हिंदू विवाह अधिनियम में गुजारा भत्ता: धारा 24 और 25 के तहत अधिकार और प्रक्रिया

Alimony in Hindu Marriage Act Rights and Procedure under Sections 24 and 25

गुजारा भत्ता एक कानूनी अधिकार है, जो शादीशुदा जोड़ों के बीच विवाह के बाद के विवादों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब पति-पत्नी के बीच रिश्ता टूटता है या वे अलग हो जाते हैं, तो एक पक्ष को दूसरे पक्ष से भरण-पोषण के रूप में एक निश्चित राशि की आवश्यकता हो सकती है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, भारत में विवाह और तलाक के मामलों में अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी मार्गदर्शिका है। इसमें गुजारा भत्ता से संबंधित दो महत्वपूर्ण धाराएँ हैं – धारा 24 और धारा 25, जो इस लेख का मुख्य विषय हैं।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955: एक संक्षिप्त परिचय

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का उद्देश्य हिंदू धर्म के अनुयायियों के बीच विवाह और उसके टूटने की स्थिति में अधिकारों की रक्षा करना है। यह अधिनियम पति-पत्नी के अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है। इसके अंतर्गत विवाह के दौरान और विवाह के टूटने के बाद दोनों पक्षों को न्याय की सुविधा मिलती है, जिसमें गुजारा भत्ता भी शामिल है।

गुजारा भत्ता क्या होता है? (What is Alimony?)

गुजारा भत्ता वह राशि है, जो एक पति-पत्नी को विवाह के दौरान या बाद में अपने जीवन-यापन के लिए दूसरे पक्ष से प्राप्त होती है। यह भत्ता विशेष रूप से उस स्थिति में दिया जाता है जब किसी एक पक्ष के पास जीवन-यापन के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते। गुजारा भत्ता और भरण-पोषण में अंतर यह है कि भरण-पोषण विवाह के दौरान दिया जाता है, जबकि गुजारा भत्ता विवाह के बाद दिया जाता है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

धारा 24: कार्यवाही के दौरान अंतरिम भरण-पोषण और खर्च (Section 24 HMA)

धारा 24 हिंदू विवाह अधिनियम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कार्यवाही के दौरान अंतरिम भरण-पोषण का प्रावधान करता है। जब पति-पत्नी के बीच तलाक की कार्यवाही चल रही हो, तो इसमें से कोई एक पक्ष दूसरे से भरण-पोषण की मांग कर सकता है।

इसे भी पढ़ें:  विवाह में पति-पत्नी के कानूनी अधिकार क्या होते हैं?

आवेदन कौन कर सकता है?

इसमें पति और पत्नी दोनों ही आवेदन कर सकते हैं, अगर उनमें से कोई एक पक्ष आर्थिक रूप से कमजोर है और उसे दूसरे से भरण-पोषण की आवश्यकता है।

किस आधार पर तय होता है?

कोर्ट इस बात का मूल्यांकन करता है कि दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति कैसी है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि क्या वह व्यक्ति अपने जीवन यापन के लिए सक्षम है या नहीं।

आवेदन प्रक्रिया और ज़रूरी दस्तावेज़: इस प्रक्रिया में आवेदक को अपनी आय, खर्च और वित्तीय स्थिति से संबंधित दस्तावेज़ जमा करने होते हैं। कोर्ट इन दस्तावेजों के आधार पर अंतरिम गुजारा भत्ता तय करता है।

महत्वपूर्ण बिंदु: धारा 24 के तहत पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार होते हैं। अगर किसी को अंतरिम गुजारा भत्ता मिल रहा है, तो उसे कार्यवाही के दौरान उसे देना होता है।

धारा 25: अंतिम गुजारा भत्ता (Section 25 HMA)

धारा 25 हिंदू विवाह अधिनियम की एक अन्य महत्वपूर्ण धारा है, जो तलाक के बाद स्थायी गुजारा भत्ता निर्धारित करती है।

किसे मिल सकता है अंतिम गुजारा भत्ता?

अगर किसी पत्नी को तलाक के बाद जीवनयापन में कठिनाई हो, तो वह अंतिम गुजारा भत्ता मांग सकती है।

स्थायी गुजारा भत्ता और उसके कारक: इस भत्ते की राशि स्थायी होती है और इसे हमेशा के लिए निर्धारित किया जा सकता है। यह राशि आम तौर पर पति की आय, संपत्ति, विवाह की अवधि और पत्नी की वित्तीय स्थिति को देखते हुए तय होती है।

कितनी राशि मिल सकती है?

यह राशि कोर्ट द्वारा निर्धारित की जाती है और इसमें पति-पत्नी की आय, संपत्ति, विवाह की अवधि, और बच्चों की जिम्मेदारी आदि के कई पहलू देखे जाते हैं।

भुगतान एकमुश्त या किश्तों में: गुजारा भत्ता एकमुश्त (Lump sum) या किश्तों (Periodic payments) में दिया जा सकता है, जो दोनों पक्षों के बीच सहमति और कोर्ट के आदेश पर निर्भर करता है।

इसे भी पढ़ें:  रोड रेज क्या है? भारतीय कानून में इसकी परिभाषा

धारा 24 और 25 में मुख्य अंतर 

मुख्य बिंदुधारा 24धारा 25
प्रक्रिया में अंतरधारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण तत्काल निर्णय पर आधारित होता है।धारा 25 का निर्णय तलाक के बाद स्थायी होता है।
भुगतान का प्रकारधारा 24 में अंतरिम भरण-पोषण दिया जाता है।धारा 25 में स्थायी गुजारा भत्ता दिया जाता है।
समयावधि और प्रभावधारा 24 का आदेश तलाक की कार्यवाही तक सीमित रहता है।धारा 25 का आदेश स्थायी होता है और इसे जीवनभर लागू किया जा सकता है।

गुजारा भत्ता निर्धारण में महत्वपूर्ण मापदंड 

गुजारा भत्ता निर्धारित करते समय अदालत कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करती है, जैसे:

  • आय और संपत्ति का स्तर
  • पति/पत्नी की योग्यता और कमाने की क्षमता
  • विवाह की अवधि
  • बच्चों की जिम्मेदारी
  • स्वास्थ्य की स्थिति

कब गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा?

गुजारा भत्ता कुछ विशेष परिस्थितियों में नहीं मिल सकता, जैसे:

  • यदि पत्नी/पति स्वावलंबी है और स्वयं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है।
  • अगर पत्नी ने पुनर्विवाह कर लिया हो या उसके किसी अनैतिक संबंध हों।
  • यदि अदालत को लगे कि भत्ता देने के लिए कोई वैध कारण नहीं है, तो वह भत्ता मना कर सकती है।

अदालती प्रक्रिया: कैसे मांगें गुजारा भत्ता? 

जारा भत्ता पाने के लिए अदालत में याचिका दायर की जाती है। इसमें आवश्यक दस्तावेज़ों का होना बेहद महत्वपूर्ण है:

  • याचिका दाखिल करने की प्रक्रिया: सबसे पहले, आपको तलाक या अलगाव की याचिका दायर करनी होगी, और साथ में गुजारा भत्ता के लिए आवेदन भी करना होगा।
  • कोर्ट में आवश्यक दस्तावेज: आपकी आय, संपत्ति और खर्च के दस्तावेज़ की जरूरत होती है।
  • सुनवाई और सबूतों का महत्व: सुनवाई के दौरान, दोनों पक्षों को अपनी स्थिति को साबित करने के लिए सबूत पेश करने होते हैं।
इसे भी पढ़ें:  रेप के आरोपों को रद्द करने के लिए शादी करना पर्याप्त नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के प्रमुख निर्णय

  • किरण ज्योत मैनी बनाम अनिश प्रमोद पटेल (2024): सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को ₹2 करोड़ का स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता दंडात्मक नहीं, बल्कि पत्नी को सम्मानजनक जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिए होना चाहिए।
  • प्रवीण कुमार जैन बनाम अंजू जैन (2024): सुप्रीम कोर्ट ने पति को ₹5 करोड़ का एकमुश्त स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। कोर्ट ने आठ महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करने की सलाह दी, जैसे दोनों पक्षों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आय, जीवन स्तर, और अन्य जिम्मेदारियां।
  • जतिंदर कुमार सापरा बनाम अनुपमा सापरा (2025): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एकमुश्त स्थायी गुजारा भत्ता सभी लंबित रखरखाव मामलों का पूर्ण और अंतिम समाधान है। यदि कोई लंबित रखरखाव मामला है, तो स्थायी गुजारा भत्ता में उसे शामिल नहीं किया जाएगा, जब तक कि कोर्ट ने विशेष रूप से ऐसा न कहा हो।

व्यावहारिक सुझाव 

अगर आप गुजारा भत्ता मांगना चाहते हैं, तो कुछ व्यावहारिक सुझाव यह हैं:

  • दस्तावेज़ी तैयारी: सही दस्तावेज़ एक मजबूत केस के लिए आवश्यक हैं।
  • वकील का सही चुनाव: एक अनुभवी वकील आपके केस को सही तरीके से पेश कर सकता है।

निष्कर्ष 

गुजारा भत्ता एक महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार है, जो शादीशुदा जोड़ों के बीच तलाक और अलगाव की स्थिति में वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है। इसे जानना और सही कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आपके अधिकारों की रक्षा में मदद कर सकता है। अगर आप अपने अधिकारों से अवगत हैं और उचित सलाह लेते हैं, तो न्याय की प्राप्ति सुनिश्चित हो सकती है।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. क्या पति भी गुजारा भत्ता मांग सकता है?

हाँ, अगर पति की वित्तीय स्थिति कमजोर है, तो वह भी गुजारा भत्ता मांग सकता है।

2. क्या पत्नी कमाती है तो भी गुजारा भत्ता मिलेगा?

अगर पत्नी की आय पर्याप्त नहीं है और उसे जीवनयापन के लिए मुश्किल हो, तो वह भत्ता प्राप्त कर सकती है।

3. क्या गुजारा भत्ता कर योग्य (Taxable) होता है?

हाँ, गुजारा भत्ता आय के रूप में कर योग्य हो सकता है, लेकिन इसके लिए कर संबंधित नियमों का पालन करना होता है।

Social Media