मुंबई में इंटर-रिलिजन मैरिज कैसे करें? स्पेशल मैरिज एक्ट पूरी कानूनी प्रक्रिया

How to conduct an inter-religion marriage in Mumbai The Special Marriage Act and the complete legal process

आज के समय में अलग-अलग धर्मों से आने वाले कपल्स का विवाह करना कोई असामान्य बात नहीं है। लेकिन जब बात इंटर-रिलिजन मैरिज की आती है, तो अधिकतर कपल्स के मन में डर, भ्रम और कानूनी अनिश्चितता बनी रहती है। खासकर मुंबई जैसे बड़े शहर में, जहाँ प्रक्रिया ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों चरणों में होती है, सही कानूनी जानकारी न होने पर कपल्स को अनावश्यक परेशानी झेलनी पड़ती है।

भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट दोनों यह स्पष्ट कर चुके हैं कि दो बालिग व्यक्तियों को अपनी पसंद से विवाह करने का पूरा अधिकार है, चाहे उनका धर्म अलग-अलग ही क्यों न हो। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि मुंबई में स्पेशल मैरिज  एक्ट, 1954 के तहत इंटर-रिलिजन मैरिज की पूरी प्रक्रिया क्या है, ऑनलाइन आवेदन कैसे होता है, 30 दिन के नोटिस का क्या मतलब है, सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख फैसले क्या कहते हैं, और शादी के बाद कपल्स अपनी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं।

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इंटर-रिलिजन मैरिज क्या होती है और यह क्यों कानूनी है?

जब दो व्यक्ति अलग-अलग धर्मों से होते हुए भी आपसी सहमति से विवाह करते हैं, तो उसे इंटर-रिलिजन मैरिज कहा जाता है। भारत में ऐसा विवाह पूरी तरह वैध है, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें विवाह का निर्णय भी शामिल है।

स्पेशल मैरिज एक्ट 1954– इंटर-रिलिजन मैरिज का सबसे सुरक्षित कानून

स्पेशल मैरिज  एक्ट एक सिविल कानून है, जो धर्म से ऊपर उठकर विवाह की अनुमति देता है। इस कानून की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें धर्म परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं होती। कपल सीधे सरकार के Marriage Officer के सामने विवाह कर सकते हैं और उन्हें एक ऐसा मैरिज सर्टिफिकेट मिलता है जो भारत ही नहीं, विदेशों में भी पूरी तरह मान्य होता है।

स्पेशल मैरिज  एक्ट क्या है और यह क्यों ज़रूरी है?

स्पेशल मैरिज  एक्ट 1954 एक ऐसा कानून है जो आपको धर्म बदले बिना शादी करने की सुविधा देता है। यानी:

  • न किसी को धर्म बदलना पड़े
  • न कोई धार्मिक रस्म ज़रूरी
  • शादी सीधे सरकार के Marriage Officer के सामने होती है

इसी वजह से इंटर-रिलिजन कपल्स के लिए यही सबसे सुरक्षित और भरोसेमंद तरीका माना जाता है।

मुंबई में SMA मैरिज की प्रक्रिया – ऑनलाइन से लेकर 30 दिन बाद तक

मुंबई में Special Marriage Act के तहत विवाह की प्रक्रिया दो चरणों में होती है। पहला चरण पूरी तरह ऑनलाइन होता है और दूसरा चरण 30 दिन बाद ऑफलाइन पूरा किया जाता है।

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पहला चरण – ऑनलाइन नोटिस और आवेदन

मुंबई और महाराष्ट्र में अब विवाह प्रक्रिया की शुरुआत सरकारी ऑनलाइन पोर्टल से होती है। कपल को सबसे पहले Marriage Registration Portal पर जाकर Notice of Intended Marriage भरना होता है। इसमें दोनों पार्टनर का नाम, उम्र, धर्म, पता और अन्य बुनियादी विवरण दर्ज किए जाते हैं। साथ ही आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, फोटो और पते के दस्तावेज़ अपलोड किए जाते हैं। यह ऑनलाइन नोटिस Special Marriage Act की धारा 5 के तहत दिया जाता है।

30 दिन का नोटिस पीरियड – सबसे ज्यादा गलतफहमी वाला चरण ऑनलाइन नोटिस जमा होने के बाद Marriage Officer इसे अपने कार्यालय में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता है। कानून के अनुसार इसके बाद 30 दिन का समय दिया जाता है ताकि यदि कोई वैध कानूनी आपत्ति हो तो वह दर्ज की जा सके।

यहाँ एक बहुत महत्वपूर्ण बात समझना जरूरी है। इस 30 दिन के दौरान कोई भी व्यक्ति केवल तभी आपत्ति कर सकता है जब वह कानूनन सही आधार पर हो, जैसे:

  • किसी एक व्यक्ति की पहले से शादी होना
  • उम्र कानूनी सीमा से कम होना
  • मानसिक असमर्थता

धर्म, जाति, परिवार की इच्छा, समाज का दबाव या किसी लोकल संगठन की नाराज़गी कानूनी आपत्ति नहीं मानी जाती। सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट दोनों ने स्पष्ट किया है कि ऐसे आधारों पर Marriage Officer विवाह रोक नहीं सकता।

दूसरा चरण – 30 दिन बाद ऑफलाइन उपस्थिति और विवाह

30 दिन पूरे होने के बाद कपल को Marriage Officer के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होता है। इस दिन:

  • दोनों पार्टनर
  • तीन वयस्क गवाह
  • सभी मूल दस्तावेज़

लेकर कार्यालय में जाते हैं। वहाँ दोनों पक्ष घोषणा (Declaration) पर हस्ताक्षर करते हैं और Marriage Officer विवाह को रजिस्टर करता है। इसके बाद सरकारी विवाह प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, जो इंटर-रिलिजन मैरिज का अंतिम और कानूनी सबूत होता है।

जरूरी दस्तावेज़ और कानूनी शर्तें

कौन-कौन से दस्तावेज़ चाहिए होते हैं?

डरने वाली कोई बात नहीं है। आम दस्तावेज़ ही लगते हैं:

  • आधार कार्ड / पासपोर्ट
  • उम्र का प्रमाण (10वीं की मार्कशीट या जन्म प्रमाण पत्र)
  • पता प्रमाण
  • फोटो
  • अविवाहित होने का हलफनामा
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मुंबई में कम से कम एक पार्टनर का 30 दिन का लोकल एड्रेस प्रूफ ज़रूरी होता है।

सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण (Landmark) फ़ैसले जो अंतर-धर्म (Inter-Religion) कपल्स की रक्षा करते हैं

भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने कई फैसलों में यह स्पष्ट कर दिया है कि दो बालिग व्यक्तियों को अपनी पसंद के साथी से शादी करने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति के हों।

1. लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006)

  • इस ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा दो बालिग अपनी पसंद के अनुसार विवाह कर सकते हैं।
  • यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत सुरक्षित है।
  • कोर्ट ने सभी राज्यों की पुलिस को निर्देश दिया कि अंतर-धर्म या अंतर-जाति विवाह करने वाले कपल्स को किसी भी व्यक्ति या परिवार द्वारा दी जा रही धमकी, हिंसा या उत्पीड़न से तुरंत सुरक्षा दी जाए।
  • परिवार या समाज द्वारा विवाह में दखल देना कानूनी रूप से अवैध बताया गया।

2. शफ़ीन जहां बनाम अशोकन (2018) — “हदिया केस”

  • इस केस में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा किससे विवाह करना है, यह पूरी तरह से व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) और स्वेच्छा (Autonomy) का हिस्सा है।
  • यहां तक कि माता-पिता भी बालिग व्यक्ति की शादी की पसंद में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
  • किसी तीसरे व्यक्ति या राज्य संस्थान का हस्तक्षेप असंवैधानिक है।
  • न्यायालय ने यह सिद्धांत मजबूत किया कि विवाह व्यक्ति का मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है।

3. सलामत अंसारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2020) — इलाहाबाद हाई कोर्ट

  • इस निर्णय में कहा गया दो बालिगों के बीच सहमति (Consent) ही सबसे महत्वपूर्ण आधार है।
  • किसी भी प्रकार का धर्म परिवर्तन, सामाजिक स्वीकृति या परिवार की अनुमति विवाह का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि “अपने जीवन साथी का चयन करना—चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो—बालिग व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।”

इन फैसलों से स्थापित प्रमुख सिद्धांत (Key Principles)

  • दो बालिग व्यक्तियों का विवाह संवैधानिक अधिकार है।
  • समाज, परिवार, पंचायत या किसी व्यक्ति द्वारा हस्तक्षेप गैरकानूनी है।
  • धमकी, प्रताड़ना, ऑनर किलिंग, या झूठे केस के खिलाफ कपल्स को पुलिस सुरक्षा मिलनी चाहिए।
  • राज्य का दायित्व है कि वह ऐसे कपल्स को संरक्षण प्रदान करे।
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सरकार की गाइडलाइन्स और महाराष्ट्र में स्थिति

महाराष्ट्र सरकार और बॉम्बे हाईकोर्ट की गाइडलाइन्स के अनुसार:

  • Marriage Officer का काम केवल दस्तावेज़ सत्यापन है
  • पुलिस जांच या “लव जिहाद” जैसी पूछताछ कानूनी नहीं है
  • किसी लोकल संगठन या परिवार की शिकायत पर विवाह रोका नहीं जा सकता

शादी के बाद सुरक्षा – यदि परिवार या संगठन विरोध करें तो क्या करें

इंटर-रिलिजन मैरिज के बाद कई बार कपल्स को परिवार या सामाजिक संगठनों से धमकी मिलती है। ऐसे मामलों में कानून पूरी तरह कपल के साथ खड़ा है। कपल हाईकोर्ट में Protection Petition दाखिल कर सकता है, जिसमें Article 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा मांगी जाती है। इसके अलावा पुलिस संरक्षण, SP या Commissioner को शिकायत, और आवश्यकता पड़ने पर FIR भी दर्ज कराई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि कोई भी संगठन कानून से ऊपर नहीं है

शादी के बाद सुरक्षा क्यों ज़रूरी है?

इंटर-रिलिजन मैरिज के बाद भी कई बार कपल्स को परेशान किया जाता है। ऐसे में कोर्ट का Protection Order आपके लिए ढाल बन जाता है।

यह आदेश दिखाने के बाद:

  • पुलिस आपकी मदद करती है
  • कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकता

निष्कर्ष

मुंबई में इंटर-रिलिजन मैरिज पूरी तरह कानूनी, सुरक्षित और संरक्षित है, बशर्ते इसे Special Marriage Act, 1954 के तहत सही तरीके से किया जाए। ऑनलाइन नोटिस, 30 दिन का वैधानिक समय और उसके बाद ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन – यह प्रक्रिया कपल की स्वतंत्रता और सुरक्षा दोनों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। यदि कपल को सही कानूनी मार्गदर्शन मिले, तो न परिवार का डर रहता है और न समाज का।

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FAQs

1. क्या बिना धर्म बदले इंटर-रिलिजन मैरिज हो सकती है?

हाँ, Special Marriage Act के तहत बिना किसी धर्म परिवर्तन के विवाह किया जा सकता है।

2. क्या 30 दिन का नोटिस हट सकता है?

वर्तमान में कानून के अनुसार 30 दिन का नोटिस अनिवार्य है।

3. क्या लोकल संगठन शादी रोक सकते हैं?

नहीं, यह पूरी तरह गैर-कानूनी है।

4. क्या शादी के बाद पुलिस सुरक्षा मिल सकती है?

हाँ, हाईकोर्ट या पुलिस के माध्यम से सुरक्षा मिल सकती है।

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