जमानत बांड और BNSS की धारा 491

Bail bond and section 491 of BNSS

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता  (BNSS) में ऐसी कई धाराएं हैं जो नागरिकों के अधिकार और कानूनी प्रक्रिया के बीच संतुलन स्थापित करती हैं। इन्हीं में से एक है जमानत बांड एक ऐसा दस्तावेज जो किसी आरोपी को अस्थायी राहत देता है। साथ ही, BNSS की धारा 491 यह सुनिश्चित करती है कि इस राहत का दुरुपयोग न हो।

अगर आप या आपका कोई परिचित किसी केस में फंसा है, और आप जानना चाहते हैं कि जमानत बांड क्या होता है, और अगर कोर्ट की शर्तें न मानी जाएं तो क्या होता है, तो यह लेख आपके लिए बेहद जरूरी है।

जमानत बांड (Bail Bond) क्या होता है?

जमानत बांड एक कानूनी सुरक्षा दस्तावेज होता है जो आरोपी को जेल से बाहर रहने की अनुमति देता है, बशर्ते कि वह कोर्ट की शर्तों का पालन करे और सभी सुनवाई की तारीखों पर अदालत में उपस्थित हो।

इसमें क्या शामिल होता है?

  • एक निश्चित धनराशि की गारंटी
  • अदालत में पेश होने का वाद
  • किसी गवाह को प्रभावित न करने या दोबारा अपराध न करने की शर्त

उदाहरण: अगर किसी पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 115 (मारपीट) के तहत FIR दर्ज होती है, तो वह अदालत में जमानत याचिका दायर करता है। अदालत उससे 10,000 रुपये की जमानत बांड भरवाकर उसे अस्थायी रूप से रिहा कर सकती है। यदि आरोपी कोर्ट नहीं आता, तो यह बांड निरस्त हो सकता है और उसकी राशि जब्त की जा सकती है।

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जमानत बांड क्यों जरूरी होता है?

“न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए जमानत बांड एक महत्वपूर्ण कानूनी औज़ार है।”

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यह सुनिश्चित करता है कि:

  • आरोपी को न्यायिक प्रक्रिया से भागने का अवसर न मिले
  • अदालत में नियमित उपस्थिति बनी रहे
  • न्याय व्यवस्था का सम्मान बना रहे

BNSS की धारा 491 क्या है?

धारा 491 BNSS तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति जमानत लेने के बाद कोर्ट की शर्तों का उल्लंघन करता है।

कब लागू होती है?

  • आरोपी अदालत में पेश नहीं होता
  • कोर्ट की तय शर्तों का पालन नहीं करता

तब क्या होता है?

  • कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) भेजा जाता है
  • संतोषजनक जवाब न मिलने पर बांड राशि जब्त
  • भुगतान न करने पर वसूली की कार्यवाही शुरू होती है

BNSS 491: Step-by-Step प्रक्रिया

  • बांड उल्लंघन: आरोपी कोर्ट की तारीख पर हाजिर नहीं होता
  • Show Cause Notice: कोर्ट पूछती है – “बांड राशि क्यों न जब्त की जाए?”
  • सुनवाई: आरोपी अपनी सफाई देता है
  • जब्ती आदेश: संतोषजनक जवाब न मिलने पर राशि जब्त
  • वसूली: राशि न देने पर कुर्की या अन्य संपत्ति जब्त की जा सकती है

बांड तोड़ने पर क्या हो सकता है?

  • कोर्ट में अवमानना का केस बन सकता है
  • आगे की जमानत याचिकाएं अस्वीकार हो सकती हैं
  • अतिरिक्त जुर्माना या गिरफ्तारी का सामना करना पड़ सकता है

महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु

  • BNSS 491 कोर्ट को यह शक्ति देती है कि वह बांड राशि की वसूली या कुर्की का आदेश दे सके।
  • यह प्रक्रिया आरोपी और जमानती (surety) दोनों पर लागू हो सकती है।
  • यदि आरोपी की अनुपस्थिति का कारण वैध (जैसे मेडिकल इमरजेंसी) हो, तो कोर्ट राहत भी दे सकती है।

गलतफहमी से बचें: क्या BNSS 491 संपत्ति जब्ती से संबंधित है?

नहीं। BNSS 491 संपत्ति कुर्की से संबंधित नहीं है, बल्कि जमानत बांड की उल्लंघना पर लागू होती है। कुर्की की कार्यवाही एक माध्यम है बांड राशि की वसूली का, लेकिन यह तभी लागू होती है जब आरोपी या गारंटर कोर्ट द्वारा निर्धारित राशि नहीं चुकाते।

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जमानत प्रक्रिया में आम गलतियां (और कैसे बचें):

गलतीसमाधान
सुनवाई की तारीख भूल जानाकोर्ट से नोटिस पेपर संभालकर रखें, वकील से नियमित संपर्क बनाए रखें
गारंटी देने वाले को जानकारी न होनाजमानती को पूरी शर्तें पहले से समझाएं
बांड राशि तय न कर पानाकोर्ट से राशि कम करवाने के लिए याचिका दी जा सकती है

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय 

इंदर मोहन गोस्वामी बनाम उत्तरांचल राज्य [(2007) 12 SCC 1] के महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जमानत का उद्देश्य सज़ा देना नहीं, बल्कि केवल यह सुनिश्चित करना है कि आरोपी ट्रायल के दौरान उपस्थित रहे। कोर्ट ने कहा कि बिना उचित कारण के जमानत बांड को जब्त नहीं किया जाना चाहिए और अदालतों को अनावश्यक कठोरता से बचना चाहिए।

संदीप जैन बनाम नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली [(2000) 2 SCC 66] में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आरोपी की गैरहाज़िरी के पीछे कोई वैध कारण है, जैसे कि मेडिकल इमरजेंसी, तो कोर्ट को विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए। केवल तकनीकी गलती के आधार पर बांड जब्त करना न्यायसंगत नहीं होता।

भले ही दौलत राम व अन्य बनाम हरियाणा राज्य [(1995) 1 SCC 349] केस CrPC की धारा 439/ 491 BNSS  से जुड़ा हो, लेकिन इसमें भी कोर्ट ने दोहराया कि जमानत का उद्देश्य सिर्फ आरोपी को ट्रायल के लिए प्रस्तुत करना है, न कि उसे दंडित करना। अगर आरोपी गलती से या किसी उचित कारण से अनुपस्थित रहता है, तो अदालत को पहले उसका स्पष्टीकरण लेना चाहिए, फिर कार्रवाई करनी चाहिए।

निष्कर्ष

जमानत बांड एक संवेदनशील कानूनी प्रक्रिया है जो आपकी स्वतंत्रता और कोर्ट की शर्तों के बीच संतुलन बनाती है। BNSS की धारा 491 यह सुनिश्चित करती है कि इस व्यवस्था का दुरुपयोग न हो।

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FAQs

1. जमानत बांड में राशि कितनी होती है?

यह कोर्ट तय करती है, मामले की गंभीरता के अनुसार।

2. अगर मैं कोर्ट न जाऊं तो बांड क्या होगा?

बांड निरस्त हो जाएगा और राशि जब्त की जा सकती है।

3. क्या जमानत बांड वापस मिलती है?

हाँ, अगर आप सभी तारीखों पर कोर्ट में उपस्थित होते हैं और शर्तें पूरी करते हैं।

4. BNSS 491 क्या संपत्ति ज़ब्त करने की धारा है?

नहीं, यह बांड उल्लंघन पर जुर्माना और वसूली की प्रक्रिया से जुड़ी है।

5. अगर गारंटर बांड भरता है और आरोपी नहीं आता तो क्या होगा?

गारंटर को भी राशि चुकानी पड़ सकती है या कोर्ट कार्रवाई कर सकती है।

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