क्या क्रिमिनल मामलों में आर्बिट्रेशन लागू होता है? जानिए कानूनी सीमाएँ

Is arbitration applicable in criminal cases? Know the legal limits.

आर्बिट्रेशन आजकल विवाद सुलझाने का एक पसंदीदा तरीका बन गया है, क्योंकि यह तेज़, गोपनीय और लचीला होता है। बहुत से लोग बिना इसकी पूरी कानूनी समझ के अपने कॉन्ट्रैक्ट में आर्बिट्रेशन क्लॉज़ जोड़ देते हैं। जब बाद में विवाद होता है, तो सबसे आम सवाल यही होता है “क्या यह मामला कोर्ट जाने के बजाय आर्बिट्रेशन से सुलझाया जा सकता है?”

यह सवाल तब और भी गंभीर हो जाता है जब विवाद में धोखाधड़ी, चीटिंग, फर्जीवाड़ा या विश्वासघात जैसे क्रिमिनल आरोप जुड़े हों। कुछ लोगों को लगता है कि आर्बिट्रेशन से क्रिमिनल केस भी खत्म हो सकता है, जबकि कुछ मानते हैं कि अगर दोनों पक्ष सहमत हों तो हर विवाद आर्बिट्रेशन से सुलझ सकता है। हकीकत इससे अलग है।

आर्बिट्रेशन एक मजबूत कानूनी तरीका है, लेकिन इसकी स्पष्ट कानूनी सीमाएँ हैं। यह ब्लॉग आपको समझाएगा कि कब आर्बिट्रेशन लागू होता है और कब नहीं, ताकि आप सही समय पर सही कानूनी रास्ता चुन सकें।

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आर्बिट्रेशन क्या है?

आर्बिट्रेशन एक निजी और कानूनी तरीका है, जिसमें दो पक्ष अपने विवाद को कोर्ट के बाहर सुलझाने के लिए आपसी सहमति से एक निष्पक्ष व्यक्ति चुनते हैं, जिसे आर्बिट्रेटर कहा जाता है। आर्बिट्रेटर क्या करता है:

  • दोनों पक्षों की बात ध्यान से सुनता है
  • ज़रूरी दस्तावेज़ और सबूत देखता है
  • अंत में अपना फैसला देता है, जिसे आर्बिट्रेशन अवॉर्ड कहा जाता है

यह फैसला कानूनी रूप से बाध्यकारी होता है और कोर्ट के आदेश की तरह लागू किया जा सकता है। भारत में आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट, 1996 के तहत चलती है।

क्रिमिनल केस क्या होते हैं? क्रिमिनल केस ऐसे मामले होते हैं जो सिर्फ दो लोगों के बीच का विवाद नहीं होते, बल्कि समाज या सरकार के खिलाफ अपराध माने जाते हैं। जैसे: फ्रॉड, मारपीट, यौन अपराध, चोरी, भ्रष्टाचार

क्रिमिनल मामलों में सरकार आरोपी के खिलाफ केस चलाती है, सज़ा में जेल या जुर्माना हो सकता है। मकसद समझौता नहीं, बल्कि न्याय और अपराध रोकना होता है।

बुनियादी नियम – क्रिमिनल मामलों में आर्बिट्रेशन लागू नहीं होता

कानून का एक साफ और सीधा नियम है कि क्रिमिनल अपराधों को आर्बिट्रेशन से नहीं सुलझाया जा सकता। इसका मतलब यह है कि:

  • किसी व्यक्ति की क्रिमिनल जिम्मेदारी का फैसला आर्बिट्रेटर नहीं कर सकता।
  • कोई भी निजी एग्रीमेंट क्रिमिनल कानून से ऊपर नहीं हो सकता।
  • दोनों पक्षों की सहमति होने पर भी क्रिमिनल अपराध आर्बिट्रेशन योग्य नहीं बन जाता
  • भले ही कॉन्ट्रैक्ट में आर्बिट्रेशन क्लॉज़ लिखा हो, वह क्रिमिनल केस को रोक नहीं सकता
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क्रिमिनल मामलों को आर्बिट्रेशन से क्यों नहीं सुलझाया जा सकता?

  1. अपराध समाज को नुकसान पहुँचाते हैं: क्रिमिनल अपराध सिर्फ किसी एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरे समाज की शांति, भरोसे और सुरक्षा को नुकसान पहुँचाते हैं। आर्बिट्रेशन निजी विवादों के लिए होता है, समाज के खिलाफ अपराधों के लिए नहीं।
  2. सज़ा देने का अधिकार आर्बिट्रेटर के पास नहीं होता: जेल की सज़ा या आपराधिक दंड केवल कोर्ट ही दे सकती है। आर्बिट्रेटर के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं होता।
  3. क्रिमिनल मामलों में सरकार पक्ष होती है: क्रिमिनल केस व्यक्ति बनाम व्यक्ति नहीं, बल्कि राज्य (State) बनाम आरोपी होता है। इसे निजी समझौते से खत्म नहीं किया जा सकता।
  4. पब्लिक पॉलिसी का मामला होता है: अगर क्रिमिनल मामलों को आर्बिट्रेशन से सुलझाने की अनुमति दी जाए, तो न्याय व्यवस्था कमजोर हो जाएगी और गंभीर अपराधों को निजी समझौते से दबाया जाने लगेगा।

इसीलिए कानून साफ कहता है कि क्रिमिनल मामलों में आर्बिट्रेशन लागू नहीं होता

कानून क्या कहता है?

आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट, 1996 केवल सिविल और कमर्शियल विवादों पर लागू होता है। यह कानून कॉन्ट्रैक्ट या कानूनी अधिकारों से जुड़े मामलों के लिए बनाया गया है और इसमें क्रिमिनल अपराध शामिल नहीं होते। यानी इस कानून के तहत आप अपराध से जुड़े मामलों को आर्बिट्रेशन में नहीं भेज सकते।

वहीं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) क्रिमिनल मामलों की पूरी प्रक्रिया बताता है, जैसे जांच, ट्रायल और सज़ा। BNSS कुछ छोटे और हल्के अपराधों में कोर्ट के ज़रिए समझौते की अनुमति देता है, लेकिन यह सुविधा भी सिर्फ कोर्ट के सामने होती है, आर्बिट्रेशन के ज़रिए नहीं।

इसलिए कानून बिल्कुल साफ है कि क्रिमिनल अपराधों को आर्बिट्रेशन में भेजने का कोई प्रावधान नहीं है

चीटिंग, फ्रॉड और ब्रीच ऑफ ट्रस्ट के मामले में क्या होता है?

  • चीटिंग: इसमें शुरू से ही बेईमानी की मंशा शामिल होती है। इसलिए इसे आर्बिट्रेशन से नहीं सुलझाया जा सकता। ऐसे मामलों में क्रिमिनल केस चलता रहता है, चाहे आर्बिट्रेशन क्यों न हो।
  • क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट: जब किसी को दी गई संपत्ति या पैसे का गलत इस्तेमाल किया जाता है, तो यह क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट होता है। यह भी नॉन-आर्बिट्रेबल है और आर्बिट्रेशन से खत्म नहीं होता।
  • फ्रॉड: फ्रॉड एक गंभीर अपराध है, जो समाज के भरोसे को नुकसान पहुँचाता है। इसे निजी समझौते से नहीं निपटाया जा सकता। आर्बिट्रेशन सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट से हुए नुकसान पर फैसला कर सकता है, लेकिन क्रिमिनल जिम्मेदारी बनी रहती है।
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क्या कोई अपवाद है?

हाँ, लेकिन ये सीमित और खास परिस्थितियों में ही होते हैं। कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिन्हें Compoundable offences कहा जाता है, यानी उन्हें कोर्ट की अनुमति से समझौते द्वारा खत्म किया जा सकता है। इसके कुछ उदाहरण हैं:

लेकिन ध्यान रखें: ऐसा समझौता कोर्ट के सामने होता है, आर्बिट्रेशन में नहीं। आर्बिट्रेशन कभी भी क्रिमिनल अपराध या दोष तय नहीं कर सकता। आर्बिट्रेशन से सिविल नुकसान की भरपाई हो सकती है, लेकिन अपराध माफ़ नहीं होता।

चेक बाउंस केस के मामले में क्या होता है?

चेक बाउंस के मामलों में अक्सर लोगों को भ्रम होता है। ये मामले क्रिमिनल प्रकृति के होते हैं, लेकिन आमतौर पर ये व्यापारिक लेन-देन से जुड़े होते हैं। कोर्ट ऐसे मामलों में समझौते को बढ़ावा देती है। आर्बिट्रेशन के ज़रिए पैसे के विवाद को सुलझाया जा सकता है, लेकिन क्रिमिनल केस को खत्म या निपटाना सिर्फ कोर्ट ही कर सकती है। आर्बिट्रेशन अपने आप चेक बाउंस का केस खत्म नहीं करता।

जब विवाद में सिविल और क्रिमिनल दोनों पहलू हों तो क्या करें?

  • तुरंत किसी अनुभवी वकील से सलाह लें
  • सिविल (कॉन्ट्रैक्ट/पैसे) और क्रिमिनल मुद्दों को अलग-अलग पहचानें
  • कॉन्ट्रैक्ट या भुगतान से जुड़े विवाद के लिए आर्बिट्रेशन का उपयोग करें
  • क्रिमिनल केस का अलग से कानूनी बचाव करें
  • दोनों कार्यवाहियों को आपस में न मिलाएँ
  • यदि वास्तविक और पूर्ण समझौता हो जाए, तो कोर्ट में केस रद्द कराने की अर्जी दें
  • सभी समझौतों और भुगतान का लिखित रिकॉर्ड सुरक्षित रखें

एन. राधाकृष्णन बनाम मेस्ट्रो इंजीनियर्स, 2009

केस का सार: 

Maestro Engineers के पार्टनरशिप विवाद में राधाकृष्णन ने आर्बिट्रेशन क्लॉज़ के आधार पर मामला आर्बिट्रेशन में भेजने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • कॉन्ट्रैक्ट में आर्बिट्रेशन क्लॉज़ होने के बावजूद, गंभीर धोखाधड़ी, खातों में गड़बड़ी और मिलावट जैसे मामले कोर्ट में ही निपटाए जाएँ, क्योंकि ये आर्बिट्रेटर के दायरे से बाहर हैं।
  • केवल मामूली सिविल/कॉन्ट्रैक्ट विवाद आर्बिट्रेशन में भेजे जा सकते हैं।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी विवाद आर्बिट्रेशन में नहीं जा सकते, खासकर जब गंभीर सबूत और गवाह शामिल हों।
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मुख्य सीख: 

अगर विवाद में गंभीर धोखाधड़ी या जटिल वित्तीय गड़बड़ी है, तो सुप्रीम कोर्ट के अनुसार कोर्ट ही सही फोरम है, आर्बिट्रेशन नहीं।

निष्कर्ष

आर्बिट्रेशन एक प्रभावी और तेज़ तरीका है, लेकिन यह हर समस्या का समाधान नहीं है। क्रिमिनल कानून समाज की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और अपराध की सज़ा के लिए बनाया गया है, जिसे निजी तरीकों से नहीं निपटाया जा सकता। इस फर्क को समझना व्यक्तियों और व्यवसायों को बड़ी कानूनी गलतियों से बचाता है। सिविल और कमर्शियल विवाद आर्बिट्रेशन से जल्दी सुलझ सकते हैं, लेकिन क्रिमिनल अपराधों को कानून द्वारा तय रास्ते पर ही चलना होता है। सही समय पर सही कानूनी उपाय अपनाना ही न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करता है

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FAQs

1. क्या भारत में क्रिमिनल केस आर्बिट्रेशन से सुलझाए जा सकते हैं?

नहीं। क्रिमिनल केस समाज के खिलाफ अपराध होते हैं, इसलिए उन्हें सिर्फ़ क्रिमिनल कोर्ट ही देख सकती है। आर्बिट्रेशन से क्रिमिनल केस खत्म नहीं होता।

2. क्या कॉन्ट्रैक्ट में आर्बिट्रेशन क्लॉज़ होने से क्रिमिनल केस रुक जाता है?

नहीं। अगर मामला धोखाधड़ी, चीटिंग या आपराधिक नीयत से जुड़ा है, तो पुलिस जांच और क्रिमिनल केस चलता रहेगा।

3. क्या एक ही विवाद में आर्बिट्रेशन और क्रिमिनल केस दोनों चल सकते हैं?

हाँ। पैसे या कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ा मामला आर्बिट्रेशन में चल सकता है, और साथ-साथ क्रिमिनल अपराध का केस कोर्ट में चलता रहता है।

4. क्या कोई क्रिमिनल अपराध आपसी समझौते से निपटाया जा सकता है?

सिर्फ़ छोटे और हल्के अपराध, वो भी कोर्ट की अनुमति से। गंभीर अपराध न तो आर्बिट्रेशन से और न ही निजी समझौते से सुलझाए जा सकते हैं।

5. क्या आर्बिट्रेशन में समझौता होने पर क्रिमिनल केस खत्म हो सकता है?

केवल हाई कोर्ट ही क्रिमिनल केस को रद्द कर सकती है, और वह भी सीमित मामलों में, जब विवाद पूरी तरह निजी हो और समाज के हित पर असर न पड़ता हो।

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