भारत में तलाक के दौरान पुरुषों के क्या अधिकार है? हर पति को जानने चाहिए ये कानूनी अधिकार

What are men's rights during divorce in India Every husband should know these legal rights.

तलाक सिर्फ एक कानूनी शब्द नहीं है, यह एक भावनात्मक तूफान है जो जीवन की शांति, स्थिरता और पहचान को हिला देता है। भारत में जब शादी टूटने लगती है, तो पुरुष अक्सर भावनात्मक दर्द और कानूनी दबाव के बीच फँस जाते हैं। समाज जल्दी से महिलाओं के पक्ष में खड़ा हो जाता है, लेकिन पुरुष की मुश्किलें जैसे उनकी नींद उड़ना, झूठे आरोपों का डर, बच्चों की चिंता अक्सर अनसुनी रह जाती हैं।

लेकिन अब समय बदल रहा है। भारतीय अदालतें यह मानने लगी हैं कि पुरुष भी कानून के दुरुपयोग का शिकार हो सकते हैं। दहेज, घरेलू हिंसा या क्रूरता के झूठे आरोप कई निर्दोष जीवन बर्बाद कर चुके हैं। लेकिन बहुत कम पुरुष जानते हैं कि कानून उन्हें भी अधिकार देता है, ऐसे मजबूत और व्यावहारिक अधिकार जो उन्हें अपनी इज्जत और सच की सुरक्षा करने में मदद करते हैं।

इस ब्लॉग का उद्देश्य है सच्ची सुरक्षा, समझदारी से कदम उठाना और मानसिक संतुलन बनाए रखना। चाहे आप झूठे आरोप का सामना कर रहे हों, मेंटेनेंस की चिंता हो, या अपने बच्चे की कस्टडी के लिए लड़ रहे हों, अपने अधिकारों को समझना न्याय की ओर पहला कदम है।

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भारत में पुरुषों के लिए तलाक के कानूनी आधार

पुरुष अपने धर्म और शादी के प्रकार के अनुसार तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं – हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 या इंडियन डाइवोर्स एक्ट। तलाक के कारण:

  • क्रूरता (Cruelty): पत्नी द्वारा मानसिक या शारीरिक अत्याचार, झूठे आरोप या भावनात्मक दबाव।
  • व्यभिचार (Adultery): अगर पत्नी का विवाहेतर संबंध हो।
  • परित्याग (Desertion): जब पत्नी बिना कारण दो साल तक पति को छोड़ देती है।
  • धर्म परिवर्तन (Conversion): अगर पत्नी किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होती है।
  • मानसिक बीमारी (Mental Disorder): जब मानसिक रोग के कारण वैवाहिक जीवन असहनीय हो।
  • संन्यास या मृत्यु का अनुमान (Renunciation or Presumed Death): अगर पत्नी ने सांसारिक जीवन त्याग दिया हो या सात साल तक पता न चला हो।
  • आपसी सहमति से तलाक: हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13B के तहत, पति और पत्नी दोनों मिलकर तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं, जब वे मानते हैं कि शादी अब सही तरीके से नहीं चल सकती। यह सबसे तेज़ और कम तनाव वाला तरीका है।

निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया का अधिकार और झूठे आरोपों से सुरक्षा

पति को न्यायपूर्ण जांच और झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर लगाए गए आरोपों से सुरक्षा का अधिकार है।

अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IPC की 498A/ 85 BNS के मामलों में पुलिस पति को बिना वजह तुरंत गिरफ्तार नहीं कर सकती। किसी भी गिरफ्तारी के लिए सही प्रक्रिया अपनाना और कारण लिखना जरूरी है।

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सुरक्षा के उपाय:

  • एंटीसिपेटरी बेल (धारा 482 BNSS): पति झूठे आरोपों से डरते हुए कोर्ट से एंटीसिपेटरी बेल ले सकता है। इससे पुलिस बिना अनुमति गिरफ्तार नहीं कर सकती और वह शांति से अपना पक्ष रख सकता है।
  • FIR को रद्द करना (धारा 528 BNSS): अगर शिकायत झूठी या बदले के उद्देश्य से हो, पति उच्च न्यायालय में जाकर FIR रद्द करवा सकता है। यह झूठे मामले से मानसिक तनाव और कानूनी परेशानी कम करता है।
  • काउंटर केस (धारा 217 और 248 BNS): झूठी जानकारी देने या दुर्भावनापूर्ण मुकदमा दर्ज करने वाले के खिलाफ पति काउंटर केस कर सकता है। यह आरोप लगाने वाले को सजा दिलाने और भविष्य में सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

तलाक के दौरान पुरुषों के वित्तीय अधिकार

मेंटेनेंस – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144

यदि पत्नी अपने आप का मेंटेनेंस नहीं कर सकती, तो अदालत पति से मेंटेनेंस देने का आदेश दे सकती है। हालांकि, यदि पत्नी शिक्षित, नौकरीपेशा या अपनी आय अर्जित करने में सक्षम है, तो पति अदालत से अनुरोध कर सकता है कि मेंटेनेंस की राशि सीमित या अस्वीकार की जाए। इसका उद्देश्य दोनों पक्षों के अधिकारों और योग्यता के हिसाब से न्याय सुनिश्चित करना है।

परमानेंट एलिमनी – हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 25

अदालत परमानेंट खर्च तय करते समय निम्न बातों पर ध्यान देती है:

  • पति और पत्नी की आय
  • जीवन स्तर
  • वैवाहिक जीवन की अवधि
  • आश्रित व्यक्तियों की संख्या और उनकी जरूरतें।

इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मेंटेनेंस और खर्च न्यायसंगत हो, और किसी पक्ष का अत्यधिक आर्थिक बोझ न बने।

संपत्ति के अधिकार

वर्तमान कानून के अनुसार, पत्नी को पति की पैतृक या स्व-अर्जित संपत्ति में अपने जीवनकाल में स्वतः कोई हिस्सा नहीं मिलता। पत्नी केवल निवास या मेंटेनेंस का दावा कर सकती है, मालिकाना हक नहीं।

कल्याण डे चौधरी बनाम रीता डे (2017) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मेंटेनेंस पति की नेट आय का 25% से अधिक नहीं होना चाहिए और इसे न्यायसंगत और संतुलित होना चाहिए।

इस प्रकार, वित्तीय अधिकार न केवल पत्नी की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, बल्कि पति और परिवार पर अत्यधिक बोझ न पड़ने का संतुलन भी बनाए रखते हैं।

क्या पिता को बच्चे की कस्टडी का कानूनी अधिकार हैं?

अक्सर छोटे बच्चों की कस्टडी मां को दी जाती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पिता के पास अधिकार नहीं हैं। भारतीय कानून पिता को भी बच्चे के मेंटेनेंस में सक्रिय रूप से शामिल होने का अधिकार देता है।

पिता के अधिकार:

  • बच्चे से नियमित मिलने और संपर्क रखने का अधिकार, ताकि माता-पिता के अलग होने के बावजूद बच्चे के साथ संबंध बना रहे।
  • अगर मां बच्चे के लिए अनुचित व्यवहार करती है, अपमानजनक है, या लापरवाह है, तो पिता कस्टडी मांग सकते हैं।
  • बच्चे की पढ़ाई, स्वास्थ्य, खेलकूद और मानसिक विकास में भाग लेने का अधिकार।
  • जॉइंट कस्टडी के तहत दोनों माता-पिता बराबर रूप से बच्चे की परवरिश और फैसलों में शामिल होते हैं।
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रौक्सैन शर्मा बनाम अरुण शर्मा (2015) में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कस्टडी का निर्णय हमेशा बच्चे के भले के लिए होना चाहिए, न कि माता या पिता के लिंग के आधार पर।

इस तरह, पिता अपने बच्चे के साथ मजबूत भावनात्मक और कानूनी संबंध बनाए रख सकते हैं, और उसे स्वस्थ और संतुलित परवरिश प्रदान करने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।

कानूनों के दुरुपयोग से सुरक्षा (दहेज, घरेलू हिंसा, क्रूरता)

भारत में डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट, डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट और क्रूरता जैसे कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। लेकिन कभी-कभी इनका दुरुपयोग भी होता है, जिससे पुरुष और उनके परिवार को मानसिक, सामाजिक और कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

पुरुषों के लिए मुख्य सुरक्षा उपाय:

  • पुलिस को बिना जांच और नोटिस के अचानक गिरफ्तारी नहीं करनी चाहिए। गिरफ्तारी के पहले कारण लिखित में दर्ज करना अनिवार्य है।
  • झूठे दहेज के आरोपों को चुनौती दी जा सकती है। इसके लिए साक्ष्य प्रस्तुत करना और काउंटर एफआईआर दर्ज कराना संभव है।
  • पुरुष भी अगर मानसिक या शारीरिक हिंसा का सामना कर रहे हों, तो क्रॉस कंप्लेंट दर्ज कर सकते हैं।

राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश (2017) सुप्रीम कोर्ट ने फैमिली वेलफेयर कमेटियों (FWC) की स्थापना की सिफारिश की। ये कमेटियां शिकायत की जांच कर पुलिस को रिपोर्ट देंगी, जिससे बिना वजह गिरफ्तारी और कानून के दुरुपयोग को रोका जा सके।

तलाक के दौरान प्रतिष्ठा और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा

तलाक न केवल कानूनी प्रक्रिया है, बल्कि मानसिक और सामाजिक चुनौती भी है। झूठे मामलों से पुरुष की प्रतिष्ठा को नुकसान, मानसिक तनाव और सामाजिक अपमान हो सकता है।

1. मानहानि कानून:

  • आपराधिक मानहानि: यदि कोई पुरुष पर झूठे आरोप लगाता है, तो उसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के तहत जेल या जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
  • सिविल मानहानि: प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने पर मुआवजा मांगा जा सकता है।

2. मानसिक स्वास्थ्य:

  • लंबी कानूनी लड़ाई के दौरान पुरुषों को मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए।
  • काउंसलिंग, थेरेपी या समर्थन समूहों का उपयोग करना फायदेमंद है।

सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति की प्रतिष्ठा भी जीवन के अधिकार का हिस्सा है। झूठे आरोपों से बचाव और सही कानूनी कार्रवाई की जरूरत पर जोर दिया गया।

पुरुषों के लिए वैकल्पिक उपाय

आपसी सहमति से तलाक

  • अगर पति-पत्नी दोनों मानते हैं कि विवाह टूट चुका है और आगे जीवन अलग तरीके से बिताना चाहते हैं, तो वे सहमति से तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं।
  • यह प्रक्रिया सबसे तेज़ और तनाव कम करने वाली होती है, क्योंकि इसमें लड़ाई और लंबी कानूनी कार्रवाई की जरूरत नहीं पड़ती।
  • कोर्ट सिर्फ यह सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्ष स्वतंत्र रूप से और बिना दबाव के सहमत हैं।
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मेडिएशन

  • कोर्ट कभी-कभी पति-पत्नी को मेडिएशन के लिए भेजता है।
  • इसमें एक मीडिएटर दोनों की बात सुनता है और समझौते का रास्ता निकालता है।
  • इसका उद्देश्य है झगड़े को शांति से और सम्मानजनक तरीके से सुलझाना, जिससे लंबी लड़ाई और खर्च से बचा जा सके।

रेस्टीट्यूशन ऑफ़ कोंजूगाल राइट्स – हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 9

  • यदि पत्नी बिना किसी वैध कारण के अलग रह रही है, तो पति कोर्ट में पिटीशन दाखिल कर सकता है।
  • यह पिटीशन पति को वैवाहिक अधिकार पुनः प्राप्त करने का कानूनी तरीका देती है।
  • कोर्ट जांच करता है कि पत्नी के अलग रहने का कारण वैध है या नहीं, और अगर उचित पाया जाए तो पत्नी को पति के साथ पुनः रहने का आदेश दिया जा सकता है।

निष्कर्ष

तलाक पति-पत्नी के बीच युद्ध नहीं है — यह केवल टूटी हुई शादी को सम्मान और न्याय के साथ समाप्त करने का कानूनी तरीका है।

पुरुषों को याद रखना चाहिए कि कानून पूरी तरह उनके खिलाफ नहीं है। अपने अधिकार जानकर, सबूत जमा करके और कानूनी उपायों का सही उपयोग करके, वे अपनी आज़ादी, संपत्ति और इज्जत की सुरक्षा कर सकते हैं।

हर पति को न्याय मिलना चाहिए, और न्याय सजगता और धैर्य से शुरू होता है। जानकार रहें, शांत रहें और विश्वास रखें कि कानून की नजर में सच्चाई हमेशा जीतती है

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FAQs

1. क्या पति पहले तलाक के लिए आवेदन कर सकता है?

हाँ। पुरुष तलाक के लिए सही कानूनी कारणों जैसे क्रूरता, व्यभिचार या परित्याग का हवाला देकर आवेदन कर सकते हैं।

2. क्या तलाक के बाद पत्नी पति की संपत्ति में हिस्सा ले सकती है?

नहीं। पत्नी केवल मेंटेनेंस या निवास का अधिकार मांग सकती है, स्व-आर्जित संपत्ति की मालिकाना हक नहीं।

3. पुरुष झूठे क्रूरता या दहेज मामलों से कैसे बच सकते हैं?

सबूत इकट्ठा करके, एंटीसिपेटरी बेल लेकर और BNS की धारा 217 और 248 के तहत प्रतिवाद दायर करके।

4. तलाक के बाद पिता को बच्चों की कस्टडी का अधिकार है?

हाँ। कोर्ट बच्चों की भलाई के अनुसार मुलाकात और साझा कस्टडी की अनुमति देता है।

5. क्या पति भरण-पोषण देने से इंकार कर सकता है?

हाँ। अगर पत्नी शिक्षित, रोजगारयोग्य या कमाने में सक्षम है, तो पति कोर्ट से भरण-पोषण कम या न देने का अनुरोध कर सकता है।

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