अगर आपकी शादी में परेशानियाँ चल रही हैं, तो यह साबित करना मुश्किल हो सकता है कि आपके साथ क्या हो रहा है। हो सकता है कि आपका पति/पत्नी अकेले में बुरा व्यवहार करते हों या झूठ बोलते हों, और आपके पास कोई सबूत न हो।
ऐसे मामलों में अगर आप चुपचाप कॉल रिकॉर्ड कर लेते थे, तो उसे सबूत नहीं माना जाता था, क्योंकि इसे “प्राइवेसी” का उल्लंघन माना जाता था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है: अगर आपने अपने पति/पत्नी की कॉल रिकॉर्ड की है और वो रिकॉर्डिंग आपके तलाक के केस में सच्चाई साबित करती है, तो अब वो कोर्ट में सबूत के तौर पर मान्य होगी। अब आप कोर्ट में अपनी स्थिति को मजबूत सबूतों के साथ पेश कर सकते हैं।
14 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब–हरियाणा हाई कोर्ट के पिछले निर्णय को पलट दिया, जिसने कहा था कि बिना जानकारी की रिकॉर्डिंग गोपनीयता का उल्लंघन है। अब सवाल है कि यह निर्णय आपकी कानूनी रणनीति में कैसे काम आएगा?
सुप्रीम कोर्ट ने वास्तव में क्या कहा?
विभोर गर्ग बनाम नेहा, 2025 के मामले में एक पति ने अपनी पत्नी के साथ 2010–16 में हुई कॉल्स गुप्त रूप से रिकॉर्ड की थीं, ताकि यह साबित हो सके कि वह मानसिक अत्याचार कर रही थीं
सबसे पहले बठिंडा की फैमिली कोर्ट ने इन रिकॉर्डिंग्स को सबूत के तौर पर मान लिया था। लेकिन बाद में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इन्हें खारिज कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला बदलते हुए कहा है कि ये रिकॉर्डिंग तलाक के मामले में सबूत के तौर पर मान्य हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
- गुप्त रिकॉर्डिंग पर वैधता: अदालत ने कहा कि चुपचाप की गई रिकॉर्डिंग भी मान्य सबूत हो सकती है, जब वे तलाक या वैवाहिक असहनीयता साबित करने में सच्चाई उजागर करें। इससे साफ होता है कि अगर रिकॉर्डिंग न्याय में सहायक है, तो उसे सबूत के रूप में नकारा नहीं जा सकता।
- भावनात्मक क्रूरता साबित करना मुश्किल: अक्सर ये घटनाएँ अकेले में होती हैं और बिना तीसरे गवाह के रिकॉर्डिंग सबसे उपयुक्त माध्यम होती हैं ।
- प्राइवेसी बनाम न्याय का अधिकार: अदालत ने कहा कि वैवाहिक गोपनीयता का अधिकार तभी लागू होता है, जब विवाद वैवाहिक संबंध की रक्षा के लिए नहीं हो, लेकिन तलाक जैसे मुकदमे में “न्याय पाने का अधिकार” अधिक महत्वपूर्ण है।
- भरोसा टूटने का सबूत: कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर पति/पत्नी गुप्त रूप से रिकॉर्डिंग कर रहे हों, तो यह साबित करता है कि विवाह पहले ही टूट रहा है, यह “विश्वास की कमी” का संकेत है, और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 क्या कहती है?
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 धारा 122/ (BSA, 2023 धारा 128) कहती है कि पति-पत्नी के बीच की निजी बातें आमतौर पर कोर्ट में सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं की जा सकतीं। लेकिन इसमें एक अहम छूट भी है।
- अगर पति-पत्नी एक-दूसरे के खिलाफ कोर्ट में केस कर रहे हों (जैसे तलाक का मामला), तो ऐसी बातचीत को सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा अगर रिकॉर्डिंग सच साबित करने में मदद करती है और कुछ जरूरी शर्तें पूरी होती हैं, तो वो कोर्ट में मान्य होगी।
कोर्ट ने प्राइवेसी और न्याय के बीच कैसे संतुलन बनाया?
- 2017 में पुट्टास्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। लेकिन मूल संविधान में यह विस्तार भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 पर लागू नहीं करता, जैसाकि कोर्ट ने स्पष्ट किया ।
- जजों ने एक बहुत अहम बात कही: “गुप्त तरीके से की गई रिकॉर्डिंग से शादी नहीं टूटती, बल्कि यह दिखाता है कि शादी पहले से ही टूट चुकी है।”
- साधारण भाषा में कहें तो अगर आप अपने पति या पत्नी की बातें छुपकर रिकॉर्ड कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि भरोसा पहले ही खत्म हो चुका है।
- इसलिए कोर्ट ने ये नहीं देखा कि सबूत कैसे जुटाया गया, बल्कि ये देखा कि उस रिकॉर्डिंग से सच्चाई सामने आ रही है या नहीं। कोर्ट ने न केवल प्राइवेसी की सोच को सही ठहराया, बल्कि बताया कि मर्यादा और सच्चाई में साझेदारी भी जरूरी है।
गुप्त रिकॉर्डिंग कब मानी जाएगी? ज़रूरी शर्तें
आप कोई भी रिकॉर्डिंग कोर्ट में नहीं चला सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रिकॉर्डिंग को मान्य होने के लिए तीन बातें ज़रूरी हैं:
- केस से जुड़ी होनी चाहिए (Relevance): रिकॉर्डिंग सीधे आपके केस से जुड़ी हो, जैसे मानसिक उत्पीड़न, धमकी या बुरा व्यवहार साबित करना।
- साफ–सुनाई दे और पहचान हो (Clarity/Identification): रिकॉर्डिंग में आवाज़ साफ हो और ये पता चले कि बोल कौन रहा है।
- असली हो, छेड़छाड़ न हो (Accuracy): रिकॉर्डिंग से छेड़छाड़ न की गई हो, जैसे कटिंग, एडिटिंग या मिलावट न हो।
कौन कर सकता है रिकॉर्डिंग?
- कोर्ट ने कहा, जहाँ पति–पत्नी में झगड़ा स्पष्ट हो, वहाँ किसी अन्य जासूस की जरुरत नहीं, रिकॉर्डिंग करने वाला खुद पति या पत्नी हो सकते है। यह ‘participant recording’ माना गया है ।
- यदि तीसरा व्यक्ति छुपकर रिकॉर्डिंग करता है, तो यह गैरकानूनी माना जाएगा, क्योंकि वो खुद बातचीत में शामिल नहीं है।
क्लाइंट्स के लिए जरूरी सावधानियाँ
चाहे आप पति हों या पत्नी, यह फैसला आपके लिए कोर्ट में महत्वपूर्ण सहारा साबित होगा। आप रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल कर सकते हैं अगर:
- आपका मानसिक या भावनात्मक उत्पीड़न हो रहा है।
- आपका पति या पत्नी झूठी बातें कह रहा हो।
- ऐसी बातें साबित करनी हों जो कोई और नहीं सुन पाया।
लेकिन ध्यान रखें:
- रिकॉर्डिंग सिर्फ उस केस से जुड़ी होनी चाहिए।
- रिकॉर्डिंग की असली होने का सबूत देने के लिए तैयार रहें (जैसे मोबाइल, कॉल रिकॉर्ड)।
- रिकॉर्डिंग में कोई बदलाव या छेड़छाड़ न करें, इससे नुकसान हो सकता है।
इस तरह आप अपनी बात कोर्ट में मजबूत तरीके से रख सकते हैं।
ध्यान देने वाली बात
- इस फैसले का मतलब ये नहीं है कि आप हर बात रिकॉर्ड करना या छुपकर कैमरा लगाना शुरू कर दें।
- कोर्ट ने साफ कहा है: ये सुविधा सिर्फ असली कानूनी मामलों में मिलेगी, जैसे तलाक या बच्चे की कस्टडी का केस।
- इसका गलत इस्तेमाल न करें और किसी को फंसाने की कोशिश न करें, इससे आपका केस कमजोर हो सकता है।
निष्कर्ष
यह फैसला उन भारतीय परिवारों के लिए एक बड़ा बदलाव है जो मुश्किल शादीशुदा हालात से गुजर रहे हैं। कोर्ट जासूसी को बढ़ावा नहीं दे रहा, लेकिन समझ रहा है कि कई बार आपके पास सच साबित करने का एकमात्र तरीका रिकॉर्डिंग ही होता है। ऐसे में, कोर्ट ने साफ कहा है कि सच ज़्यादा मायने रखता है, न कि सबूत कैसे जुटाया गया।
अगर आप मानसिक प्रताड़ना झेल रहे हैं, झूठे आरोप लगे हैं, या अपनी शादी से जुड़ी सच्चाई कोर्ट में साबित करनी है, तो अब आपके पास अपनी बात मजबूती से रखने का एक मजबूत तरीका है।
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FAQs
1. क्या मैं बिना बताए अपने पति/पत्नी की रिकॉर्डिंग कर सकता/सकती हूँ?
हाँ, अगर ये रिकॉर्डिंग तलाक जैसे वैवाहिक विवाद में की गई है और कोर्ट की बताई तीन शर्तें पूरी करती है, तो आप ऐसा कर सकते हैं।
2. क्या गुप्त रिकॉर्डिंग करने पर मुझे सज़ा हो सकती है?
नहीं, अगर मामला तलाक या शादी से जुड़ा है तो कोर्ट ने साफ कहा है कि कभी-कभी सच्चाई साबित करने के लिए गुप्त रिकॉर्डिंग ही एकमात्र तरीका होता है।
3. क्या अब ये सभी कोर्ट में मान्य होगा?
हाँ, क्योंकि ये सुप्रीम कोर्ट का फैसला है, इसलिए देश की सभी निचली अदालतों को इसका पालन करना होगा।
4. अगर दूसरा पक्ष कहे कि रिकॉर्डिंग नकली है, तो क्या होगा?
अगर सामने वाला माने नहीं कि रिकॉर्डिंग असली है, तो कोर्ट जांच करेगा कि:
- रिकॉर्डिंग किस डिवाइस से की गई
- आवाज़ साफ है या नहीं
- रिकॉर्डिंग में कोई छेड़छाड़ तो नहीं
5. इस फैसले का पुराने तलाक मामलों पर क्या असर होगा?
अगर किसी पुराने तलाक के केस में पहले से कोई कॉल रिकॉर्डिंग मौजूद है और वह केस से जुड़ी (जरूरी) है, तो अब उसे भी सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन कोर्ट ही तय करेगा कि वह रिकॉर्डिंग मान्य है या नहीं।



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