अक्सर ऐसा होता है कि जब कोई मुकदमा कोर्ट में चल रहा होता है, तो हमें अपने पक्ष में सबूत या गवाह पेश करने होते हैं। ये गवाह या दस्तावेज़ हमारी बात को साबित करने में मदद करते हैं। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जब:
- गवाह बहुत बुजुर्ग या बीमार होता है,
- वह व्यक्ति किसी दूसरे शहर या देश में रह रहा होता है,
- दस्तावेज़ किसी सरकारी विभाग में सुरक्षित होते हैं और लाना संभव नहीं होता,
- या किसी प्रॉपर्टी या लोकेशन की ऑनसाइट जांच जरूरी होती है।
ऐसे में अदालत के पास एक विकल्प होता है, जिसे कमीशन (Commission) कहा जाता है। यह प्रक्रिया न्याय को सुलभ बनाने के लिए होती है, ताकि जब व्यक्ति या सबूत कोर्ट में न आ सकें, तो कोर्ट उनके पास भेजे गए कमीशन से जानकारी प्राप्त कर सके।
कमीशन का मतलब क्या होता है?
कानूनी भाषा में “कमीशन” का मतलब होता है जब कोर्ट किसी तीसरे और निष्पक्ष व्यक्ति (जैसे कोई वकील या सरकारी अधिकारी) को कोई खास काम करने के लिए नियुक्त करता है, जो केस से जुड़ा होता है। यह काम कुछ इस तरह हो सकता है:
- किसी गवाह का बयान लेना
- किसी जगह या संपत्ति की जांच करना
- दस्तावेजों की जांच करना
- किसी व्यक्ति से सवाल-जवाब करना
जब कोर्ट के अंदर ये काम करना मुश्किल होता है, तब कोर्ट यह कमीशन नियुक्त करता है ताकि सही जानकारी और सबूत इकट्ठा किए जा सकें।
कमीशन का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?
कई बार कुछ निजी या व्यावहारिक वजहों से गवाह या सबूत को सीधे कोर्ट लाना मुश्किल या नामुमकिन हो जाता है। ऐसे में कमीशन का सहारा लिया जाता है। इसके कुछ आम कारण ये हो सकते हैं:
- गवाह बहुत बीमार या बुज़ुर्ग है और कोर्ट नहीं आ सकता
- गवाह किसी और शहर या देश में रहता है
- किसी संपत्ति या जगह की मौके पर जांच करनी है
- कोर्ट को यह समझना है कि कोई चीज़ असल में कैसी दिखती है या कैसे काम करती है
ऐसी परिस्थितियों में, कोर्ट कोड ऑफ़ सिविल प्रोसीजर, 1908 के ऑर्डर 26 के तहत कमीशन की अनुमति देता है, ताकि सच तक पहुंचा जा सके।
आर्डर 26 CPC – कमीशन की प्रक्रिया
आर्डर 26 कोड ऑफ़ सिविल प्रोसीजर (CPC) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो अदालत को यह अधिकार देता है कि वह कुछ मामलों में “कमीशन” नियुक्त कर सकती है।
रूल 1 – गवाहों की गवाही के लिए कमीशन
- कब इस्तेमाल होता है: जब कोई गवाह अदालत में उपस्थित नहीं हो सकता, जैसे बीमारी, वृद्धावस्था या अन्य कारणों से।
- क्या होता है: अदालत उस गवाह की गवाही लेने के लिए एक व्यक्ति को नियुक्त करती है, और वह गवाही अदालत में प्रस्तुत की जाती है।
रूल 9 – स्थानीय जांच के लिए कमीशन
- कब इस्तेमाल होता है: जब कोई विवादित मामला है, जैसे ज़मीन का सीमांकन, संपत्ति का मूल्यांकन या नुकसान का आकलन।
- क्या होता है: अदालत एक व्यक्ति को नियुक्त करती है जो उस स्थान पर जाकर जांच करता है और अपनी रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करता है।
- महत्वपूर्ण बात: अदालत यह सुनिश्चित करती है कि यह कदम आवश्यक है और यह पक्षों द्वारा प्रस्तुत सबूतों के आधार पर किया जाता है।
रूल 10-A – वैज्ञानिक या तकनीकी जांच के लिए कमीशन
- कब इस्तेमाल होता है: जब किसी मामले में वैज्ञानिक या तकनीकी जांच की आवश्यकता होती है, जैसे हस्ताक्षर की प्रमाणिकता की जांच या किसी उपकरण की कार्यक्षमता की जांच।
- क्या होता है: अदालत एक विशेषज्ञ को नियुक्त करती है जो उस विशेष जांच को करता है और रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
रूल 12 – कमीशन को निर्देश देना
- क्या होता है: अदालत यह स्पष्ट करती है कि कमीशन को क्या करना है – केवल रिपोर्ट बनानी है या अपनी राय भी देनी है।
- महत्वपूर्ण बात: यह सुनिश्चित करता है कि कमीशन का कार्य स्पष्ट हो और कोई भ्रम न हो।
कमीशन के लिए कौन आवेदन कर सकता है?
जो भी पक्ष मामले में हो, चाहे वो वादी (जिसने केस किया है) हो या प्रतिवादी (जिसके खिलाफ केस हुआ है), कोर्ट से कमीशन लगाने के लिए आवेदन कर सकता है। इसके लिए एक लिखित आवेदन देना होता है, जिसमें यह बताया जाता है कि कमीशन क्यों जरूरी है।
अगर अदालत को लगे कि कमीशन लगाना जरूरी है, तो वह खुद भी बिना किसी के कहे कमीशन नियुक्त कर सकती है।
कमीशन जारी करवाने की प्रक्रिया
1. एप्लीकेशन फाइल करना:
आप या आपके वकील को अदालत में एक लिखित आवेदन देना होता है, जो ऑर्डर 26 CPC के तहत आता है। इसमें ये बातें साफ-साफ लिखनी होती हैं:
- कमीशन क्यों जरूरी है
- कमीशन को क्या काम दिया जाना है
- किस गवाह, जगह या दस्तावेज़ से जुड़ा मामला है
2. अदालत का फ़ैसला:
अदालत ये देखेगी
- क्या कमीशन की मांग सही वजह पर आधारित है?
- क्या ये सबूत केस के लिए जरूरी है?
- क्या सामने वाले पक्ष को कोई आपत्ति है?
अगर अदालत को लगे कि वजह सही है, तो वो कमीशन जारी करने का आदेश दे देती है।
3. कमीशनर को अप्पोइंट करना:
अदालत एक अनुभवी व्यक्ति को कमीशनर बनाती है (जैसे कोई सीनियर वकील या रिटायर्ड जज) । साथ ही, उसे लिखित निर्देश भी दिए जाते हैं:
- कब और कहां जाना है
- क्या जांच करनी है
- गवाही किस तरीके से रिकॉर्ड करनी है (वीडियो, ऑडियो या लिखित में)
- रिपोर्ट कब और कैसे जमा करनी है
4. कमीशन एग्जिक्यूट करना:
कमीशनर तय जगह पर जाकर जांच करता है, गवाही या निरीक्षण करता है और सारे सबूत इकट्ठा करके एक रिपोर्ट तैयार करता है।
5. रिपोर्ट जमा करना:
कमीशनर अपनी रिपोर्ट तय समय के अंदर अदालत में जमा करता है।
6. अगर किसी को आपत्ति हो तो:
वो अदालत में आपत्ति दर्ज कर सकता है। फिर अदालत दोनों पक्षों को सुनकर तय करेगी कि रिपोर्ट को मानना है या नहीं।
क्या कोर्ट कमीशन के अनुरोध को अस्वीकार कर सकता है?
हाँ, कोर्ट आपकी कमीशन की एप्लीकेशन को मना भी कर सकती है अगर:
- गवाह मौजूद है लेकिन वो आना नहीं चाहता (मगर आ सकता है)
- आपने यह नहीं बताया कि कमीशन क्यों जरूरी है
- आप सिर्फ केस को खींचने के लिए कमीशन की मांग कर रहे हैं
ऐसे में क्या होगा? अगर अदालत अर्जी खारिज कर देती है, तो आपको खुद गवाह को कोर्ट में बुलाना होगा। अगर गवाह नहीं आया, तो जरूरी गवाही छूट सकती है और आपका केस कमजोर पड़ सकता है।
क्या कमीशन से ली गई गवाही कोर्ट की गवाही के बराबर होती है?
हाँ, कानून के मुताबिक अगर कमीशन से गवाही सही तरीके से कोर्ट के निर्देशों के अनुसार ली गई है, तो वो गवाही भी उतनी ही मान्य (valid) है, जैसे कोर्ट में ली गई हो। लेकिन:
- सामने वाला पक्ष (विपक्ष) उस गवाह से कमीशन के दौरान सवाल पूछ सकता है।
- अगर कोर्ट को ज़रूरत लगे, तो वो बाद में उस गवाह को कोर्ट में बुला भी सकती है।
मतलब ये कि कमीशन की गवाही भी कोर्ट में पूरी तरह मान्य होती है, जब तक कि सब कुछ नियम के मुताबिक किया गया हो।
कमीशन का खर्च
- जो पक्ष कमीशन की मांग करता है, उसे शुरुआत में इसका खर्च उठाना पड़ता है।
- बाद में, केस के नतीजे के हिसाब से कोर्ट ये तय कर सकती है कि आख़िरी खर्च किसको भरना होगा, आपको, सामने वाले को या दोनों को मिलकर।
खर्च में क्या-क्या शामिल होता है?
- कमीशनर की फीस
- यात्रा और अन्य खर्चे
- विशेषज्ञ की फीस
निष्कर्ष
CPC की ऑर्डर 26 के तहत कमीशन एक प्रभावी कानूनी उपाय है जो न्यायिक प्रक्रिया को लचीला और व्यावहारिक बनाता है। यह न सिर्फ समय की बचत करता है बल्कि आपकी कानूनी रणनीति को भी सशक्त बनाता है।
अगर आप किसी सिविल केस में हैं और आपको लगता है कि गवाह या सबूत को कोर्ट लाना मुश्किल होगा, तो अपने वकील से कमीशन की अर्जी पर बात करें। यह प्रक्रिया आपके पक्ष को मज़बूत कर सकती है और निर्णय में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. क्या मैं किसी दूसरे शहर के गवाह को कमीशन से बुला सकता हूँ?
हाँ, यदि अदालत को लगता है कि गवाह की कोर्ट उपस्थिति मुश्किल है, तो कमीशन जारी कर उसकी गवाही ली जा सकती है ।
2. कमीशन की रिपोर्ट को कोर्ट में कैसे पेश किया जाता है?
कमीशन की रिपोर्ट लिखित रूप में अदालत में जमा होती है, दोनों पक्ष इसे पढ़ सकते हैं और आपत्ति दर्ज कर सकते हैं, जैसा कि CPC में वर्णित है ।
3. क्या कमीशन के बयान पर क्रॉस‑एग्जामिनेशन हो सकता है?
हाँ, अदालत अनुमति देने पर विपक्षी पक्ष कमीशनर से सीधे या बाद में कोर्ट में पूछ‑ताछ कर सकता है ।
4. कमीशन की फीस कितनी होती है?
फ़ीस ₹2,000–₹15,000 तक होती है, जिसमें कमीशनर की फीस, यात्रा और विशेषज्ञ खर्च शामिल होते हैं; अदालत सामान्यतः फीस सीमा तय करती है।
5. क्या कमीशन की रिपोर्ट से केस जीता जा सकता है?
कमीशनर की रिपोर्ट खुद मंज़ूरी नहीं देती, लेकिन यह एक अहम सहायक सबूत होती है—जिसे कोर्ट अन्य सबूतों के साथ देखती है ।



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