अगर आप भी आते हैं इस रिश्ते में, तो नहीं कर सकते शादी

If you also come into this relationship, then you cannot get married

क्या हर रिश्ता विवाह के लिए वैध होता है?

भारत में संविधान हर व्यक्ति को अपनी पसंद से शादी करने का हक़ देता है – चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, राज्य या वर्ग से क्यों न हो। लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जहां शादी करना न सिर्फ सामाजिक रूप से अनुचित माना जाता है, बल्कि कानून भी इसकी अनुमति नहीं देता। ऐसे ही रिश्तों की श्रेणी में आता है सपिंड नातेदारी का कानून।

यह नियम विवाह की स्वतंत्रता पर एक सीमित लेकिन जरूरी नियंत्रण लगाता है, ताकि रक्त संबंधों में अनैतिकता, सामाजिक विघटन और जैविक खतरों से बचा जा सके।

क्या होती है सपिंड नातेदारी?

‘सपिंड’ शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है — एक ही पिंड या रक्त संबंध से उत्पन्न लोग। यह बताता है कि व्यक्ति का रक्त संबंध किस हद तक दूसरे से जुड़ा हुआ है।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार:

  • पिता की ओर से: पाँचवीं पीढ़ी तक का संबंध सपिंड माना जाता है।
  • माता की ओर से: यह सीमा तीन पीढ़ियों तक होती है।

अगर दो व्यक्ति इन सीमाओं के भीतर आते हैं, तो वे एक-दूसरे के सपिंड माने जाएंगे —और ऐसे रिश्तों में शादी निषिद्ध होती है, जब तक कि किसी समुदाय की विशेष परंपरा इसे मान्यता न देती हो।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

सपिंड नातेदारी की वैज्ञानिक और सामाजिक व्याख्या

1. जैविक कारण:

  • अनुवांशिक दोष: रक्त संबंधियों में विवाह करने से बच्चों में जन्मजात बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
  • जेनेटिक विविधता का नुकसान: जब खून का रिश्ता ज्यादा नज़दीक हो, तो आनुवंशिक विविधता कम हो जाती है, जिससे अगली पीढ़ियों पर असर पड़ता है।
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2. सामाजिक कारण:

  • समाज में रिश्तों की गरिमा और स्पष्टता बनी रहती है।
  • परिवारिक ढांचा संतुलित रहता है।
  • बच्चों में रिश्तों की समझ विकसित होती है।

कैसे पहचानें कि कोई रिश्ता सपिंड है या नहीं?

उदाहरण 1: पैतृक संबंध

अगर किसी लड़के और लड़की के परदादा एक ही व्यक्ति हैं, तो वे पांचवीं पीढ़ी के अंदर आते हैं — और इस वजह से उनका रिश्ता सपिंड माना जाएगा। ऐसे में शादी संभव नहीं।

उदाहरण 2: मातृक संबंध

अगर दो लोगों की मांओं की नानी एक ही हैं, और वह रिश्ता तीन पीढ़ियों के दायरे में आता है, तो वे भी सपिंड रिश्ते में होंगे।

आसान शब्दों में: अगर आपके और आपके पार्टनर के पूर्वजों में कोई ऐसा निकट संबंध हो जो इन सीमाओं में आता है, तो वह रिश्ता शादी के लिए वैध नहीं होगा।

हिंदू विवाह अधिनियम में क्या कहता है कानून?

धारा 5(v): विवाह तभी वैध होगा, जब दोनों पक्ष सपिंड न हों – जब तक कि उनके समुदाय में ऐसी परंपरा मान्य न हो।

धारा 11: अगर यह सिद्ध हो जाए कि विवाह सपिंड रिश्ते में हुआ है, तो अदालत इसे शून्य और अमान्य (Null and Void) घोषित कर सकती है।

किन रिश्तों में विवाह करना निषिद्ध है?

रिश्ताक्या विवाह वैध है?
सगे भाई-बहननहीं
चाचा और भतीजीनहीं
मामा और भांजीनहीं
मौसी और भांजानहीं
दादी/नानी की संतानों के बीचनहीं
दादा के भाई की पोतीसंभव है, यदि सपिंड सीमा के बाहर हो

गोत्र और सपिंड: क्या दोनों एक जैसे हैं?

नहीं

  • गोत्र वंश परंपरा का सूचक होता है, जो पौराणिक ऋषियों से जुड़ा होता है और आमतौर पर पिता से संतान को मिलता है।
  • सपिंड खून के रिश्तों पर आधारित होता है।
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इसलिए गोत्र समान होने पर भी लोग सपिंड न हों, और गोत्र अलग होने पर भी सपिंड हो सकते हैं।

क्या Special Marriage Act से बच सकते हैं सपिंड नियम से?

कई लोग सोचते हैं कि कोर्ट मैरिज या Special Marriage Act, 1954 के तहत विवाह करने से सपिंड नियम से बचा जा सकता है, लेकिन यह सही नहीं है।

सच्चाई यह है:

  • अगर दोनों पक्ष हिंदू हैं, तो चाहे विवाह धार्मिक रीति से हो या कोर्ट में, Hindu Marriage Act ही लागू होगा।
  • Special Marriage Act में भी रक्त संबंधों में विवाह पर रोक है, हालांकि वहां निषिद्ध रिश्तों की सूची थोड़ी अलग हो सकती है।

क्या कोई अपवाद भी है?

हां। अगर किसी जाति या समुदाय में निकट संबंधों में विवाह की परंपरा रही है और वह व्यापक रूप से स्वीकार्य है, तो यह अपवाद के अंतर्गत आ सकता है।

उदाहरण: कुछ दक्षिण भारतीय ब्राह्मण समुदायों में मामा-भांजी का विवाह सामाजिक रूप से मान्य होता है।

ऐसे मामलों में अदालत यह देखती है कि क्या यह रिवाज लंबे समय से प्रचलित है और क्या समुदाय में यह सामान्य रूप से स्वीकृत है।

क्या ऐसा विवाह बाद में रद्द किया जा सकता है?

जी हां। यदि विवाह के बाद यह पता चलता है कि दोनों पक्ष सपिंड रिश्ते में आते हैं, तो कोई भी पक्ष फैमिली कोर्ट में जाकर विवाह को Void घोषित करवा सकता है।

आवश्यक दस्तावेज:

  • वंशावली
  • पारिवारिक प्रमाणपत्र
  • जन्म प्रमाणपत्र आदि

कानूनी परिणाम क्या हो सकते हैं?

  • विवाह शून्य घोषित हो सकता है।
  • संतान को वैध माना जाएगा (धारा 16 के तहत)।
  • संपत्ति, उत्तराधिकार, और भरण-पोषण के मामलों में कानूनी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।
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निष्कर्ष: 

रिश्ते की गहराई को पहचानना जरूरी है

विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं होता, बल्कि दो परिवारों, संस्कृतियों और पीढ़ियों का भी जुड़ाव होता है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि विवाह से पहले रिश्तों की गहराई और उनकी वैधता की जांच कर ली जाए।

कई बार जो रिश्ता हमें दूर का लगता है, वह कानून की नजर में बेहद नज़दीकी होता है। ऐसे में एक छोटी सी सावधानी भविष्य की बड़ी समस्याओं से बचा सकती है।

लीड इंडिया का अनुभव: एक सच्चा मामला

लीड इंडिया की कानूनी टीम के पास एक मामला आया, जिसमें शादी के एक साल बाद यह पता चला कि दूल्हा-दुल्हन के परदादा एक ही व्यक्ति थे। परिवारों में विवाद हुआ और मामला कोर्ट पहुंचा। अदालत ने इसे शून्य विवाह घोषित किया। ऐसे मामलों में सामाजिक दबाव और कानूनी प्रक्रिया दोनों ही जटिल होते हैं, लेकिन सही सलाह से समाधान संभव है।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. क्या लव मैरिज में भी सपिंड नियम लागू होता है?

हाँ, यह नियम सभी प्रकार के विवाहों पर समान रूप से लागू होता है।

2. अगर शादी के बाद यह पता चले तो क्या विवाह वैध रह सकता है?

नहीं, ऐसे विवाह को शून्य घोषित किया जा सकता है।

3. Special Marriage Act में सपिंड नियम लागू होता है?

हाँ, वहां भी कुछ निकट संबंधों में विवाह निषिद्ध हैं।

4. क्या मुस्लिम या ईसाई विवाहों पर यह नियम लागू होता है?

नहीं, उनके लिए उनके अपने पर्सनल लॉ लागू होते हैं।

5. क्या ऐसे विवाह से जन्मी संतान अवैध मानी जाएगी?

नहीं,धारा 16 के तहत ऐसी संतान को वैध माना जाता है।

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