भारत में मकान मालिक और किरायेदार का रिश्ता बहुत आम है, लेकिन अक्सर यही रिश्ता डिस्प्यूट्स का कारण भी बन जाता है। किराया, खाली कराने, मरम्मत या कब्जे को लेकर झगड़े ज़्यादातर इसलिए होते हैं क्योंकि दोनों पक्ष अपने कानूनी अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ ठीक से नहीं जानते।
यह ब्लॉग बताता है कि भारत के किरायेदारी कानूनों (Tenancy Laws) के तहत मकान मालिक और किरायेदार, दोनों के क्या-क्या अधिकार और कर्तव्य हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का ज़िक्र भी किया गया है, ताकि आपको असली कानूनी स्थिति समझ में आए।
ब्लॉग में आप जानेंगे कि रेंट कंट्रोल कानून, लीज एग्रीमेंट (किरायानामा) और प्रॉपर्टी से जुड़े नियम असल ज़िंदगी में कैसे लागू होते हैं और दोनों पक्ष कैसे अपने आपको कानूनी दस्तावेज़ों और जागरूकता के ज़रिए सुरक्षित रख सकते हैं।
चाहे आप मकान मालिक हों जो अपना घर किराए पर दे रहे हैं, या किरायेदार हों जो किराए पर रह रहे हैं, यह ब्लॉग आपको आपके कानूनी अधिकार, उपाय और सावधानियाँ समझाएगा।
भारत में मकान मालिक और किरायेदार के बीच संबंध
भारत में किराए पर रहना या देना आम बात है, लाखों लोग किराए के घरों में रहते हैं और बहुत से लोग किराए से अपनी आमदनी कमाते हैं। लेकिन यह रिश्ता, जो आपसी सहमति पर आधारित होता है, कई बार कानूनी विवाद का रूप ले लेता है। अक्सर झगड़े इन कारणों से होते हैं:
- किराया न देना या देर से देना
- अचानक घर खाली करने का नोटिस देना
- किरायेदार का घर खाली करने से मना करना
- बिना वजह किराया बढ़ा देना
- घर की देखभाल न करना या गलत इस्तेमाल करना
ऐसे डिस्प्यूट्स से बचने के लिए भारत में कानून ने साफ-साफ नियम बनाए हैं, जो मकान मालिक और किरायेदार दोनों के अधिकार और कर्तव्य तय करते हैं।
किरायेदारी या लीज़ क्या है?
ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 105 के अनुसार, किरायेदारी (लीज़) का मतलब है – “जब कोई मकान मालिक अपनी संपत्ति (जैसे घर, दुकान या जमीन) किसी व्यक्ति को कुछ समय के लिए उपयोग करने की अनुमति देता है, और बदले में उससे किराया लेता है या लेने का वादा करता है, तो इसे किरायेदारी या लीज़ कहा जाता है।”
यानि जब मकान मालिक (Lessor) अपनी संपत्ति किरायेदार (Lessee) को किराए पर देता है, तो किरायेदारी का संबंध बनता है।
किरायेदारी के मुख्य तत्व:
- पक्षकार: मकान मालिक और किरायेदार
- संपत्ति: कोई भी अचल संपत्ति (घर, दुकान, फ्लैट आदि)
- किराया: तय या सहमति से तय राशि
- अवधि: कितने समय के लिए किरायेदारी है (महीने-दर-महीना या सालाना)
- कब्जे का अधिकार: किरायेदार को कानूनी रूप से कब्जा मिलता है
किरायेदारी मौखिक या लिखित दोनों हो सकती है, लेकिन लिखित और रजिस्टर्ड एग्रीमेंट होने पर दोनों पक्षों की सुरक्षा ज़्यादा होती है।
भारत में किरायेदारी से जुड़े मुख्य कानून
ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 (TPA)
यह कानून सभी किराए और लीज़ से जुड़ी स्थितियों पर लागू होता है, जब तक किसी राज्य का रेंट कंट्रोल एक्ट इसे ओवरराइड न करे।
मुख्य धाराएँ:
- धारा 105–117: लीज़, किराया, खत्म होने और बेदखली से जुड़ी बातें।
- धारा 106: अगर अवधि तय नहीं की गई हो, तो माना जाएगा कि किरायेदारी महीने-दर-महीना है।
- धारा 111: किन परिस्थितियों में किरायेदारी खत्म होती है (समय समाप्त होना, नियम तोड़ना, आपसी सहमति आदि)।
राज्य रेंट कंट्रोल कानून
हर राज्य का अपना किराया नियंत्रण कानून होता है, जैसे:
- दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट, 1958
- महाराष्ट्र रेंट कंट्रोल एक्ट, 1999
- तमिलनाडु बिल्डिंग्स (लीज़ एंड रेंट कंट्रोल) एक्ट, 1960
मुख्य उद्देश्य:
- किरायेदार को मनमाने तरीके से घर खाली कराने या किराया बढ़ाने से बचाना,
- उचित किराया तय करना, और
- बेदखली केवल कानूनी आधार पर ही करना।
मॉडल टेनेन्सी एक्ट, 2021
यह केंद्र सरकार द्वारा नया मॉडल कानून है, ताकि पुराने रेंट कानूनों को आधुनिक बनाया जा सके।
मुख्य विशेषताएँ:
- हर किरायेदारी लिखित एग्रीमेंट से होनी चाहिए,
- मकान मालिक और किरायेदार दोनों की बराबर सुरक्षा,
- विवाद सुलझाने के लिए रेंट अथॉरिटी और ट्रिब्यूनल की व्यवस्था, और
- मार्केट के हिसाब से किराया तय किया जा सकता है, अगर दोनों पक्ष सहमत हों ।
भारत में किरायेदारों के अधिकार
भारत में किरायेदारों को कई कानूनी अधिकार और सुरक्षा दी गई है ताकि मकान मालिक मनमानी न कर सके।
कब्जे का अधिकार
जब कोई किरायेदारी बन जाती है, तो किरायेदार को उस मकान या संपत्ति पर कानूनी कब्जा मिल जाता है। मकान मालिक बिना किरायेदार की अनुमति के घर में नहीं घुस सकता या कब्जा नहीं ले सकता।
कृष्णा राम महाले बनाम शोभा वेंकट राव (1989) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “कानूनी कब्जे वाले किरायेदार को सिर्फ़ कानून के तहत ही बेदखल किया जा सकता है, चाहे मालिक असली मकान मालिक ही क्यों न हो।”
जबरन बेदखली से सुरक्षा का अधिकार
किरायेदार को जबरदस्ती घर से निकाला नहीं जा सकता। बेदखली केवल दो तरीकों से हो सकती है:
- कानून के अनुसार सही नोटिस देकर (ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 106 के तहत)
- और कोर्ट के आदेश से
बी. बनर्जी बनाम अनीता पैन (1975) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “किरायेदारी कानून किरायेदार को बिना उचित कारण घर से निकाले जाने से बचाते हैं।”
उचित किराया का अधिकार
किराया वाजिब और बाजार के हिसाब से होना चाहिए। मकान मालिक मनमाने ढंग से किराया नहीं बढ़ा सकता।
जैसे दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत के तहत, किराया तभी बढ़ाया जा सकता है जब –
- मकान में मरम्मत या सुधार हुआ हो,
- या कोर्ट की अनुमति ली गई हो।
नोटिस पाने का अधिकार
अगर मकान मालिक किरायेदारी खत्म करना चाहता है, तो उसे पहले किरायेदार को लिखित नोटिस देना जरूरी है। नियम:
- महीने-दर-महीने किरायेदारी हो तो कम से कम 15 दिन का नोटिस
- सालाना किरायेदारी हो तो 6 महीने का नोटिस
मरम्मत और मेंटेनेंस का अधिकार
मकान मालिक की ज़िम्मेदारी है कि वह घर को रहने लायक स्थिति में रखे। जैसे, पानी की पाइप, बिजली की वायरिंग, छत की लीकेज आदि की मरम्मत। अगर समझौते में अलग से कुछ न लिखा हो, तो इनका खर्च मकान मालिक को उठाना चाहिए।
सिक्योरिटी डिपॉज़िट वापसी का अधिकार
जब किरायेदार मकान खाली करता है, तो मकान मालिक को सिक्योरिटी डिपॉज़िट वापस करना होता है। हाँ, अगर मकान में कोई नुकसान हुआ है तो वाजिब रकम काटकर ही डिपॉज़िट रोका जा सकता है।
गोपनीयता और शांति से रहने का अधिकार (Right to Privacy)
मकान मालिक बिना अनुमति के घर में नहीं आ सकता या किरायेदार को परेशान नहीं कर सकता। यह किरायेदार का संवैधानिक निजता का अधिकार है।
अनुचित शर्तों को चुनौती देने का अधिकार
अगर किरायेदारी के एग्रीमेंट में कोई गलत या एकतरफा शर्त है, जैसे बिना कारण बेदखली, या ज़रूरत से ज़्यादा जुर्माना, तो किरायेदार अदालत में जाकर इसे चुनौती दे सकता है।
लिखित किरायेदारी एग्रीमेंट का अधिकार
हर किरायेदार को लिखित किरायेदारी एग्रीमेंट लेने का अधिकार है। यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि यही कानूनी सबूत होता है कि क्या तय हुआ था।
इस एग्रीमेंट में होना चाहिए:
- हर महीने का तय किराया
- सिक्योरिटी डिपॉज़िट की रकम
- किरायेदारी की अवधि
- मरम्मत की ज़िम्मेदारी किसकी होगी
- घर खाली करने का नोटिस पीरियड
अगर लिखित एग्रीमेंट नहीं है, तो बाद में विवाद होने पर कोर्ट में सबूत देना मुश्किल हो जाता है। इसलिए हमेशा लिखित और दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित एग्रीमेंट रखें।
भारत में मकान मालिक के अधिकार
जैसे किरायेदार के कुछ कानूनी अधिकार होते हैं, वैसे ही मकान मालिक को भी अपने घर और संपत्ति की सुरक्षा के लिए कई मजबूत कानूनी अधिकार दिए गए हैं।
समय पर किराया पाने का अधिकार
किरायेदार को हर महीने तय तारीख पर किराया देना जरूरी है। अगर किरायेदार बार-बार किराया देने में देरी करता है या बिल्कुल नहीं देता, तो यह कानूनी रूप से बेदखली (Eviction) का सही कारण बन सकता है।
सही कारणों पर किरायेदार को बेदखल करने का अधिकार
मकान मालिक किरायेदार को मनमाने ढंग से नहीं निकाल सकता, लेकिन कुछ वैध कानूनी कारणों पर बेदखली की जा सकती है —
- किराया न देना
- बिना अनुमति किसी और को कमरा देना (Subletting)
- संपत्ति को नुकसान पहुँचाना
- मकान मालिक की खुद की जरूरत (Self use – जैसे खुद रहना या व्यवसाय के लिए)
- किरायेदारी की अवधि खत्म होना या नियम तोड़ना
प्रभाकरण नायर बनाम तमिलनाडु राज्य (1987) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मकान मालिक को खुद के इस्तेमाल के लिए मकान चाहिए, तो यह बेदखली का उचित कारण है।
किराया बढ़ाने का अधिकार
मकान मालिक किराया समझौते में लिखी शर्तों या राज्य के रेंट कंट्रोल एक्ट के अनुसार बढ़ा सकता है। आमतौर पर किराया 11 महीने या 3 साल बाद बढ़ाया जा सकता है, बशर्ते दोनों पक्षों की सहमति हो।
किरायेदारी खत्म होने पर कब्जा वापस लेने का अधिकार
जब किरायेदारी की अवधि खत्म हो जाए या नोटिस के बाद किराया संबंध समाप्त हो जाए, तो किरायेदार को मकान खाली करना होता है। अगर वह मना करे, तो मकान मालिक कोर्ट में जाकर कब्जा वापस लेने का मुकदमा दायर कर सकता है।
संपत्ति की सुरक्षा का अधिकार
किरायेदार को मकान या दुकान का इस्तेमाल सावधानी और जिम्मेदारी से करना चाहिए। अगर संपत्ति को कोई नुकसान होता है, तो मकान मालिक सिक्योरिटी डिपॉज़िट से रकम काट सकता है या नुकसान की भरपाई मांग सकता है।
मकान की जांच और मरम्मत का अधिकार
मकान मालिक को अपने घर की जांच या मरम्मत करने का अधिकार है, लेकिन वह ऐसा सिर्फ उचित समय पर और पहले से सूचना देकर ही कर सकता है। किरायेदार की निजता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
लिखित किरायेदारी समझौता करने का अधिकार
मकान मालिक का अधिकार और जिम्मेदारी दोनों है कि वह किरायेदार के साथ लिखित और रजिस्टर्ड किरायेदारी एग्रीमेंट बनाए। इस एग्रीमेंट में साफ़-साफ़ लिखा होना चाहिए:
- मासिक किराया कितना है
- सिक्योरिटी डिपॉज़िट कितनी है
- किरायेदारी कितने समय के लिए है
- नोटिस पीरियड और शर्तें क्या हैं
इससे बाद में किसी भी विवाद की स्थिति में दोनों पक्षों को कानूनी सुरक्षा मिलती है।
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
रमेश चंद्र (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से बनाम तृतीय अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, कानपुर और अन्य, 2025
तथ्य
- मकान मालिक ने किरायेदार के खिलाफ बेदखली का केस किया था।
- केस 63 साल तक चला, और इस बीच मकान मालिक की मृत्यु हो गई।
- सवाल उठा — क्या उनके वारिस (heirs) केस जारी रख सकते हैं?
फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा – हाँ, मकान मालिक की मृत्यु के बाद उसके वारिस केस जारी रख सकते हैं, अगर उन्हें उस घर की वास्तविक जरूरत है।
कानूनी आधार
- कोर्ट ने U.P रेंट कंट्रोल एक्ट की धारा 21(7) और रूल 16(2)(c) का हवाला दिया।
- वारिस की आर्थिक स्थिति मायने नहीं रखती, असली बात यह है कि क्या उन्हें घर की जरूरत है।
मकान मालिक की मृत्यु से केस खत्म नहीं होता, उसका परिवार भी कानूनी रूप से न्याय पा सकता है।
नीतू सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2022
तथ्य
- किरायेदार (नीतू सिंह) ने कई महीनों तक किराया नहीं दिया था।
- मकान मालिक ने उनसे किराया वसूलने के बजाय आपराधिक मामला दर्ज कराया, FIR जिसमें आरोप थे धोखा और दुरुपयोग।
- किरायेदार ने FIR को चुनौती दी कि किराया न देने का मामला सिविल न्याय है, न कि तुरंत अपराध।
विवाद-प्रश्न
क्या किरायेदार द्वारा किराया न देना अपराध है, जिसके तहत FIR दर्ज की जा सकती है? या यह सिर्फ़ एक सिविल डिस्प्यूट है जिसे सिविल अदालत में संबोधित किया जाना चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- सुप्रीम कोर्ट ने FIR को खारिज कर दिया।
- कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि “किराया न देना” स्वतन्त्र रूप से अपराध नहीं है। यह सिर्फ़ एक नागरिक/वित्तीय विवाद है।
- मकान मालिक को यह कहा गया कि वह अपने अधिकारों के लिए सिविल प्रक्रिया अपनाए।
रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट का महत्व
किरायेदार और मकान मालिक के बीच ज़्यादातर विवाद इसलिए होते हैं क्योंकि सिर्फ़ बोलचाल या अनौपचारिक समझौते होते हैं। अगर लिखित और रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट हो, तो सब कुछ साफ़ और कानूनी रूप से सुरक्षित रहता है। एक अच्छे रेंट एग्रीमेंट में ये बातें ज़रूर होनी चाहिए:
- मकान मालिक और किरायेदार का नाम व पता
- किराए की राशि और भुगतान की तारीख
- सिक्योरिटी डिपॉज़िट और वापसी की शर्तें
- किरायेदारी की अवधि (जैसे 11 महीने, 1 साल आदि)
- मरम्मत और रखरखाव की ज़िम्मेदारी
- एग्रीमेंट खत्म करने और नोटिस की शर्तें
- सबलेटिंग (किसी और को किराए पर देने) और मकान के उपयोग की सीमाएँ
कानूनी सलाह: अगर किरायेदारी 11 महीने से ज़्यादा की है, तो रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 की धारा 17 के तहत उसका रजिस्टर्ड होना ज़रूरी है। बिना रजिस्ट्रेशन के एग्रीमेंट अदालत में सबूत के तौर पर मान्य नहीं होता।
आम विवाद और उनके कानूनी समाधान
| विवाद | कानूनी समाधान |
| किराया न देना | मकान मालिक रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत एविक्शन सूट दाखिल कर सकता है |
| गैरकानूनी बेदखली या उत्पीड़न | किरायेदार पुलिस में शिकायत या सिविल अदालत में इन्जंक्शन मांग सकता है |
| मकान को नुकसान पहुंचाना | मकान मालिक डिपॉज़िट से कटौती कर सकता है या हरजाने का दावा कर सकता है |
| मकान खाली न करना | मकान मालिक रेंट कंट्रोलर या सिविल कोर्ट में पिटीशन दाखिल कर सकता है |
| किराए में अनुचित बढ़ोतरी | किरायेदार रेंट कंट्रोलर से फेयर रेंट तय कराने की मांग कर सकता है |
रेंट कंट्रोल कोर्ट्स की भूमिका
हर राज्य में रेंट कंट्रोलर या रेंट ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं ताकि किरायेदारी से जुड़े मामले तेज़ी से और स्थानीय स्तर पर सुलझाए जा सकें। ये संस्थान निम्न मामलों पर निर्णय लेते है:
- बेदखली की पिटीशनएँ
- उचित किराया तय करना
- बकाया किराया वसूलना
- नुकसान या मुआवज़े के दावे
मॉडल टेनेन्सी एक्ट, 2021 के तहत हर ज़िले में रेंट अथॉरिटी बनाने का सुझाव दिया गया है ताकि लंबे कोर्ट केसों से बचा जा सके और विवाद जल्दी सुलझें।
मकान मालिक और किरायेदार – दोनों के लिए ज़रूरी सुझाव
मकान मालिक के लिए:
- हमेशा लिखित और रजिस्टर्ड एग्रीमेंट बनवाएँ।
- किराए की रसीदें और बातचीत का रिकॉर्ड रखें।
- ज़रूरत से ज़्यादा सिक्योरिटी डिपॉज़िट न लें।
- बेदखली से पहले कानूनी नोटिस दें।
- किरायेदार का बैकग्राउंड ज़रूर करें।
किरायेदार के लिए:
- कभी भी कैश में किराया न दें बिना रसीद लिए।
- हमेशा रजिस्टर्ड एग्रीमेंट की मांग करें।
- समय पर किराया दें और मकान को सही हालत में रखें।
- अपने राज्य के रेंट कंट्रोलर कानून को जानें।
- अगर परेशान किया जा रहा हो, तो रेंट कंट्रोलर या पुलिस से मदद लें।
निष्कर्ष
मकान मालिक और किरायेदार का रिश्ता तभी अच्छा चलता है, जब उसमें कानून, आपसी सम्मान और साफ़ समझदारी हो। अगर दोनों अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझें और कानून के अनुसार चलें, तो विवाद की संभावना बहुत कम हो जाती है।
कानून दोनों की रक्षा करता है, एक तरफ़, किरायेदार को गलत तरीके से बेदखल होने से बचाता है, और दूसरी तरफ़, मकान मालिक को बेईमान या किराया न देने वाले किरायेदार से सुरक्षा देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि मकान का मालिक होना ये हक़ नहीं देता कि किसी को जब चाहो निकाल दो, और किरायेदार होना ये हक़ नहीं देता कि हमेशा वहीं रहो।
इसलिए ज़रूरी है कि दोनों पक्ष ईमानदारी से व्यवहार करें, कानूनी प्रक्रिया का पालन करें, और हर बात को लिखित किरायानामा (रेंट एग्रीमेंट) में साफ़-साफ़ दर्ज करें।
आख़िर में, याद रखें, किरायेदारी सिर्फ़ एक कानूनी सौदा नहीं होती, बल्कि भरोसे, न्याय और आपसी सम्मान का रिश्ता होती है।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. क्या मकान मालिक बिना कोर्ट ऑर्डर के किरायेदार को निकाल सकता है?
नहीं। किरायेदार को निकालने के लिए कानूनी नोटिस और कोर्ट का आदेश ज़रूरी है। ज़बरदस्ती निकालना अपराध है।
2. अगर मकान मालिक सिक्योरिटी डिपॉज़िट वापस नहीं करता तो क्या करें?
पहले कानूनी नोटिस भेजें। अगर फिर भी पैसा न मिले, तो सिविल या कंज़्यूमर कोर्ट में केस करें।
3. क्या रेंट एग्रीमेंट रजिस्टर्ड कराना ज़रूरी है?
हाँ, अगर किराया 11 महीने से ज़्यादा का है तो रजिस्ट्री ज़रूरी है। इससे दोनों पक्ष सुरक्षित रहते हैं।
4. क्या मकान मालिक कभी भी किराया बढ़ा सकता है?
नहीं। किराया वही बढ़ सकता है जो एग्रीमेंट या किराया कानून में लिखा हो। ज़रूरत पड़े तो किरायेदार आपत्ति कर सकता है।
5. किरायेदार को निकालने के कानूनी कारण क्या हो सकते हैं?
किराया न देना, गलत इस्तेमाल, बिना इजाज़त सबलेट करना या मालिक की ज़रूरी ज़रूरत – इन कारणों से ही निकाला जा सकता है।



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