पार्टीशन सूट बनाम पारिवारिक समझौता – कौन-सा रास्ता तेज़ और किफायती है?

Partition Suit vs Family Settlement – ​​Which is faster and more economical

भारतीय परिवारों में प्रॉपर्टी से जुड़े मामले अक्सर बेहद संवेदनशील और भावनात्मक हो जाते हैं। छोटी-सी गलतफ़हमी भी बड़ा कानूनी झगड़ा बन सकती है। जब किसी प्रॉपर्टी पर कई लोगों का हक होता है, चाहे वह पुश्तैनी हो या स्वयं अर्जित, तो एक समय बाद यह सवाल ज़रूर उठता है:

प्रॉपर्टी का सही और बराबर बंटवारा कैसे किया जाए?

भारत में इसके लिए दो मुख्य तरीके हैं:

  1. पार्टिशन सूट – यानी अदालत में केस दायर कर प्रॉपर्टी का बंटवारा माँगना।
  2. फैमिली सेटलमेंट – यानी परिवार के बीच आपसी सहमति से बिना कोर्ट जाए समझौता करना।

हालाँकि दोनों तरीकों से आखिर में एक ही काम होता है – प्रॉपर्टी का बंटवारा, लेकिन समय, खर्च, प्रक्रिया और परिवारिक रिश्तों पर प्रभाव, इन सबमें दोनों बिल्कुल अलग हैं।

इस ब्लॉग में हम इन दोनों तरीकों में अंतर समझाएँगे, ताकि आप सही और समझदारी भरा फैसला ले सकें। आप जानेंगे कि आपकी स्थिति के लिए कौन-सा तरीका तेज़, किफायती, और ज़्यादा सही है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

पार्टिशन सूट क्या होता है?

पार्टिशन सूट एक ऐसा मुकदमा है जो सिविल कोर्ट में तब दायर किया जाता है जब किसी संयुक्त प्रॉपर्टी में हिस्सेदार (co-owner) अपना हिस्सा अलग करवाना चाहता है। यह इन प्रॉपर्टीयों पर लागू होता है:

  • पैतृक प्रॉपर्टी
  • संयुक्त परिवार की प्रॉपर्टी
  • मिलकर खरीदी गई प्रॉपर्टी
  • HUF (हिंदू अविभाजित परिवार) की प्रॉपर्टी
  • कुछ राज्यों में कृषि भूमि

यह मुकदमा क्यों किया जाता है? जब परिवार के कुछ सदस्य मिलकर बंटवारा करने के लिए तैयार न हों या आपसी सहमति से समाधान न हो पाए, तब पार्टिशन सूट दायर किया जाता है।

कानूनी आधार: भारतीय कानून के अनुसार, खास तौर पर:

  1. सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), धारा 9
  2. हिन्दू सक्सेशन एक्ट, 1956
  3. ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट
  4. राज्य के स्थानीय कानून

कोर्ट को यह अधिकार है कि वह प्रॉपर्टी का फिज़िकल बंटवारा करवाए, यानी हर व्यक्ति को उसका हिस्सा स्पष्ट रूप से अलग करके दे।

पार्टीशन सूट की प्रक्रिया

  • प्लेंट दाखिल करना: सबसे पहले कोर्ट में एक लिखित आवेदन (प्लेंट) दिया जाता है, जिसमें बताया जाता है कि आपकी प्रॉपर्टी में क्या अधिकार है और आपका कितना हिस्सा बनता है।
  • कोर्ट द्वारा नोटिस भेजना: कोर्ट सभी कानूनी वारिसों या को-ओनर्स को नोटिस भेजती है कि मामला चल रहा है और उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलता है।
  • लिखित जवाब: सामने वाला पक्ष कोर्ट में लिखकर बताता है कि वह आपकी बात से सहमत है या नहीं, और उसके पास क्या आपत्ति है।
  • सबूतों का चरण: इसमें दोनों पक्ष अपने दस्तावेज़, गवाह और अन्य सबूत पेश करते हैं। वकील एक-दूसरे के गवाहों से सवाल भी पूछते हैं (cross examination) ।
  • प्रारम्भिक निर्णय: कोर्ट तय करती है कि किस सदस्य का कितना-कितना हिस्सा है। यह सिर्फ “हिस्सा तय” करने का आदेश होता है।
  • अंतिम निर्णय: अब कोर्ट जमीन या प्रॉपर्टी का वास्तविक बंटवारा करने का आदेश देती है। यानी आपको आपका हिस्सा जमीन या मकान के रूप में अलग मिलेगा।
  • कमीशनर सर्वे: कोर्ट एक ऑफिसर भेजती है जो मौके पर जाकर जमीन को नापता है, हिस्सों को अलग करता है और नक्शा बनाकर कोर्ट को देता है।
  • म्यूटेशन: जब बंटवारा हो जाता है, तो आपके नाम से सरकारी रिकॉर्ड (खतौनी, खसरा, रजिस्ट्री) में अलग-अलग हिस्से दर्ज किए जाते हैं।
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कितना समय लगता है? 

आमतौर पर 7 से 15 साल, और कई बार इससे भी ज़्यादा लग जाते हैं।

कितना खर्च आता है?

  • कोर्ट फीस (हर राज्य में प्रॉपर्टी की कीमत के हिसाब से अलग)
  • वकील की फीस
  • सर्वे कमीशनर का खर्च
  • दस्तावेज़ और रजिस्ट्री का खर्च

पार्टीशन सूट से क्या प्रभाव पड़ता है?

  • रिश्तों में दरार डाल देता है
  • सालों तक मुकदमेबाजी चलती रहती है
  • परिवारों में तनाव और कड़वाहट बढ़ जाती है
  • मानसिक दबाव और भावनात्मक थकान पैदा करता है

फैमिली सेटलमेंट एग्रीमेंट क्या होता है?

फैमिली सेटलमेंट एक ऐसा समझौता है जिसमें परिवार के सदस्य आपस में बैठकर बिना कोर्ट जाए प्रॉपर्टी का बंटवारा आपसी सहमति से तय करते हैं। इसमें न कोई जज, न कोई मुकदमा — सिर्फ परिवार की बातचीत से समाधान।

क्यों किया जाता है? क्योंकि परिवार झगड़े और केस से बचकर शांति से मामला सुलझाना चाहता है।

फैमिली सेटलमेंट के रूप: फैमिली सेटलमेंट कई तरीकों से हो सकता है:

  • लिखित रूप में (सबसे बेहतर तरीका)
  • मौखिक रूप में (कानून अनुसार मान्य, पर सलाह नहीं दी जाती)
  • लिखित लेकिन अनरजिस्टर्ड (कई मामलों में मान्य)
  • रजिस्टर्ड सेटलमेंट (अगर अधिकारों का ट्रांसफर हो रहा है तो यह तरीका सबसे सुरक्षित)

फैमिली सेटलमेंट की प्रक्रिया

  • परिवार की बैठक – सभी सदस्य अच्छे माहौल में बैठकर बातचीत करते हैं।
  • प्रॉपर्टीयों की सूची – कौन-कौन सी प्रॉपर्टी है, उसकी जानकारी तैयार की जाती है।
  • शेयर तय करना – किसे कौन सा हिस्सा मिलेगा, यह लिखा जाता है।
  • सेटलमेंट डीड तैयार करना – वकील एक साफ-सुथरा एग्रीमेंट बनाता है।
  • सभी सदस्यों के हस्ताक्षर – गवाहों की मौजूदगी में साइन किए जाते हैं।
  • रजिस्ट्री (वैकल्पिक लेकिन बेहतर) – चाहें तो डॉक्यूमेंट रजिस्टर्ड कराया जा सकता है।
  • म्यूटेशन – सरकारी रिकॉर्ड में नाम बदल दिए जाते हैं।

कितना समय लगता है? 

आमतौर पर 7 से 30 दिन ही लगते हैं।

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कितना खर्च आता है?

  • बहुत कम स्टाम्प ड्यूटी
  • बहुत कम रजिस्ट्री शुल्क (अगर करवाते हैं तो)
  • वकील की ड्राफ्टिंग फीस
  • यानी खर्च मुकदमे से कई गुना कम होता है।

फैमिली सेटलमेंट का प्रभाव

  • परिवार में रिश्ते बने रहते हैं: क्योंकि बातचीत से समाधान होता है, मनमुटाव नहीं बढ़ता और परिवार में भरोसा बना रहता है।
  • समय की बचत: लंबी कोर्ट प्रक्रिया से बचकर कुछ ही दिनों में प्रॉपर्टी बाँटने का समाधान मिल जाता है।
  • पैसा बचता है: कोर्ट फीस, वकील फीस और सालों की खर्चीली सुनवाई से छुटकारा मिल जाता है।
  • कोर्ट-कचहरी से छुटकारा: झंझट, तनाव और चक्कर काटने से बचते हैं क्योंकि पूरा मामला घर में ही शांतिपूर्वक निपट जाता है।

मुख्य अंतर पार्टिशन सूट बनाम फैमिली सेटलमेंट

बिंदुपार्टिशन सूटफैमिली सेटलमेंट
गति7–15 साल लग जाते हैं1–4 हफ़्तों में निपट जाता है
खर्चबहुत ज़्यादा खर्चबहुत कम खर्च
प्रक्रियाकोर्ट-कचहरी, लंबी सुनवाईपरिवार की आपसी सहमति
कंट्रोलफ़ैसला जज करते हैंफ़ैसला परिवार खुद करता है
रिश्तों पर असरतनाव, मनमुटाव बढ़ता हैशांति और रिश्ते बने रहते हैं
कानूनी मजबूतीपूरी तरह लागू होता हैकानूनी रूप से मान्य और लागू
लचीलापनबहुत कमज़्यादा, परिवार अपनी मर्ज़ी से तय कर सकता है

कब पार्टिशन सूट (कोर्ट केस) ज़रूरी हो जाता है?

आपको पार्टिशन सूट तब दायर करना चाहिए जब:

  • कोई परिवार का सदस्य सहयोग करने से मना कर दे।
  • कोई व्यक्ति पूरी प्रॉपर्टी पर गलत तरीके से कब्ज़ा कर ले।
  • कोई सह-मालिक बिना आपकी अनुमति के अपनी हिस्सेदारी बेच दे।
  • धोखाधड़ी या जानकारी छिपाने की स्थिति हो।
  • परिवार के सदस्यों में भरोसा न बचा हो।
  • कोई आपको प्रॉपर्टी में घुसने या उसे उपयोग करने से रोक दे।
  • ऐसी स्थितियों में कोर्ट जाना आख़िरी सहारा बन जाता है।

कब फैमिली सेटलमेंट बेहतर होता है?

फैमिली सेटलमेंट तब सबसे अच्छा विकल्प होता है जब:

  • सभी परिवारजन बैठकर बात करने को तैयार हों।
  • सबकी इच्छा हो कि घर में शांति बनी रहे।
  • कोई भी लंबे कोर्ट केस में नहीं पड़ना चाहता।
  • प्रॉपर्टी कम हो और आसानी से बाँटी जा सके।
  • बड़े-बुज़ुर्ग अपनी ज़िंदगी में ही झगड़े खत्म करना चाहें।
  • ऐसे मामलों में फैमिली सेटलमेंट हमेशा पहले कोशिश करने योग्य तरीका है।

भारतीय कोर्ट किसे ज़्यादा महत्व देती हैं?

भारत में अदालतें हमेशा यह कोशिश करती हैं कि परिवार के झगड़े कोर्ट तक न आएं। जज कई बार कहते हैं कि: “परिवारिक विवादों को कोर्ट में लाने के बजाय आपस में मिलकर समाधान करना बेहतर है।”

काले बनाम उप निदेशक, समेकन (1976)

इस महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिवारिक सेटलमेंट को कोर्ट हमेशा प्राथमिकता देती है, क्योंकि इससे:

  • झगड़े जल्दी खत्म होते हैं
  • रिश्तों में कड़वाहट नहीं आती
  • समय और पैसा दोनों बचता है
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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि फैमिली सेटलमेंट के लिए बहुत भारी-भरकम कानूनी फॉर्मैलिटी जरूरी नहीं होती, बस यह साबित होना चाहिए कि सबने अपनी मर्ज़ी से समझौता किया, समझौता न्यायसंगत है और किसी को जबरदस्ती नहीं किया गया।

इस फैसले के बाद फैमिली सेटलमेंट को कानूनी सुरक्षा और ज़्यादा मज़बूती मिली।

अमतेश्वर आनंद बनाम वीरेंद्र मोहन सिंह (2006)

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अगर परिवार के सदस्य आपस में बैठकर, सही तरीके से और बिना किसी दबाव के सेटलमेंट करते हैं, तो अदालत उसे पूरी तरह वैध और लागू मानती है।

कोर्ट ने विशेष रूप से कहा कि फैमिली सेटलमेंट विवाद खत्म करने का सबसे बेहतर तरीका है

जब तक सेटलमेंट साफ, निष्पक्ष और सहमति से बना है, कोर्ट उसे रद्द नहीं करेगी परिवार में शांति बनाए रखने के लिए ऐसे समझौते न्याय के हित में होते हैं

इस फैसले ने फैमिली सेटलमेंट की विश्वसनीयता और कानूनी ताकत को और मज़बूत किया।

निष्कर्ष

हर परिवार में एक समय ऐसा आता है जब संपत्ति से जुड़े फैसले सिर्फ कागज़ों को नहीं, भविष्य को प्रभावित करते हैं। जब परिवार बात-चीत और समझदारी चुनता है, तो हल जल्दी निकल आता है, किसी भी कोर्ट के आदेश से भी तेज़।

फैमिली सेटलमेंट इसलिए सफल होता है क्योंकि इसमें जीत-हार नहीं, आपसी समझ और भरोसा होता है। लेकिन जब सहयोग खत्म हो जाए, तो न्याय और बराबरी बनाए रखने के लिए पार्टिशन सूट ही आख़िरी सहारा बनता है।

आखिर में, वही रास्ता सही है जो आपका हक भी बचाए और मन की शांति भी। क्योंकि संपत्ति की कीमत होती है – परिवार की स्थिरता की नहीं।

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FAQs

1. पारिवारिक संपत्ति जल्दी बाँटने का सबसे तेज़ तरीका क्या है?

फैमिली सेटलमेंट सबसे तेज़ तरीका है, क्योंकि इसमें कोर्ट नहीं जाना पड़ता और परिवार आपस में बात करके फैसला कर लेता है।

2. क्या बिना रजिस्ट्री वाला फैमिली सेटलमेंट भी कानूनी रूप से मान्य है?

हाँ, अगर सभी लोग अपनी मर्ज़ी से लिखित समझौता करें और गवाह हों, तो बिना रजिस्ट्री वाला सेटलमेंट भी मान्य है।

3. मुझे कब पार्टिशन सूट दायर करना चाहिए?

जब बात-चीत न चले, कोई आपका हक रोके, कब्जा करे या बिना अनुमति साझा संपत्ति बेच दे, तब सूट जरूरी है।

4. क्या बेटियों को भी संपत्ति में बराबर हक मिलता है?

हाँ, हिन्दू सक्सेशन एक्ट के अनुसार बेटियाँ भी पैतृक और संयुक्त परिवार की संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार रखती हैं।

5. अगर बाद में कोई फैमिली सेटलमेंट मानने से मना कर दे तो क्या होगा?

लिखित सेटलमेंट कोर्ट में सबूत बन जाता है, और कोर्ट उसी समझौते के अनुसार संपत्ति बाँटने का आदेश दे सकती है।

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