भारत सरकार ने 2025 में एक बड़ा फैसला लिया है। अब देश के पुराने आपराधिक कानूनों को बदलकर नए कानून लागू किए गए हैं। पहले जो तीन कानून चल रहे थे—भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA)—वे अब हटा दिए गए हैं। इनकी जगह अब तीन नए और आधुनिक कानून आए हैं, जो तेज़ और लोगों के लिए ज्यादा फायदेमंद माने जा रहे हैं।
ये बदलाव क्यों ज़रूरी थे? क्योंकि पुराने कानून अंग्रेजों के ज़माने में बनाए गए थे, जो आज के समय, समाज और तकनीक के हिसाब से काफी पीछे थे। आज के दौर की ज़रूरतें और नागरिकों की उम्मीदें अब पहले जैसी नहीं रहीं।
इस ब्लॉग में हम समझाएंगे कि ये नए कानून आम लोगों के लिए क्या बदलाव लाते हैं, इससे क्या फायदे हो सकते हैं, और किन बातों पर बहस हो रही है।
पृष्ठभूमि: पुराने कानून क्यों बदले गए?
भारत के पहले आपराधिक कानून—IPC (1860 से), CrPC (1973 से) और साक्ष्य अधिनियम (1872 से)—ब्रिटिश शासन के समय बनाए गए थे। इसलिए ये कानून आज के समय और अपराधों के हिसाब से काफी पीछे रह गए थे। समस्या ये थी कि:
- कानून की प्रक्रिया बहुत पुरानी हो चुकी थी, जिससे मुकदमों में देरी और उलझन होती थी।
- साइबर फ्रॉड जैसे नए तकनीकी अपराधों का इन कानूनों में ज़िक्र ही नहीं था।
- पीड़ितों के अधिकार और फॉरेंसिक जांच (जैसे डीएनए या डिजिटल सबूत) को ज़्यादा महत्व नहीं मिलता था।
- पुलिस के अधिकारों में संतुलन नहीं था और सज़ा देने का ढांचा भी साफ नहीं था।
इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए संसद ने दिसंबर 2023 में तीन नए कानून पास किए। ये नए कानून 1 जुलाई 2024 से लागू हो गए हैं और अब यही भारत के मौजूदा आपराधिक कानून हैं।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 – नया दंड संहिता कानून
यह कानून 1 जुलाई 2024 से लागू हो चुका है और अब इसने पुराने IPC (भारतीय दंड संहिता) की जगह ले ली है। इस कानून के तहत नई चीज़ें जोड़ी गई:
नए अपराध शामिल किए गए हैं जैसे – संगठित अपराध, छोटे संगठित अपराध, टेररिस्ट एक्ट, स्नैचिंग, धोखे से यौन संबंध बनाना, पहचान के आधार पर समूह द्वारा हत्या।
सज़ा अब पहले से ज़्यादा सख्त हुई है।
- 33 अपराधों में सजा बढ़ा दी गई है।
- 83 अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है।
- 23 अपराधों में अब न्यूनतम सज़ा (कम से कम कितनी सजा होगी) ज़रूरी कर दी गई है।
नई तरह की सजा का प्रावधान: छोटे-मोटे अपराधों में अब अदालत “कम्युनिटी सर्विस” यानी समाजसेवा जैसी सजा भी दे सकती है।
यौन अपराधों को लेकर सख्ती:
- गैंगरेप की परिभाषा बदली गई है।
- अब पीड़िता को वयस्क (18 साल या उससे ज़्यादा उम्र) मानकर ही केस दर्ज होगा।
- अगर पीड़िता 18 साल से कम उम्र की है, तो सजा और भी ज़्यादा सख्त होगी।
देशद्रोह कानून में बदलाव:
- पहले वाला धारा 124A (देशद्रोह) अब हटा दी गई है।
- उसकी जगह अब नया अपराध जोड़ा गया है—सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना, जो सिर्फ हिंसक या गंभीर देश-विरोधी कामों पर लागू होगा।
- शांतिपूर्ण विरोध या असहमति को इसमें अपराध नहीं माना गया है।
आत्महत्या की कोशिश अब अपराध नहीं है:
- अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या करने की कोशिश करता है, तो उसे अब कानून के तहत सज़ा नहीं दी जाएगी।
- अब ऐसे मामलों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा माना जाएगा, न कि अपराध।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 – नया प्रक्रिया कानून
यह नया कानून 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है और इसने पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की जगह ले ली है। इसका मकसद केस से जुड़े नियमों और प्रक्रियाओं को आसान, तेज़ और साफ़ बनाना है।इस कानून में काफी बदलाव किए गए हैं:
आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा:
- गिरफ्तार व्यक्ति को अब तुरंत बताया जाएगा कि उसे क्यों पकड़ा गया है।
- पूछताछ के दौरान वकील की मौजूदगी का अधिकार मिलेगा (हालांकि पूरी पूछताछ में नहीं)।
- गिरफ्तारी के बाद तुरंत मेडिकल जांच कराना ज़रूरी होगा।
गिरफ्तारी के नियम बदले गए हैं: अब पुलिस कुछ और मामलों में बिना वारंट के भी गिरफ्तारी कर सकती है।
जांच के लिए समय तय: महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों की जांच अब दो महीने के भीतर पूरी करनी होगी। बाकी मामलों में 60 से 90 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी जरूरी है।
FIR से जुड़े बदलाव:
- अब ऑनलाइन FIR दर्ज की जा सकती है।
- Zero FIR का मतलब है कि कोई भी FIR किसी भी थाने में दर्ज की जा सकती है, चाहे घटना कहीं भी हुई हो।
- पीड़ित को FIR की कॉपी अपने आप मिल जाएगी।
- कुछ मामलों में FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत होगी।
डिजिटल और वीडियो प्रक्रिया:
- अब ई-समन सीधे अदालत से भेजे जाएंगे।
- अपराध स्थल की वीडियोग्राफी ज़रूरी होगी।
- 60 दिनों के अंदर चार्ज तय करने का नियम बना है।
- इसका मकसद है कि फैसले जल्दी आएं और केस सालों तक न चले।
प्ली बार्गेनिंग की समय-सीमा: अब आरोप तय होने के 30 दिन के अंदर ही प्ली बार्गेनिंग (सज़ा कम करवाने के लिए दोष स्वीकार करना) की अर्जी दी जा सकती है। पहली बार अपराध करने वालों को सज़ा में छूट मिल सकती है।
पहली बार अपराध करने वालों को राहत: अगर कोई पहली बार अपराध करता है और उसे अधिकतम सजा की एक-तिहाई से ज्यादा समय तक जेल में रखा गया है, तो कोर्ट को उसे जमानत पर रिहा करना जरूरी होगा।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) 2023 – नया सबूतों से जुड़ा कानून
यह नया कानून 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है और इसने पुराने IEA (1872) की जगह ले ली है। अब सबूतों से जुड़े नियम ज़्यादा साफ़, आधुनिक और तकनीकी बन गए हैं। इस नए कानून में खास बातें हैं:
- डिजिटल सबूत को मान्यता: अब ईमेल, मोबाइल मैसेज, कॉल रिकॉर्डिंग, लोकेशन डेटा, और आवाज की रिकॉर्डिंग जैसे डिजिटल सबूतों को कानूनी रूप से मान्यता दी गई है। यानी ये कोर्ट में सबूत के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
- फॉरेंसिक विशेषज्ञ की अहम भूमिका: अब गंभीर अपराधों के मामले में फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स (जैसे डीएनए या फिंगरप्रिंट जांच करने वाले विशेषज्ञ) का मौके पर मौजूद रहना ज़रूरी होगा। इससे जांच ज़्यादा सही और भरोसेमंद हो सकेगी।
- गवाहों की सुरक्षा और सुविधा: अब गवाहों के लिए सुरक्षा के बेहतर इंतज़ाम किए गए हैं। साथ ही, अब कुछ मामलों में वीडियो कॉल या रिकॉर्डेड बयान के ज़रिए भी गवाही दी जा सकती है, जिससे गवाहों को बार-बार कोर्ट आने की ज़रूरत न पड़े।
नए कानूनों से आम लोगों को क्या फायदे मिलेंगे?
- आधुनिक कानून: अब ये कानून साइबर अपराध, बड़े घोटाले, पर्यावरण को नुकसान और मानव तस्करी जैसे नए जमाने के अपराधों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।
- तेज़ न्याय: मामलों की जांच और सुनवाई के लिए अब समय-सीमा तय की गई है, जिससे फैसले जल्दी आ सकें।
- पीड़ितों पर ध्यान: नए कानून पीड़ितों के अधिकारों को पहले से ज़्यादा मजबूत बनाते हैं। अब पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और डिजिटल तरीके से आसान हो गई है।
- सबूतों में साफ़गोई: अब तकनीक की मदद से डिजिटल और वीडियो सबूत को कोर्ट में साफ़ तौर पर मान्यता मिलती है, जिससे न्याय मजबूत होता है।
- जेल के अलावा सजा के विकल्प: अब कुछ मामलों में समाज सेवा जैसी इंसानियत भरी सजा भी दी जा सकती है।
- जवाबदेही में सुधार: वीडियोग्राफी जैसे तकनीकी उपायों से अब पुलिस और अदालत की कार्यवाही ज्यादा पारदर्शी और ज़िम्मेदार होगी।
गृह मंत्री अमित शाह ने इन कानूनों की तारीफ करते हुए कहा कि ये “जनता केंद्रित सुधार” हैं और सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले तीन सालों में ये पूरे देश में पूरी तरह लागू हो जाएं।
क्या नया आपराधिक कानून विधेयक संविधान के अनुरूप है?
संविधानिक अधिकार: कानून को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) से जोड़ा गया है।
क्या यह विधेयक अधिकारों का उल्लंघन करता है? कुछ जानकारों का मानना है कि कठोर सजा की प्रक्रिया आरोपी के मूल अधिकारों को प्रभावित कर सकती है।
यह विधेयक सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परीक्षण के अधीन हो सकता है।
नए आपराधिक कानून विधेयक में नागरिकों के खिलाफ संभावित विवाद
- शक्ति का दुरुपयोग? सरकार या पुलिस को अधिक शक्ति मिलने से नागरिक स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है।
- अपराधियों के अधिकार: आरोपी के पास भी इंसाफ पाने का अधिकार होना चाहिए, ये संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
निष्कर्ष: क्या नया आपराधिक कानून विधेयक सही दिशा में कदम है?
नए कानून का उद्देश्य एक सुरक्षित, न्यायपूर्ण और उत्तरदायी समाज की स्थापना है। हालांकि कुछ प्रावधान विवादास्पद हो सकते हैं, लेकिन अगर सही तरीके से लागू किया जाए तो यह विधेयक भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को 21वीं सदी के योग्य बना सकता है।
नागरिकों के लिए संदेश: जानिए अपने अधिकार, समझिए कानून और जरूरत पड़े तो कानूनी सलाह जरूर लें।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. क्या नया आपराधिक कानून विधेयक नागरिकों के लिए फायदेमंद है?
हाँ, यह विधेयक अपराधों को रोकने, पीड़ितों को समय पर न्याय देने और नागरिक सुरक्षा को बेहतर करने के लिए लाया गया है।
2. इस विधेयक से महिलाओं और बच्चों को क्या सुरक्षा मिलेगी?
महिलाओं के लिए कड़े बलात्कार कानून, घरेलू हिंसा पर त्वरित कार्रवाई और बच्चों के लिए यौन शोषण, बाल श्रम जैसे अपराधों के खिलाफ सख्त प्रावधान किए गए हैं।
3. साइबर अपराधों से निपटने के लिए क्या नए प्रावधान किए गए हैं?
डेटा सुरक्षा, ऑनलाइन फ्रॉड, सोशल मीडिया उत्पीड़न आदि को अपराध घोषित कर डिजिटल सबूतों को अदालत में मान्यता दी गई है।
4. क्या यह विधेयक संविधान के खिलाफ है?
अभी तक विधेयक संविधान का उल्लंघन नहीं करता, लेकिन कुछ धाराओं को लेकर न्यायिक समीक्षा की संभावना है।
5. अगर किसी को इस विधेयक से असहमति है तो वह क्या कर सकता है?
व्यक्ति उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है, या जनसुनवाई व जन आंदोलन का सहारा ले सकता है।



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