डर या दबाव नहीं होना चाहिए।
  • शिकायत करने का अधिकार: अगर किसी महिला को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़े, तो वह अपनी कंपनी या संस्था में शिकायत दर्ज करा सकती है। यह उसका कानूनी अधिकार है।
  • पहचान गुप्त रखने का अधिकार: शिकायत करने वाली महिला की पहचान को गोपनीय रखा जाना चाहिए। कोई भी संस्था या व्यक्ति उसकी जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर सकता।
  • शिकायत के कारण बदले की भावना से की गई कार्रवाई से सुरक्षा: कंपनी या आरोपी व्यक्ति महिला को शिकायत करने पर नौकरी से निकाल नहीं सकता या उसे परेशान नहीं कर सकता। यह कानूनी रूप से गलत है।
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यौन उत्पीड़न की शिकायत कैसे करें?

पॉश एक्ट के तहत शिकायत करने का आसान तरीका:

शिकायत लिखें (कंप्लेंट लेटर तैयार करें) आपको घटना के 3 महीने के अंदर लिखित में शिकायत करनी होती है। अगर उत्पीड़न बार-बार हो रहा हो, तो आखिरी घटना से 3 महीने गिने जाएंगे।

शिकायत में ये जानकारी जरूर हो:

  • क्या हुआ और कैसे हुआ
  • तारीख, समय और जगह
  • अगर कोई गवाह हो तो उसका नाम
  • कोई भी सबूत हो जैसे ईमेल, चैट, वीडियो आदि

शिकायत कहाँ जमा करें?

अगर आपके ऑफिस में 10 या उससे ज़्यादा कर्मचारी हैं, तो वहाँ इंटरनल कंप्लेंट कमिटी (ICC) बनाना जरूरी है। आप शिकायत उसी कमेटी को दें।

मदद लें – आप अकेली नहीं हैं

अगर आपको डर लग रहा हो या प्रक्रिया समझ नहीं आ रही हो, तो आप किसी विशेषज्ञ वकील या NGO से मदद ले सकती हैं। आपकी मदद के लिए लोग हैं।

शिकायत करने के बाद क्या होता है?

जब आपकी शिकायत इंटरनल कंप्लेंट कमिटी या लोकल कमिटी को मिलती है, तो आगे ये प्रक्रिया होती है:

1. शुरुआती जांच: सबसे पहले कमेटी यह देखती है कि शिकायत सही है या नहीं और क्या इस पर आगे जांच की ज़रूरत है।

2. सुलह – अगर आप चाहें तो: अगर आप सख्त कार्रवाई नहीं चाहतीं और शांति से मामला सुलझाना चाहती हैं, तो सुलह का विकल्प ले सकती हैं।

ध्यान रखें – इसमें पैसे का कोई समझौता नहीं हो सकता।

3. औपचारिक जांच: अगर सुलह नहीं होती, तो कमेटी पूरी जांच करती है, जैसे:

  • दोनों पक्षों को बुलाया जाता है
  • गवाहों से बात की जाती है
  • दस्तावेज़ और सबूत देखे जाते हैं
  • दोनों पक्षों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाता है
  • यह पूरी जांच 90 दिनों के अंदर पूरी हो जानी चाहिए।

4. जांच रिपोर्ट: जांच पूरी होने के 10 दिनों के अंदर, कमेटी एक रिपोर्ट बनाकर कंपनी और दोनों पक्षों को देती है। इसमें बताया जाता है कि क्या आरोप सही थे और आगे क्या कार्रवाई होनी चाहिए।

शिकायत के बाद क्या नतीजा हो सकता है?

अगर जांच में यह साबित होता है कि आरोपी ने यौन उत्पीड़न किया है, तो इंटरनल कंप्लेंट कमिटी ये सज़ा या कार्रवाई सुझा सकती है:

  • लिखित माफ़ी माँगना
  • चेतावनी देना या डाँटना
  • तनख्वाह से पैसे काटकर महिला को मुआवज़ा देना
  • नौकरी से निकालना या सस्पेंड करना
  • काउंसलिंग कराना या ट्रेनिंग देना
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लेकिन अगर जांच में पता चलता है कि शिकायत सही नहीं थी, तो कमेटी उसे खारिज कर सकती है, और उसका कारण भी बताएगी।

पॉश एक्ट के तहत कंपनी या मालिक की क्या ज़िम्मेदारी है?

किसी भी कंपनी या संस्था के मालिक की ये कानूनी ज़िम्मेदारी है कि वो:

  • काम की जगह को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाए
  • अगर 10 या उससे ज़्यादा कर्मचारी हों, तो इंटरनल कंप्लेंट कमिटी बनाए
  • ऑफिस में पॉश एक्ट और शिकायत प्रक्रिया की सूचना दीवार पर लगवाए
  • सभी कर्मचारियों के लिए पॉश एक्ट की जानकारी और ट्रेनिंग करवाए
  • महिला की शिकायत और पहचान को गुप्त रखे
  • इंटरनल कंप्लेंट कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर ज़रूरी कार्रवाई करे

अगर कंपनी इन बातों को पूरा नहीं करती, तो उस पर ₹50,000 तक जुर्माना लग सकता है और दूसरी सज़ाएं भी हो सकती हैं।

अगर आपके ऑफिस में पॉश कमेटी नहीं है तो क्या करें?

अगर आपकी कंपनी ने पॉश के तहत इंटरनल कंप्लेंट कमिटी नहीं बनाई है, या शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है, तो आप ये कदम उठा सकती हैं:

  • अपने जिले की लोकल कमिटी में शिकायत दर्ज करें
  • लेबर कमिश्नर के पास शिकायत करें
  • महिला आयोग से संपर्क करें या
  • हाई कोर्ट में रिट पेटिशन दाखिल करें

झूठी शिकायत करने पर कानून क्या कहता है?

अगर यह साबित हो जाता है कि किसी महिला ने जानबूझकर झूठी शिकायत की है, तो उस पर कार्रवाई हो सकती है। लेकिन ध्यान रहे – इंटरनल कंप्लेंट कमिटी को पहले ये साफ़ साबित करना होगा कि शिकायत जानबूझकर बदनाम करने के इरादे से की गई थी। सिर्फ सबूत न मिलने से कोई शिकायत झूठी नहीं मानी जाती। यह प्रावधान बहुत कम इस्तेमाल होता है, ताकि सच्ची शिकायतें करने वाली महिलाएं डरी न रहें।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर की सेवा समाप्ति को कोर्ट ने सही ठहराया, 2025

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर की जबरन रिटायरमेंट (सेवा से हटाने) को सही माना। प्रोफेसर पर Facebook और WhatsApp के जरिए एक महिला के साथ अशोभनीय व्यवहार करने का आरोप था।

कोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन बातें भी कार्यस्थल का हिस्सा मानी जाएंगी, अगर वे काम से जुड़ी हों। इंटरनल कमेटी की जांच में कोई गलती नहीं पाई गई और आरोप सही साबित हुए थे।

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इससे साफ हुआ कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर की गई अनुचित टिप्पणियां भी कार्यस्थल का हिस्सा मानी जा सकती हैं।

राजनीतिक पार्टियों पर लागू नहीं होगा पॉश एक्ट, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि पॉश एक्ट राजनीतिक पार्टियों पर लागू नहीं होता। कोर्ट ने कहा कि यह कानून सिर्फ उन संस्थानों पर लागू होता है जहाँ औपचारिक नौकरी या रोजगार का ढांचा होता है।

इसका मतलब यह है कि राजनीतिक दलों में काम करने वाली महिलाओं को पॉश एक्ट की सुरक्षा नहीं मिलेगी।

पॉश केस में महिला कर्मचारी को ट्रांसफर की राहत, 2025

गुजरात की एक महिला सरकारी कर्मचारी ने अपने सहकर्मी द्वारा यौन उत्पीड़न के मामले में, उसी ऑफिस में काम करने में असहजता जताई और ट्रांसफर की मांग की। गुजरात हाई कोर्ट ने पॉश एक्ट की धारा 12 के तहत उसे अस्थायी छुट्टी और ट्रांसफर की राहत दी। कोर्ट के आदेश के बाद उसका ट्रांसफर जल्दी ही कर दिया गया। यह फैसला दिखाता है कि पॉश एक्ट सिर्फ सज़ा ही नहीं, बल्कि महिला की सुरक्षा और सुविधा का भी ध्यान रखता है।

निष्कर्ष

किसी भी महिला को काम की जगह पर डर या अपमान महसूस नहीं होना चाहिए। पॉश एक्ट महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा के लिए बनाया गया है। अगर आपको या आपकी जान-पहचान की किसी महिला को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, तो याद रखें, आप अकेली नहीं हैं। मदद मौजूद है, कानूनी तरीका है, और सबसे ज़रूरी बात, अपने लिए खड़े होना आपका हक है। आइए, हम सब मिलकर अपने कार्यस्थलों को महिलाओं के लिए सुरक्षित, बराबरी भरा और सम्मानजनक बनाएं।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. पॉश एक्ट के तहत शिकायत कितने दिन में करनी चाहिए?

घटना के 3 महीने के भीतर

2. क्या पुरुष भी पॉश एक्ट के तहत शिकायत कर सकते हैं?

नहीं, पॉश एक्ट सिर्फ महिलाओं के लिए है। पुरुषों को भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धाराओं के तहत राहत मिल सकती है।

3. कंप्लेंट कमिटी न होने पर शिकायत कहां करें?

अपने ज़िले की लोकल कमिटी में करें।

4. क्या पुलिस में शिकायत और पॉश एक्ट की शिकायत साथ-साथ चल सकती है?

हाँ, गंभीर अपराध की स्थिति में FIR और पॉश दोनों प्रक्रियाएं साथ चल सकती हैं।

5. अगर शिकायत गलत साबित हो जाए तो क्या कार्रवाई होगी?

झूठी शिकायत साबित होने पर शिकायतकर्ता पर कार्रवाई हो सकती है, लेकिन केवल तभी जब साबित हो कि शिकायत जानबूझकर झूठी थी।

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