केस में देरी हो रही है? जानिए कोर्ट से जल्दी निपटारे की प्रक्रिया

Is your court case getting delayed Know the process of early settlement from court

भारत में कानूनी लड़ाइयाँ मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से बहुत थका देती हैं। कई बार क्लाइंट पूछते हैं:

मेरा केस इतना लंबा क्यों चल रहा है? क्या इसे जल्दी खत्म करने का कोई तरीका है?

न्याय में देरी = अन्याय?

जी हां! सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि “Justice Delayed is Justice Denied”. मतलब अगर आपको समय पर न्याय नहीं मिला, तो वह अपने आप में अन्याय है।

अगर आप भी ऐसी लंबी कानूनी लम्बे कानूनी केस में फसें है, तो आप अकेले नहीं हैं। अच्छी बात ये है कि कानून में कुछ ऐसे तरीके हैं जो जल्दी सुलह करवाने में मदद करते हैं, जिससे केस सालों तक लंबा नहीं खींचता।

इस ब्लॉग में आप जानेंगे कि आपका केस क्यों देर हो रहा है, कोर्ट की जल्दी सुलह विकल्पों का कैसे उपयोग करें, और समझदारी से फैसला लेकर केस जल्दी खत्म करें।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

भारत में केस देर से क्यों निपटते हैं?

मुकदमों में देरी के कई कारण होते हैं:

  • बार-बार की तारीखें (Adjournments): कई बार बिना वजह सुनवाई को आगे बढ़ा दिया जाता है।
  • गवाहों की अनुपस्थिति: गवाह समय पर पेश नहीं होते, जिससे केस में देरी होती है।
  • वकीलों की हड़ताल या कोर्ट की बाधित कार्यवाही: जब वकील हड़ताल पर जाते हैं या कोर्ट में कामकाज ठप हो जाता है।
  • दस्तावेज़ों की कमी या खामियां: अधूरी पेटिशन या गलत दस्तावेज भी देरी का कारण बनते हैं।

क्या कोर्ट से जल्दी निपटारे की मांग करना कानूनी है?

अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार

भारत का संविधान हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसमें तेज़ न्याय प्रक्रिया भी शामिल है, ताकि कोई भी व्यक्ति बिना उचित कारण देरी के न्याय पाने से वंचित न रहे और उसका मामला जल्दी निपटाया जाए।

क्या आप कोर्ट से प्रक्रिया तेज़ करने को कह सकते हैं? जी हां! कानून आपको यह अधिकार देता है कि आपको यह संवैधानिक अधिकार प्राप्त है कि आप न्यायालय से अपने मामले की शीघ्र सुनवाई की मांग कर सकते हैं।

कानूनन राहत: आप हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में पेटिशन  दायर कर सकते हैं या केस के भीतर अर्जेंसी एप्लिकेशन लगा सकते हैं।

जल्दी निपटारे के लिए कानूनी विकल्प

  • हाई कोर्ट में पेटिशन: अगर निचली अदालत में आपका केस सालों से लंबित है और सुनवाई में लगातार देरी हो रही है, तो आप हाई कोर्ट में पेटिशन दायर करके अनुरोध कर सकते हैं कि निचली अदालत को निर्देश दिया जाए कि वह समय पर सुनवाई करे और मामला जल्द निपटाए।
  • सुप्रीम कोर्ट में रिट पेटिशन: अगर मामला बहुत गंभीर है या आपके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, तो आप सीधे सुप्रीम कोर्ट में रिट पेटिशन दाखिल कर सकते हैं। यह उपाय खासतौर पर तब उपयोगी होता है जब देरी से आपके जीवन या स्वतंत्रता पर असर पड़ रहा हो।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) का आर्डर 17: इस प्रावधान के तहत कोर्ट से अनुरोध किया जा सकता है कि अनावश्यक और बार-बार की तारीखें (adjournments) न दी जाएं। केवल जरूरी कारणों पर ही सुनवाई टाली जाए। इससे केस में तेजी लाई जा सकती है।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता BNSS की धारा 346: अगर मामला आपराधिक है, तो इस धारा के तहत कोर्ट से कहा जा सकता है कि सुनवाई लगातार और रोज़ाना हो, ताकि केस जल्द खत्म हो और पीड़ित को न्याय मिल सके।
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हाई कोर्ट में जल्दी सुनवाई की अर्जी कैसे लगाएं?

उचित कारण ज़रूरी है: कोर्ट में जल्दी सुनवाई की मांग तभी स्वीकार की जाती है जब उसके पीछे कोई ठोस और न्यायसंगत कारण हो। जैसे:

  • वादी या प्रतिवादी की उम्र बहुत ज़्यादा हो (वृद्धावस्था)
  • गंभीर बीमारी हो
  • महिला या बच्चों से जुड़ा संवेदनशील मामला हो
  • आर्थिक स्थिति खराब हो और केस की देरी से नुकसान हो रहा हो
  • केस में तत्काल राहत (interim relief) की जरूरत हो

अर्जेंसी एप्लिकेशन कैसे तैयार करें? आपके वकील को एक अर्जेंसी एप्लिकेशन तैयार करनी होती है, जिसमें स्पष्ट रूप से यह बताया जाता है कि:

  • मामले की अर्जेंसी का कारण क्या है
  • देरी से आपको क्या नुकसान हो रहा है
  • कोर्ट से किस प्रकार की जल्द सुनवाई या राहत मांगी जा रही है
  • इस एप्लिकेशन को मुख्य पेटिशन के साथ या अलग से दाखिल किया जाता है।

Mentioning के जरिए जल्दी तारीख कैसे लें?

हाई कोर्ट में एक प्रक्रिया होती है जिसे “Mentioning” कहते हैं। इसमें वकील कोर्ट के सामने मौखिक रूप से अर्जेंसी बताता है और अनुरोध करता है कि केस की सुनवाई जल्दी की जाए।

यदि जज को कारण वाजिब लगता है, तो न्यायालय केस की सुनवाई के लिए शीघ्र तारीख निर्धारित कर सकता है।

क्या फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस ट्रांसफर हो सकता है?

फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या है? फास्ट ट्रैक कोर्ट विशेष अदालतें होती हैं, जिनका मकसद कुछ खास मामलों की तेज़ सुनवाई करना होता है। इनमें आमतौर पर निम्नलिखित मामलों को प्राथमिकता दी जाती है:

  • महिलाओं से जुड़े अपराध (जैसे दुष्कर्म, घरेलू हिंसा आदि)
  • बच्चों से संबंधित अपराध (POCSO के तहत)
  • वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों से जुड़े मामले
  • पुराने और लंबित केस जिनमें जल्दी निपटारा जरूरी हो

इन कोर्ट्स को सरकार द्वारा तेज़ न्याय सुनिश्चित करने हेतु इन अदालतों की स्थापना की जाती है।

ट्रांसफर की प्रक्रिया क्या है?

  • अपने वकील के माध्यम से संबंधित कोर्ट में ट्रांसफर एप्लिकेशन दाखिल करें।
  • एप्लिकेशन में यह स्पष्ट करें कि केस फास्ट ट्रैक कोर्ट की श्रेणी में आता है और देरी से पीड़ित को नुकसान हो रहा है।
  • कोर्ट यदि कारणों को सही मानता है, तो वह केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर कर सकता है।

महत्वपूर्ण:

  • हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं होती, इसलिए पहले यह जांचना जरूरी है कि आपके क्षेत्र में ऐसी कोर्ट उपलब्ध है या नहीं।
  • ट्रांसफर का निर्णय संबंधित न्यायालय की अनुमति और केस की प्रकृति पर निर्भर करता है।
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मेडिएशन या समझौते के जरिए जल्दी निपटारा कैसे हो सकता है?

अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेसोलुशन क्या है? ADR का मतलब है “अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेसोलुशन” यानी ऐसा तरीका जिसमें कोर्ट की सहायत से दोनों पक्ष आपसी समझौते से मामला सुलझा लेते हैं। इसमें मेडिएशन, कौंसिलिएशन, आर्बिट्रेशन जैसे तरीके शामिल होते हैं।

मेडिएशन सेंटर से कैसे होता है समझौता? जब कोर्ट को लगता है कि मामला बातचीत से सुलझ सकता है, तो वह दोनों पक्षों को मेडिएशन सेंटर भेज देती है। वहां एक निष्पक्ष व्यक्ति यानी मीडिएटर दोनों पक्षों की बात सुनता है और उन्हें समाधान निकालने में मदद करता है।

  • यह प्रक्रिया कोर्ट की निगरानी में होती है
  • समझौता हो जाने पर कोर्ट उस समझौते को अंतिम आदेश मान लेता है
  • केस खत्म हो जाता है और आगे की सुनवाई की जरूरत नहीं होती

मेडिएशन के फायदे:

  • हर प्रक्रिया आमतौर पर कुछ ही हफ्तों या महीनों में निपट जाती है, जिससे वर्षों की देरी से बचा जा सकता है।
  • वकीलों की फीस, कोर्ट फीस और बार-बार तारीखों का खर्च बचता है।खासकर पारिवारिक या संपत्ति विवादों में, आपसी समझौता रिश्तों को खराब होने से बचाता है।

केस ट्रैकिंग और निगरानी: डिजिटल तरीकों का उपयोग

अब अदालतों में पारदर्शिता और गति लाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। इससे आम लोगों को अपने केस की जानकारी पाने में आसानी हो रही है और देरी पर नजर रखना भी संभव हो गया है।

e-Courts पोर्टल:

आप अपने केस का स्टेटस अब घर बैठे जान सकते हैं। आप www.ecourts.gov.in पर जाकर:

  • पार्टी का नाम या केस नंबर डालें
  • अगली तारीख, कोर्ट का नाम, केस की स्थिति आदि की जानकारी तुरंत मिल जाएगी
  • यह सेवा सभी जिलों की कोर्ट्स के लिए उपलब्ध है

SMS/Email Updates:

अब कोर्ट आपके केस से जुड़ी जानकारी जैसे:

  • अगली तारीख
  • आर्डर या नोटिस
  • केस की प्रगति SMS और ईमेल के माध्यम से भेज रही है।
  • इसके लिए केस फाइलिंग के समय मोबाइल नंबर और ईमेल सही देना जरूरी होता है।

AI-Based Monitoring:

अब अदालतें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके यह पता लगा रही हैं कि:

  • कौन से केस में देरी हो रही है
  • किन कारणों से सुनवाई टल रही है
  • और कैसे ऐसे मामलों को प्राथमिकता दी जाए
  • AI की सहायता से अदालतें लंबित मामलों की पहचान कर रही हैं और उन्हें प्राथमिकता देकर शीघ्र निपटाने का प्रयास कर रही हैं।

फायदे:

  • समय पर जानकारी मिलती है
  • कोर्ट के चक्कर कम लगते हैं
  • केस की स्थिति पर खुद नजर रख सकते हैं
  • देरी के खिलाफ उचित कदम समय रहते उठाए जा सकते हैं

विशेष त्वरित समाधान – सिविल और क्रिमिनल दोनों मामलों के लिए

न्याय प्रक्रिया में कुछ ऐसे विशेष कानूनी उपाय हैं, जो केस को जल्दी निपटाने में मदद करते हैं, चाहे मामला सिविल हो या क्रिमिनल।

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सिविल मामलों में त्वरित समाधान के तरीके:

आर्डर 10 (CPC):
  • इस आर्डर के तहत कोर्ट दोनों पक्षों से सीधे पूछताछ करती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि असली विवाद किस बात को लेकर है।
  • इससे अनावश्यक मुद्दे हट जाते हैं और केस की दिशा स्पष्ट होती है, जिससे समय की बचत होती है।
आर्डर 15 (CPC):
  • अगर मामला ऐसा है जिसमें कोई खास विवाद नहीं है, और सभी जरूरी बातें स्पष्ट हैं, तो कोर्ट बिना फुल ट्रायल के ही तुरंत फैसला दे सकती है।
  • इससे केस जल्दी निपट जाता है और सालों की सुनवाई से राहत मिलती है।

क्रिमिनल मामलों में त्वरित समाधान के तरीके:

प्ली बार्गेनिंग (BNSS का चैप्टर 21):
  • इसमें आरोपी व्यक्ति अपना अपराध स्वीकार कर लेता है।
  • बदले में कोर्ट उसे हल्की सज़ा देती है या दंड कम कर देती है।
  • यह तरीका उन मामलों में अपनाया जा सकता है जहां अपराध बहुत गंभीर न हो और आरोपी सुधार का इच्छुक हो।
कम्पाउंडिंग ऑफ़ ऑफेंसिस (BNSS की धारा 359):
  • इसमें पीड़ित और आरोपी आपसी समझौते से केस खत्म कर सकते हैं।
  • जैसे झगड़ा, मारपीट या छोटे-मोटे अपराधों में यह समझौता संभव होता है।
  • कोर्ट की अनुमति से केस बंद किया जा सकता है और आगे सुनवाई की जरूरत नहीं होती।

निष्कर्ष

देरी को अपनी नियति मानकर चुप न बैठें। आपके पास समय पर न्याय पाने का संवैधानिक अधिकार है—इसका उपयोग करें। निष्क्रिय रहने के बजाय सक्रिय कदम उठाएं। सही वकील और कानूनी रणनीति अपनाकर अपने केस में तेजी लाई जा सकती है और न्याय जल्द पाया जा सकता है।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. मैं कितनी बार कोर्ट से जल्दी सुनवाई की मांग कर सकता हूँ?

आप हर बार उचित और ठोस कारण होने पर अर्जेंसी एप्लिकेशन दायर कर सकते हैं, जैसे वृद्धावस्था, गंभीर बीमारी या आर्थिक हानि।

2. क्या हर केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजा जा सकता है?

नहीं, केवल विशेष श्रेणी के मामलों को (जैसे महिला, बच्चा, वरिष्ठ नागरिक, जीरो बैकलॉग केस) ही फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजा जाता है ।

3. केस में देरी हो रही है तो क्या मुझे नया वकील लेना चाहिए?

अगर मौजूदा वकील रणनीति नहीं बना पा रहे और देरी रोक नहीं पा रहे, तो दूसरा राय/वकील लेना समझदारी हो सकता है।

4. हाई कोर्ट से जल्द सुनवाई का आदेश कब मिलता है?

जब निचली अदालत में देरी से आपके अधिकार प्रभावित हो रहे हों और केस में अर्जेंसी कारण मौजूद हों, तभी हाई कोर्ट मौखिक या लिखित आदेश देती है।

5. क्या समझौते से केस जल्दी निपट सकता है?

हाँ, मेडिएशन या समझौते के जरिए आप समय, खर्च बचा सकते हैं, और अक्सर शांति से समझौता हो सकता है—अदालत उसका आदेश मानती है।

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