क्या दबाव या धोखे में साइन किया गया कॉन्ट्रैक्ट मान्य है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

Is a contract signed under duress or fraud valid Find out what the Supreme Court said.

मान लीजिए आपसे कोई एग्रीमेंट साइन करने को कहता है, लेकिन आपको कुछ ठीक नहीं लगता। कोई दबाव डाल रहा है, कुछ बातें छिपाई जा रही हैं, या कहा जा रहा है – “पहले साइन कर दो, बाद में ठीक कर लेंगे।” आप साइन तो कर देते हैं, लेकिन अंदर से जानते हैं कि यह आपकी अपनी मर्ज़ी से नहीं हुआ।

अब सवाल उठता है – क्या कानून ऐसे साइन को मान्यता देता है? कॉन्ट्रैक्ट भरोसे और फ्री कन्सेंट पर आधारित होते हैं, न कि डर, दबाव या धोखे पर।

इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि फ्री कन्सेंट यानी स्वतंत्र सहमति का असली मतलब क्या है, दबाव, अनुचित प्रभाव (Undue Influence) और धोखे (Fraud) में किए गए कॉन्ट्रैक्ट को कानून कैसे देखता है, और सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में क्या कहा है।

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वैध कॉन्ट्रैक्ट क्या होता है?

वैध कॉन्ट्रैक्ट वह कानूनी समझौता है जो दो या दो से अधिक पक्षों के बीच होता है और जिसमें जरूरी शर्तें पूरी होती हैं, इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 10 के तहत यह लागू होती है।

  • प्रस्ताव और स्वीकृति: एक पक्ष द्वारा स्पष्ट प्रस्ताव दिया जाए और दूसरा पक्ष उसे स्वीकार करे।
  • स्वतंत्र सहमति: सहमति किसी दबाव, धोखे या गलत प्रभाव के बिना दी गई हो।
  • वैध उद्देश्य: कॉन्ट्रैक्ट का मकसद कानू  न के अनुरूप और नैतिक हो।
  • कानूनी प्रतिफल: लेन-देन के बदले में दी जाने वाली वस्तु या सेवा वैध हो।
  • सक्षम पक्ष: कॉन्ट्रैक्ट करने वाले व्यक्ति बालिग, समझदार और कानूनन योग्य हों।

अगर इनमें से कोई शर्त पूरी नहीं होती, खासकर “स्वतंत्र सहमति” तो ऐसा कॉन्ट्रैक्ट अवैध (Void) माना जाएगा।

फ्री कन्सेंट का अर्थ

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 13:

कन्सेंट का मतलब है कि दो या दो से अधिक व्यक्ति पूरी तरह से अपनी इच्छा से और बिना किसी बाहरी दबाव के किसी कॉन्ट्रैक्ट पर सहमति दें। यानी, दोनों पक्षों की सहमति समान और स्वेच्छा से होनी चाहिए।

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 14:

कानून कहता है कि सहमति तभी फ्री मानी जाएगी जब वह किसी भी प्रकार के दबाव या गलत प्रभाव से मुक्त हो। इसमें शामिल हैं:

  • दबाव (Coercion)
  • अनुचित प्रभाव (Undue Influence)
  • धोखाधड़ी (Fraud)
  • मिथ्या प्रतिपादन (Misrepresentation)
  • भूल या गलती (Mistake)

यदि इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद है, तो कॉन्ट्रैक्ट वॉइडेबल हो जाता है। इसका मतलब है कि कॉन्ट्रैक्ट कानून के तहत चुनौती दी जा सकती है और आवश्यक होने पर रद्द भी किया जा सकता है।

फ्री कन्सेंट में बाधाएं और कानूनी परिणाम

1. दबाव (Coercion): इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 13 के तहत दबाव का अर्थ है किसी व्यक्ति को डर, धमकी या जबरदस्ती के माध्यम से कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करना। कानून इसे गंभीर रूप से लेता है क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा और न्यायपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।

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उदाहरण:

  • किसी को धमकी देना कि “अगर आप साइन नहीं करेंगे तो आपके खिलाफ केस दर्ज कर दिया जाएगा।”
  • नौकरी या पद से हटाने की धमकी देकर कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करवाना।
  • संपत्ति या धन संबंधी कॉन्ट्रैक्ट में डर दिखाकर सहमति लेना।

कानूनी स्थिति:

  • ऐसे कॉन्ट्रैक्ट को वॉइडेबल माना जाता है, यानी इसे रद्द किया जा सकता है।
  • पीड़ित पक्ष चाहे तो अदालत में जाकर इसे रद्द करवा सकता है।
  • अगर अदालत में मामला जाता है, तो कोर्ट यह जांचती है कि दबाव किस हद तक स्वतंत्र सहमति को प्रभावित कर रहा था और पीड़ित पक्ष पर अनुचित दबाव तो नहीं डाला गया।

इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति डर या धमकी में आकर कॉन्ट्रैक्ट के लिए मजबूर न हो, और सभी कॉन्ट्रैक्ट सत्य और स्वतंत्र सहमति पर आधारित हों।

2. अनुचित प्रभाव (Undue Influence): इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 16 के तहत जब कोई व्यक्ति अपने पद, विश्वास या प्रभाव का गलत इस्तेमाल करता है, तो उसे अनुचित प्रभाव कहा जाता है।

उदाहरण:

  • डॉक्टर मरीज से करवाए,
  • गुरु अपने शिष्य से संपत्ति पर साइन करवाए,
  • वकील क्लाइंट से अनुचित लाभ ले।

सुप्रीम कोर्ट ने का कहना है कि हर प्रभाव गलत नहीं होता, लेकिन जब वह किसी की स्वतंत्र इच्छा को खत्म कर देता है, तभी वह अनुचित कहलाता है।

कोर्ट जाँच करती है कि: क्या दोनों पक्षों में विश्वास या निर्भरता का रिश्ता था? क्या कॉन्ट्रैक्ट से एक पक्ष को अत्यधिक लाभ मिला?

3. धोखाधड़ी (Fraud) – इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 17 के तहत धोखाधड़ी तब होती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत जानकारी देता है या सच छिपाता है, ताकि दूसरा व्यक्ति गुमराह हो जाए और कॉन्ट्रैक्ट में हस्ताक्षर कर दे।

उदाहरण:

  • किसी संपत्ति की वास्तविक स्थिति छुपाना।
  • झूठे वादे करना या नकली दस्तावेज़ दिखाना।

सुप्रीम कोर्ट का सिद्धांत: “Fraud unravels everything” — यानी धोखाधड़ी किसी भी कॉन्ट्रैक्ट की नींव को हिला देती है। ऐसे कॉन्ट्रैक्ट को वॉइडेबल माना जाता है और प्रभावित पक्ष चाहे तो अदालत में जाकर इसे रद्द करवा सकता है।

4. मिथ्या प्रतिपादन (Misrepresentation) – इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 18 के तहत जब कोई व्यक्ति जानबूझकर नहीं, लेकिन गलती से गलत जानकारी दे देता है, तो यह मिसरिप्रेजेंटेशन कहलाता है।

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उदाहरण: एक एजेंट ने खरीदार को बताया कि मकान का क्षेत्रफल 2000 sq.ft है, जबकि असल में वह 1500 sq.ft था। यह मिसरिप्रेजेंटेशन कहलाएगा।

ऐसे कॉन्ट्रैक्ट को भी वॉइडेबल माना जाता है और प्रभावित व्यक्ति चाहे तो इसे रद्द करवा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख फैसले

सेंट्रल इनलैंड वाटर ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन बनाम ब्रोजो नाथ गांगुली (1986)

  • तथ्य: सेंट्रल इनलैंड वाटर ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन ने अपने कर्मचारियों से एक कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करवाया था, जिसमें कहा गया था कि कंपनी किसी भी कर्मचारी को बिना कारण बताए कभी भी नौकरी से निकाल सकती है।
  • मुद्दा: क्या ऐसा कॉन्ट्रैक्ट  वैध है, जब कर्मचारी को इसे साइन करने के लिए मजबूर किया गया हो और उसकी कोई स्वतंत्र सहमति न हो?
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह शर्त “Unconscionable” (अन्यायपूर्ण) है क्योंकि इसमें शक्ति का दुरुपयोग और कर्मचारी की मजबूरी का फायदा उठाया गया। इसलिए, यह कॉन्ट्रैक्ट अवैध और अमान्य है।
  • प्रभाव: यह फैसला कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा का एक मजबूत उदाहरण बना। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी कॉन्ट्रैक्ट जो असमान शक्ति या दबाव में कराया गया हो, वैध नहीं माना जाएगा।

LIC ऑफ इंडिया बनाम उपभोक्ता शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (1995)

  • तथ्य: LIC ने कुछ पॉलिसियों की शर्तें ऐसी रखी थीं जो आम लोगों, खासकर कम आय वाले उपभोक्ताओं के लिए नुकसानदायक थीं।
  • मुद्दा: क्या किसी कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें, जो उपभोक्ता के साथ अन्याय करती हैं, फिर भी वैध मानी जा सकती हैं?
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर कॉन्ट्रैक्ट समानता और स्वतंत्र इच्छा पर आधारित होना चाहिए। अगर कोई संस्था अपनी ताकत का इस्तेमाल करके उपभोक्ताओं पर अनुचित शर्तें थोपती है, तो ऐसा कॉन्ट्रैक्ट कानून के खिलाफ (Opposed to Public Policy) है।
  • प्रभाव: इस निर्णय ने उपभोक्ता अधिकारों को मजबूत किया और यह सिद्धांत स्थापित किया कि कॉन्ट्रैक्ट तभी वैध है जब दोनों पक्ष समान स्थिति में और स्वतंत्र इच्छा से सहमत हों।

क्या ऐसे कॉन्ट्रैक्ट पूरी तरह अवैध होते हैं?

नहीं। ये कॉन्ट्रैक्ट वॉइडेबल (रद्द करने योग्य) होते हैं, यानी पीड़ित पक्ष चाहे तो उन्हें रद्द कर सकता है या जारी रख सकता है। अगर पीड़ित पक्ष बाद में यह कॉन्ट्रैक्ट स्वेच्छा से स्वीकार कर लेता है, तो यह वैध बन सकता है।

दबाव या धोखे में साइन किए गए कॉन्ट्रैक्ट को कैसे चुनौती दें?

  • सिविल सूट फाइल करे: अगर कॉन्ट्रैक्ट दबाव, धोखे या अनुचित प्रभाव से बना है, तो कोर्ट में जाकर उसे रद्द करवाया जा सकता है।
  • FIR या क्रिमिनल कम्प्लेंट दर्ज करें: अगर किसी ने धमकी, धोखाधड़ी या गलत दस्तावेज़ से कॉन्ट्रैक्ट  करवाया है, तो पुलिस में शिकायत या FIR दर्ज करें।
  • लीगल नोटिस भेजें: दूसरी पार्टी को लीगल नोटिस भेजकर बताएं कि कॉन्ट्रैक्ट  वैध नहीं है और आप इसे रद्द मानते हैं।
  • इन्जंक्शन एप्लीकेशन फाइल करें: अगर दूसरी पार्टी कॉन्ट्रैक्ट को लागू करने की कोशिश कर रही है, तो कोर्ट से स्टे आर्डर या रोक लगाने का आदेश मांगा जा सकता है।
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व्यवहारिक सलाह: कॉन्ट्रैक्ट साइन करने से पहले क्या करें

  • किसी भी दस्तावेज़ पर बिना पूरी तरह पढ़े या समझे साइन न करें।
  • यदि किसी ने धमकी, दबाव या धोखे से साइन करवाया है, तो तुरंत वकील से सलाह लें
  • अपने पास मौजूद सभी सबूत जैसे ईमेल, चैट, गवाह या रिकॉर्डिंग सुरक्षित रखें।
  • वकील की मदद से कानूनी नोटिस भेजें या कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने के लिए कोर्ट में केस दाखिल करें।
  • अगर मामला धोखाधड़ी का है, तो तुरंत FIR दर्ज कराएं ताकि कानूनी कार्रवाई शुरू की जा सके।

निष्कर्ष

हर सिग्नेचर को कानूनी सहमति नहीं माना जा सकता। यदि किसी व्यक्ति ने डर, दबाव या धोखे में आकर किसी कॉन्ट्रैक्ट पर साइन किया है, तो ऐसा कॉन्ट्रैक्ट कानूनन रद्द करने योग्य होता है। भारतीय कानून का सिद्धांत स्पष्ट है — “Contract Law is not a tool of coercion, but of consent,” यानी कॉन्ट्रैक्ट का आधार ज़बरदस्ती नहीं, बल्कि स्वतंत्र इच्छा और न्याय है। इसलिए, जहाँ भी कॉन्ट्रैक्ट में दबाव, अनुचित प्रभाव या धोखा पाया जाता है, वहाँ कानून हमेशा पीड़ित व्यक्ति की सुरक्षा और न्याय के पक्ष में खड़ा होता है।

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FAQs

1. क्या दबाव में किया गया कॉन्ट्रैक्ट वैध होता है?

नहीं, ऐसा कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने योग्य (Voidable) होता है। पीड़ित व्यक्ति कोर्ट जाकर इसे रद्द करवा सकता है।

2. धोखे से साइन कराया गया एग्रीमेंट कैसे रद्द करें?

अगर किसी ने धोखा दिया है, तो वकील की मदद से लीगल नोटिस भेजें या कोर्ट में केस दाखिल करें।

3. क्या कोर्ट में ऐसे कॉन्ट्रैक्ट को चुनौती दी जा सकती है?

हाँ, स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के तहत कोर्ट में याचिका देकर ऐसा कॉन्ट्रैक्ट अमान्य घोषित करवाया जा सकता है।

4. क्या वकील की मौजूदगी जरूरी है कॉन्ट्रैक्ट साइन करते समय?

जरूरी नहीं, लेकिन वकील साथ हो तो आप शर्तें समझ पाते हैं और भविष्य के विवादों से बचते हैं।

5. सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?

कोर्ट ने माना – “फ्री कंसेट ही हर वैध कॉन्ट्रैक्ट की आत्मा है, इसके बिना कॉन्ट्रैक्ट टिक नहीं सकता।”

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