आज के समय में कई मामलों में देखा गया है कि पारिवारिक विवाद, प्रेम-प्रसंग, या सामाजिक दबाव के कारण महिलाएं झूठी FIR दर्ज करवा देती हैं। ऐसे मामलों में निर्दोष पुरुष या उनके परिवार को कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यह ब्लॉग ऐसे ही मामलों में आपकी सहायता के लिए लिखा गया है, ताकि आप अपने अधिकारों को समझ सकें और उचित कानूनी कदम उठा सकें।
झूठी FIR क्या होती है?
FIR यानी फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट एक कानूनी दस्तावेज होता है, जिसे पुलिस उस समय दर्ज करती है जब किसी कॉग्निजेबल ओफ्फेंस की जानकारी पहली बार दी जाती है।
झूठी FIR कब मानी जाती है? जब कोई व्यक्ति:
- किसी घटना को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है
- पूरी तरह से मनगढ़ंत कहानी बनाकर आरोप लगाता है
- किसी निर्दोष व्यक्ति पर जानबूझकर झूठा आरोप लगाता है
- निजी दुश्मनी, बदले की भावना या स्वार्थ के चलते पुलिस में शिकायत दर्ज करवाता है
- तो ऐसी FIR को झूठी FIR कही जाती है।
झूठी FIR के दुष्परिणाम:
- निर्दोष व्यक्ति को मानसिक और सामाजिक पीड़ा: झूठे आरोपों के कारण समाज में प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है।
- कानूनी परेशानियाँ: कोर्ट-कचहरी के चक्कर, गिरफ्तारी, बेल आदि में समय और पैसा खर्च होता है।
- पुलिस और न्याय व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ: फर्जी मामलों की जांच में संसाधनों की बर्बादी होती है।
आमतौर पर झूठी FIR किन धाराओं में दर्ज होती है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 – दहेज प्रताड़ना
- इस धारा के तहत पत्नी या उसके परिवार की ओर से पति और उसके परिवार वालों पर दहेज के लिए प्रताड़ित करने, मारपीट करने या मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया जाता है।
- झूठे मामलों में: कई बार घरेलू झगड़ों के बाद बदले की भावना से महिला पक्ष झूठे आरोप लगाकर पूरे परिवार को फँसा देता है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 – बलात्कार
- इस धारा में किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाने को अपराध माना गया है।
- झूठे मामलों में: कई बार सहमति से बनाए गए संबंधों को बाद में बदले की भावना या दबाव में आकर “बलात्कार” बता दिया जाता है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 75 – छेड़छाड़
- इसमें किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली हरकतें जैसे गलत तरीके से छूना, पीछा करना या अश्लील इशारे करना शामिल होता है।
- झूठे मामलों में: मामूली कहासुनी या पर्सनल दुश्मनी को आधार बनाकर पुरुषों पर झूठा छेड़छाड़ का आरोप लगाया जा सकता है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 124 – आपराधिक धमकी
- इस धारा के अंतर्गत किसी को डराने, धमकाने या नुकसान पहुँचाने की धमकी देना अपराध है।
- झूठे मामलों में: छोटी-मोटी बहस को “धमकी देना” बता दिया जाता है, जिससे आरोपी पर गंभीर धाराएं लगाई जा सकें।
POCSO एक्ट (बच्चों का यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम)
- यह कानून नाबालिग बच्चों (18 वर्ष से कम उम्र) के साथ यौन शोषण, उत्पीड़न या अश्लील हरकतों के खिलाफ है।
- झूठे मामलों में: कई बार जमीन-जायदाद, पारिवारिक विवाद या निजी दुश्मनी में किसी व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाकर उसे फँसाने की कोशिश की जाती है।
SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम
- इस कानून का मकसद अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों से उन्हें सुरक्षा देना है।
- झूठे मामलों में: कई बार इस कानून का दुरुपयोग करके बेगुनाह लोगों पर जातिगत आरोप लगाकर उन्हें कानूनी झंझट में डाला जाता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005
- यह कानून महिलाओं को घरेलू उत्पीड़न जैसे मारपीट, मानसिक यातना, आर्थिक शोषण आदि से सुरक्षा देता है।
- झूठे मामलों में: कई बार महिला पक्ष इस कानून का गलत इस्तेमाल करके पति और उसके परिवार को झूठे आरोपों में फँसाते हैं।
ऐसे मामलों में क्या करना चाहिए?
- जल्दबाजी में प्रतिक्रिया न दें
- गुस्से या डर में आकर कोई गैरकानूनी कदम न उठाएं। शांत रहें और तथ्यों को इकट्ठा करें।
- आपको अनुभवी आपराधिक वकील की सलाह लेना जरूरी है जो झूठी FIR को कानूनी रूप से चुनौती दे सके।
झूठे आरोपों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करें
- व्हाट्सएप चैट
- कॉल रिकॉर्डिंग
- सीसीटीवी फुटेज
- गवाह
- लोकेशन ट्रैकिंग
इन सबूतों को इकट्ठा कर वकील को दें।
झूठी FIR को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में पेटिशन दाखिल करें
- हाईकोर्ट में पेटिशन डालें: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के तहत आप हाईकोर्ट में शिकायत कर सकते हैं कि आपकी FIR रद्द की जाए।
- एंटीसिपेटरी बेल की तैयारी करें: अगर पुलिस आपकी गिरफ्तारी कर सकती है, तो पहले से ही एंटीसिपेटरी बेल के लिए आवेदन करें, ताकि आपको पकड़ने पर तुरंत बेल मिल सके।
- काउंटर केस दर्ज करें: अगर FIR पूरी तरह झूठी निकले, तो आप लड़की के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 217, 248 और 356 के तहत केस दर्ज करा सकते हैं, क्योंकि उसने झूठे आरोप लगाए हैं।
| धारा | धारा क्या कहती है? | दंड |
| BNS की धारा 217 | सरकारी कर्मचारी को झूठी सूचना देना | अधिकतम 1 वर्ष की सजा या ₹10,000 जुर्माना या दोनों |
| BNS की धारा 248 | झूठे आपराधिक आरोप लगाना | सामान्य मामलों में अधिकतम 5 वर्ष की सजा, ₹2 लाख जुर्माना या दोनों; गंभीर मामलों में अधिकतम 10 वर्ष की सजा और जुर्माना |
| BNS की धारा 356 | मानहानि | अधिकतम 2 वर्ष की साधारण सजा, जुर्माना या दोनों |
| BNSS की धारा 528 | झूठी FIR को रद्द करने की शक्ति | हाईकोर्ट के पास यह शक्ति होती है। |
सुप्रीम कोर्ट के अहम निर्णय
1. राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017)
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A/85 BNS (दहेज उत्पीड़न) के दुरुपयोग को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए:
- फैमिली वेलफेयर कमेटी का गठन: प्रत्येक जिले में एक या अधिक फैमिली वेलफेयर कमेटियों का गठन किया जाए, जो पुलिस या मजिस्ट्रेट से प्राप्त शिकायतों की जांच करें। ये समितियाँ एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
- गिरफ्तारी की प्रक्रिया: गिरफ्तारी केवल तभी की जाए जब आरोप विश्वसनीय और साक्ष्यों से समर्थित हों।
- पुलिस और न्यायिक अधिकारियों की भूमिका: पुलिस और मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्दोष परिवार के सदस्यों को झूठे आरोपों में न फंसाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्पष्ट किया कि धारा 498A/85 BNS का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा है, न कि निर्दोष व्यक्तियों को परेशान करना।
2. प्रिया भारती बनाम राज्य (2020)
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई FIR झूठी प्रतीत होती है, तो उसे तुरंत रद्द किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी निर्देशित किया कि ऐसे मामलों में अदालतों को त्वरित निर्णय लेना चाहिए, ताकि निर्दोष व्यक्तियों को अनावश्यक कानूनी प्रक्रिया से बचाया जा सके।
सामान्य जीवन से उदाहरण
- केस 1: एक लड़के ने प्रेम विवाह किया लेकिन कुछ समय बाद लड़की ने पारिवारिक दबाव में झूठे दहेज के आरोप लगाए। बाद में कॉल रिकॉर्ड और मैसेज से साबित हो गया कि कोई प्रताड़ना नहीं हुई थी। FIR हाईकोर्ट में रद्द हो गई।
- केस 2: एक झूठे बलात्कार मामले में लड़के के पास लड़की के सहमति वाले वीडियो चैट और होटल की एंट्री रजिस्टर की कॉपी थी, जिससे केस खारिज हुआ।
निष्कर्ष
झूठी FIR से डरने की आवश्यकता नहीं है। कानून हर व्यक्ति को न्याय दिलाने का अधिकार देता है। यदि आपके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए हैं, तो शांत रहें, सबूत इकट्ठा करें और कानूनी सलाह लेकर सही कदम उठाएं।
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FAQs
1. क्या झूठी FIR दर्ज करवाने पर लड़की के खिलाफ केस किया जा सकता है?
हाँ, भारतीय न्याय संहिता की धारा 217, 248 और 356 के तहत झूठी FIR दर्ज करवाने वाले के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है।
2. FIR रद्द करने के लिए कहां पेटिशन दायर करनी होती है?
आप हाईकोर्ट में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के तहत पेटिशन दायर कर सकते हैं।
3. क्या अग्रिम जमानत झूठे केस में मिल सकती है?
हाँ, यदि मामला झूठा प्रतीत होता है तो कोर्ट एंटीसिपेटरी बेल दे सकती है।



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